एकः
तुमने ही तो पहले कुत्ता, कमीना कहा था। नहीं पहले तूने कहा था कि एक दूंगा कनपटी पर। एक बच्चे की मम्मी दूसरे की मम्मी से शिकायत करने उसके घर पहुंचती है कि आपके लड़के ने मेरे बच्चे को मारा। उपर के संवाद इस दौरान के हैं। दोनों की मांएं कुछ बोले इसके पहले ही दोनों बच्चे आपस में शुरु हो जाते हैं। मां को बोलने का मौका ही नहीं देते। अंत में पीछे से वीओ चलता है..क्या सीख रहे हैं आपके बच्चे।
दोः
एक छह-सात साल की बच्ची टीवी देख रही है इसी बीच उसकी मम्मी उसकी दीदी के बारे में पूछती है कि कहां है वो। बच्ची का जबाब होता है- गई होगी कलमुंही अपने ब्ऑयफ्रेंड के साथ। उसी सुर में वो और भी लगातार बोलती चली जाती है। पीछे से फिर वीओ चलता है- क्या सीख रहे हैं आपके बच्चे ?
तीनः
एक फैमिली के घर कुछ लोग खाने पर आए हैं। उस फैमिली में छह -सात साल का एक लड़का भी है। आमतौर पर जैसा की भारतीय परिवारों में होता है कि आपके जाते ही बच्चे के मां-बाप कहते हैं कि- अंकल या फिर दीदी को सुनाओ तो राइम्स। अगर बच्चा स्मार्ट है तब तो चालू हो जाता है...बा बा ब्लैक सिप या फिर और कुछ लेकिन अगर फूद्दू है तो फिर लेडिज होने पर आप अपना पर्स खोलती हैं और कैडवरी देते हुए कहती है..अच्छा चलो, अब सुनाओ। यहां बच्चा स्मार्ट है। सीधे कहता है- पापा एक गाना सुनाउं। फिर सुनाता है-
ए गनपत, चल दारु ला
ए गनपत, चल दारु ला
आइस थोड़ा कम, सोड़ा ज्यादा मिला
जरा टेबुल-बेबुल साफ कर दे न यार..
टेबुल साफ कर देने की बात पर वो गेस्ट की तरफ हाथ लहराता है। इस बीच उसके मम्मी-पापा तरह-तरह से मुंह बनाते हैं। उन्हें लगने लग जाता है कि उनकी इज्जत मिट्टी में मिल गयी। फिर वीओ चलता है- क्या सीख रहे हैं आपके बच्चे ?
इन तीनों दृश्यों में ये बताने की कोशिश है कि टीवी देखकर आपके बच्चे खराब हो रहे हैं। उनके संस्कार पर बुरा असर पड़ रहा है। टीवी के जिन कार्यक्रमों से बच्चों के संस्कार बिगड़ रहे हैं उसमें सास-बहू टाइप सीरियल, रियलिटी शो के नोक-झोंक और म्यूजिक चैनल के गाने हैं। इसलिए इन सबको छोड़कर जरुरी है कि बच्चे रामायण देखें। एनडीटीवी इमैजिन रामायण को किसी पौराणिक कथा के रुप में नहीं बल्कि एक अच्छी आदत के रुप में देखने-समझने की बात करता है। चैनल की समझदारी बढ़ी है. उसे इस बात का अंदाजा हो गया है कि अब रामायण के वो दर्शक नहीं रहे हैं जो कि रामायण शुरु होने पर टीवी के आगे अगरबत्ती जलाते थे और अरुण गोविल के आगे मथ्था टेकते थे।
रामायण और दूसरी पौराणिक, धार्मिक कथाएं जिस पर कि अपनी-अपनी ऑयडियोलॉजी के आधार पर बहसें होतीं है और स्थापित मान्यताओं पर संदेह किया जाता है। इसलिए इसे लेकर अब एक सर्वमान्य धारणा नहीं रह गयी। अब यह विवाद और उन्माद का विषय हो गया है। इन सबके बावजूद इन सारी धार्मिक कथाओं को संस्कार और बच्चों के लिए आदर्श के रुप में स्थापित करने की एक बार फिर फिर से कोशिशें की जा रही है। अब तक ये कोशिशें परिवार के लोग किया करते रहे लेकिन अब इसमें टेलीविजन भी शामिल है, बाजार भी शामिल है, बड़ी पूंजी भी शामिल है। इसलिए बौद्धिक बहसों के बीच अगर ये कथाएं अपना व्यावसायिक रुप ले रही हैं तो ये मानकर चलिए कि चाहे कोई भी वाद आ जाए और बाजार का कोई भी स्वरुप हो ये कथाएं अपने समय अनुसार खपने लायक बन जाएंगे। इसे आप इन कथाओं की ताकत कहिए या फिर इंसान की उपयोगितावादी दृष्टि लेकिन रामायण, महाभारत और इस तरह के धार्मिक कथाओं की मार्केटिंग और खपत हमेशा रहेगी। अब तक का अनुभव तो यही रहा है।
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http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_25.html?showComment=1216974420000#c7117505121298467711'> 25 जुलाई 2008 को 1:57 pm बजे
दरअसल, यह सब बाजार का खेल और उसी की माया है।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_25.html?showComment=1216976280000#c8934396279430107494'> 25 जुलाई 2008 को 2:28 pm बजे
अच्छा मंथन किया है।लेकिन इन सब का बाजार भाव ही तय करेगा।तभी तक ही यह चलेगीं।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_25.html?showComment=1217001600000#c6748199776831381271'> 25 जुलाई 2008 को 9:30 pm बजे
येल्लो आप ही कहते हो कि बाजार का बड़ा बुरा प्रभाव पड़ रहा है लोगों पर....पर यहां तो बाजार ही उन्हें सुधारने निकल पड़ा :)
वैसे ये विज्ञापन बहुत मजेदार लग रहे हैं...खासकर वो ए गनपत चल दारू ला वाला....हमें भी टीवी को वक्त देना पड़ेगा...भौत मजेदार मामला है गुरू
http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_25.html?showComment=1217003700000#c2195651717942409843'> 25 जुलाई 2008 को 10:05 pm बजे
अच्छा विश्लेषण रहा..विचारणीय.
http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_25.html?showComment=1217085660000#c8865124279433586243'> 26 जुलाई 2008 को 8:51 pm बजे
यह सही है कि रामायण,महाभारत सरीखे serials के नए संस्करण्ा नए चेहरे और नई तकनीक के साथ प्रस्तुत किए जा रहे हैं लेकिन पुराना दर्शक वर्ग अब भी उसी उत्साह के साथ जुड रहा है। बेशक अब वह अगरबत्ती नहीं जलाता!