धीरे-धीरे,एक-एक करके सब कटते चले गए। जिनलोगों को दिनभर में पांच बार कभी कैंची,कभी फैबीकोल,कभी मूव और कभी फिल्मों की सीडी जैसी छोटी-मोटी चीजों की जरुरत होती,अब उन्होंने मुझे छोड़ किसी और को विकल्प के तौर पर चुन लिया है। उन्हें जैसे ही इस बात की जानकारी हुई कि मुझे पिछले पांच दिनों से बुखार है,छींकें आती हैं,रह-रहकर खांसी भी उठ जाती है यानी वो सबकुछ होता है जिसे दिखा-बताकर मरा-गिरा चैनल भी इन दिनों अपनी सेहत दुरुस्त करने में जुटा है,वो हमसे किनाराकशी करते चले गए। जाहिर सी बात है कि इतनी छोटी-मोटी चीजों के लिए वो अपनी जान जोखिम में नहीं डालना चाहते। मुझे कुछ हो गया,मर-मुरा गए तो फिर भी ब्लॉगर-पत्रकार भाइयों के सहयोग से एक छोटी ही किन्तु शोक-सभा हो जाएगी,लोग मुझे याद भी करेंगे लेकिन बाकियों का क्या होगा जिसे कि कैंपस में ही दस आदमी भी ठीक से नहीं पहचानता। मजाक में ही सही,लेकिन उस बंदे ने बात तो सही ही कही,इसलिए बाकियों को हमसे दूर रहने और अधिक जीने और कुछ नाम-शोहरत कमाने का पूरा हक है।
जो कल तक हमारे संडे फ्रूट के उपर का ड्राइ फ्रूट छांट-छांटकर खाते रहे,चलिए डॉक्टर साहब आपको कमलानगर में कन्टाप-कन्टाप माल दिखाकर लाते हैं,मोमोज खिला लाते हैं,पटेल चेस्ट से घूमकर आते हैं,आज वो फोन से हाल जानना चाहते हैं-कहिए कैसे हैं। मेरी मिरमिरायी आवाज पर ठहाके लगाते हैं,अरे आपको कुछ नहीं हुआ है-आपको दू-चार दिन लेडिस-उडिस का साथ मिल जाएगा तो दुइए मिनट में टनमना जाइएगा। मेरा दोस्त देवघर में परेशान है,मैं फोन नहीं उठा पाता हूं। वो बताते हैं कि अभी डॉक्टर से अंदर दिखवा रहे हैं,कुछ खास नहीं हुआ है,बस ओही बीमारी..जिसका एक ही इलाज है...हा हा हा..आप तो सब जानवे करते हैं। धीरे-धीरे फोन भी आने बंद हो जाते हैं। रोग-बीमारी तो होता ही रहता है,आदमी कितना फोन करे,आखिर अपनी भी तो लाइफ है न।
ये हम जैसों का हाल है जिसे कि सरकार की ओर से लगभग सारी सुविधाएं प्राप्त है। आजतक के रिपोर्टर अमित चौधरी ने जब कहा कि दिल्ली के कई ऐसे परिवार हैं जो कि एक ही कमरे में गुजारा करते हैं,सरकार को चाहिए कि किसी एक के बीमार हो जाने पर बाकी लोगों के रहने का इंतजाम करें। क्या ये सवाल सिर्फ जगह मुहैय्या कराने भर का है या फिर कन्शसनेस के नाम पर अलग-थलग होने,पड़ जाने,कर दिए जाने या फिर बीमारी के बहाने कई चीजों के चटक जाने का है।
कमरे में अकेले पड़ा-पड़ा मैं कई चीजें याद करता हूं,एक साथ। बीमारी हमें फ्लैशबैक में जाने का भरपूर मौका देती है,बीती हुई जिंदगी को याद करने का मौका। इसे याद करना,एक-एक क्षणों को खोल-खोलकर याद करते हुए दुहराना कुछ-कुछ वैसा ही लगता है जैसे आप घर से आयी चीजों को एक-एक करके खोलते हैं। ऐसे समय में एल्बम देखना अच्छा लगता है। एक-एक सर्टिफिकेट को देखना अच्छा लगता है,आर्चिज औऱ हॉलमार्क के उन कार्डों को देखना अच्छा लगता है जिसके बारे में सोचते हुए आफ सिहर जाते हैं कि अगर इसे कभी होनेवाली पत्नी देख लेगी तो।..फिर आप जमाने को गाली देते हुए कहते है...चुतिए स्साले। क्या है ऐसा इसमें,किसी ने प्यार से दिया है तो इसमें दिक्कत क्या है,आप अपनी ही पीठ ठोकते हुए कहते हैं-होने दो शादी,सारे कार्ड दिखाउंगा,एक ही रजाई में दोनों प्राणी पैर डालकर साथ देखें और पढेंगे इन कार्डों को। पत्नी हम पर शक करने के बजाए उन लड़कियों पर हंसेगी,सो स्वीट। किसी कार्ड पर ठहाके लगाएगी..मेरी इच्छाओं की प्रतिध्वनि..ओह माइ गॉड,ये हिन्दीवाली भी न।..हम फुलकर कुप्पा हो जाते हैं,ऐसा सोचते हुए कि मेरी पत्नी कितनी ब्रॉडमाइंडेड होगी।
मां याद आती है,ऐसे समय में अक्सर। बीमारी के वक्त मां जब भी याद आती है तो बस एक ही मुद्रा में। ट्वायलेट के आगे रुपाली स्याही की खाली बोतल से बनी ढिबरी लिए मां। देर होने पर अधखुले दरवाजे होने पर भी कोई आवाज न आने पर घबराकर आवाज लगाती मां। वो सारी लड़कियां जिसने कभी भी हमें छुआ हो,अपनी सीट पर काम करते रहने की स्थिति में पीछे से कंधा दबाने वाली लड़की,जिससे ये कहने पर कि बहुत अच्छा लगता है,थोड़ा देर और दबाओ न,बिदककर कहनेवाली लड़की-शक्ल देखी है आइने में। बॉस के बार-बार कहने पर कि कितना क्यूट है-सीढ़ी पर एकांत में मेरी क्यूटनेस को महसूस करनेवाली लड़की। जाने दोगी कि नहीं,वो कहती-नहीं जाने दूंगी। लाचार होकर मैं कहता-अगर नहीं जाने दोगी तो मैं कुछ कर दूंगा। तभी वो कहती-सो क्यूट,क्या कर दोगे। उसी वक्त वो लड़कियां भी याद आती जिससे एक बार हाथभर छू जाए तो पता नहीं घर जाकर कितनी बार मेडिमिक्स से हाथ धोती होंगी। बीमारी के वक्त एक-एक करके सब याद आते हैं।
जिन्हें नहीं पता कि मैं बीमार हूं,वो अपने काम से फोन करते हैं। जैसा कि इंसान औपचारिक होने की स्थिति में कहता है-औऱ कैसे हो। मैं कहता हूं-बीमार हूं। किसी चीज की जरुरत हो,तुरंत बताना। ये बात उन्हें भी पता है कि हमें किस चीज की जरुरत होगी,जो भी बीमार हुआ है वो मेरी आज की पोस्ट की शैली पढ़कर समझ सकता है ऐसे में किसी को क्या चाहिए होता है। उस फेज से हम बाहर आ गए हैं,जब 200-500 रुपये के चलते सर्दी,खांसी,बुखार जैसी बीमारियों को लेकर बैठे हुए हैं।..तो फिर क्या चाहिए हमें। इसी बीच मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज सर लगातार फोन करते हैं-कैसी है तबीयत,सुनो शहद के साथ हल्दी मिलाकर चाटा करो,इधर-उधर की बातें करके फिर फोन रख देते हैं। तीन घंटे बाद फिर फोन करते हैं- अरे सुनिए तो,गरम पानी नियमित चाय की तरह पिया कीजिए,आराम मिलेगा। फिर अगले दिन,आप बैचलर हैं,सांड की तरह रहा कीजिए,फिर गृहस्थी में तो फंसना ही है। मैं हंसने की कोशिश करता हूं,खांसी उठती है-सर,मत हंसाइए प्लीज। मुझे अच्छा लगता है।
मैं दो-चार दिनों में ठीक हो जाउंगा,तय है क्योंकि मौत आनेवाली बीमारी का आभास अलग तरीके का होता है लेकिन वाद-विवाद प्रतियोगिता में अक्सर बोला जानेवाला शेर मुझे अब कुछ इस तरह से याद आता है-
बस एक ही स्वाइन फ्लू काफी है,
बर्बाद हर रिश्ते के करने को
हर साल जो एक फ्लू आता है
अंजाम-ए-रिश्ता क्या होगा।
वैसे सच कहूं,हम जैसे लोगों को जो कि अक्सर गुमान होता है कि हमें दिल्ली में जाननेवाले लोग इतने हैं,ये मेरा सोशल कैपिटल है,हम फुलकर बारा हुए रहते हैं,जरुरी है कि कभी-कभी ऐसी बीमारी होती रहनी चाहिए ताकि हम अपने संबंधों के अकाउंट्स की ऑडिटिंग बेहतर तरीके से करते रह सकें। अब देखिए न,इतना बड़ा शहर,इतने लोग लेकिन सब...कोई दिक्कत हो तो बताना शैली में जीनेवाले लोग। कल को फिर कहने वाले लोग...हद करते हो यार,इतने दिनों तक बीमार रह गए और एक फोन तक नहीं किया,इट्स नॉ फेयर।...नो..नेवर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250151487394#c4349448139812036660'> 13 अगस्त 2009 को 1:48 pm बजे
घबराइए नहीं, ज्लदी ठीक होइये।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250155673889#c3946345829995786008'> 13 अगस्त 2009 को 2:57 pm बजे
ऐसा मौका पड़ने पर सभी को ऐसा ही महसूस होता है.....शीघ्र स्वास्थ हो.......
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250156204937#c7679076506300416308'> 13 अगस्त 2009 को 3:06 pm बजे
बेचलर आदमी को बीमार पड़ने में बड़ी दिक्कत हो जाती है. कोई देख भाल करने वाला होता नहीं, हाल पूछने वालों का अचार डालें क्या!
हार कर जल्दी से ठीक होने के सारे जतन करने पड़ते हैं! चलो आप भी जल्दी से ठीक हो जाओ..आपकी 'लेडिस' आपको मिस कर रही होंगी ;)
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250160810158#c8754254327365597935'> 13 अगस्त 2009 को 4:23 pm बजे
का भाई, एतना सेंटियाते काहे हैं जी? हम अभी अभी घर से आये हैं, अभी तो फिर से नौस्टैल्जिक मत किजिये.. देखियेगा दू-चार दिने में एकदम से टनमना जाईयेगा.. सुभकामनायें..
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250167838524#c2076866707173608718'> 13 अगस्त 2009 को 6:20 pm बजे
अरे हमारी तो बात भी हुई और मुझे तो पता भी नहीं चला ! देखिये यही दिक्कत है चैटिंग में ,आप छींके -खांसे भी होंगे तो मुझे पता न चला होगा .
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250243142700#c1079679227372264405'> 14 अगस्त 2009 को 3:15 pm बजे
कभी-कभी विचारों को भी सुस्ताने दीजिए इस बहाने:)
http://taanabaana.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html?showComment=1250867166835#c8509724190653197966'> 21 अगस्त 2009 को 8:36 pm बजे
I am unable to send a comment in Hindi bcz i'm not having skill to type hindi i cant express in my own words how did i feel to read youe recent blog. Actually, u revelead the real condition ( which is beyond our thinkingg)when a person is not feeling well.u made interesting and bitter comment on those persons who bless u on phone instead of meeting u .am i among those persons . bcz last time after meeting u i depaerted to Vasno devi . and returning i really forgetting to talk to u . sorry........