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कहीं ब्लॉग अपनी धार खो न दे

Posted On 9:29 am by विनीत कुमार |



उमेश चतुर्वेदी ने अपनी पोस्ट *किस करवट बैठेगी ब्लॉगिंग की दुनिया **! के जरिए ब्लॉग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रति आशंका जतायी है। उमेश चतुर्वेदी का साफ मानना है कि वे ऐसा करके सु्प्रीम कोर्ट के फैसले पर किसी भी प्रकार के सवाल खड़े नहीं कर रहे लेकिन एक मौजू सवाल है कि अगर सरकार और स्टेट मशीनरी द्वारा ब्लॉग को रेगुलेट किया जाता है, ब्लॉग जो कि दूसरी अभिव्यक्ति की खोज के तौर पर तेजी से उभरा है तो क्या लोकतांत्रिक मान्यताओं को गारंटी देनेवाली अवधारणा खंडित नहीं होती। मेनस्ट्रीम की मीडिया को किसी भी तरह से रेगुलेट किए जाने की स्थिति में इसे लोकतंत्र की आवाज को दबाने और कुचलने की सरकार की कोशिश के तौर पर बताया जाता है तो ब्लॉग में जब सीधे-सीधे देश की आम जनता शामिल है और आज उसे भी रेगुलेट कर,दुनियाभर की शर्तें लादने की कोशिशें की जा रही है तो इसे क्या कहा जाए। क्या स्टेट मशीनरी वर्चुअल स्पेस की इस आजादी को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। पेश है उमेश चतुर्वेदी की चिंता और सवालों के जबाब में मेरी अपनी समझ-

सरकार औऱ सुप्रीम कोर्ट क्या, रोजमर्रा की जिंदगी में टकराने वाले लोग भी ब्लॉगिंग की आलोचना
इसलिए करते हैं कि उसमें गाली-गलौज औऱ अपशब्दों के प्रयोग होने लगे हैं। कई बार शुरु किए मुद्दे
से हटकर पोस्ट को इतना पर्सनली लेने लग जाते हैं कि विमर्श के बजाय अपने-अपने घर की बॉलकनी
में आकर एक-दूसरे को कोसने, गरियाने औऱ ललकारने का नजारा बन जाता है। कई लोगों ने ब्लॉग में
रुचि लेना सिर्फ इसलिए बंद कर दिया है कि इसमें विचारों की शेयरिंग के बजाय झौं-झौं शुरु हो गया है।
ब्लॉग की इस स्तर पर समीक्षा करनेवाले लोगों की बौद्धिक क्षमता पर मैं यहां कोई सवाल खड़ा नहीं कर रहा।
लेकिन,
आज ब्लॉगिंग की जो भी आलोचना की जा रही है और जिसकी आड़ में सरकार इसके उपर नकेल कसने
का मन बना रही है वो बहाने का बहुत ही छोटा हिस्सा है। जो लोग इस काम से लगातार जुड़े हैं उन्हें पता है
कि ब्लॉगिंग में सिर्फ लोगों को कोसने औऱ गरियाने के काम नहीं होते। इसने अभी तक तो इतने आधार
जरुर पैदा कर दिए हैं जिसके बूते इसे सामाजिक जागरुकता, तात्कालिकता औऱ खबरों की ऑथेंटिसिटी के
का माध्यम बड़ी आसानी से साबित किए जा सकते हैं। यही काम अगर सरकार प्रोत्साहन देने की नियत से
एक बार ब्लॉग की दुनिया की छानबीन करती तो नतीजे कुछ और ही सामने आते लेकिन पहलेही इसे नकेल
कसने के लिहाज से देखने-समझने की कोशिशें की जा रही है तब तो नतीजे भी सरकार की मर्जी के हिसाब से
ही आएंगे।
दूसरी बात, जहां तक इसे अनर्गल और फालतू के बकवास से बचाने के लिए ऐसा किए जाने की पहल है जैसा कि
वो चैनलों के संदर्भ में तर्क देती आयी है तो एक बार न्यूज चैनलों औऱ सरकारी फैसलों पर नजर डालना अनिवार्य
होगा। तब निजी समाचार चैनलों ने अपने आंख खोले ही थे, वो ब्लॉग से भी ज्यादा शुरु था, ब्लॉग तो कम से कम
नर्सरी क्लास में जाने लायक हो भी गया है, न्यूज चैनल तो हाथ-पैर फेंककर खेलना सीख ही रहे थे कि सरकार
किसी भी हालत में इसे प्रसारण को लेकर अनुमति देने के पक्ष में नहीं थी। रेगुलेट करने के मामले में आज के
मुकाबले उसका पक्ष बहुत ही कमजोर रहा।

मैं एक बार फिर दोहराना चाहूंगा कि कंटेट को लेकर सरकार अगर इतनी ही चिंतित और पारदर्शी है और रहती
आयी है तो निजी चैनलों के लाख कोशिशों के बावजूद दूरदर्शन की साख बनी रहती। लेकिन इतना आप भी जानते
हैं कि पारदर्शी और लोककल्याणकारी प्रसारण सामग्री का मतलब माध्यम के सरकारी भोंपू बन जाना नहीं है।
हमलोग और बुनियाद जैसे टीवी सीरियलों को लेकर हम एक घड़ी के लिए नास्टॉलजिक हो जाते हैं औऱ दूरदर्शन
को एक साफ-सुथरा और निजी चैनलों के मुकाबले बेहतर माध्यम मानने लग जाते हैं लेकिन शांति, स्वाभिमान, वक्त
रफ्तार से लेकर अभी तक चलनेवाले सीरियलों पर हमारा ध्यान कभी भी नहीं जाता। अक्सर मौजूदा सरकार से जुड़ी
खबरों के साथ खुलनेवाले बुलेटिनों पर हम सीरियसली गौर नहीं कर पाते। ऐसा कहकर मैं किसी भी रुप में सरकारी
माध्यम जिसे कि जनहित के माध्यम कहे जाते हैं औऱ निजी प्रयासों को एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी करने की कोशिश
नहीं कर रहा, बल्कि उन कारणों को समझने की कोशिश कर रहा हूं जिसके आधार पर अक्सर सरकार एक हाथ से नकेल और दूसरे हाथ से ढोल पीटने का काम करती आयी है। ब्लॉग के साथ कुछ ऐसा ही करने की योजना है।

जहां तक ब्लॉग पर होनेवाली कारवाइयों जो कि अभी संभावना के तौर पर ही है, फिर भी इसके विरोध में खड़े होने का सवाल है,ये निजी चैनलों की तरह इतना आसान नहीं है। ब्लॉग से सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि काफी हद तक मेनस्ट्रीम की मीडिया भी परेशान है, इसलिए वो इसके बचाव में खुलकर सामने आएंगे, इसे लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। बलॉग के आने के बाद मेनस्ट्रीम की मीडिया के बारे में जितना कुछ लिखा गया है, जितनी आलोचना हुई है औऱ हो रही है, शायद पहले कभी नहीं हुआ। ब्लॉग के पक्ष में ब्लॉगरों को अपनी लड़ाई अपने स्तर पर ही लड़नी होगी, हां डॉट कॉम( कई जो ब्लॉग की ही पैदाइश हैं) साथ होंगे।
वैसे एक अच्छी बात है कि इस माध्यम से देश और दुनिया के जितने अधिक प्रोफेशन के लोग जुड़े हैं( काम करने के स्तर पर), दूसरे प्रोफेशन और स्वयं मेनस्ट्रीम मीडिया में भी नहीं है, जाहिर है वकील भी। इसलिे दावे और चुनौतियों का आधार तैयार होने में बहुत मुश्किलें नहीं आएगी। बाकी हम जैसे ब्लॉगर जंतर-मंतर पर, शास्त्री भवन के आगे पक्ष में नारे लगाने औऱ महौल बनाने के लिए हमेशा से तैयार हैं।
विनीत
| edit post
10 Response to 'कहीं ब्लॉग अपनी धार खो न दे'
  1. इरशाद अली
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238302320000#c6184189781993993439'> 29 मार्च 2009 को 10:22 am बजे

    सटीक लेखन के लिये बधाई

     

  2. पप्पू
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238305140000#c3221164507919824046'> 29 मार्च 2009 को 11:09 am बजे

    वरिष्ठ पत्रकार और तिब्बत के मामलों के महाकोष
    विजय क्रांति के Photos की प्रदर्शनी दिल्ली की
    लोदी रोड पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लगी है।
    मैं जा रहा हूं, समय मिले तो आप भी देखियेगा।
    Tibetan Journey in Exile शीर्षक से लगी
    इस प्रदर्शनी में दिखाये गये फोटो तिब्बत
    के बारे में हैं और बिना देखे कह सकता हूं कि
    शानदार होंगे। प्रदर्शनी 30 मार्च तक चलेगी और
    आज अगर आप जाते हैं तो वहां विजय क्रांति
    से भी मिल सकते हैं। आजकल वो काफी व्यस्त
    रहते हैं इस बहाने उनसे भी मुलाकात हो जायेगी,
    मेरा तो मकसद यही है।

     

  3. निर्मला कपिला
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238306160000#c1919379210506427793'> 29 मार्च 2009 को 11:26 am बजे

    aji pardarshan ke liye hame bhi bula leejiyega lekh bahut achha laga badhai

     

  4. दिनेशराय द्विवेदी
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238308500000#c1657626662547092225'> 29 मार्च 2009 को 12:05 pm बजे

    विनीत जी यह आलेख दुबारा पढ़वा रहे हैं। ब्लाग जगत पर कोई पहाड़ नहीं टूटने जा रहा है। लेकिन जो कृत्य पहले से अपराध हैं उन्हें ब्लाग का उपयोग करते हुए किया जाए तो अभियोजन तो होगा और अपराध साबित होने पर सजा भी। ब्लाग लिखने से कोई विशेषाधिकार तो प्राप्त नहीं हो गया। इस के अलावा अन्य दबाव आते हैं या सत्ता का दुरुपयोग किसी को फिजूल परेशान करने का प्रयत्न किया जाता है तो ब्लाग जगत बहुत मजबूत है। बस संगठित होने की आवश्यकता है।

     

  5. Unknown
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238314380000#c9079233859282200461'> 29 मार्च 2009 को 1:43 pm बजे

    विनीत भई , ब्लाग से जुड़े कुछ मुद्दे जरूर कोर्ट तक पहुंचे है ं । इस पर अंकुश लगाना , या इस पर राजनीति करना अलग तरह का मुद्दा है । और बातों को कहना , सुनना भला कौन रोक सकता है । होने दीजिए कार्यवाही हम सब देखेंगें क्या होता है ।

     

  6. Girish Kumar Billore
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238337900000#c2490663313450869518'> 29 मार्च 2009 को 8:15 pm बजे

    भाई
    सहमत हूँ कि बेबाक होने दिखने की
    आड़ में हिंसा जारी है ....कोई कब तक
    चुप रहे "न दैन्यम न पलायनम और न अराजकम "
    भी माना जाए .सभी को सार्वजनिक जीवन में
    सब कुछ अच्छा बुरा देखना होता है किन्तु ब्लॉग
    में आकर लगा बेबाक होने दिखने की
    चाह में किस कदर हिंसा को जन्म दे रही जिसे सकारात्मक विचारों से ही रोका जा सकेगा
    सटीक लेखन के लिये बधाई

     

  7. Kavita Vachaknavee
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238367600000#c3112609410703016307'> 30 मार्च 2009 को 4:30 am बजे

    बढ़िया।

     

  8. अनूप शुक्ल
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238375820000#c6782911166086828900'> 30 मार्च 2009 को 6:47 am बजे

    अच्छा लिखा। बधाई!

     

  9. Neelima
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238415660000#c3490195056095727628'> 30 मार्च 2009 को 5:51 pm बजे

    आपसे सहमत हूं !

     

  10. yashwant
    http://taanabaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html?showComment=1238674200000#c3354797864522542778'> 2 अप्रैल 2009 को 5:40 pm बजे

    खबरें प्रकाशित करने से रोकने का आदेश देने से कोर्ट का इनकार

    एचटी मीडिया बनाम भड़ास4मीडिया : सुनवाई की अगली तारीख 24 जुलाई

    शैलबाला-प्रमोद जोशी प्रकरण से संबंधित खबरें भारत के नंबर वन मीडिया न्यूज पोर्टल भड़ास4मीडिया पर पब्लिश किए जाने के खिलाफ एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर केस की पहली सुनवाई आज हुई। वादी एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से दायर केस में भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह और तीन अन्य को प्रतिवादी बनाया गया है। हाईकोर्ट में दर्ज इस केस संख्या सीएस (ओएस) 332/2009 की सुनवाई हाईकोर्ट के कोर्ट नंबर 24 में विद्वान न्यायाधीश अनिल कुमार ने की।

    इस दौरान एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से हाजिर हुए वकील ने केस निपटारे तक भड़ास4मीडिया पर एचटी मीडिया और इससे जुड़े लोगों से संबंधित खबरें प्रकाशित न करने देने का आदेश पारित करने का अनुरोध कोर्ट से किया। इस बाबत एचटी मीडिया और अन्य की तरफ से कोर्ट में अर्जी भी दी गई थी। कोर्ट ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। प्रतिवादियों की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील निलॉय दासगुप्ता ने कोर्ट को जानकारी दी कि कुछ प्रतिवादियों ने नोटिस 29 मार्च को रिसीव किया है और एक प्रतिवादी के पास अभी तक नोटिस सर्व नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने वादी एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी के वकील को सभी प्रतिवादियों को नोटिस समेत सभी जरूरी दस्तावेज मुहैया कराने के आदेश दिए। प्रतिवादियों को अगले चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई की तारीख 24 जुलाई तय की गई है। प्रतिवादियों के वकील निलॉय दासगुप्ता ने बाद में बताया कि एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी की तरफ से जो केस दायर किया गया है, उससे संबंधित जो नोटिस प्रतिवादियों के पास भेजा गया है, उसमें कई चीजें मिसिंग हैं। उदाहरण के तौर पर नोटिस के पेज नंबर 117 पर जिस कांपैक्ट डिस्क के होने का उल्लेख किया गया है, वो नदारद है। साथ ही सभी प्रतिवादियों को अभी तक नोटिस सर्व नहीं हुआ है। ऐसे में कोर्ट ने वादियों के वकील को सभी दस्तावेज व कागजात प्रतिवादियों को उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। वेबसाइट पर वादियों से संबंधित कंटेंट पब्लिश न करने को लेकर जो अनुरोध कोर्ट से किया गया, उसे नामंजूर कर दिया गया।

     

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