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खौफ के साये में है मिर्चपुर..

Posted On 5:54 pm by विनीत कुमार |


हरियाणा में हिसार जिले के गांव मिरचपुर के दलितों को उनकी मांग के मुताबिक जल्द से जल्द हिसार शहर में जमीन देकर बसाया जाए। ये लोग गांव में खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं। उन्हें शक है कि आने वाले दिनों में उन पर फिर हमले हो सकते हैं। वे अपने परिवार की महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा को लेकर खास तौर पर चिंतित हैं। मिरचपुर दलित हत्याकांड और उसके बाद हरियाणा पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है, इसलिए आवश्यक है कि जब तक इन दलित परिवारों को कहीं और न बसाया जाए, तब तक उनकी सुरक्षा के लिए गांव में केंद्रीय पुलिस बल को तैनात किया जाए।

बीते रविवार 9 मई 2010 को दिल्ली से मानवाधिकार समर्थकों की एक टीम ने रविवार को हिसार जिले के मिरचपुर गांव का दौरा किया। इस गांव में पिछले महीने की 21 तारीख (21 अप्रैल 2010) को दबंग जातियों के हमलावरों ने दलितों की बस्ती पर हमला किया था और 18 घरों को आग लगा दी थी। इस दौरान बारहवीं में पढ़ रही विकलांग दलित लड़की सुमन और उसके साठ वर्षीय पिता ताराचंद की जलाकर हत्या कर दी गई। दलितों की संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया गया और कई लोगों को चोटें आईं।
मिरचपुर का दौरा करने और अलग अलग पक्षों से बात करने के बाद इस जांच टीम ने पाया कि :

1. दलितों पर हमले और आगजनी की घटना के लगभग तीन हफ्ते बाद भी मिरचपुर गांव में जबर्दस्त तनाव है। इस गांव के कुछ दलित परिवार प्रशानस के दबाव की वजह से लौट आए हैं, लेकिन उन्होंने अपने परिवार की युवतियों और लड़कियों को गांव से बाहर रिश्तेदारों के पास रखने का रास्ता चुना है। उन्हें नहीं लगता कि दलित युवतियां और बच्चियां गांव में सुरक्षित रह सकती हैं।

2. मिरचपुर में दलित उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है। इससे पहले भी यहां दलितों के साथ मारपीट की घटनाएं होती रही हैं और खासकर दलित महिलाओं को यौन उत्पीड़न झेलना पड़ा है। महिलाओं के साथ बलात्कार और उन्हें नंगा करके घुमाने जैसी घटनाओं की पृष्ठभूमि और ऐसी तमाम घटनाओं में पुलिस और प्रशासन की भूमिका की वजह से मिरचपुर के दलित अब गांव छोड़ना चाहते हैं।

3. मिरचपुर में 21 अप्रैल को हुई आगजनी और हिंसा की घटनाओं के ज्यादातर आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। दलितों का आरोप है कि इस घटना के मास्टरमाइंड अब भी खुलेआम घूम रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैँ।

4. प्रशासन और पुलिस इस घटना को दबाने में जुटी है। इस घटना के बाद से ही हिसार के जिलाधिकारी कार्यालय में धरने पर बैठे दलितों को 20 अप्रैल को जबर्दस्ती वहां से हटा दिया गया और डरा-धमकाकर गांव लौटने को मजबूर किया गया, ताकि दुनिया को ये बताया जा सके कि मिरचपुर में सब कुछ सामान्य है। दलितों को बाध्य किया जा रहा है कि वे हमलावरों के साथ समझौता कर लें।

5. सर्व जाति सर्व खाप पंचायत की 9 मई को मिरचपुर में हुई सभा में ये कहा गया कि दलितों ने अब समझौता कर लिया है और वे “भाईचारे के साथ” गांव में रहने को तैयार हो गए हैं। मिरचपुर से दलितों ने जांच टीम को बताया कि पीड़ित परिवारों से कोई भी इस पंचायत में नहीं गया है और वे समझौते के लिए तैयार नहीं है। वाल्मीकियों के नेता सुरेश वाल्मीकि को उनलोगों ने अपने पक्ष में कर लिया और इसे वो पूरी वाल्मीकि समाज की सहमति करार दे रहे हैं। इस पंचायत को सर्वजाति पंचायत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें दलितों की हिस्सेदारी नहीं थी। मिरचपुर के दलितों का कहना है कि इस कांड के दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। इस बात पर किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता।

6. राहत के नाम पर मिरचपुर के दलितों को प्रति परिवार दो बोरी गेहूं दिए गए हैं। राहत की बाकी घोषणाएं अब तक कागज पर ही हैं।

7. मिरचपुर के दलित इस घटना के सिलसिले में मौजूदा राजनीतिक दलों की भूमिका से नाराज हैं। उनका गुस्सा खास तौर पर सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के खिलाफ है। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में हुए इस हत्याकांड से उनका विश्वास हिल गया है।

8. कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने घटना के बाद मिरचपुर का दौरा किया था, लेकिन गांव के दलितों का कहना है कि राहुल गांधी के दौरे के बाद भी प्रशासन और पुलिस का रवैया पहले जैसा है और वे अब भी सहमे हुए हैं।

9. पूछने पर दलित बस्ती के लोगों ने बताया कि वे अपनी मर्जी से वोट भी नहीं डाल सकते हैं। अपनी मर्जी से वोट डालने की मांग करने पर उनके साथ मारपीट होती है और उनका वोट जबरन डाल दिया जाता है।

10. मिरचपुर के सार्वजनिक शिव मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित है। गांव के दलित अपना मंदिर बनाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें अपना मंदिर नहीं बनाने दिया जा रहा है। इस वजह से गांव में दलितों का मंदिर अधूरा बना हुआ है। मिरचपुर गांव के स्कूल में एक भी दलित शिक्षक नहीं है। सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण के बावजूद ऐसा होना राज्य में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव का एक और प्रमाण है।

इस जांच टीम में नेशनल फेडरेडशन ऑफ़ दलित वुमेन (एनएफ़डीडब्लेयू) की उत्तर भारत संयोजिका एवं मानवाधिकार वकील सुश्री चंद्रा निगम,शोधकर्ता विनीत कुमार,सामाजिक कार्यकर्ता राकेश कुमार सिंह,पत्रकार अरविंद शेष तथा वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल शामिल थे। इस रिपोर्ट को अनुसूचित जाति आयोग और मानवाधिकार आयोग को भी भेज दिया गया है।

(प्रेस रिलीज: 9 मई को मिर्चपुर से लौटकर दिलीप मंडल,राकेश कुमार सिंह,विनीत कुमार,चंद्रा निगम और अरविंद शेष की ओर से जारी)
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6 Response to 'खौफ के साये में है मिर्चपुर..'
  1. Rangnath Singh
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html?showComment=1273496474108#c3632525499993859254'> 10 मई 2010 को 6:31 pm बजे

    दलितो को कहां कहां से हटा कर दूसरी जगह बसाया जाएगा ?

    कानून-व्यवस्था जब दबंगों द्वारा हाइजैक कर ली जाए तो उनके पास क्या रास्ता बचता है ?

     

  2. सुशीला पुरी
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html?showComment=1273501822953#c7610638929816783559'> 10 मई 2010 को 8:00 pm बजे

    कितना गलत हो रहा है दलितों के साथ ........

     

  3. गुरतेज़सिंह घुमाण
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html?showComment=1273589859373#c1614801006854717060'> 11 मई 2010 को 8:27 pm बजे

    कितना गलत हो रहा है दलितों के साथ .
    दलितो को हटा कर दूसरी जगह बसाया जाए

     

  4. openperson
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html?showComment=1273596177128#c2962751365210667997'> 11 मई 2010 को 10:12 pm बजे

    आजादी के साठ साल हो गये और देश ने विकास की जगह पिछडापन हासिल किया। दलितों का पिछडापन, उच्‍च जातियों की मानसिकता का पिछडापन। क्‍या दलित इंसान नहीं होते। डूब मरना चाहिए ऐसी सरकार को जो पीडित को न्‍याय न दे सके और उसकी सुरक्षा न कर सके।

     

  5. प्रभात रंजन
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html?showComment=1274357558326#c8195617203375237057'> 20 मई 2010 को 5:42 pm बजे

    राजनीति के द्वारा ही दलितों का उद्धार मुमकिन है...उन्हें खुद को ताकतवर बनाना होगा...आपके ब्लाग से जुड़ना चाहता हूं विनीत भाई ।

     

  6. बेनामी
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_10.html?showComment=1277733248611#c4786792524301239319'> 28 जून 2010 को 7:24 pm बजे

    Shame for congress government. Valmikis are being exploited in every part of India. They have been working temporary basis since 25 years in Nagar Palika of capital and states. Salary of sweepers is not beig paid on monthly basis. In Delhi MCD salary of sweeper being paid after 4-5 months. Millions of rupees had been spent on computers for the computerised attendance of these poor valmikis.

     

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