tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post3800602008134408309..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: राष्ट्रीय संगोष्ठी के नाम पर हिन्दू कॉलेज में ड्रामाविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-16720773150472926422010-12-15T02:01:06.872+05:302010-12-15T02:01:06.872+05:30बधाई विनीत को और उन सब टिपण्णी कारों को जो अब नाम ...बधाई विनीत को और उन सब टिपण्णी कारों को जो अब नाम लेकर सही ग़लत को चिन्हित कर रहे हैं. राष्ट्रीयता की समझ हिंदी के समाज में जैसी है वो विश्व हिंदी सम्मलेन से ले कर साहित्य अकादेमी तक जग ज़ाहिर है. ध्यान देने की बात ये भी है की राष्ट्रीयता पर दलित, महिला, वंचित, एक तरफ़ और जातीय उच्ताबोध वाले दूसरी तरफ़ ही क्यों दिखते हैं. ऐसी पालेबंदी और उसके पीछे के समाजशास्त्र पर फ़िक्र होती है. वैसे राष्ट्रवाद से ज़्यादा कृत्रिम अवधारणा शायद ही कोई दूसरी हो.Sheeba Aslam Fehmihttps://www.blogger.com/profile/07549073121532116368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-31427140380408110742010-12-14T21:04:54.454+05:302010-12-14T21:04:54.454+05:30आपने यह नहीं लिखा कि सभी वक्ता लाल सलाम वाले हैं। ...आपने यह नहीं लिखा कि सभी वक्ता लाल सलाम वाले हैं। शायद यह आपके लिए स्वागत योग्य बात हो।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-81966485086216979452010-12-14T13:27:36.271+05:302010-12-14T13:27:36.271+05:30जबरदस्त आलेख !
और शीर्षक तो सोने पे सुहागा है।जबरदस्त आलेख !<br />और शीर्षक तो सोने पे सुहागा है।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-33536885617073951872010-12-14T11:15:07.249+05:302010-12-14T11:15:07.249+05:30अच्छा लिखा है. राष्ट्रीयता भी धंधा होकर रह गई है आ...अच्छा लिखा है. राष्ट्रीयता भी धंधा होकर रह गई है आज.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-6857289341842060072010-12-14T09:03:15.741+05:302010-12-14T09:03:15.741+05:30विनीत ! आपने बहुत हिम्मत से ''राष्ट्रीयता&...विनीत ! आपने बहुत हिम्मत से ''राष्ट्रीयता'' की आड़ मे हो रही साजिशों को वेनक़ाब किया है ...।सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-23753557776576732872010-12-14T08:48:43.254+05:302010-12-14T08:48:43.254+05:30नहीं अमितेश,अगर ये जाति के पूर्वग्रह में बदल जाती ...नहीं अमितेश,अगर ये जाति के पूर्वग्रह में बदल जाती तो दूधनाथ सिंह को लेकर भी लिखता और इस पर तो नहीं ही लिखता कि राज्य से कोई कॉलेज क्यों नहीं है? आपने कितनी बड़ी बात लिख दी-अब ये आयोजकों की भी मर्जी है कि वह युवा लेखकों को वक्ता के तौर पर शामिल करता है कि नहीं. इस मर्जी को कौन दुरुस्त करेगा और फिर आपकी ये समझ कि एक भी युवा आलोचक उस लायक नहीं है,कितनी खतरनाक समझ को जन्म देता है।...और जहां सवाल तैयारी की है तो आप मुझे अगर लगातार पढ़ते हों तो समझ सकते हैं कि मैं कितनी तैयारी करके लिखता हूं।.विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-19086349843897151982010-12-14T01:39:06.274+05:302010-12-14T01:39:06.274+05:30राष्ट्रीयता को लेकर आपकी आपत्ति...जाति के पुर्वग्र...राष्ट्रीयता को लेकर आपकी आपत्ति...जाति के पुर्वग्रहों में बदल जाती है..बाद में इसे आप दलित और स्त्री का कवच पहना देते हैं ताकि इनको लगे कि आप इस विमर्श के बड़े प्रवक्ता हैं और आहत है...जहिर है कल तक आपके कुछ हमखयाल चिंतक आपके पक्ष में खडे होंगे...राष्ट्रीयता की आपकी समझ क्या है? क्या देश की राजधानी होकर दिल्ली, अभी भी अपना राष्ट्रीय स्वरूप नहीं रखती...आयोजन में शामिल वक्ता भले ही दिल्ली निवासी हों पर क्या वे किसी खास राज्य का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे? कम से कम चार राज्य के तो वो हैं ही?<br />'जंग खा चुके आलोचक' क्यों हैं? क्या इनकी उम्र अधिक हो गयी है या ये 'ब्राह्म्ण-ठाकुर' है इसलिये? क्या इनमें से किसी आलोचक कि पढने, लिखने और बोलने में किसी तरह की कोई कमी आ गयी है. क्या इनकी सक्रियता किसी युवा लेखक से कम है. अब ये आयोजकों की भी मर्जी है कि वह युवा लेखकों को वक्ता के तौर पर शामिल करता है कि नहीं. या हो सकता है की युवा लेखन में सचमुच कोई नाम ऐसा नहीं हो. मेरे देखे में तो युवा आलोचना की यहीं स्थिति है अन्यथा आलोचना के बिमार हो जाने की स्थिति पर पत्रिकाएं विशेषांक नहीं निकालती. क्या यह युवा लेखन की कमजोरी नहीं कि साहित्यिक मंच पर वो अपनी जगह नहीं बना पा रहे ? अब आप इनको पटक कर उन्हें बैठाना चाहते हैं तो अलग बात है.<br />दरसल यह विरोध बड़े नाम और जाति का विरोध है. और ऐसे विरोध से बोध की एक बड़ी परंपरा का त्याग करना पड़ेगा...शायद ही हम ऐसा चाहेंगे. जब जातिवाद का विरोध जाति विरोध में शामिल हो जाता है तो मुझे यह खुन्नस ही लगता है. आप इसे प्रगतिशीलता कहते होंगे.<br />रहा दलित और स्त्री की बात तो मेरे खयाल से दलित और स्त्री भी ऐसा नहीं चाहेंगे कि केवल दलित और स्त्री होने की वज़ह से उन्हें शामिल किया जाये.<br />अंतिम बात, फ़ेसबुक पर टंगी यह सुचना...चार दिन पहले की है...पोस्ट अब लगी है...संभवत: तैयारी में समय लगा होगा या इन्स्टेंट होगा, जो ब्लागरी स्वभाव है. कल सेमिनार शुरु हो रहा है. जाहिर है इसके निहितार्थ है. थोडा अपनी नज़र को भी खोलिये नहीं तो उसे सिर्फ़ तंगनज़री ही दिखेगी...<br />नोट; यह पोस्ट संभवतः मोहल्ला पर छपे तो इस टिप्पणी को भी साथ में चेप दिया जाये...अगर ऐसा नहीं भी करेंगे तो मैं इसे आपके निर्णय की स्वतंत्रता मानुंगा जो आपको होना चाहियेamiteshhttps://www.blogger.com/profile/05923164488045661896noreply@blogger.com