सहारा मीडिया ग्रुप के न्यूज डायरेक्टर उपेन्द्र राय ने 27 दिसंबर 2010 को दिल्ली के ली मीरिडियन होटल में उर्दू चैनल आलमी सहारा के उद्घाटन के मौके पर कहा कि उनकी इच्छा थी कि इस चैनल को एक ऐसी तारीख से जोड़ पाएं जो वाकई एक तारीख हो और मिर्जा गालिब की जयंती से बेहतर कोई दिन हो नहीं सकता था। हमने चैनल पर भी देखा कि मिर्जा गालिब की जयंती से जुड़ी दिखाई खबरें दिखाई जा रही है। इस मौके पर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गालिब की शायरी और हवेली का जिक्र करते हुए कहा कि देखिए मिर्चा गालिब की हवेली कितनी छोटी है लेकिन उन्होंने कितनी बड़ी-बड़ी शायरी की। इस बात को आगे बढ़ाते हुए फेसबुक पर मेरा लिखने का मन हुआ कि- देखिए,गालिब कितनी छोटी सी हवेली में रहा करते थे,खुद ही कहा करते थे कि लोग पूछते हैं गालिब कौन है और आज उनके नाम का इस्तेमाल करते हुए कितने बड़े होटल में,कितने लोगों के बीच एक उर्दू चैनल लांच किया जा रहा है। उपेन्द्र राय ने मिर्जा गालिब की जयंती 27 दिसंबर को चैनल लांच करके लोगों के बीच ये संदेश देने की भरपूर कोशिश की कि उर्दू तहजीब और भाषा को वो कितना सम्मान देते हैं। उर्दू प्रेमियों को ऐसे मीडिया चैनलों के प्रति एक बार फिर प्यार उमड़ जाए। लेकिन मीडिया की शक्ल क्या वाकई इतनी खूबसूरत है कि उससे थोड़ी-बहुत किच-किच के बाद फिर प्यार हो जाए?
हम सबके लिए 27 दिसंबर मिर्जा गालिब की जयंती के तौर पर एक खास दिन है। अगर इस दिन में मीडिया के लिए न्यूज वैल्यू है तो खास दिन है,अगर नहीं है तो वैसा ही है जैसे आए दिन साहित्यकारों,नोबल पुरस्कार विजेताओं या फिर दूसरे संस्कृतिकर्मियों की जयंतियां बिना किसी आहट के गुजर जाती है। उपेन्द्र राय के वक्तव्य पर गौर करें कि वो आलमी सहारा चैनल को किसी ऐतिहासिक दिन से जोड़ना चाहते थे। ये ऐतिहासिक दिन जाहिर तौर पर उर्दू से जुड़े किसी महान शख्स का होता या फिर कोई ऐसी घटना जो कि उर्दू की तहजीब से जुड़ती हो। ये सुनने में कितना अच्छा लगता है कि उपेनद्र राय को यहां की संस्कृति और ऐतिहासिक बोध को लेकर कितनी गहरी चिंता है? लेकिन
आज सुबह जब हमने उपेन्द्र राय की इस महानता और उदात्त विचारों को जानकर उनके बारे में और अधिक जानने की कोशिश की तो गूगल पर सबसे ज्यादा जिन खबरों को लेकर लिंक मिले वो यह कि- 27 दिसंबर को ही उपेन्द्र राय ने स्टार न्यूज को बाय बाय करके सहारा का दामन पकड़ा था। साथ में बीबीसी के पुराने मीडियाकर्मी संजीव श्रीवास्तव भी आए। यानी इन लिंक्स से मिली खबरों के मुताबिक 27 दिसबंर वो तारीख है जिस दिन उपेन्द्र राय ने पहली बार सहारा प्रणाम कहा और ऐसा करते हुए उन्हें कल दो साल हो गए। उनके जीवन का यह सबसे जरुरी तारीख है जहां वो महज 28 साल की उम्र में सहारा मीडिया ग्रप के न्यूज डायरेक्टर बन जाते हैं। उपेन्द्र राय के लिए इससे बड़ा ऐतिहासिक दिन औऱ भला क्या हो सकता है कि जो शख्स कुछ साल पहले तक स्ट्रिंगर की हैसियत से मीडिया की दुनिया में कदम रखता हो,स्टार न्यूज के लिए एयरलाइंस पर स्टोरी करते वक्त कार्पोरेट लॉबिइस्ट नीरा राडिया को इन्टर्न की तरह बात-बात में मैम,मैम कहता हो,उसके हाथ में देश के एक बड़े मीडिया ग्रुप की चाबी है। अब यहां से फिर उपेन्द्र राय के वक्तव्य को जोड़ें कि क्या 27 दिसंबर वाकई कोई तारीख नहीं है? इससे बड़ी तारीख और क्या हो सकती है?
27 दिसंबर की शाम ली मेरिडियन में आलमी सहारा के मौके पर जुटे जो लोग चाय-नाश्ता कर रहे थे,मुन्नवर राणा की शायरी में डूब-उतर रहे थे,गालिब की हवेली के पास उन्हें याद कर रहे थे,पाकिस्ताम से आए मेहमान चैनल पर अपनी बाइट दे रहे थे, उपेन्द्र राय के लिए वो सबके सब उनकी ही कामयाबी का जश्न मना रहे थे। अब यहां पर आकर सोचें तो 27 तारीख उपेन्द्र राय के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण है या फिर मिर्जा गालिब के लिहाज से। अगर उर्दू के इतिहास की नजर से देखें तो इससे बड़ी तारीख खोजने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ सकती है। लेकिन अगर उपेन्द्र राय 27 दिसंबर को पहली बार सहारा प्रणाम न करके किसी औऱ तारीख को किया होता तो क्या मिर्जा गालिब को आलमी सहारा पर यही इज्जत नसीब होती? तब तो उनका ये हक कोई और मार ले जाता। ऐसे में हम ये कहें कि मिर्जा गालिब की सहारा में बस इसलिए लॉटरी लग गयी क्योंकि उपेन्द्र राय ने पहली बार सहारा प्रणाम इसी तारीख को किया। उपरी तौर पर इससे फर्क नहीं पड़ता। आखिर हममें से कितने लोगों को पता है कि उपेन्द्र राय ने ये तारीख अपनी उपलब्धि के ऐतिहासिक दिन के तौर पर तय किया? फिर स्टोरी तो मिर्जा गालिब की ही चली,उपेन्द्र राय की तो नहीं ही।
लेकिन आज प्राइवेट न्यूज चैनलों का जो आलम है,उसे देखते हुए ये अस्वाभाविक और लगभग बेहूदा हरकत की तरह नहीं लगता। मतलब ये कि अगर कल को किसी चैनल ने पंत,महादेवी वर्मा,फिरदौस,मुक्तिबोध जैसे रचनाकारों की जयंतियां मनानी शुरु कर दी तो उस दिन अनिवार्य रुप से चैनल के आकाओं के घर बच्चा पैदा हुआ होगा,उसकी पत्नी के साथ 25 सफल साल गुजर गए होंगे,आका किसी चैनल का मालिक बन गया हो आदि-आदि। राजनीति में तो खोज-खोजकर ऐसी तारीखें निकाली जाती है और उनसे जुड़े लोगों की भावनाओं के साथ खेला जाता है लेकिन मीडिया में भी कल ये जो खेल शुरु हुआ,वो आनेवाले समय में एक बेहूदा ट्रेंड को जन्म देगा। ऐसे में होटल ताज में रैदास जयंती के मौके पर किसी चैनल की शुरुआत होती है,सांगरिला में सरहपा के नाम पर कोई क्षेत्रीय चैनल की शुरुआत होती है तो ऑडिएंस को एकबारगी तो ताज्जुब जरुर होगा कि न्यूज चैनलों को अचानक से इन विभूतियों को याद करने का ख्याल क्यों आया? उन्हें भला क्या पता होगा कि इस दिन किसी चैनल के आका की जिंदगी का सबसे खास दिन है।
मीडिया में तारीखें ऐसी ही बदलती है,मीडिया अपना कलेंडर इसी तरह से बदलता है। सामाजि तौर पर खास तारीखों में अपने मायने पैदा करता है। कन्ज्यूमर ल्चर का एक बड़ा बाजार मीडिया ने इन्हीं तारीखों के भीतर के मायने बदलकर पैदा किए हैं। जो समाज के जिस तबके के लिए खास दिन है,उसमें अपने मतलब के अर्थ भर दो,वो खुश भी हो जाएंगे और तुम्हारा काम भी हो जाएगा। उपेन्द्र राय ने 27 दिसंबर के साथ यही काम किया है।
27 दिसंबर को आलमी सहारा शुरु करके उपेन्द्र राय ने मिर्जा गालिब की आत्मा और उनके मुरीदों के दिल को सुकून नहीं पहुंचाया है बल्कि सहाराश्री के सामने अपनी दमखम को साबित किया है कि उर्दू चैनल के लांच किए जाने में हुजुर जो सबसे बड़े रोड़ा थे अजीज बर्नी,उन्हें देखिए हमने जैसे ही हटाया नहीं कि कुछ महीने बाद ही चैनल आपकी आंखों के सामने है,उसकी फुटेज देशभर में तैरनी शुरु हो गयी है। इसलिए मालिक,आप सहारा के कैलेंडर में 27 दिसबंर की तारीख को मिर्जा गालिब की जयंती से काटकर आलमी सहारा की लांचिंग डेट कर दीजिए ताकि अगले साल से लोग इसी तौर पर याद करें। इधर मैं अपने कैलेंडर में इसमें कुछ और जोड़कर
बदलता हूं।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/12/27.html?showComment=1293520163078#c2114435146674544630'> 28 दिसंबर 2010 को 12:39 pm बजे
आपने तो उपेन्द्र राय जी के इस महान काम को धूल में मिला दिया. असल में तो वे सहाराश्री को तोहफा देना चाहते थे ज्वाइन करने के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में. ताकि आगे भी हंसी-खुशी सहारा प्रणाम चलता रहे. वे तो मेरे लिए एक केस स्टडी बनते जा रहे हैं.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/12/27.html?showComment=1293534171770#c1308404142271634694'> 28 दिसंबर 2010 को 4:32 pm बजे
नमस्कार !
२७ दिसम्बर को ग़ालिब कि जयंती थी ये कितनो को याद होगा , शायद हम सब इसका अंदाजा लगा सकते है , शायद उर्दू अदब से जुड़े फनकार भी याद कम रखते होगे .मगर ये सब विडम्बना ही है कि विभूतियों को हम याद नहीं रख पा रहे है , मगर दिल को झूठी तसल्ली देने के लिए ये हम कह सकते है कि शायद ग़ालिब को खिराजे अकीदत दी है , खैर .... '' आलमी सहारा ;; को सलाम . वो फले फूले ये दुआ करते है .
आमीन !