टेलीविजन स्क्रीन पर इतने आक्रामक अंदाज में बात करने वाला शख्स भीतर से इतना खोखला होगा कि अपने मालिक के प्रति वफादारी दिखाने के लिए गुंडे-मवालियों की भाषा का इस्तेमाल करने लग जाएगा,सोचकर किसी भी एंगिल से यकीन नहीं होता। एक नामचीन पत्रकार के बारे में ऐसा सोचते हुए मन कसैला हो जाता है। सच पूछिए तो मेरा ध्यान वहां तक गया भी नहीं। हां इतना समझ पाया कि जिस किसी ने मेरे उपर ये कमेंट किया है उसे मेरी बात भीतर तक लगी है और वो इसे पढञकर बुरी तरह तिलमिला गया है और अपने को संभाल नहीं पाया है। लेकिन मोहल्लाlive पर बेनामी नाम से एक कमेंट को पढ़कर मैं उनके बताए फ्रेम में थोड़ी देर रुककर सोचने लगा। उन्होंने लिखा-
मेरा बेनामी रहना बहुत ज़रूरी है। दरअसल ये जो संजय देशवाल है वह अतुल अग्रवाल ही है। जो लोग अतुल अग्रवाल को करीब से जानते हैं वो पहचान गए होंगे इस टिप्पणी की भाषा से। न्यूज २४ में इसी तरह की भाषा का प्रयोग किया करते थे जनाब। अगर किसी को कोई संदेह है तो जनाब की वेब साईटhttp://www.hindikhabar.com पर जाकर पढ़ लें। भाषा एक जैसी है।
मैं अतुल अग्रवाल को लेखन के स्तर पर न के बराबर जानता हूं। अगर उन्होंने बहुत कुछ लिखा भी है तो माफ कीजिएगा मैंने उसे पढ़ा नहीं है। लेकिन हां,बोलने के स्तर पर उन्हें लगातार एक टेलीविजन ऑडिएंस की हैसियत से सुनता आया हूं। बोलने का आक्रामक अंदाज,गर्दन की नस फुलाकर बोलने की शैली एकबारगी हमें आकर्षित करती है। लेकिन इतना तो आप भी जानते है कि बड़ी पूंजी के बीच फंसी मीडिया के बीच से चाहे जितनी भी जोर से आवाज निकाले जाएं वो आवाज क्रांति या बदलाव की नहीं हो सकती,वो अंत तक आते-आते एक शोर और कानों के लिए एलर्जी पैदा करनेवाले एलीमेंट बनकर रह जाते हैं। इसलिए दो मिनट के बाद ही मुझे चांदनी चौक में जामुन बेचनेवाले बंदे का ध्यान हो आता है जो अकेले जामुन में ही दुनियाभर की बीमारियों को हरनेवाले गुणों को बताकर हांक लगाने का काम करता है। कॉर्पोरेट ग्लूकोज पीकर आधे-एक घंटे की बुलेटिन पेश कर अतुल अग्रवाल या देश का कोई भी मीडियाकर्मी पूरी तरह सड़ चुकी व्यवस्था में कितनी रद्दोबदल कर सकता है ये आपसे औऱ हमसे छिपा नहीं है। इसलिए मेरी तरह आपको भी यकीन हो जाएगा कि ऐसा बोलने का अंदाज एक शैली भर से ज्यादा कुछ भी नहीं है,शांत मिजाज की ऑडिएंस इस शैली को शायद ही पसंद करे। बहरहाल,
लेखन के स्तर पर मेरी तरह इंटरनेट पर पढ़नेवाले लोगों के बीच जैसे ही अतुल अग्रवाल का नाम आता है तो एक ही बात एक साथ निकलती है- अच्छा,वही जिसने खुशवंत सिंह को लेकर अनाप-शनाप लिखा था। मैंने अतुल अग्रवाल की लिखी ये पोस्ट रॉ फार्म में ही पढ़ी थी। कई गालियां,भद्दे-भद्दे कमेंट,अश्लीलता और फूहड़ भाषा से भरी इस पोस्ट को पढ़ते हुए मुझे बार-बार ऐसा लगा कि मैं अन्तर्वासना डॉट कॉम पर लिखी गयी कहानियों की भूमिका से गुजर रहा हूं। मन में एक सवाल भी आया कि जो इंसान बतौर एक लेखक ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहा है तब वो बोलने के स्तर पर किस तरह की भाषा का इस्तेमाल करता होगा? लेकिन यही तो चमत्कार है कि सुबह से शाम तक मां की,बहन की करनेवाले सैंकड़ों लोग शाम गहराते ही मानवीयता,शालीनता और बदलाव के लबादे ओढ़कर ज्ञान देने की मुद्रा में आ जाते हैं। हालांकि अतुल अग्रवाल की इस पोस्ट को कई वेबसाइटों ने अपने स्तर से फिल्टर करके छापा लेकिन उसके फ्लेवर में कोई खास फर्क नहीं आया। शायद यही वजह है कि जिस बेनामी शख्स ने मेरे लिए की गयी टिप्पणी को अतुल अग्रवाल की कारस्तानी बताया,वो इस पोस्ट की याद दिलाना नहीं भूला,उसे बतौर रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल किया। इसके साथ ही एक साइट की लिंक भी दी और कहा कि हम उसकी भाषा से अगर टिप्पणी की भाषा का मिलान करते हैं तो हमें पक्का विश्वास हो जाएगा कि ये उन्हीं का काम है।
टिप्पणी के मुताबिक सही में मैं अतुल अग्रवाल के आगे कुछ भी नहीं हूं,पासींगा भी नहीं। लेकिन बिडंबना देखिए कि देश के इतने बड़े पत्रकार को(अगर वाकई हैं तो) मुझ जैसी नाचीज को जबाब देने के लिए जहमत उठानी पड़ गयी। मैं इस मसले पर अभी लिखने ही जा रहा था कि जीमेल टॉक पर अचानक से एक पत्रकार भाई का संदेश आया- विनीत,आपके उपर किसने कमेंट किया है,मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं। मैंने कहा- एक शख्स ने तो कमेंट के तौर पर लिखा है कि ये काम अतुल अग्रवाल का है। उधर से फिर जबाब आया,एकदम सही लिखा है,सौ फीसदी सही। मैंने फिर कहा-मैं तो लिखने जा रहा हूं-कहीं ये कमेंट अतुल अग्रवाल का तो नहीं। उधर से फिर जबाब आया-आप निश्चिंत रहिए,ये काम उसी शख्स का है।
डिस्क्लेमर- इस पोस्ट के जरिए हमने सिर्फ उस गुंजाइश को समझने की कोशिश की है जो कमेंट और अतुल अग्रवाल की भाषा को एक करती है। हमारा इरादा न तो अतुल अग्रवाल जैसे बड़े पत्रकार के बारे में कोई अतिरिक्त छवि बनाने की है औऱ न ही हम उन जैसे किसी भी शख्स से मुकाबला करने की स्थिति में हैं। अगर उन्हीं के शब्दों को दोहराएं तो-अबे, अमित सिन्हा या किशोर मालवीय तो बहुत दूर की बात है, तुम तो एक इंटर्न पर भी टिप्पणी करने की औकात नहीं रखते।
नोटः- मुझे अभी तक मेरी अपनी औकात का अंदाजा नहीं था,ये बताने के लिए टिप्पणीकार का शुक्रिया। खुशी होगी कि अतुल अग्रवाल यहां आकर लताड़ लगा जाएं औऱ कहें कि तुम्हें हिम्मत कैसे हुई मुझ पर शक करने की,मेरे पास इस तरह के वाहियात काम करने की जरा भी फुर्सत नहीं।.
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_27.html?showComment=1251367249448#c769382126494057460'> 27 अगस्त 2009 को 3:30 pm बजे
मुझे तो ऐसा लगता है
इन्हें नौकरी पर नहीं रखा जाता
इन्हें सुपारी दी जाती है
ये चैनलों के भाई लगते हैं
समझा क्या भाई ?
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_27.html?showComment=1251382863518#c485469511298863577'> 27 अगस्त 2009 को 7:51 pm बजे
Whether he is Atul or Pratul ,one must understand that future belongs to net . The people who matter gather news from net alone , they don't even watch T.V.
As a fellow blogger ,i condemn this high handed approach and call it 'unfortunate' on the part of entire media industry that a peace loving fellow like Vineet should be targetted in this cheap manner.
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_27.html?showComment=1251435670228#c3055512282158365045'> 28 अगस्त 2009 को 10:31 am बजे
जाने दो, माफ़ करो,उसे नही पता कि वो क्या कर रहा है।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_27.html?showComment=1251747806716#c6675156856345230503'> 1 सितंबर 2009 को 1:13 am बजे
अतुल अग्रवाल ने फोन के जरिए इस मामले में लंबी बातचीत की और संवाद की संभावना को बनाए रखा इसके लिए शुक्रिया।..