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अगर आपको हिन्दी साहित्य में और खासकर साहित्य पढ़कर पढ़ाने में थोड़ी-सी भी रुचि है तो डीयू के आर्ट्स फैकल्टी में विवेकानन्द (मूर्ति) के आसपास के इलाके में आपको नियमित नहीं तो कभी-कभार जरुर बैठना चाहिए।....ये हिन्दी जगत के लोगों के लिए विधान सभा है। यहां आपको करीब चार तपके के लोग मिल जाएंगे- जिसे विश्लेषण की सुविधा के लिए चार उपशीर्षकों में बांट सकते हैं- (1) अविकसित(2) अर्धविकसित (3) विकसित और (4) पूर्ण विकसित लेकिन बेकार। अब जरा स्थितयों के अनुसार प्रवृतियों का विश्लेषण कर लिय़ा जाए।
जो स्टूडेंट या रिसर्चर सीधे विभाग में आया है, इससे पहले उसके पास डीयू में दो-तीन साल काटने का अनुभव नहीं है...वो सारे अविकसित लोग हैं। इस लिहाज से एम.फिल् कर रहा जे.आर.एफ. होल्डर भी बीए कर रहे स्टूडेंट से गया गुजरा है।...इसे पता ही नहीं चल पाता कि लाल तार, केसरिया तार और तिरंगे तार के कनेक्शन्स कहां से जुड़े हैं और पावर ग्रिड कहां है, कहां से बिजली की सप्लाई है जिससे कि वो जगमगाएगा।
(2) दूसरी श्रेणी में वो लोग हैं जो विभाग की विकास -प्रक्रिया से जुड़ चुके हैं लेकिन कन्फ्यूजन अभी भी बरकरार है।...ये कन्फ्यूजन विषय, विकल्प, शोध-निर्देशक से लेकर तार के रंगों को लेकर भी है। उन्हें पावर हाउस, सर्किट और सप्लाई सबकुछ का आइडिया है लेकिन इनकी परेशानी थोड़ी दूसरी किस्म की है।.....ये विद्वान होकर पढ़ाना चाहते हैं ,हमारे आपके जैसे नहीं कि भनक लगी नहीं कि फलां जगह सीट खाली है ,जुगाड़ लगाने से काम बन सकता है और भिड़ गए। ये ऐसे लेक्चरर बनना चाहते हैं कि जब ये क्लास लें तो हिन्दी सहित दूसरे विषय और विकल्प के लोग टूट पड़े इनको सुनने के लिए ....खिड़कियों तक पर चढ़ जाएं। इनकी ये नैसर्गिक इच्छा लगभग सारे टीचरों से कुछ-कुछ बटोर लेने के लिए विवश करती है।...लेकिन ऐसा करते वक्त ये भूल जाते हैं कि ठंड़ा-गरम एक साथ मिला देने से सिस्टम शॉट कर जाने का खतरा बना रहता है।....बहरहाल अपनी नजर में ये सेक्यूलर हैं, सही मायने में रिसर्चर लेकिन लोगों ने इन्हें बत्तख नाम दिया है।
(3) इस कोटि के रिसर्चर औरों की अपेक्षा ज्यादा सम्मानीय हैं। इनके पास डीयू का लम्बा अनुभव है, पॉवर हाउस, सर्किट, विषय और दूसरी जरुरी बातों के मामले में कॉन्सेप्ट बिल्कुल क्लियर है।...ये एकेश्वरवाद को मानते है। इनके मुताबिक सारे मास्टरों के पास जाने से इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है ।......और फिर रिसर्चर में और....में कुछ फर्क भी तो है भाई...क्यों भटकते फिरे।....इस कोटि के लोगों में अगर नेट या जे.आर.एफ. नहीं भी है तो कोई बात नहीं, शक्ति का सोता लगातार फूटता रहता है जो इन्हें बल देता है । फिर इनके हिसाब से नेट- जे.आर.एफ. कुक्कुर-बिलाय का भी निकल जाता है, असल चीज तो है चिंतन।...तो ये चिंतनधारी लोग हैं, अभाव में भी खुशहाल..भविष्य इनका है।
(4) वस्तुस्थिति के हिसाब से सबसे बदतर स्थिति में पूर्ण विकसित लोग हैं। क्योंकि इनके पास न तो सीखने के लिए कुछ बचा है और न ही बदलने की कोई गुंजाइश। अपने तरक्की के दौर में इन्होंने अपना जौहर तो खूब दिखाया था, दो तीन कॉलेजों में बतौर गेस्ट लेक्चरर के रुप में पढ़ाया भी । लेकिन अब ये श्रीहीन हो गए। क्योंकि विभाग में जो नया सॉफ्टवेयर आया है उनके हिसाब से ये अनपढ़ हैं। अब इनके लिए विभाग प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था कराए। पहले वाला जमाना भी गया कि जब जूनियर्स इन्हें घेरे रहते थे। अब तो हर तरह से ये श्रीहीन हैं....और जूनियर्स को हसरत भरी नजर से देखते हैं और थोड़ी इर्ष्या और थोड़ा अफसोस से कहते हैं - तुम्हीं लोगों का अच्छा है जी।....
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5 Response to 'हिन्दी विभाग, डीयू का उत्तर-आधुनिक विभाजन'
  1. Rakesh Kumar Singh
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/09/blog-post_9985.html?showComment=1190129580000#c5624691285473429462'> 18 सितंबर 2007 को 9:03 pm बजे

    बढिया लिखा. वैसे अपने पास देखा-सुना तजुर्बा ही है. आपको किस ख़ाने में रखा जाए. तीसरा वाला शायद उपयुक्त रहेगा.


    रफ्तार यही रही तो जल्दी जमा लोगे धाक चिट्ठीकारों के बीच.

    शुभकामनाएं

     

  2. विनीत कुमार
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/09/blog-post_9985.html?showComment=1190133360000#c2110678319764856685'> 18 सितंबर 2007 को 10:06 pm बजे

    शुक्रिया सर, आप ही लोगों को देखकर,बतियाकर हौसला बना रहता है। बराबर देखते रहिए...एक से एक आइटम मिलेगा यहां पर

     

  3. Unknown
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/09/blog-post_9985.html?showComment=1190149020000#c8959896638568805199'> 19 सितंबर 2007 को 2:27 am बजे

    one thing i hv perceived in this deptt.n people of different faculty say it too that hindi wale shreshthata bodh me dube rahta hai....i find it true bcoz i hv seen hindi student hv no interest about uther faculty,deppt.or subjects..they find themselves selfsufficient...none thing more that now the bahaviour of seniors hv also been changed n thts the cause of less respect frm their juniors....its nt all fault of juniors only...i m nt saying it bcoz of being a junior bt i hv passed through this experiences.....bt it is really gd...

     

  4. विनीत कुमार
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/09/blog-post_9985.html?showComment=1190170440000#c376703963409735116'> 19 सितंबर 2007 को 8:24 am बजे

    पहले तो बहुत-बहुत शुक्रिया,यहां आने के लिए ।मैंने जो विभाजन किया है वो उत्तर-आधुनिक विभाजन है..इसलिए भक्तिकाल या रीतिकाल की तरह सीधे-सीधे कोई नहीं आएगा इसमें,सबकुछ कॉकटोल रुप में होगा,..थोड़ा ये तो थोड़ा वो। और मैं जो समझता हूं कि सीनियर्स के पहले कोई भी बंदा एक इंसान है और नहीं है तो होना चाहिए।

     

  5. Sanjeet Tripathi
    http://taanabaana.blogspot.com/2007/09/blog-post_9985.html?showComment=1190557140000#c507293925848086386'> 23 सितंबर 2007 को 7:49 pm बजे

    वाह!! क्या विश्लेषण किया है बंधु!!

     

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