ब्लॉग को भले ही लोग अपनी मासूमियत बिखरेने और मन की बात कहने का माध्यम मानते आए हों लेकिन अब इसमें वैसा कुछ मामला बहुत अधिक रहा नहीं है। अधिकांश ब्लॉगर किसी न किसी एजेंडे के तहत ब्लॉगिंग कर रहे हैं। ब्लॉग के भीतर एक नए वर्ग का उदय तेजी से हो रहा है जो पहले के वर्ग से बिल्कुल अलग है। ये वर्ग ब्लॉग के जरिए पत्रकारिता का काम कर रहा है। इसे खराब कहें या फिर अच्छा । लेकिन सच बात तो यह है कि यहां तो फिलहाल नहीं अमेरिका जैसे देशों ने इसी वर्ग के दम पर न्यूज नेटवर्किंग खड़ी करने की रणनीति बनाने में जुट गया है। दुनिया की कई ऐसी बड़ी खबरें हैं जिसे कि ब्लॉगर ब्रेकिंग करने लगे हैं। यानि एक तरह से ब्रेकिंग न्यूज के मामले में न्यूज एजेंसी औऱ चैनलों के रिपोर्टर्स पीछे पड़ गए हैं। मीडिया का एक नया रुप है, नेटवर्किंग का नया तरीका है जो कि कन्वेंशनल मीडिया को सीधे-सीधे चुनौती दे रहा है।
हिन्दी मीडिया में जिस तरह से न्यूज चैनलों को टीआरपी के नाम पर जमकर आलोचना करने की परंपरा सी बन गयी है, उसी की तर्ज पर अब ब्लॉग के बारे में लोगों ने कहना शुरु कर दिया है कि- ब्लॉगर अपने ब्लॉग की हिटिंग के लिए कुछ भी पोस्ट करते हैं। थोड़ी देर के लिए इस धारणा से अलग, हीटिंग पाने की बेचैनी को हम न्यू नेटवर्किंग संदर्भ में बात करें तो ऐसा करना मीडिया को एक नई दुनिया में ले जाने जैसा है। मीडिया संस्थानों के अब तक कन्वेंशनल नेटवर्किंग से बिल्कुल एक नयी नेटवर्किंग का उदय है। फर्ज कीजिए कोई भी अखबार या न्यूज एजेंसी देश के एक हजार ब्लॉगरों के बीच अपनी नेटवर्किंग खड़ी करता है। ये एक हजार वो ब्लॉगर हैं जो कि अपने ब्लॉग की हिटिंग के लिए रोज नए मुद्दे लेकर आते हैं, विभिन्न मसलों पर नए तरीके से बात करते हैं, अपने तर्क रखते हैं। पोस्टिंग के दौरान अपनी ओर से जुटायी सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं। स्थानीय घटनाओं को लेकर उनके अपने विजुअल्स होते हैं। ये सारी सामग्री संभव है कि किसी रिपोर्टर द्वारा जुटायी सामग्री से ज्यादा ऑथेंटिक हो। अभी तक ब्लॉग के जरिए पोस्ट की शक्ल में प्रस्तुत खबरों पर गौर करें तो एकाध मामले को छोड़कर कहीं भी ऐसा नहीं हुआ है कि ब्लॉगर ने गलत खबर लिखी हो, खबर के नाम पर मनगढंत बातें की हो। ब्लॉगर जहां की बात कर रहा है, वहां तक पहुंचने में रिपोर्टर को वक्त लगे, तब तक कई चीजें बदल जाए। दूसरा कि मीडिया संस्थानों द्वारा खबरों को प्रस्तुत करने का जो तरीका है वो ब्लॉगिंग करने से ज्यादा पेचीदा है, टाइम टेकिंग है। इसलिए इनपुट के साथ-साथ आउटपुट में भी ब्लॉगर बाजी मार लेगा। स्थानीयता पर जितनी पकड़ एक ब्लॉगर की होगी, शायद रिपोर्टर की न हो। एक बड़ी बात ये भी है कि चौबीस घंटे के खबरिया चैनलों के होने के वाबजूद,आए दिन थोक के भावों में अखबारों के संस्करण निकलने के वाबजूद खबरों का एक बड़ा कोना इन सबसे छूट जाता है। ब्लॉगिंग के जरिए इस कोने को छू पाना ज्यादा आसान है। एक बड़ा उदाहरण आपके सामने है। ब्लॉगिंग के पहले मीडिया संस्थानों के अंदर क्या कुछ हो रहा है, ये कितने लोगों तक पहुंच पाती थी। दुनिया की खबर लेने वाले मीडिया की खबर कौन जान पाता था। लेकिन अब देखिए, स्थिति बिल्कुल उलट है। मीडिया द्वारा तय की गयी रणनीति में कि कौन-सी बात खबर होगी, कौन-सी नही, ब्लॉगिंग ने अभिव्यक्ति के स्तर पर सेंधमारी तो शुरु कर ही दी है।
अब ऐसे ब्लॉगरों के जरिए अखबारों या चैनलों के लिए न्यूज नेटवर्किंग खड़ी की जाए तो वो कॉन्वेंशनल नेटवर्किंग से कितना अलग होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।....आगे भी जारी।
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234254900000#c5894224037856833372'> 10 फ़रवरी 2009 को 2:05 pm बजे
बहुत सही......
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234270920000#c297152364525489311'> 10 फ़रवरी 2009 को 6:32 pm बजे
कह तो ठीक रहे हो विनीत जी। मैं भी एक चीज करने की सोच रहा हूँ देखो होती है या नही।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234271400000#c3355525203055468697'> 10 फ़रवरी 2009 को 6:40 pm बजे
Bahut badhiya. aap bloggers ke importance ko achchhi tarah se pratsut kiye hain. Kisi ko pahal lekar bloggers ke dwara prastut samachar aur inputs ko kahin publish kare. Bahut saari jankariyan blogs ke through mil jaati hai.
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234273800000#c2478319928521581366'> 10 फ़रवरी 2009 को 7:20 pm बजे
पत्रकार कहलाने की जगह लोग अब ब्लॉगर कहलाना पसंद करेंगे. आभार.
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234278540000#c2925641714217471278'> 10 फ़रवरी 2009 को 8:39 pm बजे
सही सोच है। पर अभी हाजमोला की जरूरत महसूस कर रहा हूं।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234286400000#c6480953908049187246'> 10 फ़रवरी 2009 को 10:50 pm बजे
अपनी तमाम असहमतियों को सुरक्षित रखते हुए भी सामाजिक सरोकार वाले, सहमति के अनेक मुद्दे आसानी से तलाश किए जा सकते हैं। उस दशा में 'ब्लाग' पत्रकारिता का ही नहीं, एक धारादार एनजीओ की तरह परिणामदायी भूमिका निभा सकता है।
इस दिशा में काम होना ही चाहिए।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234290480000#c3147411336854480044'> 10 फ़रवरी 2009 को 11:58 pm बजे
Blog ne abhivyakti ko kisi ka mohtaaj banne se rok liya hai, apni baat har koi kah sakta hai. aur haan sabki khabar denewale par apni khabar chupane wale media ko blog ke marphat ab sab jaan rahe hain.
Manorma
manorma74@yahoo.co.in
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234320900000#c5980995206403623368'> 11 फ़रवरी 2009 को 8:25 am बजे
विष्णु बैरागी जी और सुशील कुमार छौक्कर जी की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं उत्साह व्रद्धक है, अवश्य ही इस सोच को आगे बढ़ाना चाहिये।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/02/blog-post_10.html?showComment=1234417980000#c3670638551164501400'> 12 फ़रवरी 2009 को 11:23 am बजे
aapke is blog ki charcha kal Dakshin Bharat hindi news paper bangalore me bhi hue , socha aapko soochit kiya jaaye . Bhut-Bahut BADHAAII..... Seema Sachdev