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होली के पीछे क्या है, होली के पीछे

Posted On 12:45 pm by विनीत कुमार |

दुनिया के लिए होगी होली प्यार और भाईचारे को बढ़ाने का दिन। अपन से तो भाईलोगों ने दुश्मनी निकालने का बहुत सही दिन डिसाइड किया था। इस दिशा में कोई शोध करे कि होली के दिन जान पहचान के लोग अपने ही लोगों से खुन्नस कैसे निकालते हैं तो ठीक-ठाक आंकडें सामने आ जाएंगे।क्योंकि एक लाइन लोगों को जन्मसिद्ध अधिकार के तौर पर पहले से ही मिल जाते हैं कि - बुरा न मानो होली है,...आगे मैं जोड़ देता हूं- चंपकों,चूतियों की टोली है। इनके आगे आप कुछ नहीं कर सकते।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में होली का पहला साल।बहुत घीसने के बाद मिला था हॉस्टल। बिहारी से बिहारी का हवाला देकर, झारखंडी से झारखंड का हवाला देकर, हिन्दीवालों से हिन्दी का बोलकर, गोरखपुरवालों से पूर्वांचल बोलकर, ब्राह्मणों से ये बोलकर कि मेरी मां आपलोगों की बहुत ही इज्जत करती है, आपको पूजती है। अगर आप मेरी मदद करेंगे तो आपके प्रति उनका सम्मान और बढ़ेगा औऱ अगर मुझे आपने हॉस्टल लेने में मदद नहीं कि तो आपलोगों पर से उनका विश्वास उठ जाएगा। वो भी समझेगी कि आप जातिवाद के शिकार हैं। खैर, किसी तरह छ-पांच करके हॉस्टल के अंदर तो पहुंच गया और फोन भी किया मां को कि- तुम्हें सबकुछ पता है न मां। मामला फंस गया विचारधारा को लेकर। सुबह-सुबह तांबे के लोटे से जल चढ़ानेवालों को मैं दूसरे दिन से ही बहुत खटकता रहा। पहले दिन तो मेरे हाथ में तांबे का लोटा देखकर बहुत खुश हुए और कहा भी कि बहुत संस्कारी हो लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि इसका इस्तेमाल मैं चना और मूंग भिगोकर खाने के लिए करता हूं औऱ वो सब नहीं करता जिसके लिए लोटे का इजाद हुआ है तो बहुत खुन्नस हुई। मुंह पर तो कुछ कहा नहीं लेकिन अगले दिन से कटने लगे। फिर मुझे लेकर कानाफूसी शुरु हो गयी। एक ने कहा कि पैंट उतार दो तो पता नहीं हिन्दू निकले भी की नहीं। मैं उनके लिए चोखेरबाला बन चुका था और वो जैसे तैसे मुझे झेल रहे थे। डीयू में किसी को इतनी हिम्मत नही है कि किसी को कुछ कर दे, पब्लिकली मार-पीट दे। लेकिन आंखें ऐसे तरेरते कि- मां के शब्दों में कहूं तो निगल जाएंगे।॥इसी बीच होली आ गयी और उनका काम आसान हो गया।

दुश्मनी निकालने के लिए पूरे भारतवर्ष में इससे बढ़िया दिन मुहैया नहीं कराया गया है। जो मन आए किसी के साथ कर दो और मामला फंस जाए तो हीं हीं हीं हीं...ठे ठे ठे करके गले मिल लो और कहो- बुरा न मानो होली है। इधर आप भी भड़ास निकालो, मन ही मन बोलकर...चंपक चूतियों की टोली है। मामनू लोगन तक तो बात पहुंच ही नहीं पाती और अगर पहुंच भी गई तो उल्टे आप पर ही बरसेंगे- वैण के होली तेरे से नहीं खेलेंगे तो क्या तेरे ताउ के पास जाएंगे। सालभर तेरे साथ रहा है तो वैण के होली के दिन कहां जाएंगे खेलने। साइड में ले जाकर कहेंगे, अब बहुत हुआ निकाल दोनों पार्टी त्योहारी, अपणे भी तो बाल-बच्चे हैं।...और आप बिना कुछ बोले वृद्ध भिक्षु के दाम टिका दो, मामला रफा-दफा।॥

सो भाई लोग लॉन में बैठे थे, सुबह-सुबह। होली के दिन हॉस्टल के सारे कमरे में जाकर गार्ड साहब बड़ी इज्जत से बुलाते हैं कि साहबजी बाहर होली खेलने के लिए लोग आपको बुला रहे हैं। बाहर खूब सारी खाने की चीजें रखी होगी, ढेर सारे रंग...और भी बहुत कुछ। बाबा लोग ढंडई पर भिडे होगें।...एक ने ईशारा करके बुलाया। तब मैं बहुत ही दुबला-पतला निरीह-सा दिखता था। मैं उनके पास गया। उन्होंने कहा- चल इधर आ मेरे साथ ठंडई पी। मैंने कहा, मैं भांग नहीं पीता। दूसरे बंदे ने कहा-स्साले ठंडई को भांग कहता है।भोलेबाबा के भोग का ऐसा अपमान औऱ एक ने जबरदस्ती ग्लास मुंह में ठूंस दिया। ग्लास में खून की कुछ बूंदें टपक गई और सब सत्यानाश हो गया। मैंने कहा-मैं भांग नहीं दारु पीता हूं। एक ने रहम खाकर कहा-चल दारु ही पी ले। रॉयल चैंलेंज। कभी मुंह नही लगाया था दारु को। मुझे स्मेल ही अच्छी नहीं लगती है दारु की। लेकिन कोई उपाय नहीं था। बिना पानी मिलाए ही नीट, एक-एक बार में पांच पैग पी गया और उनसे कहा-हो गया न। अब चलता हूं। वहां से सीधे अपने कमरे में पहुंचा। दोस्तों ने बताया था कि पीने के बाद अगर नींबू पी लो तो नशा उतर जाता है। मैं मेस जाकर एक ही साथ चार नींबू निचोड़कर पी गया। पता नहीं आप इसे कैसे लेंगे लेकिन उस समय मेरे मन में अजीब-सी ग्लानि हुई। लगा कल की ही ट्रेन से घर भाग जाउँ। अब तो अभ्यस्त हो गया हूं, इन सब चीजों का। इसी ग्लानि को लेकर मैं सोया नहीं सीधे स्टडी टेबल पर बैठा और विद्यापति के नोट्स बनाने लगा। एक धुन में नोट्स बनाता रहा। करीब एक घंटे बाद पांच-छ लोग मेरे कमरे में आए और दरवाजा बंद कर दिया। मुझे अंदाजा लग गया था कि मेरे साथ क्या होनेवाला है। लेकिन सबको घोर आश्चर्य हुआ कि ये लड़का इतना पीकर पढ़ कैसे रहा है। पूरे हॉस्टल में सबको पता चल गया कि विनीत चार पैग नीट पीकर भी नार्मल है। एक ने कहा भी कि भोसड़ी के हमें चूतिया बना रहा है। पहले से बड़ा पियाक रहा होगा।वही कहें कि स्साला सबको सलाम-सलाम बोलता है, दारु कैसे नहीं पीता होगा। नतीजा ये हुआ कि मैं बच गया, लोगों ने मुझे मारा नहीं और होली के बाद जब भी कहता कि मैं भी पिउंगा तो कहते-पैसे पूल करने होंगे।

इस होली ने वाकई मुझे बहुत मजबूत किया और मेरे भीतर एर धारणा बनी है कि दारु पीने से इतना भी नशा नहीं आ जाता कि आप सबकी मां-बहन करने लग जाएं। नशे से ज्यादा लोग ड्रामेबाजी करते हैं....

॥सभी ब्लॉगर दोस्तों को होली मुबारक। ऑफर करेंगे तो मना नहीं करुंगा, क्योंकि पता है कि आप पॉलिटिक्स नहीं करेंगे और कर भी दिया तो अब नोट्स किस चीज का बनाउंगा, एमए तो पास कर गया।...

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4 Response to 'होली के पीछे क्या है, होली के पीछे'
  1. Sanjeet Tripathi
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_22.html?showComment=1206126120000#c3818934746015006754'> 22 मार्च 2008 को 12:32 am बजे

    चार पांच पैग नीट???
    धन्य हो प्रभो!!!!

    खैर!!
    होली मुबारक हो आपको!!

     

  2. bhuvnesh sharma
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_22.html?showComment=1206150840000#c5258764686894622200'> 22 मार्च 2008 को 7:24 am बजे

    धन्‍य हो प्रभो....हम तो गार्डन में ही ढेर हो जाते.

    होली मुबारक

     

  3. सुजाता
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_22.html?showComment=1206167580000#c8384113984118735472'> 22 मार्च 2008 को 12:03 pm बजे

    होली का ऐसा अनुभव भयानक है । इस त्योहार के जिस पक्ष का आपने ध्यान दिलाया वह लडकियों के सम्बन्ध में भी उतना ही सही उतरता है । खुन्नस निकालने के लिये यह अच्छा अवसर उपलब्ध कराता है ।
    उम्मीद है अब के बाद आपकी होली मस्ती और मज़े की रहे ।

     

  4. PD
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_22.html?showComment=1206191220000#c3972859304236386112'> 22 मार्च 2008 को 6:37 pm बजे

    होली की शुभकामनाएं.. :)

     

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