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लेडिस क्यों लेडिज़ क्यों नहीं

Posted On 4:26 am by विनीत कुमार |

नेता तो हूं नहीं कि सफाई देता फिरुं फिर भी लेडिस पर लगातार लिखने से यदि हमारे ब्लॉगर साथी को तकलीफ हुई है तो माफ करें, यकीन मानिए मेरा विरोध न तो मीडिया से है, पहले भी कहा था अब भी कह रह रहा हूं कि क्या पता फिर से यहीं लौटना पड़े और न ही लड़कियों और स्त्री-समाज को लेकर मन में कोई दुर्भावना। मैं तो हिन्दी के बीच के सडांध पर भी लगातार लिख रहा हूं और वहां कोई लेडिस नहीं हैं। मैं तो बस मीडिया के बदलते चरित्र पर चिंता जाहिर कर रहा हूं जैसा कि आप सब कर रहे हैं, हां इतना जरुर हुआ है कि नया-नया लौटा हूं तो बेबाकी ज्यादा है। अब आगे पढिए

अपने तीन-चार पोस्ट में मैंने लगातार लेडिस के उपर लिखा, कमेंट्स भी आए कि सही जा रहे हो गुरु लेकिन कल जो एक कमेंट्स आया उस पर मैं नये सिरे से विचार करने लगा। हमारी साथी neelima sukhija arora ने कहा

क्या विनीत जी,आप तो हाथ क्या पैर मुंह सब कुछ धोकर लेडिस लोग के पीछे पड़ गए। अरे भाई आप जिस मीडिया के दर्शन करके सरकारी दामाद बन कर लौटे हैं, वो मीडिया मीडियोकर लोगों के लिए हैं। हम आप जैसे लोगों के लिए बिलकुल नहीं जो कि हर हाल में खुश रहने वाले हैं। मैं लगातार आपके बलॉग को पढ़ रही हैं अरे लेडिस लोग से कौनो गलती हुई गवा है क्या, काहे उनको मीडिया से बाहर कराने के पीछे पड़े हैं। जानते हैं ना मीडिया में इ सब जेन्टलमेन ही हैं जिन्होंने लड़कियों को यह बतायाहै कि हमारे साथ रहोगी तो ऐश करोगी। कम मेहनत मं बहुत आगे तक जाओगी। तब हमारे जैसे लोगों को कहां भेजिएगा जो इन बातों पर अपनी नौकरी को लात मार आते हैं। फिर भी मीडिया में जमें हैं , बस इतना ही तो है कि थोड़ा पैसा कम मिलता है, काम भी करना पड़ता है, तो भैया इसीलिए तो मीडिया में आए हैं ना। मीडिया से इतनी खुश्की अच्छी नहीं , सब जगह सब लोग एक से नहीं

नीलिमा ने मेरे पोस्ट का जो मतलब निकाला वो ये कि--

- मैं लेडिस के पीछे जान धोकर पीछे पड़ गया हूं, मैं उन्हें मीडिया से बाहर निकलवाकर दम लूंगा।

-मैं मीडिया का कुछ ज्यादा ही विरोध कर रहा हूं।

- मैं जहां का अनुभव आपसे शेयर कर रहा हूं वो मीडिया नहीं मीडियोकर की दुनिया है, मीडिया में अच्छे लोग भी हैं और अपनी शर्तों पर काम कर रहे हैं। मेरा ध्यान उन लोगों की तरफ नहीं है।

- मैं मीडिया का दर्शन करके लौटा हूं और अब सरकारी दामाद गया।

लगे हाथ साथी अरविंद चतुर्वेदी ने भी समझा दिया -

इतना ही कहूंगा कि भैया ज्यादा चिढो मत लेडीस के नाम पे. पंचों उंगलियां बराबर नही ना होती

मेरे अब तक के पूरे पोस्ट में कभी भी लड़की, महिला या स्त्री शब्द का प्रयोग नहीं है और न ही लेडिज का। क्योंकि मुझे हमेशा लगा कि ऐसा करके लिखने से मीडिया में काम कर रही हमारी सारी साथियों पर व्यंग्य होगा और फिर सब को एक तरह से कैसे मान लिया जाए।अरविन्दजी ने ठीक ही कहा कि पांचों उगलियां एक जैसे नहीं होते और फिर होने की जरुरत भी क्या है। चैनल के भीतर जो बिना बहुत मेहनत किए,रिपोर्टिंग में रगड़े, रातोंरात चमकना चाहती हैं उसके लिए अक्सर हमलोग एंकर आइटम शब्द का प्रयोग किया करते और ये शब्द भी मुझे अपनी एक साथी ने ही बताया। यहां उसे मैंने लेडिस कहा, आइटम शब्द पर मुझे आपत्ति रही है।

मेरी कई दोस्त IIMC की अच्छी खासी स्टूडेंट रही है लेकिन नीलिमा आप जो बात कर रही हैं न लात मारनेवाली और बने रहने वाली हमारी उस दोस्त ने वैसा ही कुछ किया। लेकिन अभी नयी-नयी आयी थी इस फील्ड में , काम करना चाहती थी,घर में जबाब भी तो देना पड़ता है कि इतनी मोटी फीस देकर भी बेकार हो गयी, कुछ उसकी आर्थिक मजबूरी भी थी। उस लड़की को भाई लोगों ने सीखने के नाम पर पांच महीने तक फीड पर बिठाया। लगातार रोज आठ से दस घंटे तक सिर्फ टेप बदलने का काम। कई बार हमलोगों के पास आई, रोयी और चैनल बदलने के लिए छटपटाती रही, हमलोगों के साथ की कई लड़कियां रिपोर्टर बनती जा रही थी और फीड पर बैठी वो लड़की छीजती चली जा रही थी। यही हाल अंग्रेजी से एम.ए कर IIMC से मास कॉम करके आयी एक दूसरी साथी की थी। उस लड़की का काम लोगों का सिर्फ फोन रिसीव करना था, तीन महीने उसने वही किया और हमेशा कहती, दोस्त मैं क्या सोचकर मीडिया मे आयी थी और क्या कर रही हूं और वो सब भी सीखने के नाम पर,बहुत थोड़े पैसे पर। इसलिए लेडिस-लेडिस बोलकर मैंने एक खास किस्म की मानसिकता वाली लड़कियों की छवि समझने की कोशिश की है और अरविंद भाई मुझे उनसे कभी परेशानी नहीं रही क्योंकि अपने को रगड़ने के लिए ही इस फील्ड में आया था, भीतर आत्मविश्वास था कि अगर ये मेरी क्षमता नहीं समझेंगे तो कोई और परख लेगा, दम तक रगड़ो अपने को।साथी नीलिमा मुझे कभी भी दुख इस बात का नहीं रहा कि हमसे बहुत कम काम करके ये लेडिस आगे बढ़ रही है, बल्कि लगातार इस बात का अफसोस रहा कि लड़की जो मेहनत करके अपना एक पोजीशन बनाना चाह रही है, उसके लिए ये लेडिस कितना खतरा पैदा कर रही है, जिसने कभी कोई स्क्रिप्ट नहीं लिखी और जिसकी स्टोरी को बॉस हमें टाइपराइटर की तरह टाइप करने के लिए पकड़ा जाता, जिस लेडिस की योग्यता पर पूरी क्लास कोसती रही, हमलोग समझाते रहे कि कुछ पढ़ लो मैडम, अब हमारा काम रह गया था उसकी स्टोरी को टाइप करना, आप सोच सकती हैं कैसा लगता होगा हम सबको ऐसा करना। समझ लो रोज-रोज मरने जैसा होता था ये

आप यकीन मानिए मीडिया क्या किसी भी फील्ड में लड़कियों को ज्यादा स्पेस या अवसर देने के नाम पर सिर्फ बाजार मिला है, समाज नहीं. हमारी लड़ाई उसे सामाजिक हैसियत दिलाने के लिए जारी है। एक ऐसी लड़की के लिए लगातार संघर्ष जो चाहती है कि सिर्फ और सिर्फ अपनी योग्यता के दम पर कुछ हासिल करे, लड़की होने पर नहीं और आपका कमेंट्स पढ़कर हौसला और मजबूत हुआ है कि काफी हद तक इसकी गुंजाइश भी है। नहीं तो चैनल के भीतर तो मानसिकता तेजी से पनप रही है कि अगर कोई लड़की डेस्क से रिपोर्टिंग में और रिपोर्टिंग से एंकरिंग में आ जाती है तो कानाफूसी शुरु हो जाती है। माफ कीजिएगा ऐसा लेडिस के ही कारण हुआ

कल ही देखिए न, एक लेडिस ने एसएमएस किया जिससे मेरी बातचीत लम्बे समय से बंद थी, इन्टर्नशिप के दौरान ही हम साथियों के साथ कम बॉस लेबल के साथ उठना-बैठना ज्यादा था। बहुत अधिक मीडिया की समझ भी नहीं लेकिन हां मीडिया की( आज के हिसाब से) तमाम उंचाइयों को लांघने की लगातार कोशिश। उसने बताया कि मेरा 1.30 का बुलेटिन देखो। वो जिस चैनल में काम कर रही थी सरकार ने फर्जी स्टिंग ऑपरेशन और फर्जी नाम के आरोप में एक महीने के लिए प्रसारण पर रोक लगा दी थी। मैंने चैनल का नाम पूछा कि कहां देखूं। उसने बताया कि चैनल फिर से शुरु हो गया है और वो एंकरिंग करने लगी है। इस बीच एक-दो साथियों से बातचीत हुई और मैंने जिक्र किया कि क्या कर रही हो तुमलोग, देखो वो तो एंकर बन गई। देखिए बिना कोई लाग-लपेट के एक लड़की की टिप्पणी थी ......विनीत तुमसे कुछ छिपा थोड़े ही है, हमें नहीं बनना है एंकर। नीलिमाजी हम इसी मानसिकता को ध्वस्त करने के लिए लेडिस पर लगातार चोट कर रहे हैं।.....
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4 Response to 'लेडिस क्यों लेडिज़ क्यों नहीं'
  1. note pad
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/10/blog-post_18.html?showComment=1192797540000#c6630508055450310995'> 19 अक्तूबर 2007 को 6:09 pm बजे

    स्त्री पर बात करते हुए अधिकान्शत: यह भाव प्रकट होने लगता है जैसे कि स्त्री कोई एलियन ,किसी अन्य ग्रह की जीव हो जो धरती के सभी इलाको पर कब्ज़ा करने की फ़िराक मे है [ वैध / अवैध तरीको से या कहे कि अवैध तरीको से ही ]पुरुष पुरुष ही रहता है । स्त्री पता नही क्या क्या हो जाती है । और सब साधिकार उसके उन विविध रूपो की व्याख्या परिभाषा करने लगते है। सफ़ल होने के लिए जैसे कभी किसी पुरुष ने धोखाधडी,जाल्साज़ी ,बेईमानी ,ब्लैकम्मिलिन्ग की ही नही या इतिहास उसका लेखा-जोखा कभी नही रखता !बात कही यह तो नही कि जब यह हथकन्डे स्त्री भी अपनाने लगी तो पुरुष हैरान है ।

     

  2. Sanjeet Tripathi
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/10/blog-post_18.html?showComment=1192801260000#c5065548382791731764'> 19 अक्तूबर 2007 को 7:11 pm बजे

    बढ़िया स्पष्टीकरण !!

     

  3. ePandit
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/10/blog-post_18.html?showComment=1192828560000#c7137463614799059027'> 20 अक्तूबर 2007 को 2:46 am बजे

    ओह, क्या-क्या नहीं होता मीडिया में। खैर आप मीडिया सम्बद्ध चिट्ठाकारों से हमें भी इस दुनिया के बारे में काफी कुछ जानने को मिला है। आभार!

     

  4. नीलिमा सुखीजा अरोड़ा
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/10/blog-post_18.html?showComment=1192874880000#c1550951690151657318'> 20 अक्तूबर 2007 को 3:38 pm बजे

    विनीतजी,
    मुझे लगता है कि आप और मैं एक ही बात कह रहे हैं। मीडिया में सब लोग एक से नहीं है।
    हो सकता है कि जब मीडिया में कोई महिला सफलता की सीढ़ियां चढ़ती है तो उसे संशय की नजर से देखा जाता है लेकिन इससे ऊपर जाने वालों को कोई अंतर नहीं पड़ता। अगर आपका ध्यान आपके लक्ष्य पर तो कोई आपको रोक नहीं सकता।
    हम लोग भी आईआईएमसी में फीस देकर पढ़ कर आए हैं भाई और शुरुआती दौर में हमसे विज्ञप्ति लिखवाने से लेकर किसी भी तरह का कोई भी काम सौंप दिया जाता था। लेकिन इसमें हिम्मत हारने जैसा कुछ नहीं है। ये परेशान तो जरूर करता है लेकिन यही आपको डटे रहने का हौसला भी देता है।

     

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