रेणु का नाम याद करते ही कैथरीन हैन्सन का नाम अपने आप याद हो आता है। रेणु की जिस भाषा और प्रयोग पर हम जैसे लोग फिदा है,कुछ लोग इसे हिन्दी मानने के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ने लग जाते हैं,कैथरीन ने उसका व्यावहारिक विश्लेषण करते हुए सीरियस रिसर्च किया है। आज कैथरीन सीएसडीएस आ रही हैं जिन्हें सुनना अपने आप में दिलचस्प होगा। रविकांत ने माफी मांगते हुए दीवान पर अभी-अभी मेल जारी किया है-
दोस्तो,
देर से सूचना के लिए माफ़ी माँगता हूँ. आज 4 बजे शाम को कैथरीन हैन्सन सराय-सीएसडीएस मे
एक प्रस्तुति देंगी. उनका विषय है:
Passionate Refrains: The Theatricality of Urdu on the Parsi Stage
आप ज़रूर तशरीफ़ लाएँ.
प्रस्तुति-सार
पारसी रंगमंच के असरात हिन्दी सिनेमा पर साफ़ हैं - चाहे हम कहानी की बात करें या विधाओं की,या फिर स्टार भूमिकाओं की.नव-गठित फ़िल्म उद्योग को चलाने के लिए ज़रूरी तकनीकी महारत,पूंजी,और मानव संसाधन भी पारसी रंगमंच ने ही मुहैया कराए.इस पेशकश में हम ख़ास तौर पर भाषा,ख़याल और भाव-भंगिमा को लेकर पारसी शैली के अवदान पर चर्चा करेंगे. इंदरसभा के ज़माने से ही पारसी थिएटर ने उर्दू ग़ज़लों का इस्तेमाल रूमानी ड्रामों/दृश्यों के लिए किया.सवाल ये भी है कि इस नाट्य-शैली में उर्दू,नाटक के माध्यम के रूप में, अंग्रेज़ी और गुजराती पर भारी कैसे पड़ती है? वह भी बंबई जैसी जगह पर? इस विश्लेषण में उन उर्दू मुंशियों के योगदान को परखने की भी कोशिश होगी जिन्होंने अभिनेताओं,प्रबंधकों और मालिकों के साथ मिलकर एक विशिष्ट पारसी-उर्दू शैली की रचना की. इन सबमें उर्दू शायरी और हिन्दुस्तानी संगीत-नृत्य का एक अनोखा संगम हुआ जिसने नये नाटकों की अपील में चार चाँद लगाए, औरत उन्हें व्यावसायिक तौर पर भी सफल बनाया. मंच में आती तब्दीलियों और मेलोड्रामा के लिए ज़रूरी अदायगी की माँग को पूरा करने का काम उर्दू-प्रशिक्षित अभिनेता बेहतर कर पाते थे. इस पर्चे में आग़ा हश्र कश्मीरी कृत ऐतिहासिक रूपक यहूदी की
लड़की और उसके 1955 के फ़िल्मी संस्करण का हवाला देते हुए सोहराब मोदी की ऐतिहासिक शैली को भी रेखांकित किया जाएगा.
वक्ता-परिचय:
प्रोफ़ेसर कैथरिन हैन्सन का नाम रेणु और पारसी थिएटर के विद्यार्थियों के लिए नया नहीं
है.उनकी कुछ अहम किताबें व आलेख:
2009 "Staging Composite Culture: Nautanki and Parsi Theatre in Recent
Revivals," South Asia Research, 29(2): 151-68.
2006 “Ritual Enactments in a Hindi ‘Mythological’: Betab’s Mahabharat in
the Parsi Theatre,” in Economic and Political Weekly of India (Mumbai),
December 2, 2006, 4985-4991.
2005 A Wilderness of Possibilities: Urdu Studies in Transnational
Perspective, edited and introduced by Kathryn Hansen and David Lelyveld.
New Delhi: Oxford University Press.
2005 Somnath Gupt, The Parsi Theatre: Its Origins and Development,
translated and edited by Kathryn Hansen. Calcutta: Seagull Books.
शुक्रिया
रविकान्त
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http://taanabaana.blogspot.com/2010/03/blog-post_18.html?showComment=1268895719274#c3679067970000268130'> 18 मार्च 2010 को 12:31 pm बजे
"रेणु एक महान रचनाकार थे-हैं और रहेंगे....."
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
http://taanabaana.blogspot.com/2010/03/blog-post_18.html?showComment=1268901686807#c3102487659086452761'> 18 मार्च 2010 को 2:11 pm बजे
जो लोग रेनू की भाषा और उनके प्रयोग पर नाक -मुहं सिकोड़ते हैं, शायद वे भारतीय जन मानस से जुड़े नहीं हैं...