हम जैसे हजारों ब्लॉगर जो कि महीनों-सालों से कीबोर्ड पर किचिर-पिचिर करते आ रहे हैं, जो कि बौद्धिक समाज के लिए लेखन के नाम पर गंध फैलाने का काम है, आज उसे देश के एक अकादमिक संस्थान ने हिंदी की सेवा करने का नाम दिया है। कल से इलाहाबाद में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की ओर से हिंदी चिट्ठाकारी की दुनिया पर आयोजित दो दिनों की (23-24 अक्टूबर) होनेवाली राष्ट्रीय संगोष्ठी का मेल के जरिये जो हमें न्योता मिला है, उसमें लिखा एक वाक्य है कि – इस आयोजन की सफलता ब्लॉग लेखन के माध्यम से हिंदी की सेवा कर रहे आप जैसे सक्रिय चिट्ठाकारों की सहभागिता पर निर्भर करती है। इस एक लाइन को पढ़कर थोड़ा इमोशनल हो गया और कुछ लाइनें लिख मारी है। आप भी पढ़ें और अपनी राय दें-
वैसे तो मेरी तरह हिंदी ब्लॉग समाज का शायद ही कोई ब्लॉगर हो जो कि अपने ऊपर किसी भी तरह के धर्मार्थ का लेबल लगाये जाने का मोहताज रहा है, इस मुगालते में जी रहा हो कि दिनभर खटने के बाद घंटे-आध घंटे के लिए जो कीबोर्ड खटखटाने का काम कर रहा है, उसके बूते उसे हिंदीसेवी होने का तमगा मिल जाए लेकिन हमारे इस काम को अगर कोई सेवा का नाम दे रहा है तो इसे हम घलुए में मिली हुई चीज़ मानकर थोड़ी देर के लिए तो ज़रूर खुश हो सकते हैं। सच कहूं, हम अब भी यही मानते हैं कि हमने कभी भी इस एजेंडे के तहत नहीं लिखना शुरू किया कि हम कोई सेवा का काम करने जा रहे हैं। बल्कि हमने तो सिर्फ इसलिए लिखना शुरू किया कि लिखते नहीं तो और क्या करते? मूंछ उगने के बाद से सात-आठ साल तक साहित्य और मीडिया के जरिये जिन भावों, शब्दों, अनुभूतियों और स्थितियों को जाना-समझा, उसे कहां फेंक आते। जिस बात को कभी मजाक में कहता रहा कि कब तक हम दूसरों का लिखा पढ़ते रहेंगे, उसे आज शिद्दत से महसूस करता हूं। हिंदी में रहकर सिर्फ लिख कर तो लेखक होने से रहे। फिर हम जैसे लफुआ की बात को छापनेवाला कौन सा कोई प्रकाशक मिल जाएगा? न्यूज रूम में हमारे साथ जो भी हुआ, अभावग्रस्त बचपन, नकारे हुए टीन एज और पानी खाती जाती जवानी जो बाकी साथियों के साथ अब भी जारी है, उसकी भड़ास लिखकर नहीं निकालते तो और क्या करते। अपने को नैतिक न भी मानें तो हम उस हैसियत तक कब तक पहुंचते कि रंगीन पानी पीकर बकना शुरू कर देते और फिर उस पर बौद्धिकता का मुलम्मा चढ़ाने में कामायाब हो जाते, हम कब उतना बड़ा कद हासिल करते कि नामी बनिया का मैल भी बिकता है के तहत लिखे जानेवाले साहित्य को अनर्गल करार देते। यकीन मानिए, तब तक तो हम बुढ़ा जाते। इसलिए हमने कभी भी कागजों पर अपनी हिस्सेदारी की मांग नहीं की। अलाय-बलाय (उल्टी-सीधी) लिख-छापकर नामचीन लोग महान होने के दावे करते रहे, हमने कभी भी उसका प्रतिकार नहीं किया। हम उनके महान होने में कभी भी अड़चन बनकर सामने नहीं आये। हमने बस इतना किया कि किसी तरह से काट-कपटकर पैसे जमा किये, लिखने का औज़ार ख़रीदा और अब पान-बीड़ी की लत न पालकर, मुंह में लेई लगाकर महीने में सात सौ-आठ सौ रुपये इंटरनेट का बिल भर रहे हैं और अपने एक-एक एहसासों को कंप्यूटर की कुंजियों पर पटकते जा रहे हैं। इसे आप हमारी कुंठा कहिए, फ्रस्ट्रेशन कहिए, बौड़ाहापन कहिए… जो जी में आये कहिए, न जी में आये मत कहिए।
ब्लॉगिंग करते हुए हमने कभी नहीं सोचा कि हम कोई गंभीर काम कर रहे हैं। वैसे भी अपने छुटपन को याद करना, मां की यादों में नास्टॉल्जिक हो जाना, हिंदी समाज पर लिखना और फिर जूते खाना, मीडिया संस्थानों की कमज़ोर नब्ज पर लिखकर धमकियां झेलना, ऑफिस में आप बलत्कार करते हैं या फिर सुहागरात मनाते हैं – पुरुष समाज से एक स्त्री का सवाल करना और प्राइम टाइम में आनेवाले एंकर का टेलीविजन को खुद ही गोबर का पहाड़ बताना… ये सब बौद्धिक समाज के लिए कब से गंभीर काम होने लगा? हमारे भाषाई स्तर के बेहयापन (जिसे कि अभी-अभी चैट बॉक्स पर अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि हम दो जुबान के लोग नहीं है, लिखने और बोलने के अलग-अलग) ने हमें बौद्धिक समाज के आगे और नीचा गिरा दिया। हमने चपर-चपर करना नहीं छोड़ा और सभ्य कहलाने से रह गये। हम भाषा के स्तर पर मोहल्लेपन के शिकार हो गये। हम चौराहे पर की जुबान में लिखने लग गये, इसलिए उनके बीच लील लिये गये। अब हवन जैसे पवित्र काम में जसधारी लोग एक-एक मुठ्ठी होम डालते हैं, वैसे ही सब कूड़ा है सब कूड़ा है कहते हुए इस समाज ने हमारे ऊपर लानते-मलानतें डाली। हम और कूड़ा लिखने लग गये। इस भाषाई कूड़ापन के बीच हमारे अनुभव, तेवर, समझ, खरा-खरा और सच्चापन दब गये। एक शब्द और वाक्य को पकड़कर ऐसे बैठ गये कि करतल ध्वनि से हमें वाहियात, बेकार, बकवास करार देने में बहुत अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी।
लेकिन, जब आयोजकों की ओर से हमें प्रस्तावित विषय भेजे गये तो हमें ही नहीं शायद औरों को भी ताज्जुब हो रहा होगा कि क्या हमने रोज़मर्रा की किचिर-पिचिर के बीच सोचने और विचार करने के इतने संदर्भ बिंदु पैदा कर दिये? यक़ीन न हो तो आप ही देखिए न कि किस तरह से ये प्रस्तावित विषय सूची इस बात का इशारा करती है कि देश के औसत समझ के पढ़े-लिखे लोगों ने सिर्फ पांच-छह सालों में विमर्श के इतने आधार खड़े कर दिये कि इस पर महीनों बहस चल सकती है।
1. हिंदी चिट्ठाकारी : इतिहास, स्वरूप और तकनीक
2. अंतर्जाल पर हिंदी भाषा : कुशल प्रयोग के औजार, ब्लॉग बनाने की तकनीक और प्रबंधन
3. हिंदी चिट्ठाकारी पर बहस के मुद्दे
4. चिट्ठाकारी की भाषा बनाम संप्रेषणीयता
5. अंतर्जाल पर हिंदी साहित्य और पठनीयता
6. चिट्ठाकारी : समय प्रबंधन एवं उपादेयता
7. अभिव्यक्ति की उन्मुक्तता एवं इसमें निहित खतरे
8. ब्लॉग जगत के कुंठासुर/बेनामी या छद्मनामी टिप्पणीकार।
और अंत में, देर रात संतोष भदौरिया ने फोन करके बताया कि हमने टिकट मेल कर दी है, तो अपने उतावलेपन का शिकार होते हुए पूछ बैठा – और कौन-कौन आ रहे हैं सर? वो प्रदेश के क्रम से गिनाने लग गये। दिल्ली से अविनाश, मसिजीवी, यशवंत, समरेंद्र, रियाज़ुल हक़, इरफान, भोपाल से मनीषा पांडे, मुंबई से यूनुस खान, कानपुर से अनूप शुक्ल… तभी मैंने कहा – रुकिए सर मैं एक-एक करके नोट करता हूं। तब उन्होंने इस वायदे के साथ कि कल वो ऑफिस पहुंचते ही पूरी सूची मेल करेंगे, कहा कि हम चाहते हैं कि पूरी बातचीत बिना किसी औपचारिकता के हो। अभी-अभी पोस्ट लिखते समय जानकारी मिली है कि इस चिट्ठाकारी की दुनिया पर विमर्श के लिए नामवर सिंह स्टार एपियरेंस के तौर पर मौजूद होंगे। हम इस संकेत को किस रूप में लें कि अकादमिक संस्थान भी अगर ब्लॉग पर विमर्श के लिए अपने को तैयार कर रहा है और वो भी बिना औपचारिक हुए तो इसका मतलब ये है कि वो हिंदी में ज्ञान पैदा करने के लिए ब्लॉगिंग को अनिवार्य मानने लग गया है या फिर अब तक हमने जो कुछ लिखा उसे सामूहिक तौर पर मथकर वैचारिकी की एक नयी दुनिया की तलाश करना चाहता है… क्या ये इस बात का संकेत है कि आनेवाले समय में ज्ञान की खिड़कियां इनफॉर्मल राइटिंग और बौद्धिक चिंतन के बीच में जाकर खुलेगी और पढ़ने-पढ़ाने का एक नये किस्म का फ्यूजन वर्ल्ड पैदा होगा। आप क्या सोचते हैं, कुछ हमें भी तो बताएं।
मूलतः प्रकाशित- मोहल्लालाइव
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http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256189757035#c5957276157008725954'> 22 अक्तूबर 2009 को 11:05 am बजे
ब्लागर सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं !!
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256189977752#c3169974488799710401'> 22 अक्तूबर 2009 को 11:09 am बजे
ब्लागर सम्मेलन की सफ़लता की अग्रिम बधाई।हम भी आने वाले थे पर शायद आप लोगो से मिलने का सौभाग्य हमारे नसीब मे नही है।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256190726365#c194891364906281526'> 22 अक्तूबर 2009 को 11:22 am बजे
जय हो !
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256191375768#c6103000860104502629'> 22 अक्तूबर 2009 को 11:32 am बजे
ब्लॉगर सम्मेलन अपने उद्देश्य में सफल हो।
ऐसी दिल से कामना है। मुझे न बुलाने पर भी आता परंतु कार्यालयीन व्यस्तता के चलते संभव नहीं है। इस सम्मेलन में सार्थक होगा, ऐसा पूरा विश्वास है।
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256193739204#c6521424932506653809'> 22 अक्तूबर 2009 को 12:12 pm बजे
सम्मलेन होने दीजिए ..फिर राय जाहिर की जायेगी
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256194426878#c7568908589103087600'> 22 अक्तूबर 2009 को 12:23 pm बजे
जो काम हिन्दी का पाठ्यक्रम कभी नहीं कर सका वह शायद ब्लॉगिंग कर सकेगी, याने लोगों को हिन्दी में भी रोचक लिखा जा सकता है, लिखा जा रहा है बता पाएगी। बहुत से लोग बहुत अच्छा व पठनीय लिख रहे हैं। शायद नई पीढ़ी के लोग हिन्दी से उतना विमुख न हों।
सम्मेलन की सफलता की कामना करती हूँ।
घुघूती बासूती
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256195930926#c6405848832062578585'> 22 अक्तूबर 2009 को 12:48 pm बजे
is soch ke sath ki blogger sammelan me kuch gambhir manthan hoga. shubhkamnaye!!
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256198834098#c161916929205435223'> 22 अक्तूबर 2009 को 1:37 pm बजे
हमें और पुसदकर जी को टिकट भेजकर नहीं बुलवाया… फ़िर काहे का ब्लागर सम्मेलन? :) :)… लगता है मराठियों के अपमान की साजिश रची जा रही है… (ऐसे लफ़ड़ादायक विचार भी रचे जा सकते हैं इधर बैठे-बैठे)… :) :)
बहरहाल, हमारी भी शुभकामनाएं लीजिये इस ब्लागर महासम्मेलन हेतु… :)
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256205407655#c2127795518013845169'> 22 अक्तूबर 2009 को 3:26 pm बजे
हमारी शुभकामनाएं
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256208812075#c9107053044805129345'> 22 अक्तूबर 2009 को 4:23 pm बजे
जी हाँ अगर आप सरकारी कर्मचारी हैं , यूनिवर्सिटी के अध्यापक हैं या किसी भी ऐसी संस्था मे काम करते हैं जहाँ आप को नौकरी देते समय "appointment letter " दिया गया हैं तो आप उस पत्र की सभी शर्तो को मानने के लिये बाध्य हैं ।
प्राइवेट नौकरी मे बहुधा थ्रू प्रोपर चैनल की बात नहीं होती हैं पर सरकारी और सरकारी कानूनों के आधीन सभी संस्थानों मे ये रुल हैं की आप कोई भी कार्य करने से पहले अपने बॉस या सुपीरियर से लिख कर आज्ञा लेगे ।
और अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप पर कार्यवाही की जा सकती हैं ।
दिल्ली विश्विद्यालय मे भी ये कानून हैं और वहा तो आप अगर ट्यूशन भी करते हैं तो गैर कानूनी हैं अगर उस ट्यूशन के लिये आप कोई फीस लेते हैं ।
जो लोग ऑफिस के समय मे ब्लोगिंग कर रहे हैं और जिनके ब्लॉग पर adsense हैं अगर आप ध्यान से उनके ब्लॉग देखेगे तो सब मे पोस्टिंग का टाइम रात का ही सेट किया हुआ मिलेगा !!!!!! और बहुत से ऐसे भी हैं जो पोस्ट पब्लिश का समय दिखाते ही नहीं है
पर क्युकी बहुत से ब्लॉग अग्रीगाटर पर हैं तो सही टाइम वहां से मिलता हैं । इस लिये जरुरी हैं की स्नेप शोट अग्रीगाटर से लिया जाये न की ब्लॉग का ।
ये कहना बिल्कुल निराधार होगा की हमने पोस्ट schedule कर रखी थी क्युई आप ब्लॉग्गिंग ऑफिस से इतर भी कर सकते हैं लेकिन कोई भी विज्ञापन आप के ब्लॉग पर नहीं होना चाहिये ।
पैसा कैसे इंसान की नियत बदल सकता हैं हिन्दी ब्लॉग जगत के ब्लॉग ये बताते हैं । ५०% से ज्यादा हिन्दी ब्लॉगर सरकारी संस्थानों मे आज भी ऊँचे पदों पर हैं पर लालच हैं एक्स्ट्रा इन्काम का , हिन्दी के अलावा उनके इंग्लिश के ब्लॉग भी हैं । लेकिन वो दिन दूर नहीं हैं जब ये लालच महंगा पड़ जायेगा ।
आज इतने न्यूज़ चैनेल हैं , मीडिया कहानियों को / बेईमानियों को उजागर कर रहा हैं न जाने कब ख़बर आजाए फला फला संसथान मे सरकारी पैसे का दुरूपयोग हो रहा हैं और सरकारी अफसर / बाबू ब्लॉग लिख कर विज्ञापन लगा रहे हैं और पैसा कमा रहे हैं ।
पैसा मिले ना मिले इस विज्ञापन से / ब्लोगिंग से हाँ नौकरी की सीआर जरुर बिगड़ सकती हैं । या नहीं ???
नियम और कानून मानने के लिये ही बने होते हैं
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256212058765#c6012749140059587529'> 22 अक्तूबर 2009 को 5:17 pm बजे
चलिये आपके ब्लॉग से यह सूचना तो मिली कि इलाहाबाद मे यह "अखिल भारतीय ब्लॉगर्स सम्मेलन "होने जा रहा है। इसका स्वरूप शायद "अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगर्स सम्मेलन" होना चाहिये । अब मुझे कोई सूचना या आमंत्रण मिला नहीं है सो मै इसके शीर्षक पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता । मुझे यह भी पता नहीं है कि कितने समय से ब्लॉगिंग कर रहे ब्लॉगर्स को इसमे आमंत्रित किया गया है या वरिष्ठता के आधार पर कोई सूची बनाई गई है । बहरहाल जिन विषयों पर बातचीत होनी है उन विषयों को जानकर अच्छा लगा । हम जैसे लोग प्रिंट मीडिया मे काफी पहले से सक्रिय हैं और ब्लॉग जगत से जुडने के बाद लगातार इस प्रयास में हैं कि प्रिंट मीडिया और ब्लॉगजगत में समनवय स्थापित हो सके । नामवर जी , और अन्य वरिष्ठ साहित्यकारो के बीच इस पर् भी सम्वाद होता है । ब्लॉग जगत मे सर्वश्री रमेश उपाध्याय,कुमार अम्बुज ,उदयप्रकाश,सूरजप्रकाश,बोधिसत्व,पवन करण,रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति , रविन्द्र व्यास ,शिरीष मौर्य ,पंकज चतुर्वेदी,सिद्धेश्वर सिंह,अशोक पाण्डेय,अशोक कुमार पाण्डेय,जैसे और भी बहुत से साहित्यकार सक्रिय है और जिनका प्रयास है कि यह माध्यम एक गरिमामय स्थान प्राप्त करे । आशा है यह सम्मेलन अपने उद्देश्यों को लेकर सफल होगा और अपनी ऊँचाईयों को प्राप्त करेगा । शुभकामनायें - शरद कोकास ,दुर्ग,छ.ग.
शरद कोकास http://kavikokas.blogspot.com
पुरातत्ववेत्ता-http://sharadkokas.blogspot.com आलोचक
http://sharadkokaas.blogspot.com
पास पड़ोस http://sharadakokas.blogspot.com
ना जादू ना टोना
http://wwwsharadkokas.blogspot.com
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256212330486#c7379423973315805653'> 22 अक्तूबर 2009 को 5:22 pm बजे
चलिये आपके ब्लॉग से यह सूचना तो मिली कि इलाहाबाद मे यह "अखिल भारतीय ब्लॉगर्स सम्मेलन "होने जा रहा है। इसका स्वरूप शायद "अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगर्स सम्मेलन" होना चाहिये । अब मुझे कोई सूचना या आमंत्रण मिला नहीं है सो मै इसके शीर्षक पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता । मुझे यह भी पता नहीं है कि कितने समय से ब्लॉगिंग कर रहे ब्लॉगर्स को इसमे आमंत्रित किया गया है या वरिष्ठता के आधार पर कोई सूची बनाई गई है । बहरहाल जिन विषयों पर बातचीत होनी है उन विषयों को जानकर अच्छा लगा । हम जैसे लोग प्रिंट मीडिया मे काफी पहले से सक्रिय हैं और ब्लॉग जगत से जुडने के बाद लगातार इस प्रयास में हैं कि प्रिंट मीडिया और ब्लॉगजगत में समनवय स्थापित हो सके । नामवर जी , और अन्य वरिष्ठ साहित्यकारो के बीच इस पर् भी सम्वाद होता है । ब्लॉग जगत मे सर्वश्री रमेश उपाध्याय,कुमार अम्बुज ,उदयप्रकाश,सूरजप्रकाश,बोधिसत्व,पवन करण,रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति , रविन्द्र व्यास ,शिरीष मौर्य ,पंकज चतुर्वेदी,सिद्धेश्वर सिंह,अशोक पाण्डेय,अशोक कुमार पाण्डेय,जैसे और भी बहुत से साहित्यकार सक्रिय है और जिनका प्रयास है कि यह माध्यम एक गरिमामय स्थान प्राप्त करे । आशा है यह सम्मेलन अपने उद्देश्यों को लेकर सफल होगा और अपनी ऊँचाईयों को प्राप्त करेगा । शुभकामनायें - शरद कोकास ,दुर्ग,छ.ग.
शरद कोकास http://kavikokas.blogspot.com
पुरातत्ववेत्ता-http://sharadkokas.blogspot.com आलोचक
http://sharadkokaas.blogspot.com
पास पड़ोस http://sharadakokas.blogspot.com
ना जादू ना टोना
http://wwwsharadkokas.blogspot.com
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256229146447#c138140260781928296'> 22 अक्तूबर 2009 को 10:02 pm बजे
शुभकामनाएं...
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256230638343#c6768323852735031605'> 22 अक्तूबर 2009 को 10:27 pm बजे
इस समय शायद आप ट्रेन में होंगे -कल मिलते ही हैं !
http://taanabaana.blogspot.com/2009/10/blog-post_22.html?showComment=1256235048243#c5323352639006735997'> 22 अक्तूबर 2009 को 11:40 pm बजे
कुछ ऐसा ही मन्थन कल की संगोष्ठी में होने वाला है। इस मध्यम पर साहित्य जगत के पुरओधा क्या सोचते हैं यह जानना रोचक होगा। आप सभी इसपर दृष्टि बनाए रखिए। साधुवाद।