यूपीएससी की परीक्षा में 9 वीं रैंक और हिन्दी माध्यम के लिहाज से प्रथम स्थान पानेवाले जयप्रकाश मौर्य का दर्द इस बात को लेकर है कि अभी तक उनसे किसी भी मीडिया ने सम्पर्क नहीं किया। ऐसे में संभव है कि आप जयप्रकाश मौर्य के भीतर खबर में आने की चाहत का अंदाजा लगाने लग जाएं। लेकिन गहराई से देखें तो ये साफ झलकता है कि खबरों को लेकर मीडिया के पास कोई होमवर्क नहीं है। फैजल के प्रथम स्थान पाने की खबर ही उसके लिए काफी है। वो टॉप करनेवाला पहला कश्मीरी है,उसके पिता आतंकवादी इन्काउंटर में मारे गए। कल कसाब के लिए फांसी की सजा सुनाने का दिन था। इसलिए ये सब कुछ मिलाकर जिसमें कि खबरों को लेकर कई एंगिल बनते थे,मीडिया के लिए एक बिकाउ पैकेज बन गया। लेकिन ऐसे में कोई ये दावा करे कि मीडिया ने यूपीएससी के रिजल्ट की पूरी लिस्ट नहीं देखी तो ताज्जुब करने के लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी।
खबरों को फ्रैक्चरड करने की मीडिया को आदत सी लग गयी है। खबरों के बीच से अपने मतलब का पोर्शन उठाकर उसे एक चमचमाती पैकेज की शक्ल में तब्दील कर देना एक शगल है। संभवतः इसलिए फैजल ने मीडिया को जो बाईट दिए औऱ मीडिया ने जो उसका विश्लेषण किया उसमें जमीन-आसमान का फर्क नजर आया। फैजल का सिर्फ इतना कहना था कि जब उसके पिता की मौत हुई तो उसके सामने अपनी जिंदगी को देखने के दो ही तरीके मौजूद थे। एक तो यह कि वो इस पूरी घटना को एक डिप्रेशन की तरह देखे और उसी में डूबता चला जाए और दूसरा कि वो ये सब समझते हुए भी नयी जिंदगी की शुरुआत करे,कुछ बेहतर करे। शाह फैजल ने दूसरे नजरिए को तब्बजो दिया और आज वो सफल है। एक इंसान के भीतर की सच्चाई को मीडिया ने आतंकवाद के विरुद्ध जीत,आतंकवाद को दी शिकस्त जैसे शब्दों से लाद-लादकर उसे इतना भारी बना दिया कि कई सारी स्वाभाविक चीजें दबकर रह गयी। उसमें खुद फैजल का संघर्ष और वो मनःस्थिति सामने नहीं आने पायी और उसी चपेट में हिन्दी माध्यम में प्रथम स्थान आनेवाले जयप्रकाश मौर्य की भी कहानी मीडिया मंचों पर सामने नहीं आने पायी। इसे आप खबरों को फ्रैक्चरड करके पेश करने के साथ-साथ भाषायी स्तर पर दुर्व्यवहार करने का भी मामला मान सकते हैं। यूपीएससी ने तो फिर भी जयप्रकाश मौर्य को अपना लिया लेकिन मीडिया...?
जयप्रकाश मौर्य ने पिछली बार भी यूपीएसी की परीक्षा दी थी लेकिन अंग्रेजी उन्हें गच्चा दे गयी। अब एक साल तक उन्होंने किस स्तर की तैयारी की और इस बीच उनके भीतर किस तरह के विचार बनते-बदलते रहे,ये सब एक हिन्दी पट्टी से आनेवाले शख्स के लिए कम दिलचस्प नहीं है। खासकर ऐसे लोगों के लिए जो अपनी असफलता का ठिकरा पूरी तरह अंग्रेजी न जानने के उपर थोप देते हैं। जयप्रकाश मौर्य भी चाहते तो ऐसा कर सकते थे और चुप मारकर बैठ जाते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसे चुनौती के तौर पर लिया और नतीजा आपके सामने है। ये घटना अगर मीडिया में आती तो देश के करोड़ों हिन्दी पाठकों और दर्शकों के बीच एक रोमांचकारी घटना के तौर पर असर करती लेकिन मीडिया में रोमांच तो सिर्फ क्रिकेट,ग्लैमर और देश की समस्याओं को सीरियल औऱ रियलिटी शो की शक्ल में बदलने से ही आते हैं।
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273213273129#c3461896950765552714'> 7 मई 2010 को 11:51 am बजे
मीडिया बिजनस है... लाभ कमाना चाहता है.. कोई अलाभकारी संगठन नहीं...
अच्छा है की हम उससे अपेक्षा न रखें..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273213547907#c8351337491660997858'> 7 मई 2010 को 11:55 am बजे
'जो दिखता है वही सत्य हो' यह कत्तईं जरूरी नही है। 'मौर्य सत्यं मिडिया मिथ्या' ! अब मिडिया को बड़ी सावधानी से परखना जरूरी है।
अच्छा होता कि मिडिया ने फैजल की सामाजिक स्थिति के साथ जयप्रकाश के संघर्षों की तुलना की होती। क्या कोई तुलना मिलती? शायद नहीं। किन्तु इस सबके लिये 'मौलिक चिन्तन' और 'मौलिक कार्य' की जरूरत है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273214739518#c6896842542468178563'> 7 मई 2010 को 12:15 pm बजे
आपके लेख से पूरी तरह से असहमत। ऐसी लिखाई भी क्या कि आदमी प्रैगमैटिक तरीके से सोच भी न सकें। हिन्दी से आईएएस निकाल लिया यह बात एक दशक पहले तक तो रोमांचित करती थी। अब नहीं करती। पहले ऐसी खबरों से हिन्दी वालों की हीनता ग्रंथि का थोड़ा शमन होता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। आपके लेख से प्रतीत हो रहा है कि जैसे हिन्दी कोई असहाय और पंगु भाषा है जिसने अपनी विकलांगता के बावजूद हिमालय की चढ़ाई कर ली है। और अब इसे ही राष्ट्र की सबसे बड़ी खबर बननी चाहिए !
यह भी स्पष्ट है कि हिन्दी पट्टी के अखबारों में जयप्रकाश की खबर को प्रमुखता दी गई होगी। आप यह भी जानते होंगे कि हिन्दी के अखबार ही देश में सबसे अधिक बिकते हैं। लेकिन आप हैं कि टीवी को ही मीडिया मानते हैं। मैं टीवी में होता तो फैजल की स्टोरी ही मुख्य स्टोरी के रूप में चलाता। कश्मीर में जिस तरह का अलगाववाद पनप रहा है। फैजल की पृष्ठभूमि की जिस तरह की जानकारी आपने दी है वह उसे बाकी प्रतिभागियों से अलहदा खड़ा करती है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273215342149#c7922964044600816790'> 7 मई 2010 को 12:25 pm बजे
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273215568287#c5924353114838238686'> 7 मई 2010 को 12:29 pm बजे
ऐसी कितनी ही खाब्दो को दम तोड़ते देखा है विनीत भाई.. पर गलती भी हमारी ही है.. हम मिडिया से मनोरंजन की उम्मीद करने लग गए है..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273215831348#c7619971337729682940'> 7 मई 2010 को 12:33 pm बजे
यह भी याद दिलाना चाहुँगा कि नम्बर सिस्टम में नम्बर '1' की जो नुमाईश होती है वो कभी भी नम्बर दो की नहीं होती !
आप किसी भी साल का अखबार या पत्रिका या न्यूज देख लीजिए कि नम्बर '1' जितनी ख्याति और चर्चा अन्य किसी नम्बर को नहीं मिली। नम्बर सिस्टम की आंतरिक विसंगति है कि वो नम्बर '1' को दो,तीन,चार इत्यादि से बहुत ऊपर की चीज समझती है। भले ही उनके अंको के बीच एक-एक नम्बर का ही अंतर हो।
यदि इसी बार(या किसी बार) हिन्दी माध्यम का कोई युवक नम्बर '1' आ जाए तो देखिएगा ! कम से कम हिन्दी चैनल तो इसका ऐसा ढोल पीटेंगे जैसे हिन्दी ने अंग्रेजी को धूलधुसरित कर दिया हो।
जाहिर है कि बहुत से एंगल काम करते हैं किसी खबर के खास बनने में। इसी कारण फैजल की खबर खास बनती है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273220682204#c1366694503453909912'> 7 मई 2010 को 1:54 pm बजे
बढ़िया जानकारी वाला लेख!सच में मिडिया से तो हम मनोरंजन की चाहता पालने लगे है!अब जो जिसके लायक हो उस से वही अपेक्षा रखी जा सकती है!
कुंवर जी,
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273282416071#c8663919499027277718'> 8 मई 2010 को 7:03 am बजे
विनीत जी ,
सच कहूं तो इस बार भी ये जानकर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि,मीडिया खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो हिंदी प्रेमी कब रहा है फ़िर इस बार तो प्रथम स्थान प्राप्त बंधु जम्मू से हैं ,और जैसा कि आपने बता ही दिया कि ,मीडिया के अनुसार ये आतंकवाद को हरा कर जीता जाने जैसा कुछ है । वैसे मुझे लगता है कि हिंदी की प्रतियोगिता पत्रिकाएं ही बस रह गई हैं सुध लेने वाली ऐसे प्रतियोगियों की । दुखद है , मगर सच यही है , .....खैर हमारी बहुत बहुत बधाई उन्हें और मुबारकबाद
ओह कंफ़्यूजन में आपकी किसी दूसरी पोस्ट पर टिप्पणी दे दी थी , अब उसे मिटा कर फ़िर से यहां टीपा
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273675708622#c578466708152478206'> 12 मई 2010 को 8:18 pm बजे
चलिए कम से कम आपने मौर्य जी के इस सफलता को हम सबों तक पहुँचाने में पहल की इसके लिए धन्यवाद!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/05/blog-post_07.html?showComment=1273889205952#c4855862913635527463'> 15 मई 2010 को 7:36 am बजे
आपका बेबाक लेखन मुझे बहुत आकर्षित करता है. अच्छा फटकारा
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव अपनी माटी
माणिकनामा