आजतक से लेकर एनडीटीवी,स्टार न्यूज,जी न्यूज,IBN7 सबके सब भोपाल गैस कांड में आए फैसले को लेकर खफा नजर आए। एक जमाने के बाद लगभग सभी चैनलों का सुर एक था जिसमें मझोले और छोटे कद के चैनल भी शामिल दिखे। बल्कि मझोले और छोटे चैनलों के सुर बड़े कार्पोरेट की शक्ल में दिखाई देनेवाले इन चैनलों से कहीं ज्यादा उंचे रहे। उनके लिए शायद ये साल की दूसरी बड़ी घटना रही होगी जहां कि
अपने को पक्षधरता और सरोकार की पत्रकारिता से जुड़े होने जैसी साबित करने का मौका मिला। जिन चैनलों को अभी जुम्मा-जुम्मा कुछ ही महीने या साल आए हुए हुए हैं वो भी दम मारकर भोपाल गैसकांड से जुड़ी ऐसी
फुटेज मुहैया करा रहे थे कि मानो ऐसी ही खबरें दिखाने और बताने के लिए ही उग आए हों। दूसरी तरफ बड़े चैनल जो कि भोपाल गैसकांड को करगिल और 26/11 की तरह ही एक इवेंट माकर कुछ दिन पहले ही पैकेज तैयार कर लिया था और उसके लगातार प्रोमोज दिखाए जा रहे थे
,उन्होंने अपनी कई दिनों की मेहनत को दरकिनार करते हुए कल के फैसले पर आकर टिक गए। संभव हो ऐसे में इन्होंने अपनी कुछ पहले से बनायी स्पेश स्टोरी गिरा दी हो और अगर चलायी भी हो तो फैसले पर बनी स्टोरी के बीच दबकर रह गयी हो।
कल मिलाकर अगर आपने शाम/रात तीन-चार घंटे तक न्यूज चैनल देखें होंगे तो आपको अंदाजा लग गया होगा कि कैसे एक-एक करके सारे चैनल भोपाल गैसकांड में आए फैसले को लेकर विरोध में चले गए। मैं अगर इसे एक जार्गन का सहारा लेते हुए कहूं कि कल लगभग सभी चैनलों में एस.पी.सिंह की आत्मा घुस गयी थी तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चैनल किस हद तक पीड़ितों के पक्ष में थे। आजतक पर अभिसार शर्मा ने साफ तौर पर कहा कि वो आज न सिर्फ सियासी लोगों पर उंगली उठाएंगे,न सिर्फ प्रसासन पर,बल्कि आज वो पूरी की पूरी न्यापालिका और न्याय व्यवस्था पर उंगली उठाएंगे। जिन सियासी लोगों का मजमा लगाकर चैनल न्यायिक फैसले की रिप्लिका तैयार करती आयी है,अभिसार ने कहा कि वो आज की बहस में किसी भी सियासी शख्स को शामिल नहीं करेंगे औऱ सचमुच फैसला पूरा इंसाफ अधूरा नाम से स्पेशल स्टोरी में किसी भी सियासी शख्स को शामिल नहीं किया। बल्कि ये काम कमोवेश कई चैनलों ने किया। सीधे रवीन्द्र भवन भोपाल से एंकरिंग कर रही सिक्ता दवे( एनडीटीवी इंडिया) का गला बार-बार फंस जा रहा था। अगर ये एंकरिंग की शैली के तौर पर विकसित होती है तो जल्द ही अविश्वसनीय करार दे दी जाएगी लेकिन संवेदनशील नजरिए से इसे गला रुंध जाना या फिर भर आना कह सकते हैं। IBN7 पर समीर अब्बास बहुत ही गुस्से में नजर आए,ये न्याय के नाम पर भद्दा मजाक है। हां ये जरुर है कि स्टार न्यूज,जिसे कि भोपाल गैसकांड पर बनी स्टोरी के लिए इंडियन टेलीविजन एवार्ड मिला है,अभी भी सबसे ज्यादा असरदार लगी इसलिए उसने उसे ही प्रमुखता से दिखाया। चैनल पर ये सबकुछ तीन-चार घंटे तक ये सब लगातार चला जिसे देख-सुनकर हम भी भावुक हुए। हमारा टेलीविजन के प्रति नजरिया बदलता नजर आने लगा और तमाम विरोधों के वाबजूद जो मैं तर्क देता फिरता हूं कि अभी भी टेलिवीजन में भरपूर संभावनाएं हैं,ये हर समय गलत नहीं करता,इसके कारण एक हद तक लोकतंत्र बचा हुआ है,इन सब बातों को मजबूती मिली। लेकिन इतना सबकुछ होते हुए भी कुछ सवालों के साथ ही दिल्ली से एनडीटीवी इंडिया के लिए चैट पर मौजूद रघु राय (वही रघु राय जिनकी फोटोग्राफी से पूरी दुनिया ने इस भोपाल गैसकांड की हकीकत को समझा) की बाइट हमें परेशान करती है। हम इन दर्दनाक फुटेज और एस.पी.सिंह की घुस आयी आत्मा के प्रभाव में आकर काम कर रहे चैनलों के बारे में एक बार फिर से सोचना शुरु करते हैं।
मेरे दिमाग में कौन से सवाल उभरे इसके पहले रघु राय की बात को शामिल करना ज्यादा जरुरी है। रघु राय से सिक्ता ने कई तरह के सवाल किए जिसमें कि एक सवाल ये भी कि क्या आपका मन था कि आप भी आज भोपाल आते और पीड़ित लोगों के साथ न्यायालय में जाकर देखते कि क्या फैसला सुनाया जा रहा है? रघु राय ने जिन सारे सवालों के जबाब दिए उसमें एक ईमानदार सर्जक,कलाकार और पत्रकार की खनक और असहमति मौजूद थी। उन्हें इस बात को मजबूती से रखा कि हम पैनल डिशक्शन में आते हैं और समझिए कि कुछ नहीं करते,सिर पीट कर चले जाते हैं। कहीं कुछ नहीं होता। आप सोचिए न इस देश मे जो न्याय व्यवस्था है उसे देखकर तो लगता है कि गरीबों का कहीं कुछ होनेवाला ही नहीं है। सब जैसे-तैसे चल रहा है। हम इसे मेरा देश महान कहते हैं,देखिए आप हालात। सबकुछ ऐसा है कि लगता ही नहीं कि ये देश संभल पाएगा। रघु राय की बातों में एक ठोस निराशा जो कि शायद ही कभी पिघले बार-बार हमारे सामने चक्कर काट रही थी और वहीं से हमारे दिमाग में सवाल उठने शुरु हुए।----
सबसे पहला सवाल कि चैनलों ने इस फैसले के खिलाफ स्टैंड लिया क्या ये उसकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति का हिस्सा है? क्या वो ऐसे सारे मौके पर स्टैंड लेते आए हैं इसलिए इस मौके पर भी ऐसा ही किया? मेरे इस सवाल पर चैनल सहित इसके समर्थन में जुटे लोग एक लंबी-चौड़ी फेरिस्त हमारे हाथों में थमा सकते हैं और बड़ी आसानी से साबित कर सकते हैं कि हां,आप देखिए-पूरे सिलसिलेबार तरीके से जहां कहीं भी पीड़ितों और आम आदमी के प्रति अन्याय हुआ है,नाइंसाफी हुई है,हमने उसका विरोद किया है। संभव है कि उनका एक तर्क एक हद तक सच हो। लेकिन अगर ऐसा है तो फिर जो न्यायालय सैंकड़ों टीवी क्र्यू से घिरा है,उसे ये फैसला सुनाने में रत्तीभर की हिचक क्यों नहीं होती? वो क्यों ऐसे फैसले सुना जाती है औऱ सिर्फ सुनाती ही नहीं बल्कि सरकारी वकील अकड़ के साथ बाहर आकर बाइट भी दे जाते हैं कि जिन पर जो चार्ज लगाए गए हैं उसके हिसाब से सजा दी गयी है। अगर इन चैनलों ने लगातार इसी तरह के प्रतिरोध किए हैं तो कैसे ऐसे फैसले आ जाते हैं जिसे सुनकर पांच मिनट के भीतर पूरे भोपाल के लोगों के बीच गुस्से का लावा फूट पड़ता है? ये सवाल सिर्फ भोपाल गैसकांड के मामले में ही नहीं बनता है बल्कि उन तमाम मामलों में बनता है जहां न्यायपालिका या सरकार ऐसी नीतियों और फैसलों को सुनाती है जो कि आमलोगों के विरोध में जाते हैं,फिर भी बेपरवाह होकर उसे लागू कर दिया जाता है।
आप खुद भी सोचिए न कि जो चैनल सालभर तक चड्डी,चप्पल से लेकर दस-दस लाख की कार बेचनेवाली कंपनियों का विज्ञापन करती है,उन अंखुआयी हुई कंपनियों का हर चार के बाद एक बार उसका विज्ञापन करती है कि कल को ये घरेलू स्तर की कंपनी कार्पोरेट की शक्ल में तब्दील होगी तो उन्हें फायदा होगा,वही चैनल आज कैसे कार्पोरेट के खिलाफ खड़ी हो गयी? ये हममें से शायद ही किसी को स्वाभाविक लगे। इसका एक सिरा इस बात से भी जुड़ता है कि इस फैसले को लेकर आमलागों के बीच जो असंतोष और गुस्से का भड़कना था औऱ जो एक हद तक भड़का,चैनल ने उसका समर्थन करके,आमलोगों की भावनाओं के साथ अपनी आवाज शामिल करके सरकार को किसी न किसी रुप में राहत देने का काम किया। लोगों का सारा गुस्सा चैनल और पिक्चर ट्यूब के रास्त बहा ले जाने की कोशिश की। सरकार और न्यापालिका के प्रति जो घोर असहमति रही उसका फायदा चैनल ने उठाने की कोशिश की और इस विपरीत परिस्थिति में एक भरोसा कायम करने का जुगत भिड़ाया। तीन पहले के प्रोमो को देखकर जो हम समझ रहे थे कि इसे भी चैनल ने इवेंट बना दिया,फैसले पर जब इसने ये स्टोरी करनी शुरु की तो लगा कि ये रिद्म टूट गया लेकिन नहीं। ये रिद्म टूटा नहीं था,बल्कि थोड़ी देर के लिए स्टीमुलेट भर कर दिया गया था। इसे चैनल की स्टोरी एंगिल और भाषा के जरिए सबसे आसानी से समझ सकते हैं।
ये फैसला एक बड़ी खबर थी लेकिन चैनल इसे खबर के बजाय फीचर की ही शक्ल में दिखाते रहे। दो-चार लाइन फैसले पर बात हुई,कुछ फुटेज भर से काम चला लिया और बाकी वही का वही कंटेंट जो कि इवेंट के तौर पर दिखाया जाना तय था। खबर की भाषा में जो तल्खी होती है,जो ऑब्जेक्टिविटी होती है,वो लगभग गायब रही। ले देकर वही हायपर इमोशन का तड़का, एंकर के चेहरे पर वही बरगला ले जानेवाली भंगिमा। अधिकांश चैनलों ने फैसले की पेंच को लेकर कोई गंभीर रिसर्च वर्क नहीं किया। इसलिए ये सारी स्टोरी उपरी तौर पर पीड़ितों के पक्ष में दिखती नजर आने के वाबजूद भी सरोगेट तौर पर सरकार की सेफ्टी में काम करती है। फीचर के आगे खबर का असर कम कर दिया गया।
हम चैनल ने भोपाल गैस पीड़ितों के लिए चार-पांच घंटे तक जो किया उसके प्रति आभार प्रकट करते हैं लेकिन इतना साफ है कि नाइंसाफी के खिलाफ आवाज बुलंद करने की कोई डियूरेशन नहीं होती,कोई वैलिडिटी नहीं होती। ऐसा नहीं होता कि तीन घंटे तक उसके खिलाफ आवाज उठाए जाएं और फिर बाकी सबकुछ पहले की तरह चलता रहे। ये जंतर-मंतर पर धरने में भले ही होता है कि कुछ घंटे का प्रदर्शन फिर खामोशी। लेकिन उस खामोशी में भी आगे की रणनीति तय करने का विराम भर होता है। ग्यारह बजे नहीं कि सारे चैनल अपनी पुरानी रंगत में आ गए।
आजतक से एस.पी.सिंह की आत्मा गायब हो चुकी थी। अब वहां इस बात का हिसाब-किताब लगाया जा रहा था कि राखी सावंत को कैसे छोटा पर्दा ऐसा गेटअप देता है कि वो ग्लैमरस ही न दिखे। इंडिया टीवी पर दो हजार साल पुरानी भीम की कब्र खोदी जा रही थी। न्यूज 24 में अंजना कश्यप,सईद अंसारी कुछ बाबाओं के एफर्ट से भूत बुला रहे थे। एनडीटीवी इंडिया पुराने गीतों के कार्यक्रम में खो गया। देर रात होते-होते चैनल एक बार फिर टीम इंडियां के भीतर की कलह में डूब गए। जरुरी नहीं कि हर वक्त भोपाल गैसकांड की ही स्टोरी दिखायी जाए,करगिल में हुई गड़बड़ियों की स्टोरी स्क्रीन पर स्टिल कर दी जाए लेकिन सच्चाई है कि इंसाफ की लड़ाई घंटों में नहीं जीती जा सकती। जिन चैनलों को देखते हुए मेरे सहित देश की करोड़ों जनता ने आंसू बहाए,भावुक हुए,अपना समझा,वो चैनल ऐसी घटनाएं बार-बार न हो इसके लिए कितना और किस हद तक दबाब बनाए रखती है,असल सवाल ये है। पीड़ितों का दर्द उनसे सटकर पीटीसी करने से कम नहीं होता,लगातार उनके साथ खड़े होने से होता है जिसके लिए ये चैनल शायद ही अपने को तैयार कर पाए हैं। नहीं तो बाकी मीडिया रुटीन इंवेट का हिस्सा तो है ही।
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_08.html?showComment=1275999333997#c8933439825859426590'> 8 जून 2010 को 5:45 pm बजे
you said it right. there is no soul in the news channel. all are after bloody TRP.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_08.html?showComment=1276005023994#c367615549768258521'> 8 जून 2010 को 7:20 pm बजे
Aap Bhopal Gas kaand ke liye kise doshi karar dete hain?
Ekdum vashtunishth prashn hai.. Vashtunishth uttar ki ummidd karta hoon...
http://taanabaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_08.html?showComment=1276005481491#c7623489543218758059'> 8 जून 2010 को 7:28 pm बजे
सच में आप एक जिद्दी दर्शक हैं न्यूज चैनेल्स के। नहीं तो इतनी गहनता से नहीं लेते इनकी पैकेज को। मुझे नहीं लगता कि इन चैनेल्स से हमारे इस्टैब्लिश्मेन्ट पर कोई खास प्रभाव पड़ता है। वोटर जनता पर तो कत्तई नहीं। सब मैनेजेबल है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_08.html?showComment=1276022346416#c5536592509582511626'> 9 जून 2010 को 12:09 am बजे
सच्चाई है कि इंसाफ की लड़ाई घंटों में नहीं जीती जा सकती। जिन चैनलों को देखते हुए मेरे सहित देश की करोड़ों जनता ने आंसू बहाए,भावुक हुए,अपना समझा,वो चैनल ऐसी घटनाएं बार-बार न हो इसके लिए कितना और किस हद तक दबाब बनाए रखती है,असल सवाल ये है।
यह सटीक निष्कर्ष है। बहुत अच्छा विश्लेषण है इस मसले पर टीवी रिपोर्टिंग का।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_08.html?showComment=1276025358164#c4104615648846792665'> 9 जून 2010 को 12:59 am बजे
SST aur anoop ji se sahmat hu. kabhi kabhi kya aksar mann hota hai ki in khabariya channels ko na dekhi aur hota bhi yah hai, kam se kam mai, akele apne star par, din me mushkil se aadhe ghante surf karta hu sabhi news channels, ab aap hisab laga lo ki kis chhanel ko kitna samay mila hoga. sara khel bas bazarwad ka hai aur kuchh nahi bandhu...