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हिन्दी मीडिया ने रियलिटी शो की खामियों और इसके सामाजिक प्रभाव की चर्चा दबी जुबान से करनी शुरु कर दी है. अब उसे भी लगने लगा है कि इसको लेकर बच्चों के उपर इतना दबाब होता है कि प्रतिभा निखरने के बजाय शोषण की प्रक्रिया शुरु हो जाती है। बच्चों पर इसका वाकई बहुत ही बुरा और उल्टा असर पड़ रहा है।
यह वही मीडिया है जो प्राइम टाइम पर देश और दुनिया की बाकी खबरों को छोड़कर गजोधर के हंसगुल्ले, संगीत का महायुद्ध और रियलिटी शो के दो पार्टीसिपेन्ट्स को एक-दूसरे को इस तरह से पेरोजेक्ट करती है कि मानो आमने-सामने होने पर ये दोनों एक-दूसरे से सीधे गाली या घूंसों से बात करेंगे। सेंशन पैदा करने की गरज से हिन्दी मीडिया इसके पैकेज का हेडर और बीच-बीच में जिस तरह के स्लग चलाती है उससे आपको अंदाजा लग जाएगा कि वो रियलिटी शो के भीतर कौन-सा एलिमेंट डालना चाह रहे हैं।
हिन्दी के न्यूज चैनलों को अब होश आ रहा है कि बच्चों पर इतना मेंटल प्रेशर होता है कि वो मानसिक रुप से परेशान हो जाते हैं। ऐसा उसे तब महसूस हुआ जब बांग्ला चैनल के एक रियलिटी शो में एक बच्ची ने जज के डांटे जाने पर अपना नेचुरल लाइफ खो दिया। अब वो बोल नहीं पा रही है, नाचना और गाना तो दूर की बात है. हिन्दी मीडिया में रियलिटी शो के दुष्प्रभाव की चर्चा कायदे से इसी दिन से शुरु होती है। यही कोई १५ दिन पहले से। इसके पहले रियलिटी शो और टेलीविजन पर बच्चों द्वारा काम किए जाने पर मीडिया ने कोई रिसर्च नहीं किया। अलबत्ता बाल श्रम विरोध दिवस या फिर ऐसे ही सरकारी तिथियों के नाम पर अकबारों में खानापूर्ति तरीके से कहीं कुछ लिख दिया गया। चलताउ ढंग से सवाल उठाया गया कि टेलीविजन में काम करनेवाले बच्चों को बाल श्रमिक माना जाए या नहीं और फिर क्या उन पर भी वही नियम-कानून लागू होते हैं जो पांच साल के बच्चे के चाय बेचने और पंक्चर बनाने पर होते हैं। एक दिन की खबरों के बीच गंभीरता से इसकी कहीं कोई नोटिस नहीं ली गयी। लेकिन आज हिन्दी मीडिया हादसे के बाद इसकी खामियों पर बात करने की कोशिश में जुटा है.
यह वही हिन्दी मीडिया है जो बाल दिवस, २६ जनवरी या फिर १५ अगस्त जैसे मौके पर लिटिल चैम्पस, इंडियन ऑयडल और चक दे बच्चे में शामिल लोगों को घंटों अपने स्टूडियों में बिठाए रखती है, उनसे चैट करती है, जी भरकर गाने गववाती है, अफेयर और लव एट फस्ट साइट से जुडे सवाल करती है और और एंकर से हो-हो करके ठहाके लगाने को कहती है। मैंने खुद लिटिल चैम्पस के दिवाकर को तीन बार लिफ्ट से लाया और छोड़ है. लाते समय तो फिर भी कोई साथ होता है लेकिन छोड़ते समय कोई नहीं। मुझे बुरा लगता तो मैं साथ छोड़ने चला जाता।
कौन नहीं जानता कि बच्चे जब सोलह-सोलह घंटे प्रैक्टिस करते हैं और अगले दिन शूटिंग के लिए गाते हैं तो उनके बीच स्वाभाविकता खत्म होती चली जाती है. गानों में परफेक्शन आने के साथ-साथ बचपन उनसे दूर होता चला जाता है। इन सबके बीच जजों की डांट, साथियों से गला-काट टफ कंपटीशन उनके भीतर कई तरह के डिस्टर्वेंश पैदा करता है. इन सबके वाबजूद एक बड़ी सच्चाई है कि प्रतिभा को सामने लाने के लिए ये एक जरुरी प्रयास है। सरकारी तंत्र प्रतिभाओं को सामने लाने में पूरी तरह फेल हो चुका है, थोड़ा-बहुत काम का है भी तो उसमें इतना अधिक तोड़-जोड़ है कि आम आदमी वहां तक पहुंच ही नहीं सकता. आकाशवाणी और दूरदर्शन के युवा केन्द्र के रजिस्टर में अपना नाम लिखते रहिए, कोई फर्क नहीं पड़ता. ऐसे में ये रियलिटी शो टैलेंट हंट का एक बेहतर माध्यम तो है ही। प्राइम टाइम में देशभर की बाकी खबकों को रिप्लेस करके रियलिटी शो के घंटेभर तक फुटेज और गॉशिप दिखानेवाली मीडिया के पास भी इससे कुछ अलग तर्क नहीं है।
लेकिन आज इसी मीडिया को एक हादसे के बाद रियलिटी शो में सिर्फ बुराइयां ही बुराइयां नजर आने लगी है। यह अलग बात है कि प्राइम टाइम में अब भी खबरों की जगह इसे दिखाना बंद नहीं किया है। इससे एक बात तो साफ हो जाता है कि मीडिया का आज अपना कोई स्टैंड रह ही नहीं गया है, इवेंट को लेकर उसका अपना कोई रिसर्च नहीं है। एक हद तक इस बात की समझदारी भी नहीं कि किस बात का क्या असर हो सकता है। इसलिए टीआरपी की दौड़ लगाते-लगाते जब यह मीडिया थक जाती है और जब सुस्ताने के लिए सामाजिक दायित्व का दामन पकड़ती है तो वो मीडिया की ताकत, प्रतिरोध के स्वर और आम जनता की हितैषी न लगकर पाखंडी, अननैचुरल और बददिमाग लगने लग जाती है जिसे देखकर कोई भी कह देगा कि- सबसे तेज हो तुम अपने घर में, समाज में तुम पिछलग्गू ही हो, तुम्हारे पास अपना कोई दिमाग भी तो नहीं।
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2 Response to 'सबसे तेज रहो अपने घर में, समाज में पिछलग्गू ही रहोगे'
  1. जितेन्द़ भगत
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_07.html?showComment=1215594000000#c5943516876872796820'> 9 जुलाई 2008 को 2:30 pm बजे

    ऐसा लगता है न्यूज चैनल ए‍क घ‍‍टिया ‍‍रियलिटी शो बन कर रह गया है, जहां सेंशेसन पैदा करने के लिए नाट‍कीय घटनाएं भी पैदा ‍की जाती है।

     

  2. डा० अमर कुमार
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/07/blog-post_07.html?showComment=1215711780000#c4243280922451177672'> 10 जुलाई 2008 को 11:13 pm बजे

    न्यूज़ चैनल पर कामेडी शो, डिकेक्टिव धारावाहिक...और भी न जाने क्या क्या, इसके Sanctity पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है ।

     

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