tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post7536809424688546678..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: टेलीविजन पर बच्चेः नियमों में घपलेबाजी संभव हैविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-29886006600790548382010-02-20T20:36:35.892+05:302010-02-20T20:36:35.892+05:30प्रिय विनीत जी
आपके ब्लॉग पर 'टी वी पर बच्चे&#...प्रिय विनीत जी<br />आपके ब्लॉग पर 'टी वी पर बच्चे' पढ़ा . मै एक और बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ. आप टी वी पर प्रसारित कार्टून चैनलों को बस एक दिन देखे. खास तौर पर हंगामा पर शिन चैन और निक पर निन्जा हतोरी, डोरेमोन, हगेमारू, असरी चैन आदि. इनकी भाषा, कंटेंट, कहानी अब कुछ इतना अश्लील और आपत्तिजनक है कि मुझे आश्चर्य होता है कि किसी भी टी वी टिप्पणीकार का ध्यान इधर नहीं पंहुचा. मेरी आपसे इल्तेज़ा है कि आप अपने ब्लॉग पर इस पर लिखें और एक बड़े समूह तक यह बात पहुचाएं. एक अजीब संयोग यह भी है कि ये सभी जापानी सीरियल हैं.<br />धन्यवादwatchdoghttps://www.blogger.com/profile/14738719184726451033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-27634147701900984382010-02-11T20:03:03.100+05:302010-02-11T20:03:03.100+05:30आपसे सहमत हूँ ..पिछले माह की अंतिम शनिवार को चिठ्ठ...आपसे सहमत हूँ ..पिछले माह की अंतिम शनिवार को चिठ्ठा चर्चा में मैंने भी बाजारवाद के इन सह- उत्पादों पर कलम -घसीटी की है .L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-87438796833768540992010-02-11T18:51:20.744+05:302010-02-11T18:51:20.744+05:30bada sach!bada sach!Parul kananihttps://www.blogger.com/profile/11695549705449812626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-91306116499417740212010-02-11T08:29:38.295+05:302010-02-11T08:29:38.295+05:30मुझे नहीं लगता कि बच्चों के पारिश्रमिक का सारा किस...मुझे नहीं लगता कि बच्चों के पारिश्रमिक का सारा किस रूप में दिया जाता है , दिखाया कितना जाता है और वास्तविकता क्या होती है ?? लोग तरीके भी निकाल ही लेते हैं ! ब्लागर मीत में आपको सुनना अच्छा लगा विनीत !<br />आपको http://satish-saxena.blogspot.com/2010/02/blog-post.html पोस्ट में उद्धृत किया है !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-5839226995760197342010-02-11T07:57:50.914+05:302010-02-11T07:57:50.914+05:30शानदार और सटीक पोस्ट.शानदार और सटीक पोस्ट.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-84226678164948530262010-02-10T20:29:41.239+05:302010-02-10T20:29:41.239+05:30कृष्ण मुरारी जी ने बहुत रोचक प्रश्न उठाए हैं। शायद...कृष्ण मुरारी जी ने बहुत रोचक प्रश्न उठाए हैं। शायद उस सरकारी कानून को विस्तार से देखने पर कुछ बात समझ में आये। <br /><br />यहाँ एक मसला बच्चे के माँ-बाप और अभिभावक के अधिकारों और बच्चे की स्वतंत्रता का भी है। यदि कोई बाल कलाकार अपनी स्वतंत्र इच्छा से खुशी-खुशी इस ग्लैमर का चयन करता है और वो सारे तनाव झेलने का विकल्प चुनता है तो सरकार उसको रोकने के लिए क्या कदम उठा सकती है।<br /><br />(कृपया इसे आत्महत्या के अधिकार से तुलना करके किसी कुतर्क को आगे न बढ़ाया जाय।)सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-53048546842978757662010-02-10T16:22:09.821+05:302010-02-10T16:22:09.821+05:30वों कागज की कसती वों बारिस का पानी...इन लाइनों का ...वों कागज की कसती वों बारिस का पानी...इन लाइनों का कोई भी मतलब इन बचों के लिए नहीं है.जिन हाथों में कागज की कसती,गुड्डे-गुडिया होने चाहिए वे अब माइक से खेल रहे हैं.बचपन की हत्या है ये. लेकिन एक निचले दर्जे के माँ-बाप ये नहीं सोच सकते.उनके लिए तो ये नियम कायदे उनके सपनो की हत्या से काम नहीं हैं.इसके बारें में चैनल के लोगों को ही सोचनाहोगा..anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-82529050061961942452010-02-10T15:01:14.377+05:302010-02-10T15:01:14.377+05:30नियम बनाते समय लगता है कोई होम वर्क नहीं किया गया ...नियम बनाते समय लगता है कोई होम वर्क नहीं किया गया है. सरकारी नौकरी में रहकर मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि ऐसा ही होता है. सुबह जब मैंने न्यूज सुना तो मेरी पहली प्रतिक्रिया कुछ इस तरह थी...<br />१-अब जब किसी सीरियल में बच्चे पैदा होंगे तो वे सीधे आठ साल के ही होंगे.<br />२-जजों की गलती की सजा प्रतिभा शाली बच्चों को दी जा रही है<br />३-बच्चों के प्रोग्राम आने बंद होंगे तो क्या वे एडल्ट सीरियल, सनसनी ,भविश्यबानी और टॉक-शो के झगडे देखेंगे ?<br />४-सामायिक एवं सामाजिक मुद्दों पर बच्चों के ऊपर बनी सीरियलों में अब बच्चों के रोल बूढ़े करेंगे,इससे कई पुराने कलाकारों का कल्याण हो जायेगा.<br /> लब्बो-लुबाब यह कि सारे नियम कानून की धज्जियाँ उड़ जौएगी. कहावत है कि जहाँ न पहुचे रवि वहाँ पहुचे कवी...कला और बिजनेस का जब घाल-मेल होगा तो उसके क्रिएटिविटी में सारे नियम हवा-हवाई हो जायेंगे.कृष्ण मुरारी प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/00230450232864627081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-21640126192365944782010-02-10T13:40:32.719+05:302010-02-10T13:40:32.719+05:30इस मामले में सरकार से ज्यादा माता-पिता को सक्रिय ह...इस मामले में सरकार से ज्यादा माता-पिता को सक्रिय होना होगा। उन्हें ये समझना होगा कि बच्चों की भावना की रक्षा करना ज्यादा जरूरी है। साथ ही व्यावहारिक स्तर पर भी सरकार की सक्रियता जरूरी है। हाल के दिनों में ग्लैमर की चकाचौंध में जो सूरत बिगड़ी है, उसके कारण काफी हद तक मां-बाप के विचारों में भटकाव हुआ है। और वे अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी सफलता और प्रसिद्धि के शिखर पर बैठाना चाहते हैं।prabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-21697819758446124732010-02-10T13:05:50.913+05:302010-02-10T13:05:50.913+05:30बहुत सामयिक और सटीक पोस्ट! हम देख रहे हैं बच्चे दि...बहुत सामयिक और सटीक पोस्ट! हम देख रहे हैं बच्चे दिन पर दिन टेलीविजन पर आ रहे हैं और छा रहे हैं। उनका बचपना स्थगित है। लेकिन बात वही है कि यह घालमेल क्या सच में रुक सकेगा!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com