...तो तुम्हें स्कर्ट में लड़कियां पसंद नहीं है
-पसंद है लेकिन दूसरी लड़कियां, तुम तो सलवार कमीज में पसंद हो।
मुझे सलवार सूट क्यों दिया, तुम्हें क्या लगता है मैं सिर्फ यही पहन सकती हूं
मुझे लगता है लड़कियां सिर्फ दुपट्टे में ही अच्छी लगती है,
वाई द वे मैं तुम्हारे बारे में कुछ गलत नहीं सोचता
और जो स्कर्ट पहनती है उसके में
उसके बारे में कुछ सोचता ही नहीं...
.......जो लोग इश्क और अफेयर के साथ डॉक्टरी प्रैक्टिस या फिर ऑफिस जाना पसंद करते हैं उन्हें स्टार प्लस का दिल मिल गए सीरियल अच्छा लगता होगा। ये संवाद उसी का है। डॉक्टर अरमान और डॉ.नीदिमा के बीच का संवाद। डॉ.अरमान ने नीदिमा को गिफ्ट में सलवार सूट दिया है और साथ में तर्क भी दिया है कि स्कर्ट में लड़कियां अच्छी नहीं लगती है और लगती है भी तो दूसरी वो नहीं। क्यों भई, नीदिमा देखने में वलगर या मोटी तो नहीं कि स्कर्ट में और बेकार लगे। तो क्या अरमान का ड्रेस सेंस नीदिमा के शरीर के हिसाब से न होकर एक मानसिकता से डेवलप हुआ है।
अरमान, नीदिमा के बारे में कुछ भी गलत नहीं सोचता, वो तो उससे प्यार करता है, अभी तक तो निर्देशक ने प्लेटॉनिक ही दिखाया। मतलब ये कि आप जिससे प्यार करें वो ज्यादा उघड़ी न दिखे, ढंकी-ढंकी सी लोगों के बीच। लेकिन जिससे आप प्यार नहीं करते वो। वो खुली रहे चलेगा। यहां तो अरमान ने कह दिया कि वो औरों के बारे में सोचता ही नहीं है। सवाल यहां पर ये है कि वो नीदिमा के बारे में जिस तरह से सोचता है क्या वो खुद नीदिमा के हक में है।...आप इसे पुरुष मानसिकता और सींकचों में बांध देने की कवायद के रुप में नहीं देख रहे।
डॉ.नीदिमा और डॉ. अरमान या फिर उनके जैसे देश में लाखों लोग एक खुले वातावरण में काम कर रहे हैं। दिन की शिफ्ट, रात की शिफ्ट, सबका एक ही ध्येय है आगे बढ़ना। इसके लिए वर्जनाएं भी बाधक है, टूटे तो टूटे। आप कह सकते हैं सो कॉल्ड ओपन कल्चर। लेकिन इस खुले वातावरण में पुरुष का तंग नजरिया एकदम से सामने आ जाता है।
.... ऐसा क्यों होता है कि आप और हम जिसे चाहने लगते हैं उसे ज्यादा से ज्यादा सेफ देखने के चक्कर में उसे बांधने लग जाते हैं। पता ही नहीं चल पाता कि सुरक्षा और वर्चस्व के तार कैसे आपस में एक दूसरे से उलझ जाते हैं और जिसके बीच तमाम खुलेपन के बीच एक सामंती और पुरुषवादी विचार का आदमी बीच में खड़ा होता है। ये तो सिर्फ ऑफिस की बात है जहां डॉ.अरमान, नीदिमा की ड्रेस और बातचीत के ढ़ंग पर राय दे रहा है और अगर बात चौबीसो घंटे और आगे जाकर एक दूसरे की जिंदगी में शामिल होने की बात हो तो पता नहीं किन-किन बातों को लेकर डॉ.अरमान का नजरिया सामने आएगा। फिलहाल तो एपिसोड को आगे जाना है, जिसमें कई टर्न आएंगे लेकिन इसी बात को अगर अभी हाल ही में आई फिल्म दिल दोस्ती एटसेट्रा से जोड़कर देखें तो कहानी यूं बनती है-
संजय मिश्रा दिल्ली के कॉलेज में पढ़ने के वाबजूद अपनी गर्लफ्रैंड को फैशन शो में भाग लेने और बिकनी पहनने की इजाजत नहीं देता क्योंकि वो इसे अपनी पत्नी के रुप में देखता है। वो बिहार या फिर दूसरे राज्यों के उस मूल्य ( जड़ता भी समझे) को थोपना चाहता है कि बहू की तरह रहे, ढंकी-ढंकी। संजय मिश्रा की गर्लफ्रैंड उसे इसी मानसिकता के कारण छोड़ देती है।
टेलीविजन की दुनिया में जबरदस्त क्रांति आ जाने के बाद भी ये तकनीकी ही क्रांति ज्यादा लगता है। सामाजिक स्तर पर इंडियन सोप ओपेरा ने अभी भी प्रोग्रेसिव एप्रोच को नहीं अपनाया है। जब तब पुरुषों द्वारा एक लड़की को सुरक्षा के नाम पर पहनाया गया लबादा मसक जाता है और उससे पुरुष वर्चस्व का घिनौना चेहरा सामने आ जाता है। कभी कभी तो ये भी लगने लगता है कि टेलीविजन कहीं फिर से इस सोच को स्थापित तो नहीं करना चाहता।.... दिल मिल गए में तो मामला कुछ ऐसा ही बनता है। हम लड़कियों को अपेन मन मुताबिक कपड़े पहनना भी बर्दाश्त नहीं कर सकते।
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http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_31.html?showComment=1201763940000#c5666453604754690991'> 31 जनवरी 2008 को 12:49 pm बजे
विनीत बाबू बात 100 फीसदी सही है, घर की महिलाएं ढ़की हो और बाहर की,,,,,मत बुलवाओ
http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_31.html?showComment=1201763940001#c4788642436537640542'> 31 जनवरी 2008 को 12:49 pm बजे
वाकई!!
http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_31.html?showComment=1201768560000#c6134320251886613548'> 31 जनवरी 2008 को 2:06 pm बजे
आपकी शंका जायज़ है मित्र.
http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_31.html?showComment=1201772820000#c3278564787046843506'> 31 जनवरी 2008 को 3:17 pm बजे
हमेशा ऐसा भी नहीं होता, शादी से पहले मेरी मां मुझे स्कर्ट या जींस नहीं पहनने देती थी। पर शादी के बाद मेरे पति ने मुझे वेस्टर्न पहनने के लिए इंस्पायर किया । उनका तर्क है तुम्हें जो पसंद है तुम वो पहनो।
एट लिस्ट आप लोगों से तो ये अपेक्षा की ही जा सकती है कि आप अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी को ये स्वतंत्रता देंगे कि वो जो चाहे जैसा चाहे पहन ।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_31.html?showComment=1201773240000#c7342568760549531476'> 31 जनवरी 2008 को 3:24 pm बजे
यही तो है दोहरी मानसिकता।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_31.html?showComment=1201775940000#c4888536989961894680'> 31 जनवरी 2008 को 4:09 pm बजे
आप अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी को ये स्वतंत्रता देंगे कि वो जो चाहे जैसा चाहे पहने...
चलिए नीलिमा हमारा पतनशील कमेंट बस इतना कि जब तक ये @#$%औरतें मानतीं रहें कि ये स्वतंत्रता 'हमारे दिए' ही मिलेगी तब तक सब 'ठीक' ही है।