देश में कोई समस्या हो या फिर कोई सवाल इसके पहले कि उसके कारण और जबाब तैयार हैं। खबरिया चैनल बाकी के कामों के साथ-साथ जबाब देने का काम भी बहुत फुर्ती से करते हैं। दुनियाभर के लोगों से सवाल पूछने वाले चैनल आपदा के समय दोहरे स्तर का काम करते हैं। एक तो सवाल पूछने का और दूसरा कि जबाब देने का। ऐसे समय में सवाल पूछने से ज्यादा जबाब देने का काम तेजी से होने लग जाता है।
कोसी में जो कुछ भी हो रहा है उसका सीधा जबाब है इनके पास कि बिहार सरकार ने बचाव के लिए कोई काम नहीं किया। लालू प्रसाद ने जैसे ही इसे स्टेट क्राइम कहा, बाकी के खबरिया चैनल इसके आस-पास के शब्द ढ़ूंढ़ने शुरु कर दिए और किसी को नहीं कुछ मिला तो सीधा इसका हिन्दी तर्जुमा ही सामने रख दिया और जिसको बहुत मिल गया उसने लालू और नीतिश दोनों को सामने भिड़ा दिया। कोसी-बाढ़ में आम आदमी का अनाज,पशु और फसलें डूबी हैं, लोगों की जिंदगी डूबी है, पटना और दिल्ली से जानेवाले कैमरे और ओबी थोड़े ही डूबे हैं। चैनल तो अपनी औकात दिखा ही सकते हैं। असहाय तो वहां की जनता है जो न तो अपनी कुछ दिखा सकती है और न इनकी कुछ देख सकती है। देख सकते हैं तो सिर्फ हम जैसी जनता जिनका कि बाढ़ क्या बारिश में एक रुमाल तक नहीं भींगा है। आराम से हम अपने कमरे में पड़े हैं और सुरक्षा का भाव बीच-बीच में हमारे चेहरे पैर तैर जा रहा है कि- चलो, हम तो बचे हुए हैं। इसलिए चैनल जो कुछ भी दिखा रहे हैं वो हम जैसे दर्शकों के लिए दिखा रहे हैं जिनका कहीं कुछ नुकसान नहीं हुआ है। और जब कहीं कुछ नुकसान नहीं हुआ है तो फिर तो सिर्फ बाढ़ ही क्यों, बाकी की खबरें क्यों नहीं। यकीन मानिए, खबरिया चैनल ज्यादा देर तक संवेदना के स्तर पर खबरें पेश करने का माद्दा खो चुके हैं। उन्हें घुटन होने लगती है जब ज्यादा देर तक आम आदमी की परेशानियों के बारे में बात करनी पड़ जाती है।
चैनल के फेशियल कोसी-बाढ़ में दो-तीन के भीतर धुल गए। कल से कोसी और बाकी के जगहों पर बाढ़ के पानी का स्तर कमना शुरु हुआ और टॉप स्टोरी में बिहार के बाढ़ की खबरें सीधे चौथे-पांचवें नंबर पर आ गयी। पहले नंबर पर बहनजी आ गयी, असली नोट- नकली नोट का भय आ गया और टाटा को टा टा, नैनो को ना ना आ गया। इस बीच न्यूज २४ को देखा तो थोड़ी देर के लिए संतोष हुआ कि चलो, कोई तो अभी तक टिके हुए हैं, अभी तक बाढ़ पर ही टिका हुआ है। लेकिन कुछ ही देर बाद समझा कि इसने राहत लेकर चलो बिहार का जो पैकेज बनाया है उसमें खबर और प्रचार एक-दूसरे में गुंथा हुआ है। बदहाली को भुनाने की भनक आपको सहज ही मिल जाएगी।
आप यकीन मानिए जैसे ही बाढ़ का पानी नीचे उतरता जाएगा, टीवी स्क्रीन से बाढ़ की खबरें उतरती चली जाएगी। खबरिया चैनलों के हिसाब से फिर कोई खबर ही नहीं रह जाएगा। पुर्नवास, महामारी, बेकारी, संबंधो को याद करती पथराई आंखे, ये सबके सब साहित्य कविता, समाजशास्त्र औऱ पुर्नवास के लिए काम करनेवाले एनजीओ के जिम्मे चला जाएगा, जो अगली बार तक के लिए फिर मीडिया के लिए शब्द गढ़ेंगे, आंकड़े जुटाएंगे। इस बार तो आंकड़ें को मामले में सारे चैनल चूक गए, अबकि बार आंकड़ों को लेकर हांक लगाएंगे कि इतने आदमी मरे थे। फिर हमें सुखद लगेगा, उनके ज्ञान को लेकर संतोष होगा कि पढ़-लिखकर आए हैं सब कवरेज करने। प्रशासन और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोग तो आगे की तैयारी जब करेंगे तब करेंगे, मीडिया के लिए तो साहित्य, एनजीओ और समाजशास्त्रियों ने अभी से ही काम करने शुरु कर दिए हैं।
ये खबरिया चैनल मानकर चलते हैं कि इनका काम इमरजेंसी का है, बाकी ओपीडी का काम साहित्य और अखबार में कॉलम लिखनेवाले विशेषज्ञों का है। अपने पास दुनियाभऱ की खबरों को कवर करने का काम है, अकेले बिहार थोड़े ही है। खबरिया चैनलों के इस वर्किंग कल्चर को अगर आप समझ रहे हैं तब आप कोसी के कहर के पहले की कहानी को भी आसानी से समझ जाएंगे। जिस बात को ये मीडिया चैनल बार-बार दोहरा रहे हैं कि- जब प्रशासन को पता होता है कि हर साल बाढ़ आते हैं तो इसने इसकी व्यवस्था पहले से क्यों नहीं की। लोगों को क्यों नहीं बताया कि वो बचाव के लिए वैकल्पिक व्यवस्था तैयार रखें। चैनल के लिए बहुत आसान है कि वो सारी बातें सरकार पर थोप दे। हम ये नहीं कह रहे हैं कि वो जो कुछ भी कह रहे हैं, गलत है। हम बस ये कह रहे हैं कि खबर के नाम पर जो कुछ भी कर रहे हैं, वो गलत है।
चलिए हम मान लेते हैं कि व्यवस्था के नाम पर सरकार ने कुछ भी नहीं किया। आप खबरिया चैनलों की भाषा में कहें तो सोती रही सरकार, बाढ़ के बढ़ते रहे आसार। लेकिन सूचना के स्तर पर आपने क्या किया। आप बिहार के बाढ़ से लेकर दूसरी सामाजिक समस्याओं को लेकर सालभर में कितनी खबरें दिखाते हैं। देश की बदहाली पर कितनी मार्मिकता से बात करते हैं। इंडिया टीवी जैसे चैनल ने ये पता लगा लिया कि पुष्पक विमान की रफ्तार इंडियन एयरवेज के विमानों से १६७ कि।मी। ज्यादा थी और इतना पता नहीं कर पाए कि कोसी में बाढ़ कब आ सकती है। रावण के स्वर्ग की सीढ़ी तैयार पड़ी है और चैनल को सस्ते दामों में नाव तैयार करने की विधि की जानकारी नहीं। अगर एनडीटीवी और दिल्ली के दो-चार पत्रकारों को छोड़ दें तो बाकी के कितने लोग हैं जो ये दावा कर सकते हैं कि उन्होंने बिहार में बाढ़ की संभावना पर कहीं कुछ लिखा है। लगभग सारे चैनलों में बिहार के लोग हैं और सालभर में एक बार अपने घर जरुर जाते हैं। किसने कोशिश की होगी कि दस-पन्द्रह दिनों की छुट्टी में स्थितियों का जायजा लेकर दिल्ली आने पर एक फीचर ही लिख दें। बिहार जाकर भी सिरी फोर्ट में होनेवाले कार्यक्रमों की खबरें रखनेवाले लोगों को पैकेज बनाते समय एक बार तो जरुर सोचना चाहिए कि वो जिन फुटेज का इस्तेमाल कर रहे हैं, अधिक से अधिक करुणा और संवेदना पैदा करने के लिए, उनमें कभी सांसे भी हुआ करती थी।
अभी कुछ दिनों पहले लोकसभा चैनल ने न्यूज चैनलों के कंटेट पर पूरा पैकेज चलाया था और विशेषज्ञों की राय भी ली। निष्कर्ष में यही बात सामने आयी कि पूरे बुलेटिन में चार प्रतिशत भी ऐसी खबरें नहीं होती है जिसका संबंध रुरल एरिया और वहां की सामाजिक स्थिति से है। आज बाढ़ आने पर चार-पांच दिनों के भीतर जो आपने दिन-रात बिहार के गांवो की तस्वीरें दिखायी, वो ग्रामीण इलाके की पत्रकारिता नहीं है। वो तो बस हमारे और आपके मन के विरेचन के लिए है। प्राइम टाइम से खबरें गायब हो रही हैं। कहीं कोई रिसर्च औऱ होमवर्क करके कोई खबर नहीं। अधिकांश खबरें मनोरंजन चैनलों से उठाए गए जिसमें कि साभार और प्रोग्राम के हिसाब से बस स्लग जोड़ दिया जाता है।
खबरों को लेकर जो घपलाबाजी हो रही है उसमें है हादसों का सच। पानी उतरने के साथ ही पति के बिछुड़ जाने पर भी उस महिला पर तीज का रंग चढ़ाने में है हादसों का सच। गणेश चतुर्थी के नाम पर उपर-नीचे सारी जगहों पर गणपति बप्पा मोरिया भर देने में है हादसों का सच और सूर्य ग्रहण के नाम पर दिन-रात पाखंड रचने में छिपा है हादसों का सच। खबरिया चैनलों ने नेताओं की जो छवि बना दी है उस छवि से कोई भी व्यक्ति नेता होते हुए तो नहीं ही उबर सकता लेकिन जनता अगर खबरों की घपलेबाजी के गणित को समझने लग जाए तो फिर खबरिया चैनलों को बहुत अधिक मशक्कत जरुर करनी पड़ जाएगी।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/09/blog-post_03.html?showComment=1220436720000#c3028470930169662022'> 3 सितंबर 2008 को 3:42 pm बजे
vineet ji,
sach to wahi hai jo aap bata rahe hai...
kya kiya jae....
chal raha hai esse hi
http://taanabaana.blogspot.com/2008/09/blog-post_03.html?showComment=1220439060000#c8057686737006291402'> 3 सितंबर 2008 को 4:21 pm बजे
मीडिया सबको खबर देता है, पर मीडिया की खबर लेने वाले कम हैं। आपने खबरिया चैनलों की सही बधिया उधेड़ी है। इस लाइन में रहते हुए इसकी आलोचना करना हिम्मत का काम है। भविष्य में भी ये ताकत बनी रहे। शुभकामनाएँ।
http://taanabaana.blogspot.com/2008/09/blog-post_03.html?showComment=1220448000000#c9115712713402214563'> 3 सितंबर 2008 को 6:50 pm बजे
aur ase kahate hai BLOG