अभी थोड़ी देर पहले ही बैंग्लूर से सीमा सचदेव ने मेल के साथ, दक्षिण भारत (दैनिक समाचार पत्र) बैंग्लूर संस्करण की कटिंग भेजी है। बधाई देते हुए लिखा है कि कल आपने अपने ब्लॉग पर जो लिखा है-"ब्लॉग के जरिए बन सकती है न्यूज नेटवर्किंग" उसकी चर्चा इस अखबार में है। मैंने सोचा आपको बता दूं। इस मसले पर बातचीत बढ़ाई जाए, इसके पहले सीमा का बहुत-बहुत धन्यवाद।
इस अखबार ने ब्लॉग बाइट्स के तहत मेरी पोस्ट की चर्चा की है जिसमें मैंने आनेवाले समय में ब्लॉग के जरिए न्यूज नेटव्रकिंग खड़ी होने की बात की है। हलॉकि अखबार ने हूबहू मेरी पोस्ट नहीं छापी है,कुछ अपनी तरफ से भी फेरबदल किया है लेकिन दिलचस्प है कि जिस बात को मैं संभावना के तौर पर देख रहा हूं, उसे अखबार ने पुष्टि के तौर पर पेश किया है। अखबार की लाइन है- इस बात का प्रमाण भी काफी मिल रहा है कि मुख्यधारा की मीडिया ब्लॉगरों के पीछे चल रहा है।
ब्लॉग के शुरुआती दौर को याद करें तो ब्लॉगिंग कर रहे लोगों की जब अखबारों और मेनस्ट्रीम की मीडिया ने सुध लेने शुरु की तो इस बात की संभावना बनी कि आने वाले समय में ब्लॉग मेनस्ट्रीम मीडिया की तुरही बनकर रह जाएगा। अखबार में कुछ लोगों को ब्लॉग के उपर बात करने का मौका मिला। चर्चाकार ब्लॉग में चल रहे सामयिक संदर्भों, प्रासंगिकता और पसंद के हिसाब से ब्लॉगों और पोस्टों की चर्चा करने लगे। जिस किसी की पोस्ट छपती वो इसे अपने ब्लॉग पर लगाने लगे ( जैसा कि आज मैं भले ही पहली बार हो, कर रहा हूं)। कई लोगों को ब्लॉग के जरिए पहचान मिली और प्रिंट माध्यम में भी इनकी दखल बढ़ी। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि जितनी आसानी से प्रिंट में ब्लॉग कर रहे लोगों को पहचान मिली, संभवतः सीधे एप्रोच करने पर वक्त लग जाता। मैंने महसूस किया कि ब्लॉग को लेकर जो ज्यादा सीरियस हैं, लगातार लिखना चाहते हैं वो धीरे-धीरे प्रिंट माध्यमों की तरफ स्विच करते चले जाएंगे।
दूसरी स्थिति ये बनी कि लोगों ने अपने-अपने ब्लॉग को डॉट कॉम में बदल दिया और उसे उसी रुप में स्थापित करने में जुट गए। यहीं से ये साप होने लगा कि लोग ब्लॉगिंग सिर्फ और सिर्फ अपने अनुभव बांटने के लिए नहीं कर रहे हैं। इसके जरिए वो एक बड़ी उड़ान भरने की तैयारी में हैं। अभिव्यक्ति का नया आकाश, पहचान की एक नयी दुनिया और जाहिर है कुछ हद तक खर्चे पानी के लिए एक वैकल्पिक स्रोत। इन सबके लिए उन्होंने पूरी उर्जा के साथ काम करने शुरु कर दिए। मेनस्ट्रीम की मीडिया को नॉट एनफ बताने लगे और खबरों का विश्लेषण अपने तरीके से करने लगे। कुछ उन खबरों को भी जुटाने लगे जो कि अब तक खबर ही नहीं बन पाते। मीडिया संस्थानों के भीतर जो खबरों की भ्रूण हत्याएं होती रही, उसमें कमी आने लगी। अगर आप खबरों की हत्या औऱ उसके दबाए जाने के मसले पर बात करें तो मीडिया संस्थान भी एक जरुरी स्पॉट होगा। अब मीडिया के भीतर की खबरें तेजी से अंतर्जाल में आने लगे। खबरें बदलने लगी, खबरों का मिजाज बदलने लगा औऱ खबरों की वरीयता बदलने लगी।
एकबारगी तो ऐसा लगा कि मेनस्ट्रीम मीडिया और ब्लॉग आपस में लड़ पड़ेगे, इन दोनों के बीच जमकर मार-काट होगी। इसकी वजह भी साफ रही। ब्लॉग ने मेनस्ट्रीम मीडिया से जुड़े लोगों के रवैये के प्रति जिस स्तर पर असहमति जतायी, वही ब्लॉगर के कीबोर्ड उनकी आंखों में चुभने लगे। देश और दुनिया के मसले पर साझा-साजा करते लेकिन जैसे ही मामला मीडिया का आता, उदासीन बन जाते।
तीसरी स्थिति ये भी बनी कि मीडिया के भीतर कई विभीषण पैदा हुए। संस्थानों के मेल इधर-उधर भेजने लग गए। उसे पब्लिक डोमेन में लाने की छटपटाहट बढ़ने लगी। इस मामले में उनकी सक्रियता इस हद तक बढ़ी कि पहचान की प्राथमिकता तक बदलती मालूम होने लगी- पहले वो ब्लॉगर हैं, तब पत्रकार। पेशे की शर्तों से मुक्त एक लिक्खाड़। ब्लॉग के भीतर ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसलिए यहां तक तो मामला साफ है कि आनेवाले समय में कुछ संस्थानों के भीतर पत्रकारिता कर रहे पत्रकार इस ब्लॉग के जरिए बननेवाले न्यूज नेटवर्क में खुलकर सामने आएंगे। संभव है इस नए मिजाज की नेटवर्किंग में भुला दिए गए पत्रकारों के तेवर फिर से प्रासंगिक हो उठे।...
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_12.html?showComment=1234445340000#c7141444349037736146'> 12 फ़रवरी 2009 को 6:59 pm बजे
बहुत बहुत बधाई....
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_12.html?showComment=1234460580000#c2987662596247887115'> 12 फ़रवरी 2009 को 11:13 pm बजे
कोई माने न माने, आने वाले समय में नेट पत्रकारिता की अपनी एक दुनिया होगी।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_12.html?showComment=1234595160000#c800638955172097640'> 14 फ़रवरी 2009 को 12:36 pm बजे
मुझे थोड़ा आश्चर्य है कि अभी तक इसको सिर्फ़ एक संभावना के रूप में क्यूँ देखा जा रहा है। शायद इसलिए कि यह भारत के लिए नया है। क्यूंकि अगर टेक्नोलॉजी जगत में देखें तो पश्चिमी देशों में ब्लोगर्स का इस मामले में काफ़ी दखल है। काफ़ी सारी ब्लॉग साइट्स हैं जो मेनस्ट्रीम मीडिया से ज़्यादा पसंद की जाती हैं