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मूलतः प्रकाशित मोहल्लाlive


पाठकों का रचना से सीधा रिश्ता कायम हो, इस क्रम में यात्रा बुक्स और पेंग्विन इंडिया का प्रयोग सफल रहा। दिल्ली की कंपकंपा देनेवाली ठंड में भी इंडिया हैबिटेट सेंटर का गुलमोहर सभागार लगभग भरा हो तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि रचना पाठ को लेकर पाठक अब भी कितने उत्‍सुक हैं। एक प्रकाशक की हैसियत से यात्रा बुक्स और पेंग्विन इंडिया ने इस बात की पहल की है कि रचना और पाठक के बीच एक स्वाभाविक संबंध विकसित हो। एक ऐसा संबंध, जो कि अख़बारों की फॉर्मूलाबद्ध समीक्षाओं और आलोचकों की इजारेदारी के बीच विकल्प के तौर पर काम कर सके। यह संबंध पाठक की गरिमा को बनाये रखे, उसे विज्ञापनदार समीक्षा पढ़ कर ग्राहक बनने पर मजबूर न करे। इस दिशा में यात्रा बुक्स और पेंग्विन इंडिया ने “कुछ नया कुछ पुराना” नाम से साभिनय पाठ सीरीज़ की शुरुआत की है। इस प्रकाशन संस्थान की योजना है कि प्रत्येक महीने, नहीं तो दो महीने में कम से कम एक बार हिंदी-उर्दू और दूसरी भाषाओं से हिंदी में अनूदित रचनाओं का साभिनय पाठ हो और उस आधार पर पाठक रचना से जुड़ सके।

इस सीरीज़ की शुरुआत होने से पहले ही पेंग्विन हिंदी के संपादक एसएस निरुपम ने मंच संचालक की भूमिका निभाते हुए कहा कि आलम ये है कि किताबें पाठकों की बाट जोहती रह जाती हैं। इस तरह के कार्यक्रम किताबों के इस इंतज़ार को ख़त्म करने की दिशा में काम करेंगे। साभिनय पाठ की शुरुआत युवा रंगकर्मी सुमन वैद्य ने की। सुमन वैद्य जितना एक रंगकर्मी के तौर पर हमें प्रभावित करते आये हैं, रचनाओं का पाठ करते हुए उससे रत्तीभर भी कम प्रभावित नहीं करते। कहानियों का पाठ करते वक्त शब्दों के उतार-चढ़ाव के साथ जो भाव-योजना बनती है, वो रेडियो नाटक जैसा असर पैदा करती है। सभागार में बैठे हमें कई बार छुटपन में सुने रेडियो के हवामहल कार्यक्रम की याद दिला गया। इसके साथ ही पाठ के मिज़ाज के हिसाब से चेहरे पर बनते-बिगड़ते भाव, हाथों और शरीर की भंगिमाएं पाठ का विजुअल एडिशन तैयार करती है। मोहल्लाlive पर इस कार्यक्रम की ख़बर को लेकर मुंबई की रंगकर्मी विभा रानी साहित्य को विजुअल कम्युनिकेशन फार्म में लाने की बात करती हैं। सुमन वैद्य के साभिनय पाठ ने उसे पूरा किया। ऐसा होने से एक तो रचना से आस्वाद के स्तर का जुड़ाव बनता है, वहीं दूसरी ओर इस बात की भी परख हो जाती है कि किसी भी रचना में माध्यम रूपांतरण के बाद आस्वाद पैदा करने की ताकत कितनी है? भविष्य में ये प्रयोग किसी भी रचना को लेकर सीरियल या फिल्म बनाने के पहले की प्रक्रिया के तौर पर आजमाये जा सकते हैं।

कुछ नया कुछ पुराना सीरीज़ के अंतर्गत कुल पांच रचनाओं के अंशों का पाठ किया गया, जिसमें आख़‍री मुग़ल को छोड़कर बाकी चार का पाठ सुमन वैद्य ने किया। आख़री मुग़ल का पाठ ज़किया ज़हीर ने किया। आख़‍री मुग़ल दरअसल विलियम डेलरिंपल की अंग्रेज़ी में लिखी द लास्ट मुग़ल का हिंदी रूपांतर है। खुद ज़किया ही इसे हिंदी और उर्दू में रूपांतरित कर रही हैं। राजी सेठ की रचना मार्था का देश के अंश को थोड़ा कम करके यदि ज़िदगी ज़िंदादिली का नाम है (ज़किया ज़हीर) संकलन से कुछ और रचनाओं का पाठ किया जाता, तो ऑडिएंस ज़्यादा बेहतर तरीके से जुड़ पाती। इस पूरे साभिनय पाठ में सबसे प्रभावी रचना रही चित्रा मुदगल की बच्चों पर केंद्रित कहानियों के संकलन से पढ़ी गयी लघुकथा – दूध। इस रचना ने मुश्किल से दो से तीन मिनट का समय लिया, लेकिन सबसे ज़्यादा असर पैदा किया।

एक औसत दर्जे के भारतीय परिवार में दूध घर के मर्द पीते हैं। स्त्री या लड़की का काम है दूध के गुनगुने गिलास को सावधानीपूर्वक उन तक पहुंचाना। एक दिन लड़की चोरी से दूध पीती है। उसकी मां उस पर बरसती है – दूध पी रही थी कमीनी?
लड़की का सवाल होता है – एक बात पूछूं मां? मैं जब जनमी तो दूध उतरा था तेरी छातियों में?
हां… खूब। पर… पर तू कहना क्या चाहती है?
तब भी मेरे हिस्से का दूध क्या तूने घर के मर्दों को पिला दिया था?

और कहानी ख़त्म हो जाती है। इस आधार पर समझें तो साभिनय पाठ की सफलता का बड़ा हिस्सा इस बात से जुड़ता है कि पाठ के लिए किस रचना का चयन किया गया है। कई बार ऐसा होता है कि कई रचनाएं पढ़ने के लिहाज से बहुत ही बेहतर हुआ करती हैं लेकिन साभिनय पाठ के दौरान उतना मज़ा नहीं आता जबकि कुछ में दोनों स्तरों पर मज़ा आता है। इसलिए साभिनय पाठ के लिए रचनाओं पर अधिक से अधिक होमवर्क करने की ज़रूरत है जो कि इस कार्यक्रम के दौरान समझने को मिला।

बहरहाल यात्रा बुक्स और पेंग्विन इंडिया का ये प्रयोग प्रभावित तो ज़रूर करता है। इसे हम इस रूप में भी समझ सकते हैं कि जहां दिल्ली की बड़ी आबादी नये साल की तैयारियों में जुटी है, शहरभर के स्कूल-कॉलेज बंद हैं और छुट्टी के मूड में हैं, ऐसे में शहर के पुस्तक प्रेमी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। अशोक वाजपेयी, हिमांशु जोशी, मृदुला गर्ग, राजेंद्र धोड़पकर, कृष्णदत्त पालीवाल, राजी सेठ, चित्रा मुदगल, रवींद्र त्रिपाठी, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, रेखा अवस्‍थी,अभिसार शर्मा, क़ुर्बान अली सहित कई गणमान्‍य लोग रचना पाठ सुनने के लिए आये। इनमें से अधिकांश अंत-अंत तक बने रहे। कार्यक्रम के अंत की घोषणा और धन्यवाद ज्ञापन करते हुए यात्रा बुक्स की प्रकाशक नीता गुप्ता ने कहा कि “कुछ नया कुछ पुराना” कार्यक्रम ने साहित्य और अभिनय को जोड़ने का काम किया है। इसे हम आगे भी जारी रखेंगे। नीता गुप्ता की बात को आगे ले जाकर कहा जाए तो ऐसे कार्यक्रमों को न केवल जारी रखने की ज़रूरत है बल्कि पाठकों की अलग-अलग पहुंच औऱ हैसियत के हिसाब से अलग-अलग जगहों पर आयोजित किया जाना ज़रूरी है, जिससे कि खुले तौर पर ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसमें शामिल हो सकें। बेहतर हो कि यात्रा बुक्स और पेंग्विन इंडिया की इस पहल की देखादेखी ही सही, बाकी के प्रकाशन भी इस दिशा में आगे आएं। क्योंकि लोकार्पण और भाषणबाजी से हटकर ये अकेला कार्यक्रम है, जिसमें मुनाफे के पाले में पाठक का हिस्सा ज़्यादा है।
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5 Response to 'रेडियो नाटक की याद दिला गए सुमन वैद्य'
  1. अविनाश वाचस्पति
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html?showComment=1262282562915#c8804570718435810029'> 31 दिसंबर 2009 को 11:32 pm बजे

    एक अच्‍छी पहल
    जिससे न पढ़ने की समस्‍या का निकल रहा है हल
    मैं भी अवश्‍य आता
    जबकि मैं पढ़ता भी हूं
    पर सुनने का आनंद
    उठाना चाहता
    गर दिल्‍ली से बाहर न होता।
    सभागार का भरना
    जारी रहे और
    ऐसे आयोजन अन्‍य प्रकाशकों को भी
    प्रेरणा प्रदान करें
    ऐसी शुभकामनाओं के साथ
    नये साल और नयी पाठककारी का स्‍वागत है।

    दूध लघुकथा लघु होते हुए भी गहरे अर्थों को बखूबी उकेरती है।

     

  2. सौरभ द्विवेदी
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html?showComment=1262282927908#c3851901901526509663'> 31 दिसंबर 2009 को 11:38 pm बजे

    नवभारत टाइम्स के लिए किताबों की समीक्षा करने की हैसियत से मुझे भी आमंत्रण था, मगर दूसरी व्यस्तताओं के चलते जा नहीं पाया। आपने उस वजह से पैदा होने वाले अफसोस को कम कर दिया। शुक्रिया।

     

  3. विनीत उत्पल
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html?showComment=1262286301119#c2785348748634455491'> 1 जनवरी 2010 को 12:35 am बजे

    यात्रा बुक्स और पेंग्विन इंडिया ने एक अच्छी पहल की है. जिसका चस्मदीद मैं नही हो सका. अफ़सोस था मगर आपकी रिपोर्टिंग इस खालीपन को भरने का काम कर दिया.

     

  4. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html?showComment=1262317213608#c1169865447615382291'> 1 जनवरी 2010 को 9:10 am बजे

    बहुत अच्छी बात हुई है यह। यह क्रम आगे भी जारी रहे।

    आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

     

  5. पुष्कर पुष्प
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/12/blog-post_31.html?showComment=1262327603389#c2799767773626679531'> 1 जनवरी 2010 को 12:03 pm बजे

    कार्यक्रम में मैं भी मौजूद था. लेकिन अपने आपको कार्यक्रम से जोड़ नहीं पा रहा था. मुझे लगता है कि मेरे जैसे और भी लोग थे. बीच में कुछ लोग उठ कर भी चले गए. कहीं पर कुछ कमी रह गयी थी. उसपर मंथन करने की जरूरत है. वैसे अच्छी पहल है. पेंगुइन इंडिया के संपादक निरुपम जी बधाई. उनका मंच संचालन भी बेहतर था. - पुष्कर पुष्प

     

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