tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post985156656263062862..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: पुण्य प्रसूनजी, आपको मीडिया के उन लफ्फाजों का विरोध करना था न !विनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-78596708173021667682012-12-09T20:31:05.207+05:302012-12-09T20:31:05.207+05:30sp sahab ke aaderse bhi sankat me hai kya
sp sahab ke aaderse bhi sankat me hai kya <br />Ram Balak Royhttps://www.blogger.com/profile/13256156780807307302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-78079060360801780832012-07-03T16:21:19.960+05:302012-07-03T16:21:19.960+05:30पुण्य प्रसून बाजेपयी जी बताएँगे की वहां लफ्फाजी कौ...पुण्य प्रसून बाजेपयी जी बताएँगे की वहां लफ्फाजी कौन कर रहा था? <br /><br />पुण्य प्रसून बाजेपयी बड़े पत्रकार हैं लेकिन उनमें बड़प्पन नहीं <br />पुण्य प्रसून बाजेपयी बड़े पत्रकार हैं लेकिन उनमें बड़प्पन नाम की कोई चीज नहीं. कुछ गुरूर भी है. शायद यह गुरुर सहारा प्रणाम करने से आया होगा ! 27 जून को उनका असली व्यक्तित्व सामने आया. एस.पी सिंह स्मृति समारोह में वक्ता के तौर पर उन्हें बेहद सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया गया था. उन्होंने निमंत्रण स्वीकार किया और आने का वायदा किया. एस.एम.एस और फोन करके उन्हें कार्यक्रम के बारे में याद भी दिलाते रहे. <br />लेकिन 27 जून के कार्यक्रम में वे बहुत देर से पहुंचें. ख़ैर ऐसा कई बार हो जाता है. लेकिन जब तक वे नहीं आए उस दौरान उन्हें कार्यक्रम के बारे में लगातार अपडेट किया जाता रहा कि अब कितने वक्ता बचे हैं आदि – आदि. कार्यक्रम खत्म होने के कुछ ही देर पहले वे पहुंचे. उन्हें सम्मान से मंच पर बैठाया गया. फिर उन्होंने अपना भाषण दिया. आमंत्रण कार्ड और कार्यक्रम को लेकर जो भी समस्या उन्हें थी उसपर अपनी बात रखी. कुछ वाजिब बातें भी कहीं. फिर सवाल - जवाब का सत्र शुरू हुआ. यहाँ तक सब ठीक था. लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक न जाने क्या हुआ कि पुण्य प्रसून जी बिना किसी को बोले ऐसे उठकर चल पड़े जैसे और किसी का वहां कोई अस्तित्व ही नहीं है. मॉडरेटर वर्तिका नंदा तक को कुछ नहीं कहा. चुकी पुण्य प्रसून जी वक्ता थे , उन्हें सम्मान देना मेरा काम था. इसी वजह से उन्हें इस तरह उठते जाते देखकर पूछा कि क्या आप जा रहे हैं? फिर जो हुआ , उससे मैं स्तब्ध रह गया. उन्होंने बड़ी रुखाई से (यदि वे इस कद के पत्रकार नहीं होते तो मैं ‘रुखाई’ की जगह ‘बदतमीजी’ शब्द का इस्तेमाल करता) से जवाब दिया - "हां , तो क्या यहाँ बैठकर लफ्फाजी करें. काम - धंधा नहीं करना है." <br />फिर वे चले गए और मैं कुछ पल वही स्तब्ध खड़ा रहा. पुण्य प्रसून नाम के एक महान पत्रकार का आईना टूट चुका था. आगे जाकर उन्होंने पत्रकारिता के उन छात्रों को भी झिडक दिया जो उनके साथ तस्वीर खिंचवाना चाहते थे. उनके व्यक्तित्व का अनदेखा रूप सबके सामने था. यह छवि उनकी स्क्रीन छवि से बिलकुल अलग थी. <br />पुण्य प्रसून जी जिनका मैं जबरदस्त प्रशंसक रहा हूँ उनसे बड़ी शिद्दत से एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि यदि आपको स्वर्गीय एस.पी.सिंह की याद में रखी गयी संगोष्ठी लफ्फाजी लग रही थी तो ये बात आपने मंच से क्यों नहीं कही? आप बोलने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र थे. शैलेश जी, राहुल देव, अल्का सक्सेना, आशुतोष और दीपक चौरसिया को क्यों नहीं कहा कि यहाँ लफ्फाजी हो रही है और आप लोग लफ्फाजी में शामिल हैं. यहाँ पुण्य प्रसून बाजेपयी नाम के खांटी पत्रकार की जुबान पर किस कॉरपोरेट ने ताला लगा दिया था? आपने उन छात्रों के सवालों का जवाब क्यों नहीं दिया जिनका सवाल किसी खास वक्ता से नहीं बल्कि सामूहिक रूप से तमाम वक्ताओं से था. वहां तो आप चुप्पी साध गए और न जाने किस बात की सारी खीज मुझ जैसे अदने पत्रकार और तुच्छ इंसान पर निकाली. <br />माननीय पुण्य प्रसून बाजेपयी जी स्वर्गीय एस.पी.सिंह को हम जैसे लोगों ने नहीं देखा है. लेकिन जितना समझ पाया हूँ कि यदि आपकी जगह एस.पी होते तो मंच से चाहे वे कुछ भी कहते, कार्यक्रम की धज्जियाँ उड़ाते, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर अपने से इतने कनिष्ठ पत्रकार के साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं करते, जैसा आपने मेरे साथ किया.<br /><br />दरअसल पुण्य प्रसून जी ने उस मंच का तिरस्कार करने की कोशिश की जहाँ एस.पी के बहाने टेलीविजन विमर्श चल रहा था. उस मंच पर कोई कॉरपोरेट, कोई बिल्डर या पत्रकारिता से इतर एक भी शख्स नहीं था और न ही बातचीत में किसी बाहरी का कोई हस्तक्षेप था. यदि पुण्य प्रसून जी कमर वहीद नकवी, राहुल देव, शैलेश जी, अल्का सक्सेना, दीपक चौरसिया और आशुतोष को पत्रकार समझते हैं तो उस हिसाब से उस मंच पर सारे पत्रकार ही आसीन थे. गैर पत्रकार कोई नहीं था. तो सवाल उठता है कि वहां लफ्फाजी कौन कर रहा था? क्या पुण्य प्रसून बाजेपयी जी बताएँगे की वहां लफ्फाजी कौन कर रहा था?पुष्कर पुष्पhttps://www.blogger.com/profile/17279446104672331339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-56044201077376844052012-07-03T07:52:41.359+05:302012-07-03T07:52:41.359+05:30अच्छा लिखा है। बधाई!अच्छा लिखा है। बधाई!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com