न्यूज चैनलों या फिर मेनस्ट्रीम की मीडिया पर होनेवाले हमले को लोकतंत्र पर हमला बताया जाना आम बात है। यह अलग बात है कि अधिकांश चैनल और मीडिया संस्थान अपने को लोकतंत्र से जोड़ने का अधिकार खो चुके हैं। अगर उनके हिसाब से लोकतंत्र का अर्थ अगर ज्यादा से ज्यादा लोगों की भीड़ भर है, तब तो कोई बात नहीं लेकिन अपने को लोकतंत्र से जोड़े रखने के लिए मेनस्ट्रीम की मीडिया को अभी भी भारी मशक्कत करनी पड़ेगी। लोकतंत्र के साथ अपने को जोड़ने का अधिकार मीडिया को तभी है जबकि वो समझदारी पैदा करने का काम करे। अगर उसके पास खुद की इतनी क्षमता नहीं है तो कम से कम जो सरकारी, गैर सरकारी, स्वयंसेवी संस्थाओं और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास चल रहे हैं उसे मजबूत करने का काम करे।
मेनस्ट्रीम की मीडिया से एक सीधा सवाल है कि क्या सिर्फ एक मुहावरा भर गढ़ लेने से कि मीडिया पर हमले का मतलब है लोकतंत्र पर हमला, मीडिया के स्वर को दबाने का मतलब है, लोकतंत्र का गला घोटने की कोशिश, लोकतंत्र को हमेशा के लिए बचाए रखना संभव है।....और वो भी तब जब वो खुद लालाओं के हाथ की कठपुतली और बाजारपरस्ती के आगे हथियार डाले बैठे हैं। इसी के साथ एक और सवाल सामने है कि वो लोकतंत्र के नाम पर क्या बचाना चाहते हैं। लोकतंत्र के भीतर किसे बचाना चाहते हैं। क्या वो वही लोकतंत्र बचाना चाहते हैं जिसका प्रावधान हमारे संविधान में है या फिर इसी क्रम में कोई दूसरा लोकतंत्र जो कि देश के भीतर तेजी से पनप रहा है, उसे बचाने की बात कर रहे हैं। जब तक मेनस्ट्रीम की मीडिया इन बातों को एक आम पाठक या ऑडिएंस के सामने साफ नहीं कर देते, तब तक लोततंत्र के नाम पर मीडिया को बचाए जाने की अपील एक धोखा है, एक प्रवंचना है।
यह बात सही है कि मेनस्ट्रीम की मीडिया किसी न किसी रुप में लोगों से जुड़े सवालों को आवाज देती है। लेकिन यहां पर यह समझना बहुत जरुरी है कि केवल और केवल मेनस्ट्रीम की मीडिया ही नहीं है जो कि ऐसा करती है। इसके अलावे भी दर्जनों एजेंसियां औऱ हजारों व्यक्तिगत प्रयास हैं जो कि लोकतंत्र को जिंदा रखने का काम करते हैं। अगर मेनस्ट्रीम की मीडिया की नीयत साफ है कि उसे हर हालत में लोकतंत्र को जिंदा रखना है तो फिर उन्हें इन सबों को सहयोग करना चाहिए, उनके छोट-छोटे प्रयासों को मजबूत करना चाहिए। लेकिन क्या वाकई में ऐसा ही हो रहा है। क्या सचमुच मेनस्ट्रीम की मीडिया लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए बेचैन है।
परसों मीडिया खबर ने एक मेल भेजा जिसमें बताया कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाया गया है। पुलिस उन्हें लगातार परेशान कर रही है। ईमानदारी से अपनी आवाज उठानेवालों को पुलिस द्वारा परेशान किया जाना कोई नई बात नहीं है। अगर आप पुराने पत्रकारों और सुधार की दिशा में काम करनेवाले लोगों के बारे में पढ़े तो आपको इस बात की लम्बी फेहरिस्त मिल जाएगी। लेकिन नयी बात ये है कि ये सारा काम एचटी मीडया जैसे एक बड़े मीडिया समूह के शीर्ष पर बैठे कुछ मठाधीशों द्वारा किया जा रहा है। उनके कहने पर ही पुलिस बेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को लगातार परेशान कर रही है।
इन मठादीशों से अगर सवाल किए जाएं कि आप कौन से लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं तो शायद वो सही से जबाब न देने पाएं लेकिन सच्चाई यही है कि वो बी किसी न किसी लोकतंत्र की रक्षा जरुर कर रहे हैं, भले ही साइज में वो अबी बहुत ही छोटा है और उम्र के लिहाज से बहुत ही मासूम। लेकिन यह संविधान के लोकतंत्र पर भारी पड़ रहा है। यह उसे बदलने की फिराक में है। बदलने का ये जिम्मा ऐसे ही समूहों के शीर्ष पर बैठनेवाले लोगों के हाथ में है।
इस पूरे प्रकरण में सुशील कुमार सिंह का दोष सिर्फ इतना भर है कि उन्होंने एचटी की संपादकीय गड़बड़ी पर उंगली रख दी और वो इन्हें बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। आप चाहें तो कह सकते हैं कि इतना बड़ा समूह संजय के इस प्रयास को जिसे कि साकारात्मक रुप में लिया जाना चाहिए था, नहीं पचा पा रहा है, तब वो बाकी मोर्चों पर, जहां उनकी अपनी मर्जी चलती होगी, क्या करते होगें।
फिलहाल आनेवाले समय में बेब पर अपनी आवाज उठानेवालों की सुरक्षा और परस्पर सहयोग के लिहाज से दिल्ली में वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया है। जो मेनस्ट्रीम की मीडिया के द्वारा विस्तार दिए जानेवाले लोकतंत्र का विरोध करते हुए संविधान द्वारा प्रस्तावित लोकतंत्र की बहाली में अपनी ओर से प्रयास करेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये समिति आनेवाले समय में साकारात्मक विस्तार लेगी और बाकी की समितियों की तरह छोटी-मोटी मांगों और पूर्ति के बीच उलझकर नहीं रह जाएगी। इसका व्यापक दायरा होगा और सही अर्थों में प्रतिरोध के स्वर जिंदा रह सकेंगे।
मीडिया ख़बर की ओर से भेजी गयी मेल-
वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने के खिलाफ
वेब पत्रकार संघर्ष समिति की मुहिम
एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की।आगे की ख़बर पढने के लिए यहाँ क्लिक करें http://mediakhabar.com/media-khabar-webjournalism.html
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html?showComment=1225088520000#c8701736835219438393'> 27 अक्तूबर 2008 को 11:52 am बजे
आपका ये सवाल वाकई आत्म-विश्लेषण की मांग करता है-
क्या सिर्फ एक मुहावरा भर गढ़ लेने से कि मीडिया पर हमले का मतलब है लोकतंत्र पर हमला, मीडिया के स्वर को दबाने का मतलब है, लोकतंत्र का गला घोटने की कोशिश, लोकतंत्र को हमेशा के लिए बचाए रखना संभव है।...
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html?showComment=1225090320000#c7046694235282193967'> 27 अक्तूबर 2008 को 12:22 pm बजे
मीडिया खुद भी तो अक्सर जनविरोधी हुए जा रहा है, उस का क्या?
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीवाली आप के और आप के परिवार के लिए सर्वांग समृद्धि लाए!
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html?showComment=1225091820000#c3137603415929152197'> 27 अक्तूबर 2008 को 12:47 pm बजे
मीडिया की मठाधीशी खत्म हो रही हैं तो वे चिल्ल पौं मचायेंगे ही ....कल को हो सकता हैं सरकार कानून पास करे कि ब्लोगिंग बंद हो क्यों कि यहां हर किसी की बखिया उधेङी जार रही हैं
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html?showComment=1225096680000#c5685722934547208412'> 27 अक्तूबर 2008 को 2:08 pm बजे
यह एक गम्भीर सवाल है। इसपर आर पार की लडाई होनी चाहिए।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_27.html?showComment=1225109280000#c7842174080947484149'> 27 अक्तूबर 2008 को 5:38 pm बजे
दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.