tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post6979551500443437991..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: अन्तर्विरोधों के बीच फंसी मार्क्सवादी हिन्दी आलोचना,शिमला रिपोर्ट-3विनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-502245023290860872009-10-13T13:58:30.808+05:302009-10-13T13:58:30.808+05:30विनीत जी शिमला से अनामिका जी से फोन पर बात चीत हुई...विनीत जी शिमला से अनामिका जी से फोन पर बात चीत हुई थी । उन दिनो मै अपने ब्लोग पर उनके द्वारा सम्पादित संग्रह "कहती हैं औरते " से कवितायें दे रहा था । इस सम्मेलन की इतनी विस्त्रत रपट देख कर अच्छा लगा । आपको बधाई। इसे बुकमार्क कर लिया है फुर्सत से पढता हूँ ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-53819953390863359712009-10-08T17:38:19.302+05:302009-10-08T17:38:19.302+05:30KAFI DIN HO GAYE KUCHH NAYA NAHI DALAKAFI DIN HO GAYE KUCHH NAYA NAHI DALAतरुण गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/11509702207023720743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-89145006370808579462009-10-02T10:30:34.548+05:302009-10-02T10:30:34.548+05:30संजीव का मानना है कि हिंदी की पूरी मार्क्सवादी आलो...संजीव का मानना है कि हिंदी की पूरी मार्क्सवादी आलोचना, रामविलास शर्मा के अनुयायी के तौर पर आगे बढ़ी है। रामविलास शर्मा से आगे और अलग मार्क्सवादी आलोचना के विकास की संभावनाओं की तलाश नहीं की गयी l <br /><br /><br />संजीव जी के ऐसा मानने में क्या आग्रह रहे होंगे ये आज की मार्क्सवादी आलोचना की गति और स्तिथि को देखने से समझ में आ जाता है. पर एक सवाल(या कहूं एक के बाद एक सवाल) अब भी आलोचना की चालू स्तिथि को देखने पर उठता है की यदि नामवर सिंह या अन्य आलोचक अपने टूल्स को अपने ढंग से स्थापित कर सके तो क्या इसमें उन लोगो की हिस्सेदारी बिलकुल भी नहीं थी जो आज मार्क्सवादी आलोचक(जिसकी विनीत कहते है) होने पर भी मार्क्सवादी आलोचना की पोल खोलने में तो नहीं हिचक रहे है (ये बहुत अच्छी बात है कमसे कम हम इतने ईमानदार तो है)जबकि ये भी सच है कि आज कि आलोचना में सुधार के लिए वो इनसे टक्कर लेने के लिए कुछ ख़ास कर नहीं रहे.<br />हिंदी आलोचना के साथ एक दुर्भाग्य यह भी रहा है की जो आलोचक.. रामविलास शर्मा(वैसे सिर्फ उन्ही का नाम लेना ठीक नहीं है) से आगे और अलग आलोचना के विकास की संभावनाओं की तलाश कर रहे थे वो जल्द ही इस दुनिया से विदा हो गए वो चाहे मुक्तिबोध हो, साही हो, देवीशंकर अवस्थी(नयी कहानी की समीक्षा पर जिनका लोहा स्वय नामवर सिंह ने माना था) या फिर मलयज; ये वो लोग थे जो सिर्फ आलोचना की कमियाँ नहीं गिना रहे थे बल्कि हिंदी आलोचना की समकालीनता पर बल देते हुए हिंदी की अकादमिक और चलताऊ आलोचना से अलग एक नयी संभावना की तलाश भी कर रहे थे. मुझे लगता की अगर रामविलास शर्मा से आगे और अलग मार्क्सवादी आलोचना के विकास की संभावनाओं की तलाश नहीं की गयी तो इसमें बहुत हद तक कसूर उन लोगो का भी है जिन्हें समस्या तो पता है लेकिन वो उसका समाधान सिर्फ और सिर्फ समस्या गिनाने में ही देख रहे है.<br />और अंत में ...<br />जो भी हो शिमला में इस तरह की बहसों से , साहित्य की सभी विधाओ में कुछ न कुछ सृजनात्मक कार्यवाही ज़रूर हो रही , इसके लिए हम उनके आभारी हैतरुण गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/11509702207023720743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-42965166460664217402009-09-27T13:07:42.172+05:302009-09-27T13:07:42.172+05:30यही तो बिडंबना है हिंदी समाज की. दलित विमर्श को खा...यही तो बिडंबना है हिंदी समाज की. दलित विमर्श को खारिज करने वाले गैर दलित है लेकिन स्त्री विमर्श को खारिज करने वालों निर्मला जैन सरीखी महिलाएं हैं। विरोध करने वालों को दलित होने का दर्द पता है ना स्त्री होने का। बिना भोगे कहां से आएगा अहसास। मुंह में चांदी चम्मच लेकर पैदा होने वाली जमात से क्या उम्मीद की जाए। हम सोचते हैं कि हमारे अलावा कोई और दुनिया एक्जीस्ट ही नहीं करती। मुठ्टी भर लोग तय करते है दशा दिशा। राजनीतिज्ञों की तरह हमारे विचारक भी खतरनाक हैं..Geetashreehttps://www.blogger.com/profile/17828927984409716204noreply@blogger.com