बाजार की मार से कॉल सेंटर में तब्दील हो चुके न्यूज चैनलों के बीच भी एनडीटीवी की अपनी पहचान है। अभी भी आप देखेंगे कि बाकी चैनल जहां खबरों के नाम पर रियलिटी शो की उठापटक और फाइव सी तक सिमट जाते हैं, एनडीटीवी इसके बाहर की दुनिया की भी खबर ठीकठाक लेता है। आज भी आपको यहां खबर के नाम पर सनसनी और फेब्रिकेटेड आइटम कम मिलेंगे। बाकी चैनलों से किसान और हाशिए पर के लोग भले ही गायब होते जा रहे हों लेकिन एनडीटीवी आज भी इनसे जुड़े मसलों को बड़ी ही शिद्दत से उठाता है।....ऑडिएंस के बीच इसकी एमेज की बात करें तो ये देश का वो न्यूज चैनल है जिसे कि सबसे कम लोग गाली देते हैं। मेरी समझ से तो अगर दूरदर्शन से सरकारी तामझाम और पंजा तो कभी कमल बनती प्रक्रिया को हटा दें तो जो कुछ भी बचेगा वो सब एनडीटीवी में मौजूद है। इस अर्थ में एनडीटीवी पढ़े-लिखे लोगों के बीच सम्मानित चैनल है।
लेकिन कहते हैं न कि- अखंड कुछ भी नहीं है। न ही मंदिर जानेवालों की आस्था और न ही एनडीटीवी देखनेवालों का विश्वास। सो हम जैसे दर्शकों के साथ भी इधर ऐसा ही कुछ हो रहा है। एक बड़ी ही सामान्य सी बात है कि जब कोई भी कम्पनी, संगठन या सेवाएं बाजार में शामिल होती है तो उसकी सबसे बड़ी कोशिश होती है, ग्राहकों के बीच साख पैदा करना, अपनी ब्रांड इमेज बनाना। कई बार इमेज समय बीतने के साथ बनते हैं कि जो जितना पुराना होगा, वो उतना ही भरोसेमंद होगा। बाजार में बाटा के जूते, डाबर का हाजमोला, शहद और बाकी चीजें भी इसी बूते बिक रही हैं। जो बहुत नामी नहीं भी है, जिसने कोई ब्रांडिंग नहीं है वो भी अगर अपने दूकान के आगे लिख दे- ७० साल से आपकी सेवा में तो आपको थोड़ी देर के लिए भरोसा जरुर हो जाएगा। दिल्ली के चांदनी चौक में ऐसी सैंकडों दूकाने मिल जाएंगी जो इतिहास से जोड़कर अपनी ब्रांड इमेज बना रहीं हैं।
न्यूज चैनल के साथ मजबूरी है कि वो ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि न्यूज चैनलों के साथ जुम्मा-जुम्मा आठ रोजवाली कहावत लागू होती है। और लगभग सारे चैनलों की इमेज इसी आधार पर बनी है कि कम से कम समय में किसने समाज के बीच अपनी पहचान बनायी है, खबरों को दिखाकर समाज को साकारात्मक दिशा में बदलने का काम किया है, वगैरह॥वगैरह। इस मामले में भी दर्शकों ने एनडीटीवी को सही सम्मान दिया है।
लेकिन बाजार और कम्पनी के साथ एक दिक्कत है। वो ये कि अगर कम्पनी ने शुरु में तौलिया बनाया और बाजार में बेचा, उसकी दुकान जम गयी तो फिर बनियान भी बनाएगी, फिर लुंगी भी, फिर बिकनी भी, फिर जुरावें भी और पता नहीं क्या-क्या। इसके भी दो तरीके हैं। एक तो कि इससे जुडी बाकी चीजें भी बनाए। जैसे दूध बेच रहे हो तो मक्खन भी बनाओ, ब्रेड भी, शहद भी, दही भी, घी भी और धीरे-धीरे ऐसा करो कि नाश्ते की टेबल पर सिर्फ आपका ही प्रोडक्ट हो। दूसरा तरीका है कि वो सब कुछ बनाओ जिससे अलग-अलग पेशे और मिजाज के लोग जुड़ जाएं। अब चड्ड़ी तुम्हारे यहां से खरीद रहा है तो फिर चश्में के लिए कहां जाए। धूपबत्ती तुम्हारी जला रहा है तो अखबार किसी और की क्यों पढे। कैडवरी ने तो कह दिया कि दूसरे का नमक नहीं खाना और अब बाजार में उसकी नमकीन भी है। यानि ऐसा करो कि आप ग्राहक की जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा शामिल हों।
इधर कम्पनी की, एक प्रोडक्ट को लेकर जैसी इमेज बन गई वो चाहती है कि बाकी प्रोडक्ट जब बाजार में उतारे तो लोगों का वही भरोसा हासिल कर ले। टाटा की बनायी बाल्टी का हत्था नहीं उखड़ता तो फिर मोबाइल का नेटवर्क कैसे गायब हो जाएगा, किंगफिशर का पैग मारकर जब रात रंगीन हो जाती है तो एयरलांइस में बैठने पर सुबह हसीन होने में क्या दिक्कत है। हम ग्राहकों का भरोसा भी इसी तरह से पनपा है औऱ मजाक में कहते भी हैं कि अगर एडीडास कल से धोती बेचने लगे तो बाबूजी के लिए वही ले जाएंगे और अगर रिवलॉन मेंहदी बेचने लगे तो वही भाभी को ले जाकर देंगे। ब्रांड इमेज दोनों तरफ से ऐसे ही बनते और बरकरार रहते हैं।
एनडीवी और उसके नए इंटरटेनमेंट चैनल एनडीटीवी इमैजिन के साथ ऐसा ही हुआ है। एनडी को लगा कि खबर देखने तो हमारा ऑडिएंस यहां रेगुलर आता है लेकिन मनोरंजन के लिए फिर से स्टार या जी पर चला जाता है। क्यों न उसे ज्यादा से ज्यादा समय तक अपने घर में ही रोके रखें। सो उतर गया मनोरंजन की दुनिया में भी। इधर हम एनडी के दर्शकों को भी खटकता रहता कि न्यूज तो बहुत प्रोग्रेसिव तरीके का मिल जाता है लेकिन मनोरंजन करना होता है तो वही सास-बहू की हांय-हांय और पाखंडियों के चैनलों की ओर मुंह करना पड़ जाता है। कमजोर दिल के मेरे साथी डरते भी रहे कि कहीं हिन्दूवादी न हो जाएंगे। इसलिए इमैजिन ने जब रामायण दिखाना शुरु किया तो भी बुरा नहीं लगा क्योंकि दिमाग में था कि एनडी इसे अपने एप्रोच से दिखाएगा। जबरदस्ती के क्षेपकों को हटाकर एक तर्क के साथ पेश करेगा लेकिन दो-तीन एपिसोड के बाद देखना छोड़ दिया।
बाकी नच ले विद सरोज खान के साथ लगाव बना रहा। इधर मैं तेरी परछाई हूं, राधा की बेटियां कुछ कर दिखाएगी, धरमवीर, जस्सू बेन जयंतीलाल जोशी की ज्वाइंट फैमिली को भी बीच-बीच में देखता रहा औऱ प्रोग्रेसिव एलिमेंट खोजता रहा। इसी बीच कल रात में समझिए कांड ही हो गया।
एक नए आइडिया के साथ कि इमैजिन के जितने भी प्रोग्राम हैं, उनके जितने भी कलाकार हैं सबको मिलाकर होली पर एक स्पेशल प्रोग्राम बनाया। एक सीरियल की कहानी दूसरे से जुड़ी हुई और साथ में सरोज खान भी । आइडिया नया और बढ़िया था। लेकिन होली की मस्ती के नाम पर चड्ढा-चोपड़ा की फिल्मों वाली चकल्लस। फिल्मी गानों पर सारे कलाकारों का नाच-गाना।॥
.....और तो और जब ये स्पेशल खत्म होने को है तो जस्सूबेन कहती है कि इस बार शिवजी ने दर्शन नहीं दिए। जयंतीलाल समझाता है कि इस बार खुशियों के रुप में भोलेबाबा हमारे घर आए। मुझे लगा कि एनडी ने अपना असर दिखाया। लेकिन तभी आया एक झोला लेकर आती है और बताती है कि सारे मेहमानों से पूछ लिया- किसी का नहीं है। जस्सूबेन खोलती है तो पाती है कि उसमें एक शंख है जिस पर काले रंग की एक शिवलिंग बनी है। गले से लगाते हुए जस्सूबेन कहती है...पधारिए भोलेबाबा।
क्या वाकई एनडीटीवी २४ इनटू ७ देखने वाले दर्शकों को इसकी जरुरत थी। चैनल चाहे तो तर्क दे सकता है कि हमें बाजार में बने रहने के लिए दिखाना पड़ेगा। आपकी बात तो ठीक है लेकिन दर्शक तो आपके इस एप्रोच को एनडीटीवी के चरित्र से जोड़कर देखेगी। और फिर आपने ये कैसे मान लिया कि आप जो कुछ भी दिखाएंगे, हम उसे प्रोग्रेसिव मान लेंगे। हमें तो यही लगता है कि ये पाखंड साथ-साथ चल जाए तो गनीमत है, चैनल चल भी जाए तो आपकी आइडियोलॉजी तो पिट ही जाएगी, अब शायद आपको इसकी जरुरत न हो।॥हम तो मनोरंजन चैनल को लेकर अनाथ के अनाथ ही रह गए।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_16.html?showComment=1205647260000#c3082371685837295818'> 16 मार्च 2008 को 11:31 am बजे
सोलह आने सच कहा आपने , आपकी बातों में दम है भाई !अच्छा लगा पढ़ कर !
http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_16.html?showComment=1205652060000#c3432214037529333635'> 16 मार्च 2008 को 12:51 pm बजे
ये बाजार है यहां बहुत कुछ होता है.
बढि़या पोस्ट..लगता है आपकी पी.एच.डी. के साथ हम भी बहुत कुछ सीख लेंगे :)
http://taanabaana.blogspot.com/2008/03/blog-post_16.html?showComment=1205653260000#c4704515131879400121'> 16 मार्च 2008 को 1:11 pm बजे
अच्छा लेख। सही लगा।
साइडबार मे पिछले कुछ लेखों का लिंक देंगे तो पाठक संख्या और बढेगी।