टाइम्स नाउ अंग्रेजी न्यूज चैनल है। लेकिन फैशन फिल्म में इसकी रिपोर्टर हिन्दी में खबर देती नजर आयी। पेज थ्री के हिसाब से और चैनल के हिसाब से भी हिन्दी भाषा का प्रयोग अटपटा लगता है। मैं ये नहीं कह रहा कि पेजथ्री के लोग हिन्दी नहीं बोलते. अंग्रेजी चैनलों में कभी-कभार देखा है कि अगर कोई गांव-देहात का बंदा अंग्रेजी नहीं बोल पा रहा होता है तो रिपोर्टर या फिर एंकर उससे हिन्दी में ही बात करने पर उतर आते हैं। लेकिन यहां तो वैसी कोई बात नहीं थी। इससे पहले कार्पोरेट फिल्म में भी टाइम्स नाउ ही मीडिया पार्टनर है। वहां भी कहानी का ढांचा कुछ इस तरह से है कि बार-बार रिपोर्टिंग करने की जरुरत पड़ती है और टाइम्स नाउ की रिपोर्टर फील्ड से रिपोर्टिंग करती है। लेकिन उस फिल्म में कभी भी हिन्दी में कुछ भी नहीं बोलती। वो वहां पर अंग्रेजी चैनल की सार्थकता और ब्रांड को पूरी तरह सार्थक करती नजर आती है। बत्रा में मेरे साथ गया पोल्टू दा ने तभी कहा था- कुछ बी कह लो, एकदम से फील्ड में खड़े होकर धड़ाधड़ अंग्रेजी में बोलते जाना मामूली बात नहीं है. आपसे, हमसे कहे कोई ऐसा करने तो दुइए लाइन में फिस्स हो जाएंगे।हिन्दी के कट्टर प्रेमियों के लिए ये सीन जरुर थपड़ी बजाने का हो सकता है। चाहे तो वो अकड़ सकते हैं कि अंग्रेजी चैनल खोलो चाहे फ्रैंच चैनल, भारत में अगर रहना होगा तो हिन्दी में ही कहना होगा। इन प्रेमियों के लिए पूरी फिल्म का पैसा इसी में सध जाएगा कि अंग्रेजी चैनल की रिपोर्टर ने हिन्दी में पूरी रिपोर्टिंग की है। अब आया न उंट पहाड के नीचे। आजकल देख रहा हूं कि हरेक फिल्म में चालीस से पैंतालिस फीसदी बात अंग्रेजी में ही करते हैं। पैसा दिए हैं हिन्दी सिनेमा के लिए और जबरदस्ती दिखा रहा है अंग्रेजी और वो भी खाली बोली-बात ही। सीन तो सब हिन्दी सिनेमा का ही है। उसमें काहे नहीं दरियादिली दिखा रहे है।
हिन्दी के कट्टर प्रेमियों के लिए ये सीन जरुर थपड़ी बजाने का हो सकता है। चाहे तो वो अकड़ सकते हैं कि अंग्रेजी चैनल खोलो चाहे फ्रैंच चैनल, भारत में अगर रहना होगा तो हिन्दी में ही कहना होगा। इन प्रेमियों के लिए पूरी फिल्म का पैसा इसी में सध जाएगा कि अंग्रेजी चैनल की रिपोर्टर ने हिन्दी में पूरी रिपोर्टिंग की है। अब आया न उंट पहाड के नीचे। आजकल देख रहा हूं कि हरेक फिल्म में चालीस से पैंतालिस फीसदी बात अंग्रेजी में ही करते हैं। पैसा दिए हैं हिन्दी सिनेमा के लिए और जबरदस्ती दिखा रहा है अंग्रेजी और वो भी खाली बोली-बात ही। सीन तो सब हिन्दी सिनेमा का ही है। उसमें काहे नहीं दरियादिली दिखा रहे है।
मधुर भंडारकर के जो फैन हैं और जिन्हें लगता है कि जिस तरह से अमोल पालेकर ने आम आदमी के दर्द को समझा है, उसी तरह से भंडारकर आम आडिएंस के दर्द को समझा है। वो काबिल आदमी है, उसको देश के लोगों की नब्ज पता है। वो जानते हैं कि बात-बात में अंग्रेजी झोकने से हमारी आडिएंस लसफसा जाती है। सिर्फ भाषा के कारण ही पूरे फिल्म का मजा नहीं ले पाती है। बहुत सोच-समझकर रिपोर्टर से हिन्दी में बोलवाए हैं। रैपिडेक्स से अंगरेजी ठीक करके एसएससी का एलडीसी निकाला जा सकता है, फिल्मवाली अंग्रेजी समझने के लिए शुरु से ही ध्यान देना होता है। अंग्रेजी के संस्कार शुरु से ही होने जरुरी है। भंडारकर ने ऐसे ही अठारह महीने नहीं चक्कर काटे हैं इस फिल्म के लिए। इस पर भी रिसर्च किया होगा। यही है बढ़िया फिल्म बनानेवालों की समझदारी।
जो लोग बाजार के भरोस हिन्दी की तरक्की का ताल ठोकते हैं उसके लिए फैशन फिल्म एक रेफरेंस की तरह काम आएगा। वो लोगों को आसानी से बता सकते हैं कि- अजी जब फैश जैसी पेज थ्री फल्मों के लिए भंडारकर को हिन्दी में रिपोर्टिंग करानी पड़ गयी तो अब आगे की बात कौन करे। जान लीजिए, ऐसा करके भंडारकर साहेब ने हिन्दी पर कोई एहसान नहीं कर दिया है। ये उनकी मजबूरी है, बाजार की मजबूरी है कि बिना काउंटर में हिन्दी का माल डाले आप टिक नहीं सकते। अभी देखते जाइए न, कहां-कहां हिन्दी अपना पैर पसारती है। जो लोग कह रहे हैं कि हिन्दी का भविष्य संकट में है, उनको आंख खोल देगा,ये सब। अजी जिस हिन्दी में बात करने में हिन्दी के चैनलवालों को स्क्रीन के बाहर बोलने में शर्म आती रही है, जिस हिन्दी को बोलने से अंग्रेजी चैनलवालों की जीभ पर गोबर की स्मेल रेंगने लग जाती रही, आज वो करोडो़ पब्लिक के सामने हिन्दी में बात कर रहे हैं। इसको कहते हैं, औकता में आ जाना। अभी देखते रहिए, आगे-आगे होता है क्या।
अब दिमाग लगानेवालों की कमी तो है नहीं। फिल्म खतम होने के बाद पोल्टू दो ने एकदम से कहा- मामू बनाया है भंडारकर ने तुम हिन्दीवालों को। कार्पोरेट में काहे नहीं हिन्दी में रिपोर्टिंग करवाई। वहां भी तो अंग्रेजी चैनल ही था. उसको पता है कि कार्पोरेट फिल्म जो भी देखने आएगा, वो एलीट किस्म का आदमी होगा और एलीट लोगों को अंगंरेजी आए नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है. वहां क्लास की बात थी. भंडारकर को ये भी पता था कि- फैशन फिल्म सिर्फ वही लोग देखने नहीं आएंगे, हो सकता है वो कम ही आएं. फैशन देखने वो भी लोग आएंगो जो दू रुपया के सेनुर-टिकली और पचास रुपये के लहटी,शंखा-पोला और तीन सौ रुपये आर्टिफिशियल गहनों से फैशन कर लेती है। वो लौंडा सब भी आएगा जो बुध बाजार में भी औकात के भीतर लेटेस्ट फैशन कर लेने का दम रखता है। हैसियत देखकर अंग्रेजी के बजाय हिन्दी बोलवाया है भंडारकर ने। तुम सबको मामू बनाया है, मामू।...
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http://taanabaana.blogspot.com/2008/11/blog-post_04.html?showComment=1225788240000#c3264514175340581923'> 4 नवंबर 2008 को 2:14 pm बजे
बहुत अच्छा लेख... लेकिन... पाठक कृपया स्वयं सम्पादन करते हुए पढ़ लें।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/11/blog-post_04.html?showComment=1225862940000#c4482076315576205865'> 5 नवंबर 2008 को 10:59 am बजे
अंग्रेजी चैनल खोलो चाहे फ्रैंच चैनल, भारत में अगर रहना होगा तो हिन्दी में ही कहना होगा।
-इस बात को एड एजेंसियों ने समय रहते समझ लिया था।