tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post7651622069648505348..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: और दीयाबरनी से प्यार हो जाताविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-61152318803235865682013-05-08T18:45:04.856+05:302013-05-08T18:45:04.856+05:30लाजवाब लेखन पर सूर सलाम | बहुत उम्दा प्रस्तुतीकरण ...लाजवाब लेखन पर सूर सलाम | बहुत उम्दा प्रस्तुतीकरण | <br /><br />कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें | <br /><a href="http://www.tamasha-e-zindagi.blogspot.in" rel="nofollow">Tamasha-E-Zindagi</a><br /><a href="http://www.facebook.com/tamashaezindagi" rel="nofollow">Tamashaezindagi FB Page</a><br />Tamasha-E-Zindagihttps://www.blogger.com/profile/01844600687875877913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-45435261738919358812009-10-22T15:41:57.534+05:302009-10-22T15:41:57.534+05:30ये रिवाज तो हमारे यंहा नहीं होता था पर आपके पोस्...ये रिवाज तो हमारे यंहा नहीं होता था पर आपके पोस्ट ने पुरानी यादो को फिर से ताजा कर दिया जैसे की दीयो का तराजू बनाना और भी बहुत सारी बाते ,इस सुन्दर सी पोस्ट के लिए आप को बहुत बहुत साधुवाद|Vivek "The Wisdom"https://www.blogger.com/profile/06257535733973503312noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-67276516512775458362009-10-19T19:11:41.693+05:302009-10-19T19:11:41.693+05:30दियाबरनी का रिवाज़ तो हमारे यहाँ नहीं था ..पर बचपन...दियाबरनी का रिवाज़ तो हमारे यहाँ नहीं था ..पर बचपन में घरौंदे हमने खूब बनाए हैं...कॉलेज में आ जाने के बाद,घरौंदे बनाना छोड़ देने के बाद भी हमारी बड़ी डिमांड थी,आस पड़ोस की छोटी छोटी लडकियां घरौंदे बनवाने ले जातीं और उनकी मम्मियां मेरे लिए बढ़िया बढ़िया नाश्ता बनातीं....आज महानगर में रहने वाले बच्चों को एक्सप्लेन भी करूँ तो वे समझ नहीं पाते....rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-36936745772559628942009-10-19T18:49:20.957+05:302009-10-19T18:49:20.957+05:30ये तुम्हारी दीयाबरनी तो गजब है विनीत, वैसे सच कहें...ये तुम्हारी दीयाबरनी तो गजब है विनीत, वैसे सच कहें तो हमारी तरफ ये रिवाज नहीं होता, लेकिन तुम्हारा पोस्ट पढ़कर पता चल ही गया, क्या होगी ये दियाबरनी जिसने तुम्हें प्यार करना सिखा दिया :-)नीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-91435390951041586752009-10-19T12:18:03.267+05:302009-10-19T12:18:03.267+05:30दियाबरनी की बचपन की यादें हमारी शेष हैं जिन्हें आप...दियाबरनी की बचपन की यादें हमारी शेष हैं जिन्हें आपने फ़िर कुसुमित कर दिया।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-55641504436791561422009-10-19T03:20:09.193+05:302009-10-19T03:20:09.193+05:30हमे भी दियाबरनी की याद है छोटू -शरद कोकासहमे भी दियाबरनी की याद है छोटू -शरद कोकासशरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-77617069425163690532009-10-19T00:07:17.111+05:302009-10-19T00:07:17.111+05:30accha sansmaran..
मनीषा पांडे said...और हां, ये ल...accha sansmaran.. <br />मनीषा पांडे said...और हां, ये लड़कियों से प्यार करने की आदत ठीक नहीं है। सिर्फ लड़की से प्यार करो।..<br />manisha ji ki baat se sahmat.. :P<br />waise hamne bhi 16 diwali ghar par (samastipur) hi manai hai... deeyabarani kabhi nahi dekha..Ambarishhttps://www.blogger.com/profile/10523604043159745100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-3377245028020850402009-10-17T23:34:20.983+05:302009-10-17T23:34:20.983+05:30क्या जबरदस्त लेखन है ! सलाम !क्या जबरदस्त लेखन है ! सलाम !अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-70722504516853877522009-10-17T22:13:37.083+05:302009-10-17T22:13:37.083+05:30अच्छा लगा आपकी बचपन की कहानी सुनकर ..कभी कभी सोंचत...अच्छा लगा आपकी बचपन की कहानी सुनकर ..कभी कभी सोंचती हूँ हर लड़की दिया बरनी सी ही होती है जो दूसरी सुबह निस्तेज हो जाती है रौशनी फैलाकर ..उनके लिए कोई नही रोता है.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-10168318246270840512009-10-17T21:16:48.499+05:302009-10-17T21:16:48.499+05:30बहुत बढ़िया...दियाबरनी की याद हो आई बचपन की.
सुख औ...बहुत बढ़िया...दियाबरनी की याद हो आई बचपन की.<br /><br />सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,<br />दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ<br />खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..<br />दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!<br /><br />सादर<br /><br />-समीर लाल 'समीर'Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-11743471827575145462009-10-17T15:41:52.670+05:302009-10-17T15:41:52.670+05:30बहुत सुंदर विनीत। वो तो बचपन के खेल थे। अब असली वा...बहुत सुंदर विनीत। वो तो बचपन के खेल थे। अब असली वाली दियाबरनी कब ला रहे हो। और हां, ये लड़कियों से प्यार करने की आदत ठीक नहीं है। सिर्फ लड़की से प्यार करो। एक लड़की से। समझे... लखैरा....:)मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-37216012696614794672009-10-17T15:00:25.045+05:302009-10-17T15:00:25.045+05:30भैया, आज एक बात बता दूं कि अपना बचपन कायदे से हॉस्...भैया, आज एक बात बता दूं कि अपना बचपन कायदे से हॉस्टल में गिरवी रख दिया गया था. जब तक मुज़फ़्फ़रपुर लौटना हुआ दीदी ने घरौंदे बनाने छोड़ दिए थे. हां, अपन तो दवाई के कार्टन (जिसे हाल-हाल तक कार्टून कहते थे) में लक्ष्मी-गणेश के लिए मंदिर बनाते रहे और उसे ही बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों से सज़ाते रहे. <br /><br />इस साल अच्छा ये लग रहा है कि माताजी संयोग से यहीं हैं, खीर और दाल भरी पुड़ी सालों बाद मिलेगी. भाई, आसपास के दोस्तों को न्यौता है रात के भोजन का. सब कोने आउ, जौर भोजन कएल जाएत.Rakesh Kumar Singhhttps://www.blogger.com/profile/09355343165726493984noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-17547974898842460252009-10-17T14:18:54.957+05:302009-10-17T14:18:54.957+05:30विनीत तुमने पुरानी यादों को ताजा कर दिया. हमलोग मु...विनीत तुमने पुरानी यादों को ताजा कर दिया. हमलोग मुजफ्फरपुर में दीयाबरनी को घरकुंडा कहते हैं. थोडा सा हमारे यहाँ अलग तरह से मनाया जाता है. मुझे यह बेहद पसंद है. बचपन में हमलोग दीदी के साथ मिलकर कई दिन पहले से मिटटी का घरकुंडा बनाने में लग जाते थे, हमलोग लकडी और थर्माकॉल का प्रयोग घर कुंडा बनाने में नहीं करते थे. होड़ लगी रहती की कैसे दूसरे से बड़ा और अच्छा घर कुंडा बने. दो तल्ला और कभी - कभी तीन तल्ला घर कुंडा. सूखने के बाद उसकी डेंटिंग - पेंटिंग और फिर सजावट. दीपावली के दिन घर कुंडा में दीपक तो जलाया जाता ही है. साथ ही छोटे - छोटे मिटटी के बर्तन में मुढी,और भूंजा , बताशे के साथ रखा जाता है. लक्ष्मी पूजन के बाद वह बताशा और भूंजा भाई को खाने को मिलता है. लेकिन उसके पहले गीत गाया जाता है. अब लग रहा है जैसे सब लुप्त हो रहा है. आज तुमने याद नहीं करवाया होता तो शायद घर कुंडा या दियाबरनी जैसी चीजों की याद भी नहीं आता. <br />पुष्कर पुष्पपुष्कर पुष्पhttps://www.blogger.com/profile/17279446104672331339noreply@blogger.com