2G स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में नीरा राडिया से हुई बातचीत के टेप इंटरनेट पर लगातार तैरते रहने से एक के बाद एक मीडिया दिग्गज लपेटे में आते रहे हैं। लेकिन अब तक इन टेपों में खास बात रही है कि इनमें से कोई भी पत्रकार हिन्दी मीडिया का नहीं रहा। इससे उपरी तौर पर ये मैसेज गया कि हिन्दी के मीडियाकर्मी अंग्रेजी मीडियाकर्मियों के मुकाबले कहीं ज्यादा पाक-साफ हैं। वो छोटे-मोटे समझौते तो करते रहते हैं लेकिन इस तरह देश को हिला देनेवाले करनामे नहीं करते। तब भाषाई स्तर पर ये निष्कर्ष निकाला गया कि आखिर हिन्दी तो है अपनी भाषा,इस देश की भाषा। कितना भी कुछ हो जाए,इस भाषा से जुड़े मीडियाकर्मी देश को इस तरह से बेच खाने का काम नहीं करेंगे। कुछ मीडियाकर्मियों ने इसे ईमानदारी के तौर पर प्रोजेक्ट किया और आशुतोष(IBN7) जैसे पत्रकार ने तो यहां तक घोषणा कर दी कि उन्हें सब पता होता है कि मीडिया के भीतर कुछ पत्रकार जो करते हैं वो दरअसल दल्लागिरी कहते हैं,अंग्रेजी में इसे भले ही लॉबिइंग कहा जाता हो। इस काम को करनेवाले दल्ले होते हैं। आशुतोष को ये जुमला इतना हिट समझ आया कि पटना गांधी मैदान में चल रहे पुस्तक मेले में इसे दोबारा दोहराया और जमकर तालियां बटोरी। यूट्यूब पर डाली गयी वीडियो को देखकर मैं मन मसोसकर रह गया कि उनमें से किसी ने ये सवाल क्यों नहीं किया कि अगर आपको पता है कि मीडिया में कुछ लोग दल्लागिरी करते हैं तो अब तक ऐसे कितने दल्लों पर स्टोरी चलायी है या फिर अपने सबसे प्रिय अखबार हिन्दुस्तान में उनके बारे में लिखा है। 2G स्पेक्ट्रम मामले में मीडिया की गर्दन बुरी तरह फंस जाने की स्थिति हिन्दी मीडिया जहां पूरी तरह खामोश है,वहीं आशुतोष लीड ले रहे हैं और एक तरह से कहिए तो हिन्दी मीडिया की ईमानदारी के झंडे गाड़ रहे हैं।लेकिन इस घटना का दूसरा पक्ष है कि मीडिया और सत्ता के गलियारों में हिन्दी पत्रकारों को लेकर बहुत ही नकारात्मक छवि बनी है। लोगों को अफसोस हो रहा है कि हिन्दी में ऐसा कोई भी एक पत्रकार नहीं है जिसकी इतनी हैसियत हो कि वो नीरा राडिया जैसी लॉबिइस्ट से बात कर सके। यकीन मानिए दूसरा खेमा इसे हिन्दी पत्रकारों की ईमानदारी न समझकर उसकी औकात पर तरस खा रहा है कि बेकार में इतना हो-हल्ला मचाए फिरते हैं ये लोग,नीरा राडिया से बात तक नहीं होती। आज मीडिया के भीतर ऐसा कुछ भी नहीं है जो कि उघड़कर आम लोगों के बीच सामने न आ गया हो,मीडिया एमसीडी की बजबजाती हुई नाली की तरह दिख रहा है,ऐसे में हिन्दी के पत्रकारों का नाम न आना खुशी नहीं शर्म की बात है। बीबीसी के विनोद वर्मा ने बीबीसी ब्लॉग खरी-खरी में लिखा कि आज बड़े पत्रकार होना का सीधा पैमाना है कि आपकी नीरा राडिया से बातचीत होती है या हुई है कि नहीं। ये आज का एक बड़ा पैमाना है और फिर विस्तार से इसके कारणों की चर्चा की है। उस हिसाब से सोचें तो सहारा मीडिया के न्यूज डायरेक्टर उपेन्द्र राय हिन्दी के अकेले मीडियाकर्मी हैं जिन्होंने कि हिन्दी मीडिया की इज्जत बचा ली है।
12 दिसंबर 2010 को JOURNALIST FIGURED IN TALKS WITH IA EX-CHIEF
नाम से छपी स्टोरी में मेल टुडे ने बताया है उपेन्द्र राय की नीरा राडिया से बातचीत हुई है। स्टोरी में बताया गया है कि उपेन्द्र राय जब स्टार न्यूज के लिए एयरलाइंस पर स्टोरी कर रहे थे,उस दौरान नीरा राडिया से बातचीत की थी। उपेनद्र ने भी स्पष्ट किया है कि उसकी नीरा राडिया से बातचीत हुई है जिसकी जानकारी स्टार न्यूज को उस समय दे दी गयी थी। नीरा राडिया ने दूसरी खेप में जो ताजा टेप जारी हुए हैं उसमें पू्र्व आइएस अधिकारी औऱ 2002 में एयर इंडिया के हेड हुए सुनील अरोड़ा को बता रही है कि उपेन्द्र से उसकी बात हुई है और साथ में ये भी सवाल कर रही है कि क्या उपेन्द्र ने उन्हें फोन किया है क्योंकि वो आधे घंटे की स्टोरी बनाना चाह रहा था। अरोड़ा साहब बता रहे हैं कि उपेन्द्र का एक मिस्ड कॉल तो था। इस बातचीत से ऐसा कुछ भी जाहिर नहीं होता जिससे कि उपेन्द्र राय पर शंका जाहिर की जा सके। लेकिन स्टोरी के मुताबिक तीन चीजें स्पष्ट है- 1. उपेन्द्र राय नीरा राडिया से बतौर मैजिक और क्रॉन एयरलाइंस की चैयरपर्सन होने के नाते बातचीत करना चाह रहे थे. 2. एयर इंडिया के हेड सुनील अरोड़ा के नीरा राडिया से बहुत ही अच्छे संबंध हैं और 3. उपेन्द्र राय ने नीरा राडिया को ये भी बताया कि वो सुनील अरोड़ा से भी बात करेंगे।
28 साल से भी कम उम्र के होने पर उपेन्द्र राय जब उसी सहारा मीडिया में बतौर न्यूज डायरेक्टर बनकर आए जिसमें कभी स्ट्रिंगर हुआ करते तो मीडिया गलियारों में हंगामा मच गया। मीडिया के बड़े-बड़े तुर्रम खां के तोते उड़ गए। हिन्दी-अंग्रेजी की मीडिया साइटों ने उनके नाम के कसीदे पढ़ने शुरु कर दिए। मीडिया का काम करते हुए एमबीए कोर्स करने को लेकर जमकर तारीफें की गयीं और उन्हें औसत मीडियाकर्मियों से अलग बात बताया गया। लेकिन जिनलोगों को चैनलों और मीडिया के भीतर उपर बढ़ने के तरीके महीनी से पता है,उनलोगों ने आपसी बातचीत में कहना शुरु किया- कुछ तो बात है,बॉस। नहीं तो एक से एक धुरंधर पड़े हैं। इसी बीच खबर मिलने लगी कि सहारा एयरलाइंस और जेटलाइट के बीच जो डील हुई है,उसके सूत्रधार उपेन्द्र राय ही हैं और उन्हें न्यूज डायरेक्टर का ये प्रसाद उसी काम के लिए मिला है। ये खबर इतनी गर्म हुई कि देखते ही देखते हमलोगों के बीच उपेन्द्र राय की छवि एकदम से बदल गयी। पत्रकारिता की सीढ़ी चढ़कर उपेन्द्र राय ने कैसे पीआरगिरी शुरु कर दी है,इसके कई किस्से टुकड़ों-टुकड़ों में हमें कई लोगों से सुनने को मिलने लगे।
साफ-सुथरी छविवाले उपेन्द्र राय के लिए पीआरगिरी हॉबी का हिस्सा रहा है। इसलिए अब जब उपेन्द्र राय का नाम आया तो लोगों को हैरानी होने के बजाय इस बात पर हैरानी हुई कि अब तक इनका नाम क्यों नहीं आया। वो कुछ नहीं,बस लोगों से संपर्क बनाने में अपनी खुशी ढूंढते हैं और वो भी बहुत ही ईमानदार तरीके से। बाकी के लोगों की तरह वो 2sk फार्मूले पर काम नहीं करते। मीडिया के लोगों के बीच उपेन्द्र राय की छवि जबरदस्त ढंग से नेटवर्किंग करनेवालों में से रही है। पत्रकारिता करने की उनकी पहचान बहुत पहले ही खत्म हो गयी थी। सहारा में आकर भी उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके दम पर उन्हें पत्रकार के तौर पर जाना जाए। हां,इसके ठीक उलट उन्होंने ऐसा हिसाब-किताब जरुर लगाया कि सालों से बीबीसी में काम करते आए संजीव श्रीवास्तव जिनका की अपना नाम और शोहरत है,उपेन्द्र राय के आगे सहारा से उन्हें जाना पड़ा। लोगों का मानना है कि ये उपेन्द्र राय की पत्रकारिता के बदौलत नहीं बल्कि पीआरगिरी की महिमा है। उनकी इस कला के आगे अच्छे-अच्छे महारथी पानी भरने लग जाएं।
जिस तरह का माहौल बना है,ऐसे में स्टार न्यूज की एयर इंडिया पर बनी स्टोरी सहित उपेन्द्र राय की कवर की गयी उन तमाम स्टोरी पर विश्लेषण की जरुरत है जिसके बिना पर कुछ तथ्य खुलकर सामने आ सकेंगे। मीडिया में आए दिन मीडियाकर्मियों को लेकर जो खबरें आ रही है,उससे एक बात तो साफ है कि मीडिया के भीतर लॉबिइंग का काम सालों से तेजी से चल रहा है,जिसमें हिन्दी मीडिया के लोग भी शामिल है। आशुतोष जैसे काबिल पत्रकार इसका ठिकरा भले ही सिर्फ स्ट्रिंगरों पर फोड़कर बड़े पत्रकारों को महान साबित करने में जुटे हैं लेकिन आशुतोष को ये साफ करना चाहिए कि दिल्ली-नोएडा से स्ट्रिंगरों को विज्ञापन उगाहने के जो दबाव बनाने का काम किया जाता है,उसमें चैनल और स्ट्रिंगरों का कमीशन कितना होता है? जाहिर है खेल किसी एक शख्स का नहीं बल्कि पूरे के पूरे संस्थान के भीतर का है।
नोट- पोस्ट के साथ पटना गांधी मैंदान में लगे पुस्तक मेला में आशुतोष की अमृतवाणी और मेल टुडे की लिंक अटैच्ड है।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/12/ibn7.html?showComment=1292167861522#c1447653695958085436'> 12 दिसंबर 2010 को 9:01 pm बजे
हिन्दी वालों की पहुंच अंग्रेज़ी वालों के बराबर कब से हो गई !
http://taanabaana.blogspot.com/2010/12/ibn7.html?showComment=1292251733343#c2938712047757746211'> 13 दिसंबर 2010 को 8:18 pm बजे
वाकई हिंदी वाले विचित्र छवि ग्रहण करते जा रहे हैं। अच्छा विश्लेषण।