चैनल के कई एंकर मौजूद थे और तभी एनडीटीवी की मैनेजिंग डायरेक्टर बरखा दत्त ने कहा- लगता है हमारी नौकरी खतरे में है, क्या आप मेरी नौकरी लेने जा रहे हो या फिर मैं आपकी। न्यूज चैनल के इतिहास में 26 मई 2005 बड़ा ही दिलचस्प दिन रहा है और स्ट्रैटजी के लिहाज से एक प्रयोग भी। बाद में इसकी आलोचना भी हुई लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए अब ये ट्रेंड-सा बन गया है।
26 मई प्राइम टाइम 8 बजे,एनडीटीवी इंडिया पर अभिषेक और रानी मुखर्जी बतौर एंकर आते हैं औऱ एनडीटीवी की ऑडिएंस के सामने पूरे आधे घंटे तक न्यूज बुलेटिन पेश करते हैं। बाकायदा इस अभिवादन के साथ कि- आठ बजे की खबरों में आपका स्वागत है। मैं हूं बंटी और मैं हूं बबली। इन दोनों ने अपना नाम न तो अभिषेक बच्चन लिया औऱ न ही रानी मुखर्जी। दोनों फिल्मी कैरेक्टर के तौर पर अपने को इन्ट्रोड्यूस करते हैं। इन दोनों का इस न्यूज चैनल पर आना फिल्म प्रोमोशन का एक हिस्सा भर था। चैनल के लिए ब्रांड पोजिशनिंग की रणनीति लेकिन इन दोनों ने आधे घंटे की पूरी बुलेटिन पढ़ी जिनमें सामान्य दिनों की तरह ही वो सारी खबरें थी। मनमोहन सरकार से भेल में विनिवेश के मसले पर वामपंथी पार्टियों का विरोध, दिल्ली में जामा मस्जिद की ऐतिहासिकता पर विवाद औऱ इसी तरह से उत्तर प्रदेश में एक सती से जुड़ी खबर। चैनल पर बार-बार फ्लैश होता रहा ये बंटी-बबली स्पेशल हैं और ऑडिएंस एसएमएस के जरिए अपनी राय दे सकते हैं। बाद में इन दोनों को खबर के तौर पर प्रयोग किया गया और रिपोर्टर द्वारा सवाल किए गए कि आपने ताजमहल को बेच दिया( फिल्म का प्लॉट) औऱ अब एनडीटीवी में एंकर बन गए, ये पूरा सफर कैसा रहा, कैसा लग रहा है आपको। फिल्म की घटना और चैनल की खबर का कॉकटेल कुछ इस तरह से पेश किया गया कि ऑडिएंस को खबर के नाम पर डिफरेंट देखने का अहसास हुआ।
इसमें कहीं भी अभिषेक औऱ रानी मुखर्जी का नाम नहीं लिया गया। रियलिटी औऱ फैंटेसी को पूरी तरह ब्लर्र किया गया।
इस मामले में राज नायक( सीइओ, एनडीटीवी) का कहना था कि हम उम्मीद करते हैं कि सिलेब्रेटी वैल्यू की वजह से एनडीटीवी को वो लोग भी देखेंगे जो कि एनडीटीवी नहीं देखते।
राज नायक की मानें तो देश की ऑडिएंस सिलेब्रेटी को चाहे किसी भी रुप में देखने को तैयार रहती है। सिलेब्रेटी कुछ भी करे, कहे देखने औऱ मानने को तैयार रहती है। ये बात आपको विज्ञापनों में तो साफ तौर पर दिखता ही है कि जहां सिलेब्रेटी इमेज ब्रांड इमेज में कन्वर्ट हो जाती है। पल्स पोलियो अभियान के लिए अमिताभ बच्चन औऱ टीवी की रोकथाम के विवेक ओबराय को शामिल किए जाने में भी दिखाई देता है। आप कह सकते हैं कि समाज में इन लोगों के कहने का असर होता है। असर होता है भी या नहीं लेकिन लोगों का अटेंशन तो बनता ही है, लोग गौरसे देखते हैं। इसलिए आप देखेंगे कि इन सिलेब्रेटी का प्रयोग न केबल चड्डी च्यवनप्राश, चॉकलेट औऱ पेनवॉम बेचने के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक संदेश देने के लिए किए जाते हैं। आप चाहे तो इनके प्रयोग की दो कैटेगरी बना सकते हैं- एक विज्ञापन के लिए औऱ दूसरा सामाजिक संदेश के लिए। लेकिन अब एक तीसरी कैटेगरी भी तेजी से विकसित हो रही है, खबर देने की, चैनल को स्टैब्लिश करने की। देश की ऑडिएंस को ये बताने की अगर शाहरुख न्यूज 24 देख सकते हैं तो फिर आप दूसरे चैनलों की खबर क्यों देखते हैं।
अभिषेक बच्चन जो कि बंटी और बबली के लिए एनडीटीवी इंडिया पर एकरिंग करते नजर आए, कल सीएनएन आइबीएन के न्यूज रुम में माइक लिए रिपोर्टिंग करते दिख गए। वो उस फ्रीज को दिखा रहे थे जिसमें बहुत सारे चाकलेट रखे थे। अभिषेक बता रहे थे कि राजदीप क्यों इतना मीठा बोलते हैं, ये है चॉकलेट का राज। थोड़ी देर के लिए एडिटिंग मशीन पर भी बैठे और कीबोर्ड के साथ छेड़छाड़ की। बाद में सोनम कपूर ने माइक उसके हाथ से ले ली और फिर उसके द्वारा रिपोर्टिंग शुरु की। फिल्म दिल्ली-6 का मीडिया पार्टनर नेटवर्क 18 ग्रुप है और कल प्राइम टाइम की खबर में अभिषेक और सोनम द्वारा जो रिपोर्टिंग की गयी वो फिल्म प्रोमोशन और चैनल को पॉपुलर बनाने की सट्रैटजी थी।
नलिन मेहता ने अपनी किताब इंडिया ऑन टेलीविजन में खबरों को इस रुप में पेश किए जाने और उनमें सिलेब्रेटी के शआमिल किए जाने के पीछे की रणनीति को एडवर्टिजमेंट और चैनल इकोनॉमी का हिस्सा बताया है। पूरा का पूरा एक चैप्टर ही है- CHAPTER-4 THE NEWS WITH BUNTY AND AND BABLI: ADVERTISING,RATINGS AND TELEVISION NEWS ECONOMY. इस पूरे चैप्टर में उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैसे न्यूज इकोनॉमी के तहत चैनल आए दिन खबरों को नयी-नयी शक्ल में पेश करते हैं। हमारे लिए वो किसी भी फार्म में आए, खबर ही है लेकिन इसके बीच से हम विश्लेषण कर सकते हैं कि बाजार, रेटिंग औऱ मैनेजमेंट के बीच से होकर गुजरती खबरों का मिजाज कितनी तेजी से बदल रहा है।
फिलहाल मैंने सीएनएन के किसी भी अधिकारी से इस स्ट्रैटजी को लेकर कोई बयान नहीं सुना है। लेकिन चैनलों के भीतर जिस तरह से सिलेब्रेटी घुसकर खबर बनते हैं जो कि वाकई फिल्मी शूटिंग का हिस्सा नहीं है बल्कि खबर है, लोग चैनल से ज्यादा फेमिलियर होते जाते हैं। बाकी प्रोफेशन की तरह सिनेमा औऱ ऐसी खबरों के जरिए लोगों के जीवन में ये शामिल होता जाता है। नहीं तो अभी तक किसे पता होता था कि न्यूज रुम की शक्ल कैसी होती है। मैं तो ये भी कहूंगा कि एडीटिंग मशीन पर दिनभर फुटेज कतरते मेरे दोस्त जब बाहर आकर कहते हैं कि- बस बिता दिए दस घंटे हमने चुतियापा करते हुए,चांद के दर्द को दिखाने के लिए सोयी हुई मुमताज का दरवाजा खटखटा आए, अब वो भी कह सकेगा- इतना रद्दी प्रोफेशन भी नहीं है,पैकेज बनाना, अभिषेक ने उसमें ग्लैमर भरने का काम किया है। दूसरी तरफ जो लोग अब तक इंडिया टीवी औऱ आजतक से काम चला रहे थे वो भी मशक्कत करके सीएनएन देखेंगे- क्योंकि इस पर हीरो-हीरोईन रिपोर्टिंग करता है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें