अब जबकि चैनलों ने इस घोटाले को लेकर लगातार खबरें चलानी शुरु की जिसमें कि बारीकियों के बजाय कुछ लोगों को टांग देने भर का मूड ज्यादा है, हिन्दी मीडिया के वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार और इस साल गोयनका अवार्ड से सम्मानित अजीत अंजुम न्यूज चैनलों के इस काम पर लट्टू हुए जा रहे हैं। उनके लिए इस घोटाले की खबर का दिखाया जाना उन उदाहरणों में से है जिसे लहराकर हमारे बीच किल्ला ठोंक दावे कर सकते हैं कि देखो तुमलोग न्यूज चैनलों को कोसते फिरते हो,कितना बड़ा काम कर रहा है ये। इसी मुग्धता की चपेट में आकर उन्होंने फेसबुक के वॉल पर लिखा-
टीवी चैनल और अखबार कलमाड़ी एंड कंपनी के काले कारनामों और घोटालों का लगातार खुलासा कर रहे हैं . मीडिया को गैरजिम्मेदार मानकर दिन रात कोसने वालों आलोचकों और निंदकों को कम से कम इस मामले में मीडिया की तारीफ करनी ही चाहिए . मीडिया इस मामले में अपना काम कर रहा है अगर सरकार भी करने लगे तो गेम्स खत्म होते होते कलमाड़ी एंड कंपनी को सलाखों के पीछे भी जाना पड़ सकता है . क्या लूट मचा रखी है इन सबने..
अजीत अंजुम इससे पहले भी मीडिया और न्यूज चैनलों के पक्ष में अपनी वॉल पर लिखते आए हैं। उनके ऐसा लिखने के पीछे न्यूज चैनलों का पक्ष लेने से कहीं ज्यादा मीडिया आलोचकों को उकसाना और उनकी औकात बताने की नीयत ज्यादा रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो वो जरुर न्यूज चैनलों के पक्ष में जो बात लिखते हैं उसका मजबूत आधार होता। उकसाने की उऩकी इस आदत को हम कई बार मारकर बर्दाश्त कर लेते लेकिन अबकी बार जो उन्होंने कॉमनवेल्थ घोटाले को दिखाए जाने पर न्यूज चैनलों को अपनी तरह से क्रांतिकारी होने का बिल्ला बांटने लगे तो हमेशा रहा नहीं गया। हमने फेसबुक पर इसका जबाब देना जरुरी समझा। जो जबाब हमने वहां दिया,उसकी स्क्रीन शॉट तस्वीर की शक्ल में यहां लगा दे रहा हूं। लेकिन पूरी बात थोड़ा और विस्तार देकर रखना जरुरी है।
अजीत अंजुम जिस बिना पर न्यूज चैनलों पर लट्टू हुए जा रहे हैं उसके जबाब में एक ऐसी ऑडिएंस जो लगातार टेलीविजन तो देखती है लेकिन भीतर के खेल तक उसकी पहुंच नहीं है, वो भी यही कहेगा कि- रहने दीजिए,हमारी अक्ल घास चरने नहीं गयी है। सौदा पटा नहीं तो घोटाले की खबर दिखाने लग गए, नहीं तो अभी शेरु के छापेवाली टीशर्ट पहनकर एंकर तो एंकर चैनल के सारे रिपोटर्स पीटीसी देते नजर आते। क्या घोटाला कोई एख दिन में हुआ है। इतने-इतने प्रेस कॉन्फ्रेंस हुए,कॉमनवेल्थ की मसाल को लेकर जो कार्यक्रम आयोजित हुए,उन सब में से किसी के दौरान कुछ गड़बड़ होने की भनक आपको नहीं मिली। पूरी दिल्ली इस खेल के नाम पर खोद दी गयी,जो टाइल्स तीन महीने पहले लगे थे,उसे दोबारा और उससे कहीं ज्यादा घटिया लगाए गए। मैंने खुद अपनी आंखों से देखा कि डीयू कैंपस में जो डिवाइडर दोपहर को लगाए हैं,शाम तक धाराशायी हो गए। एफएम चैनलों ने बार-बार बताया कि रॉ मटीरियल बड़े पैमाने पर लोग अपने घरों में ले जा रहे हैं। जितने पत्थर सड़कों पर काम के लिए गिराए गए वो सबके सब चाय-समोसे की रेड़यों के आगे बैठने के काम आने लगे। ये कोई एक दिन का घोटाला नहीं है, इसके पीछे लंबी और शुरु से कहानी है। कभी किसी चैनल ने पता करने की कोशिश की कि जो भी कन्सट्रक्शन चल रहे हैं,उसकी एक्सपेक्टेड लागत और जो लगे हैं उसके बीच कितना का फर्क है। वो साठ दिन पहले तक सिर्फ अधूरे काम,कब पूरे होंगे पर स्टोरी करते रहे। ये एक सॉफ्ट स्टोरी बनकर रह गयी।
अजीत अंजुम जिस बिना पर न्यूज चैनलों पर लट्टू हुए जा रहे हैं उसके जबाब में एक ऐसी ऑडिएंस जो लगातार टेलीविजन तो देखती है लेकिन भीतर के खेल तक उसकी पहुंच नहीं है, वो भी यही कहेगा कि- रहने दीजिए,हमारी अक्ल घास चरने नहीं गयी है। सौदा पटा नहीं तो घोटाले की खबर दिखाने लग गए, नहीं तो अभी शेरु के छापेवाली टीशर्ट पहनकर एंकर तो एंकर चैनल के सारे रिपोटर्स पीटीसी देते नजर आते। क्या घोटाला कोई एख दिन में हुआ है। इतने-इतने प्रेस कॉन्फ्रेंस हुए,कॉमनवेल्थ की मसाल को लेकर जो कार्यक्रम आयोजित हुए,उन सब में से किसी के दौरान कुछ गड़बड़ होने की भनक आपको नहीं मिली। पूरी दिल्ली इस खेल के नाम पर खोद दी गयी,जो टाइल्स तीन महीने पहले लगे थे,उसे दोबारा और उससे कहीं ज्यादा घटिया लगाए गए। मैंने खुद अपनी आंखों से देखा कि डीयू कैंपस में जो डिवाइडर दोपहर को लगाए हैं,शाम तक धाराशायी हो गए। एफएम चैनलों ने बार-बार बताया कि रॉ मटीरियल बड़े पैमाने पर लोग अपने घरों में ले जा रहे हैं। जितने पत्थर सड़कों पर काम के लिए गिराए गए वो सबके सब चाय-समोसे की रेड़यों के आगे बैठने के काम आने लगे। ये कोई एक दिन का घोटाला नहीं है, इसके पीछे लंबी और शुरु से कहानी है। कभी किसी चैनल ने पता करने की कोशिश की कि जो भी कन्सट्रक्शन चल रहे हैं,उसकी एक्सपेक्टेड लागत और जो लगे हैं उसके बीच कितना का फर्क है। वो साठ दिन पहले तक सिर्फ अधूरे काम,कब पूरे होंगे पर स्टोरी करते रहे। ये एक सॉफ्ट स्टोरी बनकर रह गयी।
न्यूज चैनलों के भीतर वाकई सरोकार है( मैं इसे मौके-मौके पर उमड़ आनेवाली चीज मानता हूं) तो उसका काम सिर्फ घोटाले की खबर को हम तक लाना नहीं है। उसका काम घोटाले के अंदेशे से भी हमें अवगत कराना है। अगर उऩ्हें लगता है कि वो घोटाले की खबर दिखाकर कोई बहुत बड़े सरोकार का काम कर रहे हैं। उऩके ऐसे घोटाले की खबर दिखाए जाने से भविष्य में ऐसे घोटालों पर लगाम कसे जा सकेंगे तो माफ कीजिएगा ऐसे घोटाले सीरियल और आरुषि हत्याकांड की खबर जैसा मजा तो दे सकते हैं जिनमें सस्पेंस और थ्रिलर एलीमेंट होते हैं,लेकिन इन खबरों से घोटालों पर लगाम नहीं लगेगा,न अभी न कभी भी। क्योंकि एक तो इन घोटालों मे तथ्यों की अनदेखी करके जल्दी से जल्दी इसे एक रोचक धारावाहिक कथा में बदल देने की चैनलों की छटपटाहट होती है और दूसरा गदहे के सिर से सिंघ गायब हो जाने की पुरानी आदत इसके असर को खत्म कर देती है। अजीतजी,आप बता सकते हैं कि संसद में नोटो की जो गड्डियां लहाराई गयी थी और अपने सबसे काबिल टीवी पत्रकार ने हमसे कहा था कि हमारे पास इसके पीछे की पूरी कहानी की सीडी है,हम इसे फिलहाल देशहित में रख रहे हैं,ब्रॉडकास्ट नहीं कर रहे,उस सीडी का क्या हुआ? वो किस मरघट में स्वाहा कर दी गयी। अजीतजी आप बता सकते हैं कि अगर चैनल सचमुच इतना सरोकार रखते हैं तो सबसे करप्ट रीयल स्टेट दुनिया की खबर, पानी के पीछे माफिया की खबर, एफसीआई के भीतर भयंकर गड़बड़ियों की खबर,वीपीओ में हिला देनेवाली करप्शन, मल्टीनेशनल कंपनियों के दलालों की खबर हम तक क्यों नहीं पहुंचाते? आखिर ऐसा क्यों है कि जो राजदीप सरदेसाई,शायद आप भी ये मानते हैं कि अब दिनभर प्रधानमंत्री और राजनेताओं के चेहरे ही टेलीविजन स्क्रीन की खबर बने,जरुरी नहीं। इसे टीआरपी के लिहाज से भी अलग कर देते हैं, जब अपने को सरोकार से जुड़ा होनेवाला साबित करना हो तो इन्हीं नेताओं को कटघरे में शामिल करके क्रांति का बिल्ला बांटने-लगाने लग जाते हैं। आखिर सरोकारी पत्रकारिता सिर्फ राजनीतिक खबरों के बीच से ही क्यों पनपती है? क्या बाकी के सेक्टर में कोई गड़बड़ियां नहीं है,क्या उसमें करप्शन नहीं है,क्या वो खबर नहीं है? ऐसा इसलिए कि आपलोगों को राजनीतिक लोगों की बाट लगाने के बाद भी उन्हें मैनेज करने का पुराना अभ्यास है, उनकी बत्ती लगाकर भी कल को आप उन्हें मैनेज कर लेंगे लेकिन कार्पोरेट की बत्ती लगाकर बाद में साधने की कला अभी आपने सीखी नहीं। एक बार हाथ से गया सो गया। फ्यूचर में सीख लें तो शायद वहां के घोटाले की भी खबर देने लग जाए। सब है,तब आप टीआरपी की दुहाई देंगे,लोग किसान,भूखमरी की बातें नहीं देखना चाहते। हमें हैरानी होती है कि जब हम वाकई सरोकारी खबरों की बात करते हैं तब आप टीआरपी की दुहाई देने लग जाते हैं और जब हम न्यूज चैनलों की स्टोरी को स्ट्रैटजी मानते हैं तो उसे आप सरोकारी पत्रकारिता का लेबल चस्पाने लग जाते हैं।
सच्चाई आप भी जानते हैं,टुकड़ो-टुकड़ों में कुछ-कुछ हम भी कि लालाओं के पैसे से एक का माल दो किया जा सकता है,दो का चार,एक सरोकार से जुड़ा संवेदनशील समाज नहीं। दिलीप मंडल दो मंचों से ये कह भी चुके हैं कि जिन मीडिया संस्थानों में करोड़ों रुपये लगे हों,वहां के मालिक जब बोर्ड की मीटिंग में बैठते हैं तो आपको क्या लगता है कि मूल्य,सरोकार,नैतिकता,जागरुकता की बात करते होंगे? राजदीप ने तो उदयन शर्मा की संगोष्ठी में लगभग समर्पण ही कर दिया कि हम विज्ञापन और कंपनियों के आगे विवश हैं। संपादकों में न बोलने की ताकत नहीं रह गयी। अब आप अकेले इस किस्म की पत्रकारिता को सरोकारी पत्रकारिता का नाम दे रहे हैं तो आगे क्या कहें? सच बात तो ये है कि ऑडिएंस ने अब आपलोगों से इस तरह की उम्मीद और मांग करना छोड़ दिया है। वो मानकर चलने लगी है कि ये एक किस्म का धंधा है। आपसे अपील है कि इस तरह की बातें करके उन्हें कन्फ्यूज न करें।
अब देखिए- इस घोटाले की उत्तर कथा क्या होगी? ये महज मेरा अनुमान है. जिस खेल के पीछे शीला दीक्षित और उनकी टीम ने महीनों लगाया उसे वो चैनलों के हाथ का झुनझुना कभी नहीं बनने देगी। अभी दो-चार दिन और बजा लेने दीजिए। जब उऩका मन भर जाएगा,भीतर के सारे विकार बाहर आ जाएंगे ( इसे अरस्तू ने काथार्सिस( विरेचन) कहा था) तब नए सिरे से फ्रेश मूड में आक्रमक तरीके से कॉमनवेल्थ फेवर का काम होगा। तब सारे चैनलों को कुछ-कुछ टुकड़े फेंक दिए जाएंगे। चैनल के भीतर जो अभी सरोकारी पत्रकारिता का गूलकोज-पानी चढ़ा है,उसके बदले सरकार का चढ़ेगा। वो कॉमनवेल्थ के पक्ष में खड़े होते जाएंगे।
अजीतजी, लेकिन आप चिंता बिल्कुल न करें। आपके न्यूज चैनलों के पत्रकार तब भी सरोकारी पत्रकार ही कहलाएंगे। आपने जो उन्हें क्रांतिकारी पत्रकार के बिल्ले बांटे हैं,उनकी भी तो इज्जत रखनी है। आखिर खबर का असर वाला चालू फार्मूला किस दिन काम आएगा? सारे चैनलों पर लिखा आएगा- खबर का असर, शीला सरकार आयी हरकत में,कॉमनवेल्त से सारी गड़बड़ियों का सफाया,अब कहीं कोई खोट नहीं। ऐतिहासिक होगा कॉमनवेल्थ, शीला की अपील- देशहित में दें हमारा साथ।..चैनल की तरफ से अपील- आपने हमें घोटाले के वक्त देखा,अब देखिए जब हम इस खेल से घोटाले को जड़ से खत्म कर दिया। खबर का असर- सुधर गया सबकुछ, न्यूज इज बैक,खबर हर कीमत पर,दिल में सच,जुबां पे इंडिया।..देखते रहिए.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281165439150#c7806141752283126685'> 7 अगस्त 2010 को 12:47 pm बजे
ए भाई , इ का , एकदम सच लिखो हो ।
15 अगस्त पर एक सानदार ब्लाँग विजेट अपने ब्लाँग मे लगायेँ
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281166137277#c4456013502094972519'> 7 अगस्त 2010 को 12:58 pm बजे
वाह क्या जबरदस्त लिखा है. कुछ बातें बहुत ही प्रभावी लगीं, विशेष तौर पर बिजनेस से जुड़े खुलासों को लेकर आपने जो तर्क किया उसका जवाब शायद ही कोई सामने आकर देना चाहे..
आप काथार्सिस को कार्थासिस लिख गए हैं.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281166295777#c1974888714796344607'> 7 अगस्त 2010 को 1:01 pm बजे
शीला दीक्षित की अपील से पहले ही मीडिया वाले खुद ही अपीलों पर उतर आए, आज सुबह सुबह सुब्रत राय अपील कर दिए हैं। अब दूसरे मीडिया हाउस भी उतरेंगे, पहुंच रहा है सबके पास टुकड़े पहुंचेंगे। ...और एक बात ठीक लगी ये सामाजिक सरोकार वगैरहा की बात करके जनता को कन्फ्यूज मत करिए, जनता बहुत समझदार है, वो जानती है किसका कितना और क्या इंट्रेस्ट है। वैसे भी टीवी चैनल ने आधी अधूरी स्टोरीज की कल्माड़ी एंड पार्टी के खिलाफ, नतीजा दो चार प्यादा लोग को हिला कर अपनी जै जै कर रहे हैं।
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281184081641#c3809550013753774259'> 7 अगस्त 2010 को 5:58 pm बजे
सुबह सुबह सुब्रतो राय को पढ़कर आधे लोगो ने तो मानस भी बना लिया कोमनवेल्थ को सपोर्ट करने का.. अंतिम पैराग्राफ ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया.. क्या हमारा स्वविवेक है ही नहीं? मिडिया ने चोर कहा तो हमने चोर मान लिया मिडिया ने साधू कहा तो हमने साधू मान लिया.. क्या आर ओ आई के तहत हममे से कोई मांगेगा खर्चो का हिसाब? शायद नहीं..
दरअसल मिडिया समाज का आईना है.. निकम्मी सरकार नहीं.. जनता है जो चुपचाप अपने पैसो को बहता देखती जाती है.. गुलाल का एक डायलोग है 'मारना आता नहीं तो मार खा' क्यूंकि हमें मारना आता नहीं तो मार खाने के लिए ही बने है.. यदि अपने अधिकारों के प्रति हम सजग नहीं है तो हमें मार खाने के ही अधिकारी है.. जनता का जागरूक होना ही सबसे ज़रूरी है..
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281198392199#c4309497608304005072'> 7 अगस्त 2010 को 9:56 pm बजे
बहुत बढ़िया पोस्ट.
विनीत जी, मीडिया और उसके कार्य-कलाप पर आपके विचारों का और विश्लेषण का मैं कायल हूँ. सच बताऊँ तो आज एनडीटीवी के मुकाबला कार्यक्रम में पार्टिसिपेंट द्वारा जो कुछ भी कहा गया उसको देखते हुए मुझे यही लगा कि माटी डालना शुरू हो गया है. अगले चार दिन में सबकुछ ढक-तुप जाएगा. लगभग हर चैनल पर सुरेश कलमाडी का इंटरव्यू देखकर तो मुझे यही लग रहा है. रिकोंसिलियेशन दो दिनों में ही अपने अंतिम दौर में होगा और वृहस्पतिवार तक बैलेंस मिल जाएगा.
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281199849108#c3396657960743644813'> 7 अगस्त 2010 को 10:20 pm बजे
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग , रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही.बहुत बढ़िया विनीत . ( लाईनें अजीत अंजुम जी के प्रोफाइल से )
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281205347611#c6120560401191231157'> 7 अगस्त 2010 को 11:52 pm बजे
मीडिया की बाजारू निगाहों के लिए ,राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार से जुडी कवरेज महज बिकाऊ सामान है |ये कुछ ऐसा ही है कि दरवाजे पर खड़ी बारात के स्वागत के बजाय लड़की का बाप सबके सामने अपने बेटे को इसलिए पिटने लगे कि उसने बारात आने से पहले ही दारू कैसे चढा ली ,पत्रकारिता तब होती जब आयोजन स्थल के चयन के बाद से ही पूरी व्यवस्था पर मीडीया की निगहबानी होती
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281239463952#c3739948166339039970'> 8 अगस्त 2010 को 9:21 am बजे
बहुत सुन्दर प्रस्तुती ,दरअसल जरूरत है आज सिर्फ लिखने की नहीं बल्कि भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाप कार्यवाही के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पर एकजुट होकर दवाब बनाने की और उनके द्वारा कार्यवाही नहीं करने पर सामूहिक आत्मदाह तक करने की | जब तक जनता अपने जान पर खेलकर इन भ्रष्ट मंत्रियों को सबक नहीं सिखायेगी जनता यूँ ही लुटती रहेगी और देश और समाज का पतन होता रहेगा ,इन कुकर्मियों ने बद से बदतर बना दिया इस साधन संपन्न देश को लूटकर इनसे तो अंग्रेज अच्छे थे | ये तथाकथित मिडिया वाले शर्म आती है इनपर ,वो तो भला हो CVC के कुछ इमानदार जाँच कर्ताओं का जिनके वजह से इस घोटाले की तस्वीर आम जनता के पास पहुँच सकी ,शाबास CVC और शर्मनाक मिडिया और उसकी खोजी पत्रकारिता ...वो तो ब्लॉग मिडिया है जो आप जैसे सच्चे लोगों की सच्ची बातें पढने को मिल जाती है नहीं तो मिडिया ने सत्यमेव जयते को तो बेच ही दिया है ..?
http://taanabaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_07.html?showComment=1281250803758#c894249664350971451'> 8 अगस्त 2010 को 12:30 pm बजे
HILA KAR RAKH DIYA...AAP NE