आपको क्या लगता है,लोगों के पास सुलगाने के लिए,चर्चा में बने रहने के लिए,उठा-पटक मचाने के लिए मुद्दों की कोई कमी है। अकेले मीडिया हाउस ही नहीं है जहां पद को लेकर, पैसे को लेकर, जाति को लेकर और राजनीति को लेकर खेल होते रहते हैं. देश में ऐसे हजारों प्रोफेशन,हजारों क्या जितने भी प्रोफेशन हैं, सबके भीतर खेल चलते रहते हैं। हर कोई किसी न किसी का गला दबाने के लिए तैयार है,दबोचने के लिए तैनात है और मौका मिलते ही पिल पड़ने के लिए उतारु है। अकेले मीडिया नहीं है जहां कि छंटनी होने पर लोगों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ रहा है,काम करनेवाले लोगों के साथ ज्यादती हो रही है,लोग असंतुष्ट हैं। ये हाल लगभग पूरे देश में है। हर आदमी अपने से नीचेवाले को कुचलने की कवायद में जुटा है।
आपको क्या लगता है कि ब्लॉग की दुनिया में केवल वो ही लोग शामिल हैं जिन्हें या तो मीडिया की गतिविधियों में सबसे ज्यादा रुचि है या फिर मीडिया से सीधे-सीधे जुड़े हैं। शायद ही ऐसा कोई पेशा बचा हो(जिस पेशे में रहते हुए लिखने-पढ़ने की गुंजाइश हो)जहां के लोग ब्लॉगिंग नहीं करते हों। अब इस हिसाब से सोचिए तो कि अगर सारे ब्लॉगर अपने-अपने पेशे से जुड़ी खबरों को,अंदुरुनी बातों को ब्रेकिंग न्यूज के तौर पर या खबरी अड्डा के तौर पर पेश करने लग जाएं तो कितनी बड़ी क्रांति आ जाएगी। सब अपने-अपने पेशे के सिस्टम की बखिया उधेड़ने लग जाएं तो सुराज आते कितने दिन लगेंगे। लेकिन नहीं, आप ये मत कहिए कि सारे ब्लॉगर बखिया नहीं उधेड़ना नहीं चाहते, वो चाहते हैं कि सिस्टम की पोल-पट्टी खोल दें लेकिन वो खबरी अड्डा नहीं होना चाहते।
खबरी अड़्डा सहित दूसरे तमाम ब्लॉग के संचालकों को पता है कि सच बोलने की क्या सजा हो सकती है, कितनी फजीहत हो सकती है, घर उजड़ सकता है, रोजी-रोटी छिन सकती है। फ्लैट के लोन चुकाने में परेशानी हो सकती है, पार्किंग में गाड़ी रहते स के धक्के खाने पड़ सकते हैं, इसलिए बाकी लोग व्यावहारिक बन जाते हैं। बनना भी चाहिए,जज्बाती होकर किसी के विरोध में लिखने से बेहतर है और वो भी तब जबकि पता हो कुछ खास फर्क पड़ने वाला नहीं है( मुझे ऐसा मानने में अभी तक संदेह है, तब बेकार में हु्ज्जत मोल लेने से कोई फायदा नहीं है। ब्लॉगर वही लिखे, जो स्वांतः सुखाय होने के साथ-साथ दूसरों के कलेजे को भी राहत दे,थर्ड पर्सन में बातें करे, विरोध भी करे तो बड़ी-बड़ी चीजों का, बड़े-बड़े लोगों का जो कि अक्सर नजरअंदाज कर जाए, आस-पास की चीजों का विरोध करना रिस्की हो सरता है। ऐसा सॉफ्ट लिखे कि कुछ कमेंट भी आ जाए, न उधो से लेना, न माधो को देना वाली शैली में।
लेकिन मन तो मन है। उसका मन कभी शिकायत करने का होता है, दूसरों को गरियाने का होता है, सुबह अगर किसी को पायजामा पहनाने का मन करता है तो शाम होते ही उसका नाड़ा खीचने का मन करता है। कभी मन करता है कि जहां काम कर रहे हैं, वहीं के लोगों को दमभर गरिआए, दमभर कोसें, जिस संस्थान में काम कर रहे हैं उसे ही भ्रष्ट साबित करें। भड़ासियों की तो अक्सर सलाह भी रही है कि मन में कुछ है तो उगल दीजिए, मन हल्का हो जाएगा। मन तो हल्का हो जाएगा लेकिन उगलते किसी ने देख लिया तो। लोक-लाज की चिंता तो लोगों को अक्सर सताती है। अब किया जाए तो क्या किया जाए। बंद कमरे में माथा नोचा जाए, मन मसोस कर छोड़ दिया जाए या फिर भीतर ही भीतर कुंठित होते रहे। असल जिंदगी में इंसान क्या करे, बहुत मुश्किल है ये सब तय कर पाना। लेकिन
अंतर्जाल का यही तो मजा है जो मन में आए लिख दो, जिस पोस्ट पर मन करे, कुछ भी कमेंट ठेल दो। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे सरकारी ऑफिसों की सीढियों से गुजरते हुए जहां मन करता है वहां मनचला थूक जाता है। वहां तो फिर खतरा है कि जहां किसी ने कभी पकड़ लिया तो कुछ नहीं तो कम से कम तमाशा तो हो ही जाएगा. लेकिन यहां उसकी भी झंझट नहीं। अनामी होकर सब लीला करो, अक्खड़ टिप्पणीबाज बनो, जहां मन करे वहां टिप्पणी करके अपनी भड़ास निकालो। औऱ जब टिप्पणी से मन न भरे तो खबरी अड्ड़ा बन जाओ। प्रोफाइल में कुछ भी सही-सही मूर्त लिखने के बजाय, निरगुनिया बन जाओ। कोई जानने के लिए क्लिक करे कि आप कौन हैं, क्या करते हैं तो निरगुनिया बनकर जबाब दो, जहां-जहां खबर हैं, वहां-वहां हम है। इससे भारी सुविधा औऱ क्या होगी..पहचान भी बची रह गयी और देखते ही देखते दार्शनिक की पांत में भी शामिल हो गए। उन ब्लॉगरों से तो लाख दर्जो बेहतर ही हुए जो पहचान के साथ भले ही लिखते हैं लेकिन सब घास-फूस, किसी बात से कभी खलबली नहीं मचती, लोग सुस्त तरीके से पढ़कर सुस्त हो जाते हैं।
( ये पोस्ट किसी भी तरह की खुन्नस से नहीं लिखी गयी है, लिखने की वजह खुद खबरी अड्डा ने मुहैया करायी है। पूरी वजह अगली पोस्ट में
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html?showComment=1233595740000#c8006163347025536038'> 2 फ़रवरी 2009 को 10:59 pm बजे
यह भी उसी स्कूल के पढ़े है जहा से कुमार आनंद,अलोक तोमर ,सुरेद्र किशोर ,शम्भू नाथ शुक्ल ,अम्बरीश कुमार ,अभय कुमार दुबे और बालेन्दु दाधीच जैसे पत्रकार निकले है. वाही जिसे नोसिखिये पत्रकार मारा हुआ अखबार बताते है यानि जनसत्ता .
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html?showComment=1233597180000#c4347798547374418089'> 2 फ़रवरी 2009 को 11:23 pm बजे
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html?showComment=1233597240000#c5644400653034841053'> 2 फ़रवरी 2009 को 11:24 pm बजे
इस देश में यदि बेनामी लोग क्रांति लाने लगे तो क्या बात हो जाए..हालांकि क्रांति ब्लॉग से नहीं आती है..सतत प्रक्रिया है..खबरी अड्डा भी इस बात को समझते होंगे कि यदि वे खुलकर सामने आते हैं तो क्या दिक्कत आ सकती है। बड़ी बाते करना एक बात है और उसके लिए लड़ना दूसरी बात है। यदि किसी पत्रकार को नौकरी से निकाल दिया जाए तो कितने ब्लॉगर उसकी मदद के लिए आगे आगें है? पता नहीं। ऐसे में सिर्फ मीडिया को गरियाने से कुछ नहीं होगा...भड़ास निकालना है तो खुल अपने दम पर निकालें या फिर बेनाम होकर अपना काम करते रहे हैं..
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html?showComment=1233657600000#c3379856657037597116'> 3 फ़रवरी 2009 को 4:10 pm बजे
i agree with your post
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html?showComment=1233674640000#c4959568342877326565'> 3 फ़रवरी 2009 को 8:54 pm बजे
mere vichaar se aap dono hee galat mudde par ulajh rahe hain, ya shaayad mudda aur uddeshey to theek hai magar shaayad tareekaa alag alag. jo bhee main to sirf itnaa jaantaa hoon ki iskee saarthaktaa tabhee siddh hogee jab kuch achaa parinaam nikle, sirf chhechaaledaaree kaa koi laabh nahin. waise itnaa to maantaa hoon ki aap dono kaabil hain.
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_02.html?showComment=1233914280000#c8574831268041542137'> 6 फ़रवरी 2009 को 3:28 pm बजे
chhodo bhai uski bhi kuch majburi rahi hogi.