.

उजड़ गयी श्रीराम सेंटर की बुकशॉप

Posted On 10:56 am by विनीत कुमार |


उनके ये बताने पर कि ये भी लिखता रहता है औऱ तभी एक-दो पत्रिकाएं उन्हें दिखाने लगे जिसमें कि मेरे लेख प्रकाशित हुए थे। इस पर उनके साथी ने तुरंत ही सवाल किया- तो मैंने आपको कभी यहां यानि श्रीराम सेंटर के पास देखा ही नहीं। जब आप लिखते हैं तो यहां आया कीजिए, आपके मिजाज के लोगों को तो यहां बीच-बीच में आते रहना चाहिए। श्रीराम सेंटर के बुक सेंटर पर लेखन के स्तर पर किसी से ये मेरी पहली मुलाकात थी।

एक बार फिर वहां जाना हुआ। मीडिया मंत्र पहली बार देखा था। रवीश सर का लेख देखकर खरीदने को मन हो आया। जो मैम कांउटर पर बैठती है उन्होंने साफ कहा कि मेरे पास तो चेंज है ही नहीं। मैंने कहा-कुछ कीजिए, वो कहने लगी, मैं क्या कर सकती हूं। मन मारकर मैंने कहा-तो रहने दीजिए। तभी पीछे से किसी ने कहा- अरे दे दीजिए, ये लीजिए दस रुपये। देखा, अविनाश भाई हैं। व्यक्तिगत स्तर पर उनसे ये मेरी पहली मुलाकात थी। उन्होंने कुछ लोगों से मिलवाया और उनके ये कहने पर कि- पढ़ने-लिखनेवाला लड़का है, सबों ने अपनी पत्रिका की एक-एक प्रति मुझे दी। पैसे देने पर साफ कहा-पढकर बताइएगा। वहीं पर मुंबई के प्रमोद सिंह से मेरी पहली मुलाकात हुई जो मेरे हंसते रहने पर ताजुब्ब खाकर रह जाते, उन्हें लगता कि कोई दिल्ली में रहते हुए भी ऐसे कैसे दिनभर हंसता रह सकता है। मैं बीच-बीच में कहता, मैं ऐसा ही हूं, सर औऱ फिर हंसने लग जाता।

तीसरी बार जब मैं वहां गया तो चारों तरफ से ऐसे लोगों से घिर गया जो कि ये जानने पर कि मीडिया से जुड़ा आदमी है, भाला-गंडासा लेकर पिल पड़े। पहले मेरे चैनल का दमभर मजाक उड़ाया। वहां के कुछ लोगों को सिर्फ पाउडर पोतकर खड़े होनेवाला एंकर बताया। बचने के लिए जब मैंने कहा कि- अब वहां छोड़ रहा हूं, पीएचडी को ही कॉन्टीन्यू करुंगा तब जाकर थोड़ी देर के लिए थम गए। फिर टॉपिक पूछा और नए सिरे से पिल पड़े। आपलोग लिटरेचर के नाम पर चुटकुलेबाजी कर रहे हैं। बताइएं अंजनीजी, जिस टीवी को हमलोग बहुत पहले ही मूर्खपेटी कहकर धकिया चुके हैं, उस पर भाईजी पीएचडी कर रहे हैं। औऱ वो भी न्यूज चैनल पर नहीं, मनोरंजन चैनल पर। फिर पूछा- तब दिनरात सास-बहू में लगे-भिड़े रहते होंगे, कोई पसंद आयी कि नहीं-टीविए पर सही, काहे कि असली लेडिस लोग से तो आपको अब कुछ लेना-देना ही नहीं रहा। फिर ठहाके मारकर पछताने लगे- अब जब दिनभर टीविए देखकर पीएच।डी करना है तो शादी भी कर लीजिए। एमबीए की हुई भाभी लाइएगा, वो पर एनम के हिसाब से कमाएगी औऱ आप घर बैठकर पीएच।डी कीजिएगा। एकाध साल में पुत्र धन हो गया तो आपके पीएचडी होते-होते बढ़ा होकर गबरु हो जाएगा।

रांची से रणेन्द्रजी का फोन आया और बताया कि एक उपन्यास लिखा है। अभी पांडुलिपि ही है, आपको देनी है वो,पढ़कर बताइएगा, कल पहुंच रहे हैं, मिलते हैं श्रीराम सेंटर के बुक शॉप पर फिर बात करते हैं। वहीं पहुंचने पर मेरे दोस्त राहुल ने उनसे पहले ही साफ कह दिया कि- देखिए, इसको कविता-कहानी में बहुत दुलचस्पी नहीं है। ये बीए से ही अपना पैसा आलोचना की किताबों में लगाता आया है। राहुल के ऐसा कहने का मतलब था कि वो पढञकर मुझसे कोई लिखित प्रतिक्रिया न मांगने लग जाएं। उसी दिन कैंपस के कुछ लोग मिल गए औऱ मजाक में ही कह डाला- क्या विनीतजी, श्रीराम सेंटर आने की लत अभी से ही आपको लग गई। आज लगाकर तीसरी बार देख रहे हैं औपको। ये तो तीन ही चीज के लिए फेमस है- या तो आप बेरोजगार हैं, घर में दिन काटना मुश्किल हो जाता है, बिना भसोड़ी किए मन नहीं लगता तो यहां आकर सेटिंग कीजिए, हिन्दी समाज में अपना कद बढ़ाना चाह रहे हों, इसकी-उसकी चाटकर शाल ओढ़ने के चक्कर में हैं तो उसके लिए आइए याफिर साहित्यिक किताबें औऱ पत्रिकाएं खरीदनी हो तो उसके लिए आइए। जहां तक हम आपको जानते हैं, इन दिनों में से आपको किसी चीज की तत्काल तलब नहीं होती, फिर यहां क्या करने आ गए। मैंने मुस्कराते हुए जबाब दिया- इधर, दो-चार महीनों से इन सबकी थोड़ी-थोड़ी तलब होने लगी है। वो मुझे देखते भर रह गए।

हम यों कहें कि श्रीराम सेंटर के बुकशॉप पर जानेवाले लोग अपनी-अपनी जरुरतों के हिसाब से जाते रहे हों लेकिन इसे जरुरत से जाने की बजाय, जाने की तलब होना कहना ज्यादा सही होगा। जीभ और मुंह के लिए सुरती, गुटखा औऱ सुपारी की तलब जैसा कुछ। हिन्दी समाज के लिए लिए ये शॉप तलब सेंटर जैसा था जहां सिर्फ और सिर्फ किताबें खरीदने के लिए शायद ही कोई जाता हो।

अब कहां से खरीदें हंस, पहल, ज्ञानोदय औऱ लेख छपने पर कहां दौड़ लगाएं, कहां बनाएं भसोड़ी का नया अड्डा, पढ़िए अगली पोस्ट में



| edit post
4 Response to 'उजड़ गयी श्रीराम सेंटर की बुकशॉप'
  1. Dipti
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/12/blog-post.html?showComment=1228287900000#c3566496079255807137'> 3 दिसंबर 2008 को 12:35 pm बजे

    जब से ये पता चला है कि वो बुक शॉप अब हटा दिया गया है, दुख हो रहा है। वो दिल्ली में मुझे एक मात्र ऐसी खुली जगह लगती थी जहाँ एक लड़की अकेले घंटों बैठ सकती थी।

     

  2. आशीष कुमार 'अंशु'
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/12/blog-post.html?showComment=1228291440000#c7170358015538082434'> 3 दिसंबर 2008 को 1:34 pm बजे

    LAGE HATHO 'PAHAL' KE BAND HONE KEE SUCHANA BHEE DE HEE DIJIY...

     

  3. सुशील छौक्कर
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/12/blog-post.html?showComment=1228315440000#c6058369727691490470'> 3 दिसंबर 2008 को 8:14 pm बजे

    हाँ सुना तो था। यह खबर अच्छी नही है । एक अच्छी जगह थी किताबों के लिए। अब कहाँ चली गई है ये तो पता कीजिए। और बताईए भी। और हाँ ये खुले पैसे नही है ये दिक्कत आपके साथ भी हुई थी।

     

  4. सतीश पंचम
    http://taanabaana.blogspot.com/2008/12/blog-post.html?showComment=1228327620000#c3639367819251326782'> 3 दिसंबर 2008 को 11:37 pm बजे

    जब कोई इस तरह की खबर आती है कि फलां बुक सेंटर या किताबों की दुकान अब बंद होने के कगार पर है या बंद हो चुकी है तो काफी अफसोस होता है...अब तो शायद ई-बुक्स वगैरह के जलवों में ऐसी दुकानें और तेजी से बंद न हों जायें।

     

एक टिप्पणी भेजें