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टीवी पर शादीः नो बिहारी नो बंगाली

Posted On 10:17 pm by विनीत कुमार |

यूपी और बिहार के भायजी लोग आपको देश के किसी भी हिस्से में शादी करने-कराने का शौक है करो, आपको कोई नहीं रोकेगा लेकिन टेलीविजन पर तो सिर्फ पंजाबियों की शादी होगी। और बहुत हुआ तो राजस्थानियों और मारवाडियों की। ऐसा कहके मैं कोई जातीय विभाजन की बात नहीं कर रहा बल्कि सोप ओपेरा की एक बड़ी सच्चाई की ओर इशारा करना चाह रहा हूं।
पिछले दो दिनों में मैंने सात शादियां देखी, टेलीविजन पर और अंत में समापन किया शादी की तैयारी और क्लिनिक ऑल क्लियर के मंडप यानि शाब्बा शाब्बा से। ये एनडीटीवी का एक रियलिटी शो है जिसमें जो बचेगा वो मंडप पर बैठेगा और जो निकल जाएगा वो कन्या दान करने के लिए बैठेगा। पूरे प्रोग्राम का गेट बिल्कुल शादी की तैयारियों जैसी है। यहां तक कि यहां आकर आपको नंबर मिलेंगे वो मार्कर भी दूल्हा-दूल्हन की रिप्लिका है। मैं शाब्बा शाब्बा का मतलब नहीं जानता लेकिन इतना समझ गया कि हर ब्रेक के पहले और बाद में शाब्बा-शाब्बा बोलना है।
इसी तरह आप दूसरे स्टफ में भी देख सकते हैं-शादियां होती है तो लड़का एकदम से पंजाबी गेटअप में, लोग-बाग मारवाडियों वाली चुनरी और साफा बांधे तैयार। आप कोई भी शादी देखें आपको सिर्फ तीन ही राज्य याद आएंगे। पंजाब, गुजरात और बहुत हुआ तो राजस्थान। क्यों बिहार और यूपी के लोग शादी नहीं करते या फिर नागालैंड, बंगाल और असम के लोग शादी नहीं करते। ऐसा नहीं है। करते हैं भई लेकिन इन राज्यों के हिसाब से शादी दिखाए जाने का क्या तुक बनता है। एक तो वजह आप बता सकते हैं जो कि चड़्ढा-चोपड़ा के सिनेमा के लिए भी कहते हैं कि पैसा उनका लगा तो क्या दिखाएंगे उनके कल्चर को. एक वजह आप ये भी कह सकते हैं कि भाई साहब टेलीविजन का ध्यान गांवों के लोगों को अपनी ओर खींचने का नहीं है, उतने पैसे में ही इन्हें विदेशों में ब्रॉडकॉस्ट करने की लाइसेंस मिल जाएगी। एनआरआई देखेंगे और मोटा माल इन्वेस्ट करेंगे। इस बात में दम है क्योंकि ये चैनल भारत की संस्कृति को अगर सचमुच में है तो इस रुप में पेश करते हैं कि उसे कोई एनआरआई ही पचा सकता है। यहां पीड़ा अफेयर के टूटने पर होती है, आंसू पति रोहन के किसी और की बांह में देख लेने से होती है और 7 साल की निक्की का भी व्ऑय फ्रैंड है।
इधर मैं दो-तीन सालों से देख रहा हूं कि यूपी और बिहार का कोई भी दोस्त शादी करता है तो सूट पसंद करने नहीं ले जाता उसका जोर शेरवानी पर होता है और वो भी डिजाइनर या भड़काउ। एक वुटिक की भाभी मुझे जानती है, लहंगे पर कम कर देती है सो एक-दो दोस्त भी गई है। वो भी शादी में साडी नहीं पहनना चाहती। बिहार-यूपी में लोग शादी के वक्त तसर सिल्क का कुर्ता या इधर शर्ट- पैंट पहनते आए हैं लेकिन अब शेरवानी का चलन बढ़ा है। गमछा तो समझिए गायब ही हो गया। पांच साल की बच्ची फ्रांक छोड़कर लंहगा खोजती है। ये तो बात सिर्फ पहनने की हुई।
बिहार में बड़े से बड़े घरों में शादी में आलू- परवल की सब्जी और मिठाई के नाम पर बूंदिया, गुलाबजामुन या फिर रसगुल्ला हुआ करता था. अब जाइए आइसक्रीम से लेकर पेस्ट्री तक मिल जाएंगें। एक वजह तो हो सकती है कि दिल्ली में रहने का असर है लेकिन ठेठ बिहार में पंजाबी पॉप का क्या मतलब बनता है, आप इसे सही-गलत के हिसाब से न लें। इसे ऐसे समझें कि हरेक प्रांत के कल्चर और लाइफ स्टाइल वहां मौजूद साधनों के हिसाब से निर्मित होते हैं. जो चीज जहां ज्यादा होती है वो वहां की संस्कृति का हिस्सा बन जाती है लेकिन इधर आप देखेंगे कि जो चीज है उसे नकारकर जद्दोजहद करके सामान जुटा रहे हैं. लोहरदग्गा में लाल साग छोड़कर कोलकाता से सरसों का साग आ रहा है और सात-आठ बनिए की दुकान पर मक्के का आंटा खोजा जा रहा है।
आप इस बात को मानिए, भारतीय दर्शक कन्फ्यूज्ड है और देखा-देखी करने के गुण जन्मजात मिले हैं। आप जो टीवी पर दिखा रहे हैं उसके हिसाब से वही कल्चर है और वैसी ही शादी करने में बडप्पन है जबकि बिहार के लोग भी अपने ढंग से शादी करते आए हैं। इसलिए अगर आप लंहगा, शेरवानी और पनीर की खपत के लिए पूरे टेलीविजन पर एक कल्चर यानि एनआरआई कल्चर थोपना चाह रहे हैं, जिसका रिपीटेशन इतना अधिक है कि मुझे सारी रश्में याद हो गयी हैं तो और बात है लेकिन शादियां, बिहार, बंगाल और असम के भी लोग करते हैं और वो भी एक कम्प्लीट कल्चर के तहत।.....
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4 Response to 'टीवी पर शादीः नो बिहारी नो बंगाली'
  1. डॉ. अजीत कुमार
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_23.html?showComment=1201086540000#c5936700195736453838'> 23 जनवरी 2008 को 4:39 pm बजे

    विनीत जी,
    क्या कस के नस पकडी है आपने, टी वी वालों की भी और हमारे बिहार वालों की भी. सच यदि कहा जाय तो उन्हीं राजस्थानी,पंजाबी, गुजराती शादियों को देख कर लोग उसी भव्यता से उन्हें अपनाना चाहते हैं. कुछ दिनों बाद शायद हमारा "मौर" भी ग्लोबल हो जाए और उसे भी उन्हीं राज्यों से इंपोर्ट करना पड़े. आजकल की शादियों में तो यहाँ पंजाबी भांगडा की खूब धूम हो रही है.
    पोस्ट के लिए धन्यवाद.

     

  2. Sanjeet Tripathi
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_23.html?showComment=1201091760000#c7253998563861661824'> 23 जनवरी 2008 को 6:06 pm बजे

    सटीक!!
    गांव का तो पता नही पर देश में हर कस्बे और शहरी इलाके की शादियों में टी वी या फिल्मों की शादी का असर तो जरुर पड़ा है।

     

  3. Unknown
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_23.html?showComment=1201096860000#c7957009673901731976'> 23 जनवरी 2008 को 7:31 pm बजे

    bhai saab ...baat sahi likhi hai aapne magar kya karenge chadha chopra gujju bhai log doosro ka biyah dikha ke waise bhi nri maane panjabi gujju hi hota hai(jaisa cinema ne bana diya hai) aur shaadi maane rajasthani ya punjabi hi kyonki ye to india chhap programme hai naa..ishme hindustaaniyon ke liye koi jagah nahi hai.kyonki chaahe bihar ho up ho ya kerala ye sab to gulf wale hote hai naa ki n r i.....dekhiye ye kab idhar mudta hai ya mudta bh hai ya nahi

     

  4. garima
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_23.html?showComment=1201265160000#c4943621803843392421'> 25 जनवरी 2008 को 6:16 pm बजे

    manti hoon ki aap sahi keh rahe hai ki sop opera ko kender me rakha ker aapne ye conclusion nikala hai ki yhan kshatrawad ko ya khe ki apne apne cultuer ko dhyan me rakh kar hi treditions ko follow kiya jata hai , lekin ek baat baataiy ki aaj ke jamane me kon sa ,(konsa se mera matlab sabhi prantoon ke nivasiyoon se hai)saks aaj achha dikhna ya achhe kapde pehann na ya aachh khana pasand nahi karta . aur ye mang agar wo kisi aur culture ke music ya kapdoon me ya phir whan ke bhavy mandapoon me me khojta hai to isme galat kya hai . mujhe to nahi lagta ki up bihar ki shadi ka aalooo parval ya dahi choora is nay dur ki is mang ko poora karnk apni alag pehchan bnane me safal hooga .ye sab sabjiya to hum rooz khate hai phir shadi me bhi wahi sab......... wah kya nya pan hai . aapko is vishay me up. bihar kha tak ek sahi option ka kam dete najar ate hai .me manti hoon ki sabhyta ke nam per jhan aurtoon ko shadi me shamil hoone ki aaj bhi ijazat nahi hoti whan ke culture ko kis adhar per aap aaj dikha ker konsi sanskiti ka pathh pdhana chahte hai .
    aap kya chaht hai ki shaadi ke set per u.p.iit aur bihari ya kahe uttranchalli gadhwali etc. aadmi log peeee ker jhoomte najar aye aur nachniya party ka dance chhoty ladky aapne badhoon se chupker dekhe aur badey dikhay ki wo hamari kitni izaat karte hai.yahi sab set per dikhaya jay ............
    shaadi ka aadarsh roop ki, adarsh kshater ki shaadi dikhani hai ya jansankhya ki adhikta ko dhyan me rakhker ye kadam uthana hai akhri fasla phir bhi aapka hi hooga janab aap meadia wle hai jesa prachar karengy wese ko hi vichara jayega .

     

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