उदय प्रकाश के उपन्यास मोहनदास पर बनी फिल्म मोहनदास का मीडिया पार्टरनर जनमत चैनल है। एक ऐसा चैनल जिसे फिल्म में देखकर कोई अपने टीवी स्क्रीन पर देखना चाहे तो उसे मायूस होना पड़ेगा। जनमत नाम से अब कोई चैनल है ही नहीं। लेकिन फिल्म में उसे इस तरह से दिखाया गया गया है कि आपको जनमत चैनल को छोड़कर और किसी दूसरे चैनल को देखने का मन ही नहीं करेगा।..आप हिन्दी आलोचकों की तरह बोल पड़ते हैं कि जनमत सिर्फ एक चैनल नहीं, विचार है और उसका हमारे बीच से चले जाना घटना नहीं बल्कि एक विचार का अंत है।
अब लगभग जितनी फिल्में बनायी जाती है उसमें न्यूज चैनलों के लिए खासतौर से स्पेस क्रिएट किया जाता है। कहानी का ताना-बाना ही कुछ इस तरह से बुना जाता है कि फिल्म को बार-बार रिपोर्टरों की जरुरत पड़ती है। फिल्म का प्लॉट चाहे जो भी हो, सबमें मीडिया पार्टनर के रुप में टाइअप किए चैनलों की दरकरार पड़ जाती है।..और वैसे भी जिस तरह से न्यूज चैनलों का काम बढ़ा है उसमें समंदर किनारे प्रेम कर रहे हीरो-हीरोइनों को भी...तो आप देख रहे हैं कि किस तरह से दोनों ने अपने बीच किसी तरह का फासला नहीं रहने दिया है,,, बोलकर रिपोर्टिंग कर सकता है। एक लाइन में कहूं तो बिना चैनलों को घुसाए फिल्म बनाना अब हिम्मत का काम है और लीक से हटकर एक नया प्रयोग भी। खैर....
मोहनदास जो कि व्यवस्था का मारा हुआ मेधावी दलित युवक है उसके साथ अन्याय हुआ है। उसकी पहचान उससे छीन ली गयी है, उसकी जाति को किसी और ने रिप्लेस कर लिया है और अब उसे यह सिद्द करनें में मारामारी करनी पड़ रही है कि वो ही मोहनदास है। कोयलरी में जो मैनेजरी कर रहा है वो तो ब्राह्मण है, उपर से नीचे तक खिला-पिलाकर उसने सबको अपनी तरफ कर लिया है। इसलिए मोहनदास की बात को कोई नहीं सुनता है। लिहाजा बात जनमत चैनल तक चली जाती है।
जनमत का sringer अनिल यादव इस पूरी स्टोरी को दिल्ली के ऑफिस में भेजता है और स्टोरी ऑन एयर होती है. बात आयी-गयी हो जाती है लेकिन तभी चैनल की तेजतर्रार रिपोर्टर मेघना सेन गुप्ता जिसका कि देशभर में साख है, इस स्टोरी को अपने तरीके से कवर करना चाहती है और खुद मध्यप्रदेश के उस इलाके में जाना चाहती है जहां कि मोहनदास रहता है और जहां फर्जी मोहनदास काम करता है। चैनल प्रमुख राहुल देव मेघना के इस विचार को साफ तौर से नकार देते हैं और सीधे शब्दों में कहते हैं, उस स्टोरी में क्या रखा है. यू नो स्टोरी मतलब किक्रेट, क्राइम और ऑफकोर्स पॉलिटिक्स। बार-बार मना करने के बाद भी मेघना अकेले ही मध्यप्रदेश के उस इलाके में जाती है और अनिल यादव की मदद से पूरी स्टोरी को दुबारा शूट करती है। लेकिन ऐसा करते वक्त वो तटस्थ नहीं रह पाती और मोहनदास की परेशानियों से जुड़ती चली जाती है. यही वजह है कि दिल्ली वापस लोटने पर भी वहां से लगातार उसके लिए फोन आते हैं और ऑफिस में उसे ताने सुनने पड़ते हैं कि -तुम अभी तक उस स्टोरी के पीछे पड़ हुई हो।..
मेघना दोबारा-तीबारा उस पिछड़े इलाके में जाती है लेकिन पहली बार की तरह कैमरा-यूनिट के साथ नहीं और न ही चैनल की रिपोर्टर की हैसियत से। एक पत्रकार की हैसियत से। चैनल की भाषा में कहें तो एक अनप्रोफेशनल की हैसियत से। इस बात का अंदाजा आपको मेघना के जबाब सके ही लग जाएगा जब वो वकील के सवाल का कि-इस बार कैमरे लेकर नहीं आयीं और मेघना बिल्कुल ही सपाट ढंग से जबाब देती है कि- कोई स्टिंग ऑपरेशन करना था क्या। मतलब साफ है कि मोहनदास की परेशानी में लम्बे समय तक जनमत साथ नहीं दे पाता। जनमत क्या, कोई भी नहीं दे पाएगा। वजह आप सब जानते हैं।
पूरी फिल्म में मेघना अंत तक साथ बनी रहती है, चैनल एकदम से हाशिए पर चला जाता है। बीच-बीच में उस पर मोहनदास की खबरें आती है लेकिन बहुत प्रोजेक्शन के तौर पर नहीं, बहुत ही सामान्य ढंग से। बाद में तो खुद जनमत भी नहीं रह जाता, लाइव इंडिया हो जाता है। इससे अधिकारी ब्रदर्स ने शायद यह साबित करने की कोशिश की हो कि यह वही लाइव इंडिया है जो जनमत के मूल्यों को कैरी कर रहा है नाम बदल जाने से क्या होता है, जनपक्षधरता तो बनी ही है। यह अलग बात है कि ऑडिएंस को उमा खुराना प्रकरण अब भी याद है।
पूरे मोहनदास में इस हिसाब से चैनल के नाम बदले से लेकर उसके नए चैनल में बदलने का प्रोसेस साफ तौर पर दिखायी देता है. आप फिल्म देखते हुए एंकर के अंदाज पर गौर कर सकते हैं, कहने के तरीके पर विचार कर सकते हैं।...
....तो क्या यह मेरी इससे ठीक पहले की पोस्ट का एक्सटेंशन है कि चैनल का यह दूसरा खेला है जहां किसी स्टोरी के पीछे हाथ-धोकर पड़ जाने का मतलब है- चैनल अलग, रिपोर्टर अलग। लेकिन इन सबके बीच अच्छी बात है कि चैनल के बाजारवादी रुझान के बीच भी एक संजीदा पत्रकार की मौजूदगी का एहसास हो जाता है।
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http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_21.html?showComment=1216625760000#c2899770095043490237'> 21 जुलाई 2008 को 1:06 pm बजे
amuman sanjeeda tareeke se patrkaro ko nahi dikhaya jata hindi filmo,ek filmhi yaad aati hai ,shashi kappr ki "new delhi times"....
http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_21.html?showComment=1216642380000#c4903766201888135347'> 21 जुलाई 2008 को 5:43 pm बजे
सही है, जी !
http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_21.html?showComment=1216645200000#c694104916485821394'> 21 जुलाई 2008 को 6:30 pm बजे
बढिया।