संगति का असर किस पर नहीं होता है,चाहे वो हमारी-आपकी जैसी ऑडिएंस हो या फिर न्यूज 24 जैसे चैनल। दिन-रात जिस महौल में हम काम कर रहे होते हैं, उसका असर हमारे काम करने और सोचने तरीके पर तो पड़ता ही है। न्यूज 24 सहित देश के बाकी चैनल लंबे समय से प्राइम टाइम में रियलिटी शो, लॉफ्टर चैलेंज और टीवी सीरियलों से जुड़ी खबरें दिखाते आ रहे हैं। कभी आनंदी के घर में मातम की खबर,कभी नन्हे हंसगुल्लों की खबर तो कभी बिग बॉस के घर से संभावना के निकलने की खबर। देश की ऑडिएंस के उपर इन कार्यक्रमों का क्या असर हुआ है,होता है,इसका विश्लेषण एक स्तरीय नहीं है और न ही इतना आसान ही कि हम किसी निष्कर्ष तक पहुंच सकें. लेकिन न्यूज चैनलों पर इन कार्यक्रमों का असर साफ देखा जा सकता है। टेलीविजन के इन कार्यक्रमों के शब्दों के प्रयोग से लेकर इसके फार्मेट की कॉपी करने के पीछे की वजह साफ है कि न्यूज चैनल खबरों को प्रस्तुत करते समय और कार्यक्रम बनाते समय इन्हीं मनोरंजन प्रधान चैनलों के आस-पास होकर सोचते हैं। कुछ नया करने के लिए खाद-पानी की तलाश वो इन्हीं चैनलों के बीच से करते हैं। आज रात( 17अप्रैल,9 बजे) न्यूज 24 के कार्यक्रम आइपीएल का बिग शो देखकर कुछ-कुछ ऐसा ही लगा।
न्यूज चैनलो के पास कुछ भी दिखाने और किसी भी रुप में दिखाने के पीछे का सबसे बड़ा तर्क होता है कि देश की ऑडिएंस वही सब कुछ देखना चाहती है जिसे कि हम दिखा रहे हैं। भाषा को सरल से सरल बनाने का मासूम तर्क आज इतने जोर पर है कि हर दो लाइन की खबर को पेश करने के क्रम में कभी क्रिकेट में घुस जाते हैं,कभी रियलिटी शो में। सिनेमा के शब्दों,डॉयलॉग औऱ मुहावरे का प्रयोग वो लंबे अर्से से तो कर ही रहे हैं। देश के तमाम न्यूज चैनल्स ऑडिएंस की भाषा-क्षमता को लेकर एक निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि खबर की अपनी कोई भाषा नहीं होती या फिर भाषा में खबर बताए नहीं जा सकते, उसे हर हाल में सिनेमा,रियलिटी शो और क्रिकेट की ओर रुख करना ही पड़ेगा। फिलहाल मैं इस बहस में बिल्कुल नहीं जाना चाहता कि देश की ऑडिएंस क्या देखना चाहती है और क्या दिखाया जा रहा है। ऑडिएंस के आगे हम भी वैसे ही मजबूर हैं जैसे कि न्यूज चैनल। अगर वो यही सब कुछ देखना चाहती है तो फिर हम और आप कौन होते हैं बोलनेवाले कि- नहीं,ये नहीं वो दिखाओ। माफ कीजिएगा मैं उन मीडिया समीक्षकों की तरह बात नहीं कर सकता जो कि मीडिया आलोचना के नाम पर गाइडलाइन तय करने लग जाते हैं कि ये दिखाओ,वो दिखाओ, ये जाने-समझने बिना कि देश की ऑडिएंस उन्हें तबज्जो देती भी है या नहीं, न्यूज चैनलों की तो बात बहुत बाद में आती है। मेरा सवाल क्या दिखाया जाए या कया नहीं से बिल्कुल अलग है।
अक्सर हम कंटेंट का बहस छेड़कर बाकी मुद्दों से बिसर जाते हैं जबकि कंटेंट के अलावे भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर कि हमें बात करनी चाहिए। हमें इस पर भी बात की जानी चाहिए कि टेलीविजन किसी भी खबर या घटना को कैसे दिखा रहा है और उसका अर्थ क्या है। इधर न्यूज चैनलों के तेजी से बदलते रवैये को देखकर ये साफ और बहुत जरुरी लगने लगा है कि कंटेंट के साथ-साथ औऱ कई बार तो इससे पहले ही इस मसले पर बात को किसी खबर को दिखाया कैसे जा रहा है।
न्यूज 24 के आठ एंकर आइपीएल की अलग-अलग टीमों की टीशर्ट पहने स्टूडियो में बैठे हैं। जो जिस टीम की टीशर्ट पहने बैठा है,उसे उस टीम की तरफदारी करनी है। मसलन आशीष चढ्ढा नाम का न्यूज एंकर राजस्थान रॉयल की टीशर्ट पहने बैठा है तो उसे राजस्थान रॉयल की तरफदारी करनी होगी। इसी तरह चेन्नई टीम की टीशर्ट पहनी अंजना कश्यप को चेन्नई टीम की सपोर्ट में अपनी बात रखेंगी। इस तरह चैनल के आठ एंकर,आइपीएल की आठों टीमों के पक्ष में अपनी बात रखेंगे। चैनल ने बिग बॉस की कॉपी की है। एक-एक करके सारे एंकर एक कुर्सी पर आकर बैठते हैं, बिग बॉस की आवाज में कोई सवाल कर रहा होता है और एंकर उसका जबाब दे रहे होते हैं। इसे आप खबरों के जरिए तमाशा या फिर तमाशा के भीतर खबर कहिए, ये आप पर निर्भर करता है। इनमें से कोई भी एंकर निष्पक्ष नहीं होगा। आप भूल जाइए कि चैनल की स्क्रीन पर चैनल के एंकर को देख रहे हैं, आप देख रहे हैं टीम के प्रतिनिधि को।
15 वें लोकसभा चुनाव ने आइपीएल सीजन-2 की हवा निकालकर रख दी। अबकी बार आइपीएल पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा आग लगाने के मूड में था। गांव-गांव में क्रिकेट का बुखार फैलाने की योजना में था। यह जानते हुए भी कि भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव से बड़ा कोई पर्व,चुनाव से बड़ा कोई दूसरा खेल साबित कर पाना आसान काम नहीं है। न्यूज चैनल इस मिजाज को समझते हुए दिन-रात राजनीतिक खबरें प्रसारित करते रहे, कई शक्लों में, कई अंदाजों में। लेकिन देखते ही देखते 18 अप्रैल नजदीक आ गया,आइपीएल शुरु होने का दिन। अब सारे चैनलों को इसमें फूंक मारना जरुरी लगने लगा। इसी फूंक मारने की हरकत में न्यूज 24 पर आइपीएल का बिग शो प्रसारित किया गया।
दुनिया को पता है कि जिस कॉन्सेप्ट को लेकर आइपीएल की शुरुआत की गयी,वो कॉन्सेप्ट बुरी तरह पिट चुकी है। दक्षिण अफ्रीका जाकर आप बंगाल,पंजाब और राजस्थान के होने का भाव पैदा कर सकेंगे,असल में ये संभव नहीं है। ये बात न्यूज चैनल भी जानते हैं लेकिन उनके पास प्रसार का तंत्र है। वो जब अमेरिका को लोकल जैसा दिखा सकते हैं तो फिर ग्लोबल स्तर पर जा चुके राजस्थान,पंजाब,बंगाल को लोकल क्यों नहीं। सारे चैनलों के लिए ऐसा कर पाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। यूट्यूब,गूगल सर्च इंजन और चुनावी कवरेज के पैसे बचाकर चैनल आएपीएल में फूंक मारने का काम तो कर ही सकते हैं।
एक ऑडिएंस के नाते,दिमाग में इस सवाल का उठना जायज है कि कॉन्सेप्ट के स्तर पर पिट चुके इस आइपीएल के आगे न्यूज चैनल किस बात की तुरही बजाने में लगे हैं। दक्षिण अफ्रीका में होनेवाले खेलों में लोकल फ्लेवर डालने के लिए क्यों बेचैन जान पड़ रहे हैं। जिस टीशर्ट को आप और हम दक्षिण अफ्रीका के मैदानों में खिलाडियों को पहनकर दौड़ते हुए देखेंगे, उसे नोएडा की स्टूडियों में,एंकर को पहनाकर क्यों बिठाए हैं। क्या ये सबकुछ ऑडिएंस के लोकल-लोकल का एहसास पैदा करने के लिए। पहली बार कितनी मुनादी की थी इस आइपीएल ने कि वो देश के भीतर क्रिकेटिज्म पैदा करेंगे। बंगाल को बैंग्लोर से प्रतिस्पर्धा दिखाया, एक-दूसरे को वैसा ही बताया जैसा कि भारत-पाकिस्तान की टीम को बताया जाता है। लेकिन अबकी बार सबके-सब दक्षिण अफ्रीका में है। क्या वहां भी राजस्थान को चेन्नई के विरोध में देखना इतना ही आसान है, व्यावहारिक तौर पर कम से कम ऑडिएंस के लिए तो नहीं ही। ऑडिएंस घर बैठे,अफ्रीका के मैंदान में खेलते हुए राजस्थान,बंगाल के बीच के फर्क को समझे, न्यूज 24 जैसा चैनल सरोगेट टीम वर्कर का काम कर रहा है। लेकिन क्यों, जाहिर है आइपीएल के पिट चुके कॉन्सेप्ट को बचाने के लिए नहीं ही,तो फिर.....
अभी कुछ ही दिनों पहले P7 के लांचिंग प्रोग्राम में एंकरों के रैंप पर चलने को लेकर काफी हंगामा हुआ था औऱ इसे पत्रकारिता जगत का अपमान समझा गया था। किसी ने उन पत्रकारों के प्रति संवेदना जतायी थी कि वो मजबूर थे, ऐसा करने के लिए। आज न्यूज 24 ने किसी न किसी रुप में वही बातें दोहरा दी। अभी चुनावी महौल है, चैनल बार-बार घोषणा कर रहा है कि वो आम आदमी के साथ है, मतदाता के साथ है,जब-तब चैनल के माई-बाप नेताओं की क्लास लेते नजर आते हैं, देश के आम आदमी के लिए। लेकिन आज आठ एंकरों को आठों टीमों का प्रतिनिधि बनाकर दिखाए जाने पर यही भरोसा जमेगा कि- देश का चैनल,आम आदमी के साथ या फिर देश के उन पूंजीपतियों के साथ जो आम जनता का खून चूसने के लिए और महीन औजार इजाद करने में जुटे हैं। कहीं ये नेताओं से भी बदतर तो नहीं,नेताओं के आगे-पीछे भ्रष्ट होने की भनक तो लगती है, इनकी तो वो भी नहीं। उल्टे जब भी ये अपने उपर के हमले को लोकतंत्र की हत्या होने की बात करते हैं, हम भावुकतावश इनके साथ हो लेते हैं। ये किसके साथ हैं,कहना मुश्किल है।...
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/04/24.html?showComment=1240048140000#c3093128471918424345'> 18 अप्रैल 2009 को 3:19 pm बजे
विनीतजी
आपने सिर्फ चैनल न्यूज 24 ही देखा
मैं यूं तो टीवी बहुत कम देखता हूं पर कल छुटटी थी और शाम को घर पर था। तो मैंने देखा आजतक पर भी कुछ इसी तरह का शो शुरू हुआ था, जिसमें आजतक की हॉट एंकर रितुल और दूसरी का नाम याद नहीं। वो बैठी थीं, कपिल देव भी पैनल में थे। चीयर लीडर्स भी लगातार डांस कर रही थीं।
और ब्रेक के बाद रितुल बोलीं, आजतक ने इतना अच्छा शो शुरू किया है। आप देखिए कि आईपीएल शुरू होने के एक दिन पहले हम इतना बढिया बढिया सब कुछ दिखा रहे हैं, चीयरलीडर्स डांस कर रही हैं। इसलिए इस शो को देखते रहिएगा।
और सच बताऊं कि वो इतनी बेहूदगी से डांस करते हुए कैमरा चीयरलडर्स को नीचे से ऊपर तक दिखा रहे थे कि पापा के सामने मुझे चैनल करना पडा वर्ना पता नहीं वे क्या सोचते!
http://taanabaana.blogspot.com/2009/04/24.html?showComment=1240053360000#c7948044546613054111'> 18 अप्रैल 2009 को 4:46 pm बजे
द होल थिंग इज दैट के भैया सबसे बड़ा रुप्पैया.
गांगुली और द्रविड़ जैसे महारथी बेईज्जती सहते हुए भी खेल रहे हैं.
छोटे और दरम्याना खिलाड़ियों से, फ़िल्मी और दारूबाज टीम मालिक, फ़िल्मी एक्स्ट्राओं की तरह बर्ताव करते हुए आधी रात को होटल से बाहर निकाल देते हैं.
भेड़-बकरियों की तरह ट्रकों में लद कर उन जुलूसों में शामिल होते हैं जिन्हें देखने कोई तैयार तक नहीं है....
ऐसे में TV चैनलों की क्या बिसात ...विज्ञापनों के लिए ही तो चैनल चलाये जा रहे हैं..न कि दर्शकों के लिए..फिर चार पैसे IPL ने भी पब्लिसिटी के लिए भिजवायें हों तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.