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मैं जब भी कोई स्टंट करता हूं, गायत्री मंत्र का उच्चारण करता हूं। मैं चाहता हूं कि स्टंट शुरु करने से पहले आपलोग भी ऐसा ही करें। खतरों के खिलाड़ी ( कलर्स) में अक्षय कुमार के ऐसा कहते ही १३ युवतियां जिसमें की कुछ मां भी बन चुकी है और जिसे देखकर हम अक्षय से जलने लगे हैं..सब के सब एक साथ ऊँ भूर्भवः का उच्चारण करने लग जाती हैं। इसके साथ ही उनके मेंटर जो कि कभी भारतीय सेना की सेवा में थे और सब के सब डिफेंस की पोशाक में हैं, वो भी इस मंत्र का उच्चारण करते हैं। इस तरह कलर्स के स्क्रीन पर एक साथ सत्ताइस भारतीय जोहान्सवर्ग, साउथ अफ्रीका की धरती पर गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं। ये सत्ताइस लोग जब मंत्र का उच्चारण कर रहे होते हैं तो कैमरा पैन होता है और सबके सब एक सुर में दिखते हैं, इससे साफ हो जाता है कि मंत्रोच्चारण की उन्हें बेहतर तरीके से प्रैक्टिस करायी गयी है।
जो बंदा हिन्दू नहीं है या फिर हिन्दू होते हुए भी इस तरह के मंत्रोच्चारण से कोई मतलब नहीं है, एक समय के लिए बिदक भी सकता है कि शो तो है साहसिक बनने का, अपने को मजबूत करने का और ये बीच में हिन्दुइज्म कहां से आ गया। मजबूत बनना और उसके लिए प्रैक्टिस करना अपने आप में एक सेकुलर प्रक्रिया है लेकिन इसे इतना धार्मिक बना देने की क्या जरुरत थी। खतरों के खिला़डी का जो फॉरमेट हैं उसमें इस तरह के मंत्रोच्चारण में पाखंड के अलावा और कोई सेंस पैदा नहीं होता।
कलर्स ने एक सीरियल शुरु किया है- बाल वधू। इसके प्रोमो में आप भी देख रहे होंगे कि करीब सात-आठ साल की बच्ची आप सबसे कह रही है कि- आप आएंगे न मेरी शादी में, बहुत खुश है आपको बताते हुए कि उसकी शादी हो रही है और वो खूब सजेगी-संवरेगी। लेकिन इसी के एक और दूसरे प्रोमो में वो कहती है कि- क्या तब ये घर, आंगन और बापू सब छूट जाएंगे। इधर लड़के के बाप ने घोषणा कर दी है कि हमें तो अपने राम के लिए सीता मिल गयी।
कहानी ये है कि ये सीरियल बाल-विवाह पर आधारित है। उस बाल-विवाह पर जिसे रोकने के लिए, बंद करने के लिए सरकारी प्रयास जारी है। अगर अब से पच्चीस साल पहले के मुकाबले देखें तो इसके दर में काफी गिरावट आयी है और स्त्रियों की बेहतरगी के लिए इसे रोका जाना बहुत जरुरी है लेकिन चैनल पर इसी से सीरियल की शुरुआत होती है और वो भी कोई समस्यामूलक के रुप में नहीं बल्कि उत्सवधर्मी वातावरण में। शादी में पहनने के लिए दो दर्जन सिल्क की साडियां मंगायी जानी है और भी बहुत कुछ। पूरे सीरियल में बाल-बधू को इस तरह से पेरोजेक्ट किया गया कि देखते ही आपको लगेगा कि यह देश के लिए कोई कलंक न होकर संस्कृति का एक हिस्सा है और कोई चाहे तो गर्व भी कर सकता है।
एक सीरियल है जीवनसाथी, हमसफर जिंदगी के। पहले ही एपिसोड में दो कैम्ब्रिज के स्टूडेंट राजस्थान के एक भारतीय परिवार के यहां भारतीय संस्कृति को समझने आते हैं। परिवार का मुखिया जो कि भारतीय कला में निष्णात है, संयोग से उसी दिन उसके यहां महादेव का अभिषेक हो रहा है। पूरी तैयारियां जोर-शोर से चल रही है और मुखिया खुद ही महादेव की एक विशालकाय मूर्ति बनाता है। दोनों को मिलते ही समझा देता है कि हैलो नहीं, नमस्कार बोलो और सर नहीं गुरुजी बोलो। चलो हमारे साथ भारतीय संस्कृति की समझ बनेगी और दोनों अभिषेक ेक उत्सव में जाते हैं।
कलर्स पर अब तक जितने भी प्रोग्राम आए हैं उसमें खतरों के खिलाड़ी को छोड़कर सारे लोकेशन गांव के हैं। आप जैसे ही इस चैनल पर स्विच करेंगे आपको अंदाजा लग जाएगा कि ये बाकी चैनलों से कुछ अलग है। लेकिन इस आंचलिकता में ग्लोबल पूंजी के चिन्ह जहां-तहां खोंस दिए गए हैं और तब सारा मामला स्वाभाविक नहीं रह जाता।
बाकी और चैनलों की तरह जय श्री कृष्णा और रहे तेरा आशीर्वाद जैसे कार्यक्रमों को लाकर दर्शक बटोरने की पूरी तैयारी है। चैनल एक बार फिर साबित करता है जैसे कि एनडीटीवी इमैजिन ने साबित किया किया कि बिना पाखंड फैलाए टीआरपी का ग्राफ उपर जा ही नहीं सकता।....और पूंजी जितना अधिक होगा, पांखड फैलाने में उतनी ही सुविधा होगी।
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3 Response to 'चैनल के लिए भारतीयता का अर्थ हिन्दुत्व हैं, पाखंड सं-२'
  1. परमजीत सिहँ बाली
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_23.html?showComment=1216798080000#c8568522774664894718'> 23 जुलाई 2008 को 12:58 pm बजे

    सही व सटीक मंथन किया है।मूढताओं को बखूबी उभारा है।बधाई।

     

  2. बेनामी
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_23.html?showComment=1216803480000#c1678341542435203194'> 23 जुलाई 2008 को 2:28 pm बजे

    मैं ख़ुद बचपन से गायत्री मंत्र का जाप करता रहा हूँ, पर 'खतरों के खिलाड़ी' में इसके अप्रासंगिक उपयोग को देखकर टीवी उसी वक्त बंद कर दिया. बाकी कार्यक्रमों में भी जमकर मसाला ठूँसा गया है, कहीं रंग दे बसंती का टीवी संस्करण है, तो कहीं प्रेमरोग+डीडीएलजे+हम दिल दे चुके सनम+.............................. की बोर खिचडी, आज बालवधु को गर्व करने लायक संस्कृति बता रहे हैं तो कल हो सकता है की दहेज़, सती को भी कल हमारी संस्कृति बताया जाए. इन्हे चाशनी में डुबोकर कल ऐसा माहौल बनाया जाएगा की जनता इसे गर्व के साथ अपनी महान संस्कृति मानाने लगेगी.

    शायद मीडिया किसी गहरी साजिश का शिकार हो चुका है, वरना कोई जानबूझकर अंधेरे की ओर नहीं जाता.

     

  3. admin
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_23.html?showComment=1216804260000#c4543843446210602525'> 23 जुलाई 2008 को 2:41 pm बजे

    Aapki chintaayen jaayaz hain.

     

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