tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post3070912115547031566..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: भले ही बुक शॉप के लिए बिग शॉप खुल जाएविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-53449973350591573212008-12-05T20:19:00.000+05:302008-12-05T20:19:00.000+05:30आज की अमर उजाला के संपादकीय पन्ने के ब्लॉग कोने म...आज की अमर उजाला के संपादकीय पन्ने के ब्लॉग कोने में आप की ब्लाग पोस्ट - बनारस, बलिया के संबंध छनते थे इस बुक शॉप पर ---देख कर बहुत अच्छा लगा। <BR/>बहुत बहुत शुभकामनायें।Dr Parveen Choprahttps://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-51123396203117441252008-12-05T18:08:00.000+05:302008-12-05T18:08:00.000+05:30कह तो सही रहे हो दोस्त।कह तो सही रहे हो दोस्त।सुशील छौक्कर https://www.blogger.com/profile/15272642681409272670noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-46251086363736892262008-12-05T17:36:00.000+05:302008-12-05T17:36:00.000+05:30ग्राहक और पाठक के बीच बढिया फर्क किया है आपने।प...ग्राहक और पाठक के बीच बढिया फर्क किया है आपने।<BR/>पिछली पोस्ट में 'और आतंकवादी देखते रहे इंडिया टीवी'पढ़कर बहुत अच्छा लगा।जितेन्द़ भगतhttps://www.blogger.com/profile/05422231552073966726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-66172346003240770332008-12-05T14:39:00.000+05:302008-12-05T14:39:00.000+05:30भाई विनीत, बहुत ही सहजतापूर्ण आपने पुराने दिनों की...भाई विनीत, बहुत ही सहजतापूर्ण आपने पुराने दिनों की यादें ताजा करवा दीं। गत 28 नवंबर को दिल्ली में मतदान के सिलसिले में नॉर्थ कैम्पस जाना हुआ। इसके बाद अचानक मन में हिलोरें मारने लगा और कदम विवेकानंद स्टेच्यू की ओर बढ चले। दरअसल, मैं विद्यार्थी परिषद् नॉर्थ कैम्पस का प्रमुख रह चुका हूं इसलिए पोस्टर लगाने में बडी दिलचस्पी रही और अन्य छात्र संगठनों के पोस्टरों को पढने में भी। कला संकाय परिसर में प्रवेश करते ही मैं हर उस स्थान पर गया जहां पोस्टरें चिपकायी जाती थीं। अच्छा लगा कि अब भी यह सक्रियता बनी हुई थी। लेकिन पुस्तक मंडप का जगह सूना लगा। वहां केवल सुंदर घास दिखायी दी। हालांकि पुस्तक मंडप को वामपंथी कार्यकर्ता चलाते थे लेकिन मैं उसका स्थायी ग्राहक था। मनोजजी और राकेशजी से वहीं परिचय हुआ। मेरी वामपंथी चेतना भी वहीं जाग्रत हुई। क्रिश्चयन कॉलोनी स्थित विद्यार्थी परिषद् के प्रदेश कार्यालय, जहां मैं रहता था, वामपंथी साहित्य से भर गया। ऐसे ही श्री राम सेंटर स्थित बुक शॉप पर तो मैं सैलरी मिलने के दिन बडे से उत्साह से जाता था। ब्लॉगजगत के जरिये ही मुझे यह सूचना मिली कि यह शॉप भी अब बंद हो गयी। इन दोनों दुकानों के न होने का गम मुझे साल रहा है। पुस्तक की दुकानें तो अनगिन है दिल्ली में लेकिन इन दोनों की बात ही कुछ और थी। यहां वैचारिक खुराक मिलती थी। हालांकि दोनों दुकानों पर वामपंथी साहित्य ही बहुधा मिलते थे लेकिन दुनिया, देश और समाज में क्या सोचा जा रहा हैं, इसकी जानकारी सहज मिल जाती थी। पता नहीं क्यों वामपंथी दुकानें बंद होती जा रही हैं।संजीव कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/11879095124650917997noreply@blogger.com