जरा ड्राइंग रुम से बाहर तो झांकिए, पूरा भारत आपका इंतजार कर रहा है। ये रवीश कुमार का विश्लेषण है, एनडीटीवी इंडिया का विश्लेषण है उस फिल्म को लेकर जिसे मेरे साथी ब्लॉगर भारतीय औऱ विदेशी के साथ जोड़कर देख रहे हैं। पोस्ट को देखकर एकबारगी तो मन में आया कि एक कमेंट दे मारुं कि क्या भारतीयता का सवाल आज भी हमारे लिए उतना ही महत्वपूण है जितना कि आज से चालीस-पचास साल पहले रहा है। अगर तिरंगे का होना ही एक बड़ा सच और शाश्वच सच है तब तो भारतीयता का चिरकाल तक जिंदा रहना तय है। पूरी पोस्ट के लिए क्लिक करें- http://teeveeplus.blogspot.com
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_23.html?showComment=1235440800000#c2113025754518676201'> 24 फ़रवरी 2009 को 7:30 am बजे
पूरी पोस्ट के लिए दिया गया लिंक भी इसी ब्लॉग का है, जो वापस यहीं पहुँचा देता है। पूरी पोस्ट देखने के लिए इसके अलावा किस ब्लॉग पर जाना होगा?
- आनंद
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_23.html?showComment=1235450220000#c4222149312795418025'> 24 फ़रवरी 2009 को 10:07 am बजे
सरजी पहले लिंक ठीक कर दें, दरअसल पोस्ट पढ़ने के लिए जब क्लीक करता हूं तो गाहे-बगाहे पर ही आ जाता हूं।
वैसे टीवी प्लस पर जाकर पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरी प्रतिक्रिया-
शुक्रिया विनीत भाई, मौजू पोस्ट करने के लिए। जहां तक ड्राइंग रूम से बाहर झांकने का बात कही जा रही है तो मैं कहूंगा कि झांकने की नहीं वहां जाने की भी आवश्यकता है।
दूसरी बात जो आपने कही- कुछ लोग डैनी बॉएल की फिल्म को अलग अंदाज में ले रहे है तो मैं उनका विरोधी हूं। अरे गुरु आप कब ग्लोबल हो जाते हैं और कब खुद को ड्रांइग रूम में कैद कर लेते हैं पात ही नहीं चलता है। हमें ग्लोबल होना होगा, ताकि सभी आगे बढ़ सकें।
तीसरी बात न्यूज चैनलों को लेकर। तो जान लें अब गांव-देहात आपसे अंजन नहीं है। वो आश्चर्यचकित नहीं होता है आपके माइक और कैमरे को देखकर। वो अब इससे अनाजन नही है। आजतक, इंडियाटीवी, सहार और इटीवी ने इन्हें आपसे दोस्ती करा दी है।
हमारे कोसी इलाके में लोग एनडीटीवी के कुछ रिपोर्टरों को भी पहचानते हैं, जिसमें रवीश कुमार भी हैं। शायद रवीश इसी कारण बेबक होकर कह रहे हैं कि - "जरा ड्राइंग रुम से बाहर तो झांकिए, पूरा भारत आपका इंतजार कर रहा है।"