tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post4480941685596465868..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: खबरदार, जो ब्लॉगर को पत्रकार कहाविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-86055768989112544182008-10-31T20:02:00.000+05:302008-10-31T20:02:00.000+05:30सही है अमर साहब लेकिन बात आने वाले कल की है. NYT ...सही है अमर साहब लेकिन बात आने वाले कल की है. NYT की सर्कुलेशन भी गिर ही रही है.<BR/><BR/>अभी ये इसलिये चल रहे हैं कि आदतें मुश्किल से बदलती हैं. हमें प्रिन्ट पेपर पढ़ने की आदत है. इसके लिये शुरूआत में अखबारों के ई-पेपर संस्करण फर्रायेंगे.<BR/><BR/>इन ई-पेपर को सिर्फ इन्टरनेट के द्वारा ही नहीं किताबनुमा डिवाइसेज में पढ़ा जा सकेगा. अभी ये डिवाइसेज थोड़ी महंगी है लेकिन आने वाले चार पांच सालों में ये बेहद सस्ती होंगी जिससे सिर्फ ई-पेपर नहीं ई-बुक्स भी परम्परागत छपी किताबों को बाहर कर देंगी. हिन्दुस्तानी ई-पेपरों का तो लोकप्रिय होना भी शुरू हो चुका है. <BR/><BR/>और आने वाले पीढी तो सिर्फ वेब एडीशन की ही आदत होगी. <BR/>हो सकता है मैं गलत होऊं, आप इसे मेरा ख्याली पुलाव भी कह सकते हैं.मैथिली गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/09288072559377217280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-72118187094650350352008-10-31T18:41:00.000+05:302008-10-31T18:41:00.000+05:30अनुराग की बात से सहमत..मैथिली की टिप्पणी में एक कि...<I> अनुराग की बात से सहमत..<BR/>मैथिली की टिप्पणी में एक किन्तु..<BR/>किन्तु मैथिली भाई, NYT का वेब संस्करण बहुत <BR/>सफ़ल है, फिर भी टैब्लायड भी उतना ही लोकप्रिय है, क्यों ? दोनों संस्करणों में फ़र्क भी रखा जाता है, ताकि माँग बनी रहे, क्यों ? NYT तो बस उदाहरण है</I>डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-47297394226852566792008-10-31T15:11:00.000+05:302008-10-31T15:11:00.000+05:30आपका सवाल क्या वेब पत्रकारिता को मेनस्ट्रीम की पत...आपका सवाल <B>क्या वेब पत्रकारिता को मेनस्ट्रीम की पत्रकारिता में शामिल किया जा सकता है</B><BR/>प्रिन्ट, टीवी या इन्टरनेट तो एक माध्यम भर है, पत्रकारिता तो पत्रकारिता है. आपके विचार चाहे प्रिन्ट होकर आयें, टीवी पर आयें या इन्टरनेट पर आयें. सो वेब पत्रकारिता को भी हम मेनस्ट्रीम की पत्रकारिता में ही शामिल करें. इसे वर्चुअल या रीयल के खांचे में बिठाना सही नहीं हैं.<BR/><BR/>मेरा तो यह मानना है कि आज से छह सात साल के अन्दर जो मेनस्ट्रीम का मीडिया होगा उसमें प्रिन्ट मीडिया तो कतई शामिल नहीं होगा. तब वेब और सिर्फ वेब मीडिया ही मुख्यधारा का मीडिया बचेगा. मुझे नहीं लगता कि सन 2016 में टाइम्स आफ इंडिया प्रिन्ट होकर आयेगा! यकीन मानिये कि तब इनके सिर्फ वेब एडीशन ही बाकी बचेंगे. <BR/><BR/>अभी अंग्रेजी के अखबारों की हालत पतली है जबकि हिन्दी और देशी भाषाओं के अखबार (फीचर न्यूजपेपर) बढ़ रहे हैं एसा सिर्फ इसलिये है कि देशज भाषाओं के पढ़ने वाले तकनीकी रूप से उतने मज़बूत नहीं है, लेकिन अब देशज भाषियों के पास भी क्रय शक्ति है और हिन्दी के फीचर न्यूजपेपरों को इनकी क्रयशक्ति को दुहने के लिये विज्ञापन मिले जा रहे हैं. इसीलिये हिन्दी के फीचर न्यूजपेपरों का यह स्वर्णकाल है. जरा 3G और वाइमेक्स का दौर दौरा शुरू होने दीजिये. छह सात सालों में हिन्दी के फीचर न्यूजपेपरों के लिये भी मुश्किल हालात हो जायेगें.<BR/><BR/>तब वेब बुलन्दी पर होगा, टीवी भी इसके आगे बौना ही साबित होगा. विज्ञापनों में इसका बहुत बढ़ा हिस्सा होगा. एसी मेरी सोच है.<BR/><BR/>ब्लागर और वेब पत्रकारिता के बीच एक रेखा है, लेकिन इस पर बात फिर कभी, डर हैं कि कहीं मुझे इसके लिये राज ठाकरे न ठहरा दिया जाय :).मैथिली गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/09288072559377217280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-38006902318497787412008-10-31T15:06:00.000+05:302008-10-31T15:06:00.000+05:30"अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का दूसरा नाम ब्लॉग ह..."अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का दूसरा नाम ब्लॉग है..." हम डॉक्टर साहब के द्रिश्टिकोण से एकदम सहमत है. उपरोक्त वाक्य को आगे बढ़ाते हुए हम कहना चाहेंगे कि "जिसका एक साइट होता है और जो वेब में है" अतः ब्लॉग भी एक वेब साइट है. आभार.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-492649856031240642008-10-31T13:27:00.000+05:302008-10-31T13:27:00.000+05:30विचारो को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का दूसरा ना...विचारो को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता का दूसरा नाम ब्लॉग है....लिखना पढ़ना एक शौक है जो अलग अलग पेशे में जुड़े इंसान शायद ब्लॉग के जरिये पूरा करते है ........ब्लॉग लेखन शायद विचारो का मंथन है ...बिहार के किसी कोने से उपजा आक्रोश किसी अखबार के पन्ने का मोहताज नही है...वो सीधा अमेरिका से जुड़ जाता है....कही किसी कमरे में फैली उदासी अचानक कम्पूटर के परदे पर आकर निजी नही रह पाती है...यही ब्लॉग है....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.com