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ए राजा ! दो न रे, एकदम करीना जैसी बहू मिलेगी तेको. जोड़ी सलामत रहे राजा. ए चिकने, गर्लफ्रेंड को लेकर कहा उड़ा जा रहा है रे, इधर भी तो देख, क्या कमी है ?
रेडलाइट पर ऑटो के ठीक आगे आकर इस तरह के संवाद और तालियों के बीच ट्रैफिक की चिल्ल-पों जैसे थोड़े वक्त के लिए फ्रीज हो जाती है.

साथ में दोस्त की पत्नी बैठी हो, भाभी हो, दीदी बैठी हो, कभी पलटकर बहस नहीं करता कि जिसे आपने मेरी गर्लफ्रेंड कहा है वो असल में क्या लगती है मेरी और जिस करीना जैसी बहू की कामना मेरे लिए कर रही हैं, वो मेरे एजेंड़े में है नहीं. चुपचाप दस का नोट आगे बढ़ाते हुए मुस्करा देता हूं. कभी ऐसा नहीं हुआ कि दस का नोट बढ़ाने के बाद सिर पर हाथ फेरने की कोशिश न की हो. एकाध बार तो गाल कुछ इस तरह छुए कि एस्नो-पाउडर की महक के आगे अर्मानी की खुशबू दब गई.
आज आजाद मार्केट रेडलाइट पर जैसे ही ऑटोवाले भइया ने ब्रेक लगायी. वो आयी और रे..चिक..अभी रे चिकने वाक्य पूरा करती कि मैंने बीस के नोट पकड़ा दिए. वो अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पायी. चेहरे के भाव अजीब से बन गए कि पैसे तो मिल गए लेकिन वो जो कहना चाह रही थी, वो अधूरा ही रह गया. सामने रुकी होंडा सिटी के शीशे पर हाथ से कई बार थपकी दी, हारकर पीछे बैठी एक महिला ने शीशा नीचे किया और कहा, आगे जाओ. वो आगे न जाकर वापस मेरे पास आ गयी और सीधा पूछा- अरे चिकने, स्साले तुम्हारे पास ज्यादा पैसा है क्या, बिना पूछे बीस रुपये पकड़ा दिए और वो देखो बैन की..इतने जेवर लादे बैठी है, साफ मना कर दिया.
आपको मेरे पैसे देने से बुरा लगा तो वापस कर दीजिए, एक पाव भिंडी तो आ ही जाएगी.
बैनचो..तेरे पर गुस्सा नहीं हो रही हूं बस ये जानना चाह रही थी कि तू पहले से नोट निकालकर क्यों बैठा था ?

सामने सिग्नल की ओर देखा 97 यानी कुछ बात इनसे की जा सकती है..देखिए, मैंने आपको पैसे आप पर रहम खाकर नहीं दिए. आपने मेरे आगे भले ही ताली न बजाई हो और मैंने आपको रे..चिक..के आगे बोलने का मौका न दिया हो लेकिन मैंने जब सामने आपको ताली बजाकर पैसे मांगते देखे तो मुझे क्लास नाइंथ में अपने उपाध्याय सर की शास्त्रीय संगीत की क्लास याद आ गयी. एकताल, तीनताल, झपताल. हम जैसे लोग उस संगीत को पढ़कर अच्छे नंबर लाए और भूल गए लेकिन आप पता नहीं क्लास गई भी होंगी या नहीं लेकिन इसे दिल्ली की सड़क पर जिंदा रखी हुई हैं सो दिया...और जिस अंदाज में आप पैसे मांग रही थी न सामने बाइकवाले से..लगा आप मेरी कोम टाइप से डायलॉग डिलिवरी कर रही हों, सो उसके लिए दस ज्यादा दिए..आपकी रंगों में शास्त्रीय संगीत औऱ हिन्दी सिनेमा का टुकड़ा दौड़ता है और मैंने बस एक मीडिया के छात्र की हैसियत से एक अध्याय के लिए पैसे दिए..
बैनचो..बड़ी लंबी-लंबी छोड़ने लगा तू तो, बीस रुपये देकर ही..स्साला तेरे ही जैसे सनकी औलाद सबके पैदा हो जाएं तो हमरी जात भी कलाकार कहलावेगी..स्साले ने दिन बना दिया.. औलाद वाली बात कहकर उन्होंने रे चिक..अधूरे वाक्य पूरे कर लिए थे.
डिस्क्लेमरः- ये उनकी तस्वीर नहीं है जिनसे अभी थोड़ी देर पहले बात हुई, ये गूगल से ली गई तस्वीर है लेकिन ऑटो के आगे बिल्कुल इसी अंदाज में खड़ी हुई थी तो बस उस भाव के लिए इस तस्वीर को लगा रहा हूं. ‪#‎दरबदरदिल्ली‬
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1 Response to 'आपकी रगो में हिन्दी सिनेमा का टुकड़ा दौड़ता है, इसलिए'
  1. विकास दिव्यकीर्ति
    http://taanabaana.blogspot.com/2014/09/blog-post_7.html?showComment=1410081323055#c7848574993135073077'> 7 सितंबर 2014 को 2:45 pm बजे

    शानदार पोस्ट...

     

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