हम आतंकवाद के साथ हैं। किसी न्यूज चैनल के हेड का ऐसा कहना क्या सिर्फ जुबान के फिसल जाने का मामला है। यदि हां तो उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो किस हैसियत से बात करते हैं और उन्हें बोलते वक्त सतर्क रहना चाहिए।..और अगर नहीं तो हमें सोचना होगा कि मीडिया इन्डस्ट्री में कैसे-कैसे चैनल हेड उग आए हैं जिन्हें इतना भी पता नहीं कि आतंकवाद क्या है? अगर कोई चैनल हेड कहे कि वो माओवाद के साथ हैं,उस माओवाद के साथ जिनकी पूरी क्रांति और बदलाव के सारी सोच मासूमों का खून बहाने तक जाकर खत्म हो जाती है फिर भी जमाने का जो चलन हैं उसमें उन्हें इन्टलैक्चुअल करार दे दिया जाएगा। लेकिन आतंकवाद के साथ होनेवाली बात मुझे नहीं लगता कि किसी आतंकवादी के पक्ष से केस लड़नेवाले वकील के अलावे कोई दूसरा शख्स कर सकता है। तो इसका मतलब ये साफ है कि मीडिया खबर ने जिस चैनल के बारे में हमें जानकारी दी है कि उन्होंने ये कहा कि हम आतंकवाद के साथ हैं,उन्हें ये पता ही नहीं कि आतंकवाद कोई विचारधारा है या फिर ग्लोबल स्तर का सबसे बड़ा संकट। इस साइट ने ऐेसे चैनल हेड पर लानतें-मलानते भेजते हुए जो कुछ भी लिखा है,उसके बड़े हिस्से से सहमति दर्ज करते हुए हमें लगता है कि इस पूरे मामले को थोड़ा और आगे जाकर सोचना चाहिए। किसी के लिए चैनल पापा का दिया हुआ गिफ्ट हो जाए,हमें इस सवाल से टकराना ही होगा कि फिर उसके औलाद इस गिफ्ट के साथ क्या करते हैं?
इस पूरे मामले में सबसे जरुरी और बड़ा सवाल है कि आखिर उन दलालों,प्रोपर्टी डीलरों,बिल्डरों और एक का पांच बनाने वाले टाइप के लोगों के भीतर ये भरोसा किसने पैदा किया है कि अगर तुम्हारे पास डेढ़-दो सौ करोड़ रुपये हैं और अगर नहीं है तो अपनी ठसक के दम जुटा ले सकते हो तो चैनल खोल सकते हो,चला सकते हो और देश के किसी भी चुनिंदा कहे जानेवाले पत्रकार को अपनी जूती के नीचे,अपने तलबे से उसकी बजा सकते हो। नवरत्न पालने का शौक अकबर को भी रहा और उसके जखीरे में शामिल होने की ललक हर प्रतिभाशाली शख्स को रही होगी। अकबर का ये शौक आज अगर मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर प्रथा का रुप धारण कर चुका है तो सवाल ये है कि नवरत्न के तौर पर बहाल होनेवाले लोग ये समझे कि वो अपनी जमीर बचाते हुए ही उसमें शामिल होंगे। उन्हें फैसला लेने में थोड़ी भी उलझन होती हो तो बीरबल और तानसेन की जीवनी पढ़ लेनी चाहिए। दूसरी तरफ जो जखीरा बनाने का काम कर रहे हैं,उन्हें इस बात की तमीज होनी चाहिए कि ये देश अब सिर्फ शौक से नहीं बल्कि जरुरतों से चलेगा। ये देश दलाली,लूट-खसोट,गैरमानवीय तरीके से अकूत धन जुटाकर अय्य़ाशी करने की बात को तो फिर फिर घड़ी-दो घड़ी के लिए पचा ले जाएगा क्योंकि पचाएगा नहीं तो करेगा क्या लेकिन इस धन से शौकिया तौर पर मीडिया चैनल खोले जाएं इसके लिए न तो मानसिक तौर पर तैयार है और न ही इसके भीतर ऐसा बर्दाश्त कर लेने की ताकत आने पायी है। इस धन के दागदार चरित्र को पाक-साफ करार देने के लिए मीडिया हाउस खोले जाएंगे इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।
मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर आज कौन कितना बड़ा पत्रकार है,अगर पत्रकारिता बची भी रह गयी है तो भी इस बात से तय नहीं होता कि उसने साल में कितनी बड़ी स्टोरी दी है। ऐसी स्टोरी जिससे कि सत्ता और समाज के किसी भी हल्के में असर हुआ हो,बल्कि पूरा मामला इस बात से तय होता है कि वो कितने बड़े से बड़े पैकेज पर दूसरे चैनल में शिफ्ट हुआ है। हमारी बात अगर भाषण या बंडलबाजी लगती है तो एक तरफ नामचीन पत्रकारों की लिस्ट बनाइए और दूसरी तरफ उनकी स्टोरी की,आपको अंदाजा लग जाएगा। कभी जमाने में बेहतर पत्रकारिता के नजदीक मिसाल कायम करने जैसी चीज कुछ कर गए और अब जिंदगी भर उसे उपलब्धि की कमीई इस गलीच महौल में खाने की फिराक में पड़े हमें महान मीडियाकर्मियों पर सिर्फ घृणा ही नहीं आ रही है,बल्कि हमें वो उतने ही खतरनाक नजर आ रहे हैं जितनी खतरनाक शक्लें टेलीविजन और अखबारों में आए दिन दिखाए जाते हैं। क्योंकि ऐसे महान मीडियाकर्मियों ने दल्ला समाज के हाथों एक बहुत ही आसान फार्मूला थमा दिया है कि आप हमें इतनी रकम दें,बाकी पत्रकारिता का सारा काम हम देख लेंगे। तो पत्रकारिता को फार्महाउस की तरह ठेके पर लेने का जो काम ये महान पत्रकार कर रहे हैं वो ये नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके काम को अगर बारीकी से समझा जाए तो दलालों और दालमंडी में रुमाल फिराकर धंधा करनेवालों से वो कहीं ज्यादा घटिया काम कर रहे हैं।
मीडिया खबर ने जिस चैनल का जिक्र किया है,जिस चैनल के हेड की बात की है उसकी जूती के नीचे देश का एक बहुत ही अनुभवी पत्रकार मुखौटे की शक्ल में टांग दिया गया है। इस पत्रकार के जब तक पत्रकार बने रहने की गलत जानकारी हमारे पास रही,सामने से गुजरते हुए मैं भी सम्मान में खड़ा हो गया। लेकिन जब पता चला कि ये भी इस अनुभवहीन,बिगडैल और बदतमीज चैनल हेड के आगे जूते चटकाता है तो अपराधबोध से मन भर आया। हमें किसी के प्रति जल्दीबाजी में श्रद्धा व्यक्त नहीं करनी चाहिए,बल्कि ये मान लेना चाहिए कि जीता-जागता कोई भी शख्स इज्जत के लायक नहीं होता। हमें उसके मरने तक का इंतजार करना चाहिए क्योंकि उसके बाद गलीच से गलीच घटिया से घटिया शख्स भी स्वर्ग में जाने की वजह से भगवान के करीब हो जाता है। मरकर आदमी देवता बन जाता है,हमें अपनी नास्तिक विचारधारा को थोड़ी देर के लिए उतार फेंककर ऐसा ही सोचना चाहिए। ऐसे महान पत्रकार पूरी की पूरी पत्रकारों की पीढ़ी के स्वाभिमान को कैसे कुचलने का काम करते हैं,उनके मनोबल को ध्वस्त करते हैं,उनके भीतर फ्रस्ट्रेशन के लेबल को आगे तक ले जाते हैं इसका अंदाजा शायद अभी न हो।
लेकिन मैं महसूस कर रहा हूं मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर ये चलन तेजी से पनप रहा है कि जो कभी इस फील्ड में ग्लैमर और पैसा के फेर में आए या फिर कुछ सरोकार से जुड़े काम करने आए,उन्हें अब जैसे ही इससे कोई बेहतर या कई बार तो इससे कमतर भी विकल्प मिल रहे हैं तो वो यहां से जा रहे हैं। ये वो जमात है जो इस बात की चिंता नहीं करती कि ये जमाने के लिए महान पत्रकार है। बल्कि ये इस बात का खुलासा करती है कि महान कहलानेवाला पत्रकार एसी कमरे में बैठकर कैसे केंचुए की जिंदगी जी रहा है,उसकी रीढ़ की हड्डी न्यूज रुउम में पहुंचने से पहले ही दफना दी गयी और अब उसके शरीर का सिर्फ एक ही हिस्सा उपर उठता है जो बॉस के आने पर सर तक छूकर वापस लौट आता है। इसलिए भोपाल में आजकल जो पहल चल रही है कि महान पत्रकारों पर डॉक्यूमेंटरी बनायी जाए,उनकी जीवनियां लिखी जाए,बहुत जरुरी हो गया है कि उनके जीवन के इस किस्से की सही से जांच पड़ताल हो कि वो पत्रकारिता के भीतर रहकर उसके विरोध में किस हद तक उसकी जड़े खोद रहा है। पत्रकार के तौर पर जानेवाले शख्स के भीतर कैसे एक दलाल, चाटुकार,निरीह और बेशर्म शख्स की आत्मा घुस आयी है,इसकी शिनाख्त दलाल मीडिया मालिकों को उखाड़ने और उस पर कार्यवाही करने से कम जरुरी नहीं है। चैनल हेड ने जिस आतंकवाद का साथ गलतजुबानी और काहिली में कर दी,उसके भीतर का अनुभवी पत्रकार वाकई में आतंकवाद से कम घिनोना खेल नहीं रच रहा।
मूलतः प्रकाशित- मीडियाखबर डॉट कॉम
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_29.html?showComment=1275144915986#c4080229581990812840'> 29 मई 2010 को 8:25 pm बजे
बहुत बेबाक लेख है .....गुस्से ओर लगभग पूरे मन से लिखा गया ....आपकी ये प्रतिबद्ता अपने पेशे के प्रति बनी रहे ...बस यही दुआ करता हूँ .... सबसे महत्वपूर्ण बात चैनल खोलने वाली लगी...
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_29.html?showComment=1275158368483#c9188471106863128785'> 30 मई 2010 को 12:09 am बजे
sahi akrosh....
dekhien, kab talak sudhar hota hai is samuchi vyavastha me aur hamare patrakar bandhuo me...