हाय,हाय...हाय,हाय संत आसाराम चोर है,चोर है,चोर है। उज्जैन की सड़कों पर किन्नर समाज ने संत आसाराम के खिलाफ जमकर नारे लगाए। नारे लगते ही संत आसाराम ने माफी मांगकर हमें इस बात पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि आखिर संत आसाराम कोई संत है या फिर देश का घिसा-घठाया हुआ नेता। जाहिर है उज्जैन में प्रवचन के दौरान संत आसाराम ने सागर की किन्नर मेयर कमला का जिस तरीके से मजाक उड़ाया था उससे कमला सहित किन्नर समाज बहुत दुखी हुआ। उन्हें इस बात पर हैरानी हो रही थी कि इतना बड़ा संत कहलाने वाला इंसान कैसे इंसानियत की बात भूलकर भौंड़ापन पर उतर आया है। कमला ने तो बहुत ही शालीनता के साथ अपना दुख जाहिर किया और कहा कि आसाराम ने ऐसा करके गीता को झूठा करार दिया है। लेकिन बाद में किन्नर समाज सड़कों पर उतर आए।
आजतक के हवाले से ऐसा किए जाने के बाद संत आसाराम ने कहा कि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनके ऐसा कहने से किन्नरों को दुख पहुंचेगा,उनका इरादा ऐसा करने का नहीं रहा है। माफी की चिठ्ठी वो शाम तक भिजवा देंगे। आसाराम के शिष्यों ने बाद में आकर सोनिया मौसी को मिठाइयां दी और पैर छूकर माफी मांगी। आजतक की मानें तो ऐसा होने से आसाराम फिलहाल कम से कम एक विवाद में पड़ने से बच गए। जाहिर है उन पर जमीन विवाद से लेकर हत्या करवाने तक के कई आरोप हैं।..तो इस तरह पहले वोट के आधार पर किसी मेयर का किन्नर होने पर भरी सभा में मजाक उड़ाए जाने के बाद माफीनामा लिख देने के बाद संत आसाराम जैसा कोई शख्स हाथ झाड़कर साफी बरी हो सकता है। सवाल यहां ये है कि जब गलती और आपकबूली के फार्मूले पर ही इस देश को चलना है तो फिर कानून,व्यवस्था,कचहरी और व्यूरोक्रेसी की क्या जरुरत है? आप गैरबराबरी,वैमनस्य और नफरत फैलाने का काम कीजिए और बाद में आपको जब एहसास हो जाए कि आपने गलती की है तो माफी मांग लीजिए,हो गया आपका काम। गलती का एहसास अगर न भी होता हो तो आपके शुभचिंतक आपको बताने के लिए तैयार बैठे हैं कि आप माफी मांग लीजिए,इसका एहसास कर लीजिए,लफड़े में पड़ने से बच जाइएगा। आसाराम इसी स्ट्रैटजी के तहत सस्ते में छूट गए।
लेकिन इस सस्ते में छूटने की पूरी प्रक्रिया का समाजशास्त्रीय विश्लेषण करें तो मोटे तौर पर जो बात निकलकर आती है वो ये कि संत आसाराम ने उज्जैन में जो कुछ भी किया,जिस तरह से अनर्गल तरीके से बयानबाजी की वो मामला सिर्फ कमला का मजाक उड़ाने का नहीं है। वो मामला सीधे-सीधे कानून और संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाने का है। ये समानता के अधिकार का उल्लंघन करने का है। इसलिए इसे सामाजिक तौर पर किन्नर समाज से माफी मांगने और उनके माफ कर दिए जाने के बाद भी मामला खत्म नहीं हो जाता। अगर सारी कवायदें सामाजिक तौर पर ही होनी है तो फिर किसी मामूली आदमी के गाली दिए जाने,अभद्र भाषा का प्रयोग करने,स्त्री और दलितों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किए जाने के बाद उन्हें सलाखों के बाहर होना चाहिए। वो भरी सभा में माफी मांगने के लिए तैयार हैं। लेकिन क्या ऐसा संभव है? शायद कभी नहीं। दो आंखें बारह हाथ का प्रयोग उन पर लागू होनेवाला नहीं। समाज में स्टेटस औऱ ओहदे को लेकर फर्क यहीं से पैदा होते हैं।
देश का एक मामूली आदमी,मामूली अपराध करने पर(जाने-अनजाने या मजबूरी में)पूरे मोहल्ले-टोले के बीच हाथ जोड़कर,थूक चाटकर लोगों से माफी मांगता है लेकिन उसे माफी नहीं मिलती। अगर एसएचओ या थाना के दूसरे लोगों से दोनों पक्षों के बीच सांठ-गांठ हो जाए तो अलग बात है। लेकिन अगर वो कुछ भी लेने-देने की स्थिति में नहीं है तो सीधा सलाखों के पीछे होता है। ऐसे में इस बात से बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता कि कितने सौ लोगों ने उसे माफ कर दिया है। सामाजिक सत्ता कानूनी सत्ता के आगे काम नहीं आती। वैसे भी यहां सामाजिक सत्ता की ताकत सिर्फ भ्रष्ट या कम भ्रष्ट,गुजरातवाले पाखंड़ी या मुरथल वाले पाखंड़ी बाबा को चुन लेने के बाद किसी काम लायक नहीं रह जाती। यहां पर हमें कानूनी सत्ता साफ तौर पर दिखायी देती है। लेकिन आसाराम जैसे शख्स के मामले में कानूनी सत्ता उतनी ही लचर नजर आती है जितना कि मामूली आदमी के मामले में उसकी सामाजिक सत्ता। अब सवाल है कि ऐसे शख्स को बचाने या फिर उसकी हरकतों को नजरअंदाज करने के क्रम कानून की जड़ें कितनी खोखली होती है इसका अंदाजा भी है या नहीं? ये उसी कानूनी सत्ता के खोखले होने का सबूत है कि संत आसाराम खुली चुनौती देता है कि अगर वो दोषी है तो कोई उसे गिरफ्चार करने क्यों नहीं आता? इसलिए नहीं आता कि इसके आगे का परिणाम वो भली-भांति जानते हैं।
कमला सहित किन्नर समाज ने आज अगर संत आसाराम को माफ कर दिया तो संभव है वो ऐसा करके समाज के सामने एक उदार किस्म की छवि पेश करना चाह रहे हों। जैसा कि पिछली पोस्ट में एक ब्लॉगर साथी मधुकर राजपूत ने कमेंट में लिखा भी कि- बाबा पता नहीं क्यों भूल गया कि वो जिसका अपमान कर रहा है वह सारे समाज का तिरस्कार और अपमान का कड़वा घूंट पीकर नीलकंठ बन चुका है। उसे इसके शब्दों से कोई असर नहीं पड़ता। ये भी संभव है कि वो बात को आगे बढ़ाकर इन लफड़ों में पड़ना नहीं चाहते हों। लेकिन मुद्दा ये है कि जब संत आसाराम ने कमला का मजाक उड़ाया,हजारों की भीड़ में किन्नर की नकल उतारी और फिर किन्नर समाज सड़कों पर उतरे इस बीच कानून की तरफ से समता के इस अधिकार को बचाने को लेकर क्या प्रयास हुए? क्या इस तरह के शख्स के मामले में ये आमचलन है कि कानून इंजतार करे,तब तक जब तक कि शख्स की तरफ से माफीनामा न आ जाए। अफसोस है।
दूसरी तरफ इस पूरी घटना का विश्लेषण इस रुप में भी किया जा सकता है कि संभवतः ये पहला मौका है जब संत आसाराम ने अपनी गलती कबूल की है। नहीं तो आश्रम में बच्चे की हत्या,मीडिया के साथ किए गए दुर्व्यवहार और जमीन को लेकर हुए विवादों में अपने को भगवान का प्रतिनिधि बताते हुए,पल्ला झाड़ते हुए और इसके लिए परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी वो देते आए हैं। इससे उनके अंधआस्था की अफीम में अपनी तार्किकता गंवा चुके भक्तों को शायद इस बात का एहसास हो जाए कि उसका स्वामी कोई महान आत्मा नहीं है। वो हमसे-आपसे अलग नहीं है। उसके भीतर भी राग-द्वेष है,अहंकार है,ओछापन है,क्षुद्रताओं से भरा हुआ है। माफी मांगकर उसने खुद साबित कर दिया है कि वो भी गलत-सलत बाते करता है। ये अलग बात है कि वो दुनिया को संयम,संस्कार,सद्भावना का पाठ देने का पाखंड़ रचता आया है। ऐसे लोगों पर कानूनी सत्ता के सक्रिय होने की तो जरुरत है ही लेकिन सामाजिक स्तर पर इस माफीनामे का तार्किक पाठ लोगों के बीच हो पाता है तो संभवतः ये पाखंड़ की जो खेती इस देश में हो रही है उसमें गिरावट जरुर आएगी। वैसे भी ऐसे लोगों का कानूनी स्तर पर जितनी कार्यवाही होनी जरुरी है उतना ही जरुरी है कि सामाजिक स्तर पर निरस्त किया जाया। संत आसाराम की आपकबूली अगर सिर्फ राजनीति औऱ स्ट्रैटजी का हिस्सा नहीं है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे समाज में प्रगतिशील विचारों का एक हद तक प्रसार हो सकेगा।
(जहां भी आजतक का एचटीएमएल हैं वहां संत आसाराम के माफी मांगे जाने की खबर और उज्जैन में जो कुछ कहा है उसकी ऑडियो है। इसे आजतक न्यूज चैनल से रिकार्ड किया गया है।)
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html?showComment=1264066661979#c6450768714948285126'> 21 जनवरी 2010 को 3:07 pm बजे
Saty kaha....
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html?showComment=1264073018974#c7442697376984646924'> 21 जनवरी 2010 को 4:53 pm बजे
बेचारा आसाराम.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html?showComment=1264083329849#c6005967860261788592'> 21 जनवरी 2010 को 7:45 pm बजे
काजल जी,
बेचारा आसाराम नहीं बल्कि कहिए कि...बेचारा समाज!!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html?showComment=1264178486914#c3177066162130772678'> 22 जनवरी 2010 को 10:11 pm बजे
mafi mangar asaram ne ye sabit kar diya hai ki hamara kanun kitna lachar hai..aur isme bhed vau kis kadar ghusa hai..barna ujjain prasasan kuch kadi karyavahi jarur karta.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html?showComment=1264180454297#c7995495738905298905'> 22 जनवरी 2010 को 10:44 pm बजे
मेरे ख्याल से आसा राम की आलोचना से ज्यादा मुफीद होगा उसे नजरंदाज करना। ऐसे लोग प्रचार के लिए ही ये टोटके अपनाते हैं.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/01/blog-post_21.html?showComment=1266451417643#c6098174835739488761'> 18 फ़रवरी 2010 को 5:33 am बजे
संत कह देने से कोई संत नहीं होता ।