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ये मीडिया में करप्शन के उजागर होने और बड़े-बड़े आयकन के ध्वस्त हो जाने का दौर चल रहा है। इस कड़ी में अब प्रसार भारती के सीइओ बीएस लाली भी शामिल हो गए हैं। बीएस लाली पर आरोप है कि उन्होंने निजी प्रसारण कपंनियों को फायदा पहुंचाने का काम किया है जिससे प्रसार भारती को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है। प्रसार भारती के भीतर उनकी मनमर्जी इस तरह से बनी रही कि उन्होंने प्रावधानों को ताक पर रखकर निजी स्पोर्ट्स चैनलों से सांठ-गांठ कर उन्हें फायदा पहुंचाया है। बीएस लाली का कोई एक कारनामा नहीं है जिसे कि बताया जाए,उनके कार्यकाल में दबंगई की लंबी सूची है जिसे देखकर हैरानी होती है कि सरकार ने अब जाकर क्यों कारवायी करने का मन बनाया है? यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। पहले राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की तरफ से बीएस लाली के खिलाफ जांच करने की सिग्नल मिलने के बाद शुक्रवार को सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी की तरफ से भी हरी झंडी दिखा दी गयी है। दो-तीन दिनों में ही साफ हो जाएगा कि लाली का निलंबन होना है कि नहीं। उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में जाएगा।

 पब्लिक ब्राडकास्टिंग में पैसे के हेर-फेर को लेकर एनडीटीवी( प्रणय राय) के बाद ये दूसरा मौका है जब मामला कोर्ट तक जाने की स्थिति तक पहुंच गया है। एक प्रोडक्शन हाउस के तौर पर जब NDTV  दि वर्ल्ड दिस वीक बनाया करता औऱ लाइसेंस फीस देकर प्रसारित करता,उस दौरान भी पब्लिक ब्राडकास्टिंग के तौर पर दूरदर्शन को 47.8 मिलियन रुपये का नुकसान हुआ था और इसी तरह फायदा पहुंचाने का मामला बना था। तब दूरदर्शन के भीतर गठित कमेटी ने पूरे मामले को सीबीआई जांच के लिए सौंपने की बात की थी। तब जांच एजेंसी ने 9 जनवरी 1998 को दूरदर्शन के कुछ अधिकारियों औऱ प्रणय राय के खिलाफ मामला दर्ज करायी थी।( 43 वां रिपोर्ट, पब्लिक अकाउंटस कमेटी(2002-03), नई दिल्ली,लोकसभा सचिवालय,मार्च 2003 पे.-1-2)  बीएस लाली का दावा है कि वो सुप्रीम कोट में अपने को दूध का धुला साबित कर पाएंगे क्योंकि जो कुछ भी आरोप लगाए गए हैं,वो सबके सब कुछ बाहरी प्रभावी ताकतों की ओर से लगाए गए हैं।

अखबारी रिपोर्टों और प्रसार भारती से जुड़े लोगों की मानें तो बीएस लाली की पहचान शुरु से ही एक निरंकुश सीइओ के तौर पर रही है। प्रसार भारती को हमेशा अपने इशारे पर न केवल नचाने की कोशिश की है बल्कि जब जैसा मौका मिला निजी कंपनियों,चैनलों को फायदा पहुंचाने के फेर में उटपटांग और पब्लिक ब्राडकास्टिंग को नुकसान पहुंचानेवाले फैसले लिए हैं। अभी हाल ही में प्रसार भारती और आकाशवाणी ने 1 नबम्वर से सबसे लोकप्रिय एफएम गोल्ड की फ्रीक्वेंसी आनन-फानन में बदलने के फैसले लिए गए तो इस फैसले से अपना पल्ला झाड़ते हुए लाली ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। प्रसार भारती बोर्ड की अध्यक्ष मृणाल पांडे ने तो यहां तक कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी मीडिया के जरिए हुई। बाद में मेनस्ट्रीम मीडिया में इस बात का विरोध किए जाने के बाद एफएम गोल्ड की फ्रीक्वेंसी वहीं बनी रहने दी गयी लेकिन ऐसा करके एक बहुत बड़े स्तर पर हेरा-फेरी का होनेवाले धंधे पर पर्दा डालने का काम किया गया। दरअसल ये फ्रीक्वेंसी बीएजी फिल्मस के रेडियो चैनल रेडियो धमाल को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा था।
इसके साथ ही जिस फ्रीक्वेंसी 100.1 पर एफएम गोल्ड को शिफ्ट किया जा रहा था वो दरअसल राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े प्रसारण के लिए खोला गया था। फ्रीक्वेंसी बदलते समय तर्क दिया गया था कि ये ज्यादा बेहतर फ्रीक्वेंसी है लेकिन 6 नबम्वर को इस चैनल को बंद कर दिया गया। प्रसार भारती और आकाशवाणी से जुड़े लोगों के मुताबिक इस चैनल को खोलने में लाखों रुपये खर्च किए गए और इसके लिए मुंबई से कुछ चहेते लोग महीने भर तक होटल में आकर मौज करते रहे। आगे प्रसार भारती की तरफ से इस चैनल के बंद किए जाने को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया।

जिस राष्ट्रमंडल खेलों में करोड़ों रुपये के घोटाले की बात की जा रही है,उसमें अगर प्रसारण और प्रसार भारती के भीतर हुई दलाली और गड़बड़ियों को शामिल किया जाए तो बहुत संभव है कि उसमें बीएस लाली का भी नाम शामिल हो। वैसे भी लाली ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्देशों को ताक पर रखते हुए अपनी चहेती कंपनी सिस लाइव को 246 करोड़ रुपये का प्रसारण अधिकार देने का काम किया है। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान जिस मनमानी तरीके से कार्यक्रमों के बीच विज्ञापन ठूंसे गए और प्रति 10 सेकंड के विज्ञापन की कीमत को 60 हजार से ढाई लाख तक ले जाने का काम किया,लाली और प्रसार भारती के सामने इस बात का तर्क नहीं है कि 100 से 200 करोड़ तक की कमाई का दावा करने के बावजूद अगर 58.19 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ तो टार्गेट से आधी से भी कम और ओवरलोडेड विज्ञापनों के पीछे की क्या वजह रही है?

प्रसार भारती पर कॉन्ट्रेक्ट के स्तर पर काम कराए जाने और निजी कंपनियों के साथ समझौते कराने के मामले में भी लगातार आरोप लगते रहे हैं। स्पोर्ट्स चैनल इएसपीएन को फायदा पहुंचाने के लिए और इक्सक्लूसिव कवरेज के लिए दूरदर्शन ने अधिकार रहते हुए भी T-20 का प्रसारण नहीं किया। इसके अलावे लाली ने वकीलों को वाजिव रेट से कहीं ज्यादा भुगतान कराने का काम किया है। सेवंती निनन ने अपने लेख MEDIA MATTERS: CAN BE AFFORD PRASAR BHARTI? में इन सारी घटनाओं की विस्तार से चर्चा की है और नोट लगाकर यह भी लिखा कि जब इस मामले में बीएस लाली से बाचतीत करने की कोशिश की तो उन्होंने कोई रिस्पांस नहीं दिया। बीएस लाली के निरंकुश होने के किस्से कापरनिकस मार्ग,मंडी हाउस और संसद मार्ग आकाशवाणी में चाय पीते हुए लोग रोजमर्रा की रुटीन के तहत किया करते हैं।

मौजूदा दौर में मीडिया के भीतर एक के बाद एक आयकन और मिथक तेजी से जिस तरह ध्वस्त हो रहे हैं,ऐसे में पब्लिक ब्राडकास्टिंग से जुड़े सबसे बड़े अधिकारी पर पैसे के हेर-फेर और अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगना,कहीं से भी किसी तरह उम्मीद के नहीं बचे रहने की कहानी कहता है। अभी प्रणय राय और एनडीटी के महान होने का मिथक टूटा है, बरखा दत्त और वीर सांघवी सवालों के घेरे में हैं,राजदीप सरदेसाई के मीडिया के पक्ष में दिए गए सारे तर्क बंडलबाजी से ज्यादा कुछ नहीं लगता,ऐसे में पब्लिक ब्राडकास्टिंग के भीतर की सडांध का उघड़कर  आना मीडिया की सबसे बदतक स्थिति को सामने लाकर रख देता है। लेकिन इन सबके बीच जरुरी सवाल है कि क्या बीएस लाली पर होनेवाली कारवायी बलि का बकरा बनाए जाने या फिर एक को निबटाओ,बाकी मामला अपने आप शांत हो जाएगा कि रणनीति है या फिर प्रसार भारती और आकाशवाणी के भीतर और भी कई मगरमच्छ तैर रहे हैं जिनका बेनकाब होना जरुरी है।
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1 Response to 'करोड़ों का नुकसान पहुंचाने में फंसे प्रसारी भारती के सीइओ'
  1. कडुवासच
    http://taanabaana.blogspot.com/2010/12/blog-post_10.html?showComment=1292065712682#c6146540131264173845'> 11 दिसंबर 2010 को 4:38 pm बजे

    ... benaqaab hone ke saath saath kuchhek ka jail jaanaa bhee jaruree hai !!!

     

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