देश के जाने-माने और हिन्दी के बुजुर्ग पत्रकार प्रभाष जोशी नहीं रहे। गुरुवार रात,भारत-आस्ट्रेलिया मैच देखने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। अफसोसनाक है कि जिस मैच को लेकर देर रात तक हॉस्टल में हो-हुडदंग होता रहा,उसी मैच के दौरान देश का एक बुद्धिजीवी पत्रकार हमेशा के लिए खामोश हो गया। पटना से जसवंत सिंह की लिखी विवादित किताब के लोकार्पण कार्यक्रम से करीब 11 बजे रात लौटने के बाद जोशी थकान महसूस कर रहे थे। घर के लोगों ने भी सलाह दी कि डॉ. से सम्पर्क करना चाहिए लेकिन मैच देखकर उस पर कुछ लिखने का लोभ वो रोक नहीं पाए।.. लेकिन दोनों में से कोई भी काम पूरा किए बगैर हमसे विदा हो लिए। जोशी ने जिस कागद-कारे स्तंभ से अपनी अलग पहचान बनायी उसका पहला लेख क्रिकेट पर ही था। अंत-अंत तक क्रिकेट उऩके जीवन के साथ जुड़ा रहा और एक हद तक क्रिकेट ही उनके मौत का कारण भी बना।
कहना न होगा कि प्रभाष जोशी उन गिने-चुने पत्रकारों में से रहे हैं जिनकी लोकप्रियता सिर्फ पठन-लेखन के स्तर पर नहीं रही है,उन्हें चाहने और माननेवालों की एक लंबी फेहरिस्त है। मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर सैकड़ों मीडियाकर्मी और पत्रकार ये कहते हुए आसानी से मिल जाएंगे कि आज वो जो कुछ भी है प्रभाषजी की बदौलत हैं। 12 सालों तक जनसत्ता अखबार का संपादन करते हुए उन्होंने एक खास तरह की पत्रकारिता का विस्तार किया। शिमला में उनसे जुड़े प्रसंगों को याद करते हुए अभय कुमार दुबे,संपादक सीएसडीएस ने हमें तब बताया था कि वो अकेले ऐसे संपादक थे जो किसी भी खबर के छप जाने के बाद माफी मांगने में यकीन नहीं रखते,छप गया सो छप गया। इसके साथ ही वो एक ऐसे संपादक थे जिन्होंने मालिक के आगे संपादक की कुर्सी को कभी भी छोटा नहीं होने दिया। बतौर बरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय, प्रभाष जोशी एक ऐसे पत्रकार रहे हैं जिनका भरोसा था कि पत्रकारिता के जरिए राजनीतिक स्थिति को भी बदला जा सकता है। वो पत्रकारिता को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम मानते थे। इसलिए उन्होंने जितना लिखा उतना ही सामाजिक मसलों पर जाकर लोगों के सामने अपनी बात भी रखी। लोग उन्हें सुनने के लिए बुलाते थे।(एनडीटीवी इंडिया 9.20 बजे 6 नवम्बर 09)। आज से करीब एक साल पहले जब राजकमल की ओर से एक ही साथ पांच किताबों का लोकार्पण किया जा रहा था उस समय दिल्ली के त्रिवेणी सभाकार को मैंने इस तरह के कार्रयम में पहली बार खचाखाच भरा हुआ देखा था। इतना खचाखच कि देश के नामचीन पत्रकार से लेकर साहित्यकार सीढ़ियों पर बैठे नजर आए। स्वयं प्रभाष जोशी के शब्दों में आज चार पीढ़ी के लोग मौजूद हैं। कुछेक पत्रकारों को छोड़ दे तो सभागार में जनसत्ता-परंपरा के अधिकांश पत्रकार पहली बार वहां मौजूद नजर आए।
सत्ता में गहरी पैठ रखनेवाले पत्रकार प्रभाष जोशी जितने लोकप्रिय रहे हैं,अपने जीवनकाल उतने ही विवादों में बने रहनेवाले पत्रकार भी। बाबरी मस्जिद के दौरान जनसत्ता में छपनेवाली खबरों,उसकी प्रस्तुति को लेकर वो विवादों में आए,सती-प्रथा को लेकर छपे संपादकीय का लेकर वबेला मचा और हाल ही में एक साइट को दिए गए इंटरव्यू में आलोचना के शिकार हुए। प्रभाष जोशी की ऑइडियोलॉजी को लेकर भी काफी विवाद रहा है।अकादमिक क्षेत्र में राजकमल से प्रकाशित हिन्दू होने का धर्म उनकी लोकप्रिय किताबों में से है। लेकिन इधर पिछले दो सालों से हिन्दी स्वराज के पुर्नपाठ और विमर्श को लेकर काफी सक्रिय नजर आए। वो हिन्द स्वराज और गांधी के मार्ग के महत्वों की चर्चा करते हुए उनकी विचारधारा का विस्तार करने की बात करते रहे। बीते लोकसभा चुनावों में पैसे देकर पेड खबरें छापने और राजनीति का पिछलग्गू बन जानेवाले अखबारों को लेकर प्रभाष जोशी ने विरोध में एक मोर्चा खोल रखा था और उसे वो राष्ट्रीय स्तर पर एक अभियान का रुप देने जा रहे थे जिसके चिन्ह हमें हाल के लिखे गए उनके लेखों में साफ तौर पर दिखाई देने लगे थे। उनके इस अभियान में कुलदीप नैय्यर और हरिवंश जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल रहे हैं।
इन सबके वाबजूद प्रभाष जोशी को एक ऐसे कर्मठ पत्रकार के तौर पर जाना जाएगा जो कि अपनी जिदों को व्यावहारिक रुप देता है,नई पीढ़ी के लोगों को गलत या असहमत होने पर खुल्लम-खुल्ला चैलेंज करता है,अपनी बात ठसक के साथ रखता है और सक्रियता को पूजा और अराधना को पर्याय मानता है। आज प्रभाष जोशी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि अगर हम उनके लेखन का पुनर्विश्लेषण करते हैं,पठन-पाठन के दौरान असहमति का स्वर जाहिर करते हैं,सहमति को व्यवहार के तौर पर अपनाते हैं और पैर पसारती कार्पोरेट मीडिया का प्रतिरोध करते हुए हिन्दी पत्रकारिता को सामाजिक परिवर्तन के माध्यम के तौर पर आगे ले जाते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे उनका खास अंदाज में क्रिकेट पर लिखना,इनने,उनने और अपन जैसे शब्दों का प्रयोग अब तक एक खास किस्म की इन्डीविजुअलिटी को बनाए रखने के तौर पर लगा,कई बार इससे असहमत भी रहा लेकिन आगे से जनसत्ता में इन शब्दों के नहीं होने की कमी जरुर खलेगी। गरम खून के पत्रकारों के बीच कोई तो था जिसे बार-बार पटकनी देने की मंशा से लड़ते-भिड़ते और अपना कद बड़ा होने की खुशफहमी से फैल जाते। आज हमसे लड़ने-भिड़ने वाला नहीं रहा,फच्चर मत डालो को लिखकर चैलेंज करनेवाला नहीं रहा। अब बार-बार याद आएगा कागद-कारे..
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257482910890#c649278308413092713'> 6 नवंबर 2009 को 10:18 am बजे
श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं कलम के अमर सिपाही को।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257484656726#c3455718852350785386'> 6 नवंबर 2009 को 10:47 am बजे
समाचार ने स्तब्ध कर दिया। हिन्दी पत्रकारिता का वे एक युग थे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257484852794#c6167382049436481024'> 6 नवंबर 2009 को 10:50 am बजे
पत्रकारिता के एक सच्चे प्रहरी को मेरा सलाम!
साथ ही आपके लेख विचारोत्तेजक हैं.आपका धन्यवाद.
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257485296015#c3027435571370451046'> 6 नवंबर 2009 को 10:58 am बजे
दिग्गज लेखक को हार्दिक श्रद्धांजलि…
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257485827654#c8431891143068557015'> 6 नवंबर 2009 को 11:07 am बजे
प्रभाष जोशी जी का जाना हिंदी पत्रकारिता और साहित्य जगत के लिए एक गहरा आघात है ! उनका असमय दुखद देहावसान को पचा पाना मेरे लिए मुश्किल है
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257491070863#c7382244976733150602'> 6 नवंबर 2009 को 12:34 pm बजे
प्रभाष जी के साथ हिंदी पत्रकारिता का एक ठसकदार युग समाप्त हो गया . अब राजनीतिज्ञों और अंग्रेज़ी पत्रकारिता के दबाव में सोने-जागने वालों का युग है .
हिंदुस्तानी पत्रकारिता के इस पुरोधा को विनम्र श्रद्धांजलि .
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257492071865#c6945540116379744540'> 6 नवंबर 2009 को 12:51 pm बजे
विनम्र श्रद्धांजलि
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257502747358#c4653187971541356738'> 6 नवंबर 2009 को 3:49 pm बजे
किसी भी बात पर बेलाग कहने वाले प्रभाष जी का लेखन हमेशा युवा रहा.
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि..
http://taanabaana.blogspot.com/2009/11/blog-post_06.html?showComment=1257576548101#c2724248431485574314'> 7 नवंबर 2009 को 12:19 pm बजे
विनीत भाई ये पता नही कब और कैसे "कागद कारे" से मुलाकात हुई थी पर जिस दिन से पढा तो हम मुरीद हो गए थे। और हर संडे सबसे पहले इसी का इंतजार रहता। और धीरे धीरे भावनात्मक रुप से जुड़ता भी चला गया। और आज ऐसे याद करना होगा इतना जल्दी सोचा नही था। पत्रकारिता के सच्चे सिपाही को मेरा नमन।