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26 जनवरी के करीब 15 दिन पहले से ही गुड ब्ऑय के बीच से बैड ब्ऑय की छंटनी शुरु हो जाती। सुबह की प्रार्थना के बाद उन्हें लाइन से अलग एक साइड खड़ा कर दिया जाता। वो गुड़ ब्ऑय को क्लास में जाते हुए हसरत भरी नजर से देखते रहते,ग्लानि से भरकर सोचते, वो क्यों बैड ब्ऑय है। सारे बच्चे क्लास में क्लास में चले जाते। पहली पीरियड शुरु हो जाती और खत्म भी हो जाती। बैड ब्ऑय को इस हिदायत के साथ कि जितनी जल्दी हो सके,गुड ब्ऑय बनो, दूसरी पीरियड तक छोड़ दिया जाता।

गुड ब्ऑय और बैड ब्ऑय के विभाजन का आधार इतना भी मुश्किल नहीं होता कि कोई अपनी जमात न बदल सके। इसे एक दिन के भीतर बदला जा सकता था। इसका आधार सिर्फ इतनाभर था कि स्कूल की तरफ से जो भी ड्रेस कोड बनाए गए हैं, उसे पूरी तरह फॉलो करते हुए स्कूल में आना। आम दिनों में भी स्कूल ड्रेस में आना अनिवार्य होता लेकिन इतनी सख्ती नहीं होती। ज्यादातर बच्चों का कुछ न कुछ मिस होता। कोई सफेद शू के बजाय ग्रे पहलकर आ जाता तो कोई चप्पल पर ही नेवी ब्लू मोजे डाल लेता,ताकि झटके से आगे निकल जाए। कोई ब्लैक शू पहनकर आता तो पॉलिश करना भूल जाता। बाद में तो स्कूल ने बैज देने(बेचने) शुरु कर दिए। बीच रुपये का एक बैज जिसमें स्कूल के लोगो के साथ नाम लिखा होता। एडमीशन के वक्त ये बैज नहीं था, इसलिए पापा इसे लेकर सीरियस लेकर नहीं थे। नार्मल दिनों में तो काम चल जाता लेकिन 26 जनवरी के मौके पर भारी फजीहत होती। हमारे जैसे बच्चे,आगे गुजर गए बच्चों से सेटिंग करके लगा लेते और क्लास पहुंचते ही वापस कर देते। मैं क्लास में मॉनिटर रहा करता,हमें मॉनिटर लिखा, अलग से बैज दिया बाकी बच्चों का तो उतना पता नहीं चलता लेकिन मेरे मॉनिटर के बैज लगाने औऱ स्कूल बैज नहीं लगाने पर टीचर्स जमकर लताडते- शर्म नहीं आती, मॉनिटर होकर बैज नहीं लगाते, तुम्हारा यह हाल है तो बाकी बच्चों पर इसका क्या असर होगा। मॉनिटर को कुछ इस तरह बताया जाता जैसे स्कूल के कायदे-कानून की सुरक्षा का जिम्मा उसी के हाथों है। बैज लगाकर हम अपने को आइपीएस से कम नहीं समझते। ये अलग बात है कि स्कूल बैज न होने पर सरेआम क्लास रुम में हमारी इज्जत उतार ली जाती। कई बार खड़ा भी करा दिया जाता। इसलिए हम इग्जाम रिपोर्ट कार्ड पर गुड ब्ऑय होते हुए भी सामाजिक रुप से बैड ब्ऑय करार दिए जाते। ऐसे मौके पर वो बच्चे गुड ब्ऑय हो जाते जो सालों भर तक हमारे आगे-पीछे डोलते, अक्सर पनिश किए जाते लेकिन ड्रेस कोड पूरी होने की वजह अकड़ जाते। जिन बिना पर इन्हें सजा मिलनी होती, वो सारा काम तो दस दिन पहले से ही बंद हो जाता, उनके पनिश होने का मौका ही नहीं मिलता। सारे बच्चे कुछ न कुछ परफार्म करने की तैयारी में होते जिनमें ये रईस बच्चे फैन्सी ड्रेस कॉम्पटीशन में भाग लेते जिसके लिए तीन-चार सौ रुपये अलग से खर्च करने पड़ते।

हमारे जैसे कुछ और भी बच्चे थे जो पढ़ने में बहुत ही होशियार लेकिन 26 जनवरी जैसे दिनों में मात खा जाते। बैड ब्ऑय कहलाते। एक-दो दोस्त ऐसा कि पढ़ने में तेज होने के साथ-साथ थोड़ा शोवी नेचर का था। भाषण देने और वाद-विवाद में भाग लेने का मन उसका नहीं होता, वो भी और बच्चों की तरह ऐसे इवेंट में भाग लेना चाहता, जिसे की स्टेज पर परफार्म किया जा सके, स्कूल की सारी लड़कियों के मां-बाप देखें। ये बात जैसे ही वो अपने क्लास टीचर के सामने करता, उनका जबाब होता- 20 रुपये का बैज औऱ 25 रुपये के मोजे तो तुम्हारे पापा खरीद नहीं पाते औऱ कहां से लाओगे, उस दिन परफार्म करने के अलग से ड्रेस। इस बार तो चीफ गेस्ट डीएम साहब आ रहे हैं,हमें पब्लिक स्कूल में कबीर और फकीर थोड़े ही दिखाना है। वो चुप हो जाता औऱ मन मारकर हमारे साथ भाषण की तैयारी में जु़ट जाता। भाषण प्रतियोगिता क्लास रुम में होती औऱ उसके प्राइज स्टेज पर मिलते। हम बस एक मिनट के लिए स्टेज पर जाने लायक होते औऱ वो भी डांस,फैशन शो आदि की तैयारियां पीछे से ऐसे चल रही होती कि उस चकाचौंध में हमारा चेहरा गुम हो जाता। प्राइज लेकर नीचे उतरता- लोग बधाई देते, कहते जरुर नेता बनेगा, पत्रकार बनेगा,लेक्चरर बनेगा। इसके अलावे ऐसा हम कुछ नहीं कर पाते कि कुछ औऱ बनने की गुंजाइश हो।
हमलोग भाषण देने या फिर वाद-विवाद में भाग लेते। पूरे इवेंट में यही दो इवेंट थे जिसके लिए अपनी तरफ से चवन्नी नहीं लगानी होती। हिन्दी, अंग्रेजी या फिर संस्कृत के टीचर को पकड़ो औऱ एक भाषण तैयार करा लो। पब्लिक स्कूल में वैसे भी हिन्दी के टीचरों को कोई बहुत पूछता नहीं, सो वो भी हमसे खुश रहते। हम उनके पास इज्जत से जाते औऱ एक ही बात करते- सर किसी तरह इस साल हिन्दी में भाषण देने की परमीशन दिलवाइए। वो पूरा भाषण तैयार करवाते औऱ हौसला देते- हो जाएगा। लेकिन एक-दो दिन पहले धीरे से आकर कहते- नहीं हो पाएगा, बेटे। कोई नहीं, तुम अंग्रेजी में ही बोल दो। अंग्रेजी के भाषण पहले से तैयार होता, एक-दो दिन पहले हम दिन-रात एक करके उसे याद कर लेते। उस भाषण में क्या है, क्या उसके भाव हैं,इससे हमें कोई मतलब नहीं होता,बस बोल देते। मेरे मन में कसक बनी रह जाती कि-26 जनवरी के दिन अपने मन की बात कहूं।
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4 Response to '२६ जनवरीः जूते चमकाने का दिन( कथामाला-१)'
  1. MANVINDER BHIMBER
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/01/blog-post_26.html?showComment=1232949120000#c3363024858863568123'> 26 जनवरी 2009 को 11:22 am बजे

    गणतंत्र दिवस की आपको बहुत बहुत बधाई

     

  2. PD
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/01/blog-post_26.html?showComment=1232960100000#c2316277616375787036'> 26 जनवरी 2009 को 2:25 pm बजे

    बढ़िया लग रहा है.. आगे बढिए.. :)

     

  3. संगीता पुरी
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/01/blog-post_26.html?showComment=1232966400000#c4935379887118645470'> 26 जनवरी 2009 को 4:10 pm बजे

    बहुत अच्‍छा......गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

     

  4. जितेन्द़ भगत
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/01/blog-post_26.html?showComment=1232985660000#c7690579607094534473'> 26 जनवरी 2009 को 9:31 pm बजे

    अच्‍छी शुरूवात, बधाई।

     

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