tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post7838321399872093160..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: जो तिलक लगाकर दिल्ली मेट्रो में खा रहे थेविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-24902981738052467732010-06-24T15:11:26.833+05:302010-06-24T15:11:26.833+05:30विनीत, तुम अच्छे से जानते हो कि मैं कितना अधार्मिक...विनीत, तुम अच्छे से जानते हो कि मैं कितना अधार्मिक टाइप का आदमी हूँ.. <br /><br />फिलहाल तुम्हारी कही ही एक बात को मैं कोट कर रहा हूँ फिर अपनी बात कहूँगा.. <br /><br /><b>"ये सारी बातें पढ़ने,सुनने और समाज के लोगों के बीच रखने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन पावर डिस्कोर्स में ये सारी बातें एक गहरी साजिश का नतीजा है"</b><br /><br />मुझे नहीं पता कि असल में यह पावर डिस्कोर्स क्या होता है? हो सकता है कि मेरे पास तर्कों कि भी कमी हो क्योंकि मैंने कई जरूरी समाजवाद टाइप के विषय से सम्बंधित पुस्तकें नहीं पढ़ी हैं.. मगर जिस तरह से कई दफे कुछ ब्लॉग या साईट पर बहस होते देखता हूँ और जिस तरह से कई सामान्य बातों को साजिश बता दिया जाता है, मैं निर्विकार रूप से सोचता हूँ तो मुझे उन्ही तर्कों में कम्यूनिज्म कि साजिश की बू आने लगती है.. और वह बातें जो वे करते होते हैं वह बाते उन लोगों के लिए बेहद सामान्य होती है.. ठीक उतनी ही आम जितनी की धर्म और संस्कृति के नाम पर किये गए काम आम जनो के लिए होती है(यहाँ मैं किसी एक धर्म को कोट नहीं कर रहा हूँ, बल्कि सभी को घेरे में ले रहा हूँ).. ऐसे ही देखता हूँ तो हर वह बात बुरी लगने लगती है और उनमे भी साजिश ही दिखने लगती है जो बेहद सामान्य है.. माता-पिता के प्यार तक में से आप उन आधारों पर साजिश ढूंढ सकते हैं, उनके स्वार्थ भी निकाल सकते हैं.. मगर आप और हम जानते हैं की ऐसा बिलकुल नहीं है..<br /><br />रही बात नियम मानने ना मानने की तो मैं आपसे इस बात पर पूरी तरह सहमत हूँ की <b>जिन लोगों ने उन नियमों को बनाया है, पहले वे तो आदर्शों को स्थापित करें..</b><br /><br /><b>@ नीरज भाई - </b>आपने लिखा, "खुशी के मौके पर खाना-पीना ना हो तो बात जमती नहीं है।" यहाँ बात जमाने के लिए नहीं है.. यह कोई दिल्ली मेट्रो वालों का घर नहीं और यह गृह प्रवेश की पार्टी नहीं जहाँ खाए-पिए बिना काम ही ना चले.. यह हम जैसे ही टैक्स पेयर के पैसे से बनाया गया मेट्रो है, एक सार्वजानिक संपत्ति.. मेरी समझ से इस मेट्रो के चलने से विनीत को कोई परेशानी तो नहीं ही हो रही होगी.. मुझे पता है की आप मेट्रो में काम करते हैं और उससे भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं इसलिए भावावेश में इस तरह के कमेन्ट लिख गए हैं..<br /><br /><b>मैंने अपने पहले वाले कमेन्ट में से एक लाइन हटा भर लिया है.. मित्रों को इससे ठेस लग रही थी..</b>PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-20491464391081877372010-06-24T12:21:20.345+05:302010-06-24T12:21:20.345+05:30@ PD (प्रशान्त) जी,
टिप्पणी की उपरोक्त पंक्ति के...@ PD (प्रशान्त) जी, <br /><br />टिप्पणी की उपरोक्त पंक्ति के बिना भी आप अपनी बात को कह सकते थे...आपके द्वारा ऐसी असभ्य, अमर्यादित, दूसरों की भावनाओं, श्रद्धाओं का अपमान करने वाली ये पंक्ति बहुत व्यथाकारक है...दिवाकर मणिhttps://www.blogger.com/profile/03148232864896422250noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-85481743898437429182010-06-23T23:41:40.551+05:302010-06-23T23:41:40.551+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-15962677741985106392010-06-23T22:18:46.368+05:302010-06-23T22:18:46.368+05:30अरे तो आपको क्यों खुजली हो रही है कि मेट्रो वालों ...अरे तो आपको क्यों खुजली हो रही है कि मेट्रो वालों ने मेट्रो के अन्दर कुछ खा लिया। भई, उनका ऑफिस है, वे तो खायेंगे ही। क्या आप कभी अपने ऑफिस में कुछ नहीं खाते। <br />आज इस लाइन पर मेट्रो का पहला चक्कर था। इससे बडी खुशी की बात और क्या हो सकती है? खुशी के मौके पर खाना-पीना ना हो तो बात जमती नहीं है। <br />अरे, मेट्रो चले तो तुम्हे परेशानी, ना चले तो भी तुम्हे परेशानी। अरे आप चाहते क्या हो? अब तुम नारियल के मुद्दे पर औंधे मुंह गिर पडे हो, तो खाने की बात को उछाल रहे हो।नीरज मुसाफ़िरhttps://www.blogger.com/profile/10478684386833631758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-14883929735038580382010-06-23T18:23:03.169+05:302010-06-23T18:23:03.169+05:30विनीत जी, आपके पिछले पोस्ट का शीर्षक और सामग्री कह...विनीत जी, आपके पिछले पोस्ट का शीर्षक और सामग्री कह तो कुछ और रहा है, और लोगों यानि पाठकों से आशा कर रहे हैं कि जो मैंने नहीं लिखा, आप उसे समझो। अरे भाई "हिन्दूओं की बपौती" या "तिलक-नारियल" की रट्ट लगा रहे हैं, और यहां कह रहे हैं कि मेरा आशय दूसरा था !! भई धन्य हैं आप....दिवाकर मणिhttps://www.blogger.com/profile/03148232864896422250noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-61172659343580152212010-06-23T14:58:35.382+05:302010-06-23T14:58:35.382+05:30विनीत जी , आपकी दोनों पोस्ट्स पढ़ी। आपने एक संवेदनश...विनीत जी , आपकी दोनों पोस्ट्स पढ़ी। आपने एक संवेदनशील मुद्दे को हवा दे दी। शायद इसी लिए लोगों की भड़ास निकल कर टिप्पणियों में आ गई । मेरे विचार से पूरे प्रकरण में कोई गलत बात नज़र नहीं आ रही है । उद्घाटन विधिवत रूप से ही होना चाहिए । ज्यादातर सरकारी कार्यक्रम भी इसी तरह शुरू किये जाते हैं । क्या किसी कार्यक्रम में ज्योति प्रज्वलित नहीं की जाती ? किसी भी भवन की नीव रखने के लिए हवन नहीं किया जाता ? क्या प्रसाद धर्म देखकर दिया या लिया जाता है ?<br />गर्मी के मौसम में जगह जगह शरबत पिलाया जाता है । क्या उस समय पीने या पिलाने वाला धर्म के बारे में सोचता है ? नहीं मित्र । धर्म के नाम को ज़रुरत से ज्यादा इस्तेमाल करना सही नहीं । यदि ये अधिकारी इसके बाद कभी मेट्रो में खाते नज़र आयें तो निसंदेह भर्त्सनीय होगा । <br />वैसे आपके साथ थोड़ी ज्यादती हो गई , टिप्पणियों का रुख देखकर यह लगता है । किसी को भी इतना तीखा नहीं होना चाहिए ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-18570936100667270482010-06-23T14:49:02.853+05:302010-06-23T14:49:02.853+05:30आप ने बात को जिस तरीके से कहा उस से तिलक-प्रसाद ही...आप ने बात को जिस तरीके से कहा उस से तिलक-प्रसाद ही हाईलाइट हुआ। यदि आप चाहते थे कि मेट्रो में खाने से नियम टूटने वाली बात हाईलाइट होती तो उस के लिए जो फॉर्म आपने चुनी वह गलत थी।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-83149131683067515312010-06-23T14:46:52.611+05:302010-06-23T14:46:52.611+05:30नियम यदि बनाया है तो बनाने वाला भी नहीं तोड़ सकता।...नियम यदि बनाया है तो बनाने वाला भी नहीं तोड़ सकता। तोड़ता है तो वह नियम चल नहीं सकता। या फिर नियम तोड़ने वालों को सजा होनी चाहिए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com