ब्लॉगिंग करते हुए,देखते-देखते आज तीन साल हो गए। आज ही के दिन चैनल की नौकरी छोड़कर वापस रिसर्च की दुनिया में लौटा था. दिनभर की व्यस्तता,लगभग डबल शिफ्ट की नौकरी करते रहने के बाद अचानक से अपने पास बहुत समय मिलने लग गया था। कहां तो अमूमन साढ़े चार बजे उठकर साढे छह बजे तक ब्रेकफास्ट और लंच भी तैयार कर लेता,सबसे ज्यादा जो कि अब विश्वास नहीं होता,नहा भी लेता,आज की सुबह अपने पास समय ही समय..। जागने के तीन घंटे बाद तक इधर-उधर करने के बाद सोचा कि किया क्या जाए? लिखना किसी हाल में छोड़ना नहीं चाहता था। फिर अविनाश का कहा याद आया,कभी मोहल्ला देखिएगा। सदन सर की सलाह भी कि कभी कुछ पोस्ट भी कर दिया करो दीवान पर। सदन सर ने ये सलाह मुझे तब दी थी जब मैं सीएसडीएस-सराय की स्टूडेंट फैलोशिप के तहत न्यूज चैनलों की भाषिक संस्कृति पर रिसर्च कर रहा था। आज वो सोच रहे होंगे कि मैंने किस पागल को ये सलाह दे दी थी लिखने की।.बहरहाल,डेढ़-दो घंटे की माथापच्ची के बाद लिखने और दिखने लायक ब्लॉग बन गया,फिर मैं शुरु भी हो गया। नौकरी छूटी, पटेलनगर का इलाका छूटा। डीयू कैंपस में एक बार फिर रहना होने लग गया। हॉस्टल के कई मसले,रिसर्च से जुड़ी कई बातें,टेलीविजन के कई मुद्दे। एक बार लिखने लगा तो फिर लिखने के बहाने देश की जनसंख्या की गति से पैदा होने लग गए। लिखना नियमित होने लगा। शुरुआत में तो नए अफेयर में पड़े आशिक की तरह कमिटेड रहा। फिर कुछ-कुछ लफड़े होने लगे। फिर गाड़ी पटरी पर आती,फिर उतरती और इस धकमपेल में मैंने 503 पोस्ट लिख डाले। कुछ दूसरों के लिए भी लिखे।
इस बीच कई लोगों ने न लिखने के,कुछ बदलकर लिखने के,कुछ उनके पक्ष में लिखने के दबाव बनाए। शुरु से जो नींबू निचोड़ शैली में लिखना शुरु किया,आगे चलकर लगने लगा कि ऐसा लिखना बहुत दिनों तक संभव न हो सकेगा। मैंने अपने ब्लॉग की दूसरी एनिवर्सरी के मौके पर जो पोस्ट लिखी उसमें इस बात का जिक्र भी किया कि चाहे कुछ भी हो जाए,लेकिन इसी अंदाज में लिखना जारी रहेगा। जिस दिन लगने लगा कि ऐसा करना बिल्कुल भी संभव नहीं है,उस दिन घोषणा करके ब्लॉगिंग बंद कर दूंगा। ऐसा नहीं था कि मेरे भीतर राजा हरीशचन्द्र की आत्मा घुस आयी थी या फिर दुनिया का सबसे बड़ा साध मैं हूं। लेकिन भीतर से लगातार ये महसूस करता हूं मैं जिस बात को मौज में आकर या फिर भावुक होकर लिख देता हूं,लोगों का उस पर भरोसा होता है और लोग हमसे ये उम्मीद बनाए रखते हैं कि मैं इसी अंदाज में,बिना किसी लागलपेट के लिखता रहूं। कोशिश तो बनी है लेकिन यकीन मानिए बड़े -बड़े सेमिनारों में सरोकारी पत्रकारिता और प्रतिबद्ध लेखन का रोना वो अंग्रेजी और बाजार के नाम पर रोते हैं,ब्लॉगिंग में ये दोनों ही समस्या नहीं है । जो जिस अंदाज में,जिस जार्गन के साथ चाहे लिख सकता है,पैसे के लिहाज से अबतक फ्री है लेकिन लोग ये हिन्दी समाज नहीं चाहता कि आप चीजों को इस रुप में लिखें। दरअसल अपने को नंगा होता देख वो बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसलिए कई बार भाषा का,कई बार इंडिया टीवी हो जाने का,कई बार मोहल्लालाइव के नक्शे कदम पर चलने का आरोप लगाया। हमने अपने भीतर सुधार तो नहीं किया क्योंकि कभी इसकी जरुरत महसूस नहीं हुई। लेकिन सरोकारी पत्रकारिता और मानवीयता का नगाड़ा पीटनेवाले ऐेसे दर्जनों लोगों के चेहरे आंखों के सामने बेपर्द हो गए। वो इसके नाम पर अपनी दूकान चलाना चाहते हैं,सचमुच उनका बदलाव से कोई लेना-देना नहीं है। खैर,
तीन साल से ब्लॉगिंग करते हुए मैंने इसे कहां तक पहुंचाया इसका आकलन कभी न कभी आप सब करेंगे। लेकिन इस आए दिन की लिक्खाड़ी और ब्लॉगिंग ने लिखने को लत में और जिंदगी को कैन डू इट में बदल दिया। समय के दबाव में चैनल के भीतर स्क्रिप्ट लिखने की आदत और हॉस्टल में सिर्फ आधे घंटे के लिए कम्प्यूटर मिलने की मजबूरी ने टाइपिंग स्पीड बढ़ा दी। इसलिए मेरी पोस्ट की लंबाई इस आधे घंटे से तय होती। जितनी लिख सकते हो इस बीच,सब लिख दो टाइप। जिंदगी का जो फलसफा हम रिसर्च करते हुए, लोगों से मिलकर भी शायद सीख पाते भी या नहीं,अकेले कमरे में खट-खट कीबोर्ड पर कुछ-कुछ लिखते रहने से सिखता रहा। छोटी-छोटी बातों का असर कम होने लगा। हममे पॉजिटिव बेहयापन आने लग गया। पहले कोई कमेंट कर जाता-ये विनीत एक नंबर का चूतिया मालूम पड़ता है,अबे विनीत तुम क्या किसी चैनल के बारे में लिखोगे,तुम्हारी औकात तो इन्टर्न की भी नहीं है। जल्दीबाजी में गरिआने के फेर में कहीं से मीडिया कोर्स करने की सलाह तक दे डालते तो बुरी तरह परेशान हो जाता। ये जो अपने भीतर की खुशफहमी होती है कि आपको सब अच्छा-अच्छा ही कहेगा। इस दौरान कई नए लोगों से रिश्ते बने,बनते से लगे,कई लोगों से बनकर टूट गए। छोटे-छोटे मसले पर उनके स्वार्थ खुलकर बजबजाने लग गए। मैं तो कहता हूं जिसकी लाइफ में आत्मविश्वास की कमी है,लोगों को जज करने की क्षमता नहीं,वो ब्लॉगिंग जरुर करें।
पहले मैंने ब्लॉग को गाहे-बगाहे नाम से शुरु किया,जिसका लिंक तानाबाना था, कल तक उसका वही नाम था। लेकिन आज मैंने उसे बदलकर हुंकार कर दिया। लिंक का नाम भी वही कर दिया। अब लिखना न तो गाहे बगाहे का मामला रह गया है और न ही ताना-बाना की मासूमियत में खालिस नास्टॉल्जिक ही इसलिए ऐसा करना जरुरी समझा। फिर हां जी सर कल्चर के खिलाफ लाइन को हुंकार बेहतर तरीके से सपोर्ट करता है। इच्छा तो ये भी थी कि इसे और एडवांस शक्ल दी जाए। एक दोस्त के उकसावे और लगातार सहयोग ने इसमें गति भी दी लेकिन बीच की स्थितियों की किच-किच में हम फिर से वहीं आ गए। एक लेखक के चीजों को अपनी समझ,पसंद,सौन्दर्य के नजरिए के हिसाब से तकनीक को नहीं ढाल पाने की छटपटाहज आज महसूस करता हूं।
आप सब मुझे पढ़ते हैं,मेरे कुछ दिन न लिखने पर मेल और फोन के जरिए आशंका जाहिर करते हैं कि मैं कहीं बीमार तो नहीं। यही बात हमसे अक्सर लिखवा जाती है। इसे आप दीहाड़ी की हाजिरी समझे या वेवजह की बकर-बकर लेकिन मैं समझता हूं जारी ही रहे तो अच्छा रहेगा। बस आज तीन साल होने पर मुझे वो कई सारे ब्लॉगर याद आ रहे हैं जिनसे लगातार उत्थम-गुत्थी होती रहे,फोन पर तक भिड़ते रहे,अब वो अपने-अपने धंधे-पानी में लग गए हैं,बच्चे को नियमित टीका दिलाने ले जाने लगे हैं या फिर साइलंट रीडर हो रहे हैं। वो फिर से पुराने तेवर में आ जाएं तो मजा आ जाए।
आज के दिन ब्लॉगवाणी को बहुत मिस कर रहा हूं। मेरी बड़ी इच्छा थी कि ज्ञानोदय में ब्लॉग पर जो मेरा कॉलम शुरु हुआ था,जिसे मैंने नैतिक आधार पर जारी रखना बेहतर नहीं समझा,वहां पूरी की पूरी स्टोरी लिखूं। यही पर आकर हमारी ब्लॉग की सक्रियता पर एक सवालिया निशान खड़ा हो जाता है कि तीन-चार महीने तो हो गए हमने इस एग्रीगेटर को फिर से खड़ी करने की न तो कोशिश की और न ही इसकी जरुरत पर गंभीरता से कोई चर्चा ही की।..ये सब याद आता है,अपने वर्थडे को जैसे-तैस पिछले 15-16 सालों से किसी तरह कट जानेवाले दिन की तरह गुजारता आया लेकिन ब्लॉग शुरु करनेवाले दिन को लेकर कुछ ज्यादा ही इमोशनल हो जाता हूं।.
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285131536763#c7233796015647436884'> 22 सितंबर 2010 को 10:28 am बजे
तीन साल पूरे होने पर मुबारका सर......आप लिखते रहो चाहें जैसे भी हो....आपका लिखा हमें हौसला देता है कोई तो है जो बिना लग लपेटे के लिखता है ...........गाहे बगाहे से हुनकर तक के सफ़र में करीब डेढ़ दो साल से हम भी आपका ब्लॉग पढ़ते आरहे हैं और सच कहूँ तो इसी से ब्लॉग पढने की लत हमें लगी...अब आपने लत लगा दी है ...नशा चड़ा दिया है तो.....आगे की डोज का भी आप ही को इन्तेजाम करना होगा....तो ब्लोगिंग जारी रहे....जी हाँ जी कल्चर के खिलाफ.....एक बार फिर से मुबारका तीन साला के इस सफरनामें पर.....मुबारका......
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285133485178#c6497547916593744118'> 22 सितंबर 2010 को 11:01 am बजे
विनीत जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं। टिप्पणी तो हमेशा संभव नहीं हो पाती, लेकिन अक्सर आपके लिखे में झांक जाते हैं। इसे सतत जारी रखिएगा। तीसरी सालगिरह पर हमारी हार्दिक बधाई।
ब्लॉगवाणी की कमी बहुत खलती है। दिल्ली या मुंबई में रहनेवाले ब्लॉगर इसे फिर से चालू कराने की दिशा में शायद सार्थक कोशिश कर सकते हैं।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285136571424#c3021829049355142249'> 22 सितंबर 2010 को 11:52 am बजे
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
देसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285140539757#c3330506956962125488'> 22 सितंबर 2010 को 12:58 pm बजे
बधाई हो विनीत जी।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
व्यंग्य और व्यंग्यलोक
On Facebook
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285142008441#c2930027257804779313'> 22 सितंबर 2010 को 1:23 pm बजे
लगातार दो साल से पढ़ रहा हूँ ....मन आया तो टीप दिया ....नहीं तो साइलेंट ही सही |
बधाई ....तीन साल की ..और अगले तीस की !
" हुंकार " अच्छा लग रहा है .......! यूनीक !!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285142189824#c1861373023675978327'> 22 सितंबर 2010 को 1:26 pm बजे
भड़ास 4 मीडिया >> मोहल्ला >> विस्फोट >> मीडिया खबर >>....और अब आ गया
हुंकार ?
बधाई हो बधाई !
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285151135467#c8489827533534665997'> 22 सितंबर 2010 को 3:55 pm बजे
आपको तीन साल अनवरत लिखते रहने की बधाई। आपका यूआरएल अब डाट काम शो कर रहा है,अतः ब्लाग से वेबसाइट में रूपांतरण के लिए शुभकामनाएं।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285159503306#c7823552313056657726'> 22 सितंबर 2010 को 6:15 pm बजे
बधाई व शुभकामनाएँ
प्रगति के पथ पर बढ़ते रहें
बरास्ते बज़्ज़ यहाँ पहुँचा
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285162214020#c5105266632620823511'> 22 सितंबर 2010 को 7:00 pm बजे
priy vineet, aapka lekhan ek zaroori hastakshep hai...wah, kai dafa aisa chashma ban jata hai jisse kuch chizon ko saaf dekhne me madad milti hai...lagatar likhna apne aap men gun ho na ho,yah zaroor hai ki bahut kam logon ne lagatar likhkar itna dhyanakarshan aur dilchaspi paida ki hai...aap sakriya hain, yah yuwa lekhan ke varnpat ko thoda aur samriddh karta hai...skriyata barkarar rakhen...shubhkamnayen
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285162451286#c5610076578643495028'> 22 सितंबर 2010 को 7:04 pm बजे
बधाई हो बधाई !
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285164445367#c6563977733617616268'> 22 सितंबर 2010 को 7:37 pm बजे
बधाई
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285165429270#c7891429586639645915'> 22 सितंबर 2010 को 7:53 pm बजे
pehli badhai 'gahe bagahe'ko HUNKAR ke liye..dusri use janamdin ki..tisri aapko aise likhne ke liye..baki safar un hi chalta rahe iskeliye shubhkamanayen..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285166818598#c6725552134782080780'> 22 सितंबर 2010 को 8:16 pm बजे
badhayee ho vineet ji...lage raho
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285173505422#c1710622845130469342'> 22 सितंबर 2010 को 10:08 pm बजे
शुभकामनाएं
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285173808561#c3687375606261865204'> 22 सितंबर 2010 को 10:13 pm बजे
प्रवीर हो जयी बनो
बढ़े चलो,बढ़े चलो...(जयशंकर प्रसाद)
बधाई.
यह ऐसा ही चलता रहे...
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285179148824#c1978291124691682242'> 22 सितंबर 2010 को 11:42 pm बजे
ये पाजिटिव बेहयापन बना रहेगा यह आशा है।
ब्लॉगिंग बर्थडे मुबारक।
तुमको पढ़ना अच्छा लगता है। बहुत अच्छा।
नाम हुंकार सही है लेकिन ताना-बाना मुझे अच्छा लगता है। आगे लिखते रहने और पाजीटिव बने रहने की मंगलकामनायें।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285185166468#c5501060244913659419'> 23 सितंबर 2010 को 1:22 am बजे
विनीत जी ,
सर्वप्रथम तो बधाई स्वीकारिये !
मैंने एक सज्जन से एक बार एक सवाल किया था की सामाजिक विषयों पर रबीश जी को पढ़ता हूँ , इसके अतिरिक्त भी कोई बेहतर ब्लॉग हो तो बताइए | सज्जन का जवाब था ''गाहे बगाहे ( विनीत कुमार ) '' | और तब से आपका ब्लॉग देखता रहा | संयोग रहा कि एक बार मुलाक़ात भी हुई | शायद ही कभी टिप्पणी की हो मैंने पर आपके ब्लॉग की इस उपयोगिता को कभी भी नजरअंदाज नहीं कर सका हूँ कि मुझ से ठेठ साहित्यिक दुनिया में रहने वाले ( आपके शब्दों में एक हद तक 'कवियाये' से ) मानुस को आपके ब्लॉग के जरिये समय - समाज के बारे में जानने का सुन्दर मौक़ा मिलता रहा है ! इसके लिए आप सदैव बधाई के पात्र हैं !
तीन साल आप ठहरे रहे , यह अपने आप में मामूली बात नहीं है | एक साल में ही मुझे लगा है कि ब्लागरी खेलुवार नहीं है | आप ब्लागरी को गंभीर कर्म के रूप में लेते हैं यह प्रीतिकर है | सहमतियाँ असहमतियां होती ही रहती हैं , विरोध - विकास में जरूरी सी ! पर यह हार्दिक शुभकामना है कि आप जितना जमे रहे और जिस ऊर्जा/सक्रियता के साथ जमे रहे , भविष्य में इसके मात्रात्मक ही नहीं बल्कि गुणात्मक विस्तार को बनाए रखें ! आभार !
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285185820355#c8845012470196488372'> 23 सितंबर 2010 को 1:33 am बजे
भाई विनीत ,
आपके गाहे बगाहे से यहाँ तक का सफ़र याद करूँ तो सबसे पहले यही कहूंगा की यह एक तेवर की अंगड़ाई है, जो की आपका ब्लॉग लेखन है.
हाँ आपके शुरूआती दौर से अब तक के ब्लॉग लेखन में मैंने यही महसूस किया है.
शुरूआती दौर से अब तक कोशिश यही की है कि आपके हर ब्लॉग पोस्ट को पढूं , भले ही कमेन्ट न करूँ, कई बार तो इकट्ठे दस दिन का आपका लिखा एक साथ पढ़ा. इसलिए की
आपका लिखा हुआ पढना अच्छा लगता है.
जो कोई भी मुझसे हिंदी के पठनीय ब्लाग्स के बारे में जानकारी मांगता है तो उस सूची में आपका ब्लॉग सर्वोपरि रहता है.
उपरवाला आपके इस तेवर को बनाए रखे. भले ही आपका सफर तानाबाना/ गाहे-बगाहे से लेकर अब इस हुंकार तक आ पहुंचा है.
कलेवर भले ही बदले लेकिन तेवर ना बदले, इसी उम्मीद के साथ आपको ब्लागिंग में ३ साल पूरे होने पर बधाई और शुभकामनयें...
जारी रहे यह हुंकार....यथा, सर्वदा ......
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285206196023#c3546513733331727043'> 23 सितंबर 2010 को 7:13 am बजे
अक्सर नब्भे प्रतिशत आपसे सहमत रहता हूँ ओर ये जानकार तसल्ली भी मिलती है के हिंदी मीडिया में अविनाश ,प्रसून वाजपायी ओर आप जैसे लोग है जिनके पास एक सोच तो है है ओर जिन्होंने काफी कुछ पढ़ा लिखा भी है .....पिछले दिनों राजकिशोर के बाबत जो आपने असहमति मोहल्ला में जताई थी......ईमानदारी से .....उससे लगा इस नयी पीढ़ी में भी कुछ लोग है जो महज़ लफ्फाजी नहीं करते है .या पुराने एस्टेब्लिश लोगो की सभी बातो को सिर्फ पोलिटिकली करेक्ट होने के लिए अपनी मौन सहमति नहीं देते है .....
keep it up.......
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285236419850#c5029777140689619409'> 23 सितंबर 2010 को 3:36 pm बजे
karib 2 saal pahle aapke blog par aaya tha to aapki profile info ne khush kar diya, use padhkar hi lag gaya tha ki ye original banda hai. lagatar likhte rahiye. ho sakta hai ki aapke likhe se har baar maine sahmati na jatai ho lekin ye mahaz vaicharik matbhed hain. aasha karta hun ki aapne unhein gambheerta se nahi liya hoga. badhai.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285241633584#c8486810383847716434'> 23 सितंबर 2010 को 5:03 pm बजे
वधाई हो भाई....
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285244808673#c7811443944498382507'> 23 सितंबर 2010 को 5:56 pm बजे
तीन वर्ष की यात्रा पूरी करने के लिए बधाई.सफ़र जारी रहे.
ब्लॉगवाणी की कमी तो हम सबको खल रही है.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285246964861#c2936730022560726031'> 23 सितंबर 2010 को 6:32 pm बजे
बहुत बहुत बधाई। गाहे बगाहे मैं भी आपको पढ़ती रही हूँ। आपका लिखा पसन्द है। आशा है कि भविष्य में भी लिखते रहेंगे।
ब्लॉगवाणी को तो मैं भी बहुत याद करती हूँ किन्तु मनुष्य तो बिन हाथ पैर आँख के भी जीना सीख लेता है। यदि ब्लॉगवाणी अपने चाहने वालों की सुनने को तैयार नहीं तो यूँ ही सही।
घुघूती बासूती
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285301483062#c8112856730217516415'> 24 सितंबर 2010 को 9:41 am बजे
बहुत बहुत बधाई हो विनीत!
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285320419429#c3239597803386025303'> 24 सितंबर 2010 को 2:56 pm बजे
vinit babua .... tuee t' tarun huw .... tin ka ...
humme t' 103 tak ..... mangalkamna deva...
jekar bhaw aur bhasha teekha hoi ...... log kahela..okar dil bara saph hoi...
tohra se bar hain ... t' ashirvad dai det hain ...
jaroorat hoi ... t' le liha....
mast raha .... babua.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285616840271#c9038013716086944901'> 28 सितंबर 2010 को 1:17 am बजे
तीन साल पूरे होने पर बधाई लेकिन मुझे तो नही लग रहा कि आप ज़्यादा इमोशनल हो गये हैं । ? !
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1285776214003#c5306985916816747679'> 29 सितंबर 2010 को 9:33 pm बजे
बधाई..,......
http://taanabaana.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html?showComment=1286786578386#c8009322604387490405'> 11 अक्तूबर 2010 को 2:12 pm बजे
:) jeetey rahiye, likhte rahiye!