स्त्रियां वरमाला के समय एक बार झुक जाती है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो जिंदगी भर पुरुषों के आगे झुकती चली जाए। अब वो जमाना गया कि पुरुष उसे जो कहे, जैसा कहे, वो मानती चली जाए। उसकी अपनी भी इच्छाएं हैं, अपनी भी मर्जी है। जिस घर में मेरी बेटी की एक छोटी सी इच्छा पूरी नहीं हो सकती, उस घर में मेरी बेटी कभी वापस नहीं जाएगी। ये घोषणा थी, आठ साल से चले आ रहे टेलीविजन सीरियल कहानी घर -घर की के अंतिम एपिसोड में पार्वती भाभी( साक्षी तंवर) की।
पार्वती की इस घोषणा से एकबारगी तो मुझे ऐसा लगा कि एकता कपूर आठ साल के भटकाव की भरपाई को इस अंतिम एपिसोड में करना चाहती है। लोकप्रियता के साथ-साथ सास-बहू आधारित सीरियलों की जितनी आलोचना हुई है, संभव है उसे ध्यान में रखकर एकता कपूर ने ऐसा किया हो औऱ ऑडिएंस के सामने एक प्रगतिशील मूल्य छोड़ना चाह रही हो। शायद तभी पार्वती भाभी जिसने की लाख परेशानियों के बावजूद भी अपने परिवार को टूटने नहीं दिया। परिवार को बचाए रखने के लिए एक स्त्री को जलाती रही, स्त्रीत्व जिसमें कि त्याग, अवमानना, परिहास, प्रताड़ना और न जाने कितने कष्ट शामिल रहे, सबको झेलती चली गयी। इस आठ साल में वो पागल हुई, उसे बार -बार इलेक्ट्रिक शॉक दिया गया लेकिन अंतिम एपिसोड तक परिवार तक आते-आते परिवार को बिखरने से बचा लिया। आठ साल पहले जिस दिवाली से कहानी घर-घर की शुरुआत हुई थी, आठ साल बाद उसी दिवाली से इसका अंत भी हुआ। पहले से कहीं बेहतर स्थिति में, भरपूरा। ऐसा तो रामायण में भी नहीं हुआ था। वहां भी दशरथ और अयोध्या के कुछ जरुरी पात्र मर-खप गए थे। इस अर्थ में कहानी घर-घर की, रामायण से भी ज्यादा सुखांत रहा। ये अलग बात है कि जब पार्वती जब ओम के साथ दिवाली के दिए जला रही थी, तब पूरी दिल्ली में रावण को जलाकर लौटने की थकान मिटी नहीं थी। न्यूज चैनल इस दौरान अभी तक हादसे में ही बझे-फंसे थे। पार्वती ने ये काम एडवांस में किया था। खैर, प्रगति को अंकुर ने दिवाली पर क्राइसिस होने की वजह से नेकलेस देने से मना कर दिया था। प्रगति के दिवाली के दिन अचानक से अपने ससुराल छोड़कर आ जाने के बाद पार्वती लगातार बोले जा रही थी। एक स्त्री के पक्ष में, उसके अधिकारों और इच्छाओं को ट्रेस करते हुए, उसके लिए तर्क देते हुए। उसके सारे वक्तव्यों से साफ झलक रहा था कि इस एपिसोड के लिए एकता कपूर ने स्त्री अधिकार संगठनों पर ठीक-ठाक रिसर्च किया है। पार्वती का कहना था कि पहले स्त्री की इच्छा है और उसके बाद रिश्ते हैं।
तभी घर के एक-एक सदस्य पार्वती की उसी बात को दोहराने लगे, जिसे उसने आट साल तक चलनेवाले इन एपिसोडों के दौरान दोहराया था। ओम ने कहा- अगर पैसे औऱ इच्छाओं से ही संबंध मजबूत होने होते, तब तो पार्वती हमारे रिश्ते टूट जाने चाहिए थे, लेकिन हुआ ये कि हमारे संबंध पहले से और ज्यादा मजबूत हुए और इसके सामने पैसा छोटा पड़ गया। पार्वती ने दोहराया- परिवार को बचाने के लिए हमने जो बातें पहले की थी, आज उसका कोई महत्व नहीं है। लेकिन घर के एक-एक सदस्य पार्वती के परिवार के लिए गलने, छीजने और बर्दाश्त करने की बात दोहराते हुए।
अंत में समझ में आया कि एकता कपूर ने आठ साल के भीतर जो कुछ भी दिखाया और भारतीय परिवार के जिन मूल्यों को सहेजने की बात की, दरअसल उसे डिफेंड करने का ये तरीका था। सीधे-सीधे पार्वती अगर कहती कि घर के लिए स्त्रियों का मिट जाना ही उसकी नियति है तो ये उपदेश-सा लगता औऱ शायद इसे लोग मानते भी नहीं। लेकिन जैसे ही घर के एक-एक सदस्य पार्वती की कही हुई बातें दोहराने लगे जिसमें कि अभी की पीढ़ी भी शामिल रही तो असर कुछ ज्यादा ही जमानेवाली बात हो गयी। हमारे सामने यह सिद्ध कर दिया गया कि आठ साल से जिन मूल्यों को सहेजने की बात की जा रही थी, वो महज पुरानी पीढ़ी की अपील भर नहीं थी, बल्कि नई पीढ़ी ने भ इसे हूबहू अपना लिया है।
एपिसोड खत्म होने के बात देशभर के ऑडिएंस के वाक्सपॉप दिखाए गए जिसमें सबों ने कहा कि उन्हें पार्वती बहुत पसंद आयी। वो बहुत सही बात कर रही थी, रिश्ते ही नहीं रहेंगे तो फिर बाकी की चीजों का क्या करना। अब क्या था, कहानी घर-घर की पर ऑडिएंस की भी मुहर लग गयी थी।
जाते-जाते पार्वती की आंखों के कोर भीग गए। उसने रुआंसे स्वर में कहा- आट साल से आप मुझे देखते रहे, मेरा इंतजार करते रहे, सच पूछिए तो जाने का मन नहीं कर रहा। लेकिन जाना होगा। आपका मुझे खूब प्यार मिला।। मुझे भरोसा है कि आपके मन में मैं हमेशा रहूंगी।.......
हमेशा रहूंगी यानि रिश्तो के लिए तिल-तिल छीजनेवाली एक स्त्री, यही मूल्य है यही संस्कृति है।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_21.html?showComment=1224601980000#c604256269887938359'> 21 अक्तूबर 2008 को 8:43 pm बजे
आंखो पर यकीन नहीं हो पा रहा है ।
इसका मतलब "कहानी घर घर की" ......................... खत्म ??????
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_21.html?showComment=1224649680000#c3736573903774143720'> 22 अक्तूबर 2008 को 9:58 am बजे
kkkkya !!!!!
कहानी खत्म हुई ,तालियाँ बजाओ ,पर फिर सुनाओ कभी न कहना ।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_21.html?showComment=1224649920000#c1226501520513229214'> 22 अक्तूबर 2008 को 10:02 am बजे
1 साल मे 241 पोस्ट ठेल दिये ! बढिया है , बधाई हो ! हमें तो याद ही नही रहा कि कब हमारे ब्लॉग का हैप्पी बड्डे आके चला गया :-(अब अगली फरवरी मे दूसरा बड्डे मनाना नहीं भूलेंगे ।