tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post2584517681635458795..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: ISHQIYA का गाना- दिल तो बच्चा है जी और पापा का शुक्ल पक्षविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-60357793037200936072010-06-23T01:30:43.901+05:302010-06-23T01:30:43.901+05:30मैं इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहता था....कुछ...मैं इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहता था....कुछ अजब ही परिस्थितियों के चलते खुद पापा के लिए कुछ भी नहीं लिख पाया....उनको फोन कर के शुभाकामनाएं भी नहीं दीं...लगा कि साल भर दोनो में संवाद नहीं होता कभी ठीक से....एक दिन क्या बधाई....<br />टिप्पणी इस लिए नहीं करना चाहता था कि पोस्ट निःशब्द कर देने वाली थी....पर लिखूंगा....मन की बात तो निकालनी है....<br />हाल ही में नौकरी छोड़ दी...जब छोड़ी तो पापा बोले जो सही लग रहा है वही करो....अब परेशान हैं कि नई नौकरी कब मिलेगी....सीधे कुछ नहीं कहते....मीडिया के असली हालातों से बेख़बर....मैं जानता हूं कि नौकरी मिल जाएगी....जानते वो भी हैं...पर चिंतित हैं....बाप हैं आकिर....पर खुद कभी नहीं कहते....मम्मी से कहलवाते हैं....<br />पर कब तक....पापा सीधे बात कब करेंगे....शायद उनके बाबूजी ने भी ऐसा ही किया होगा....तो फिर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं...ये कुंठा होती है या रवायत.....क्या मैं भी ऐसा ही हो जाऊंगा.....<br />सारा लाड़ सोने के बाद ही मिलेगा...बहनों की तरह सामने क्यों नहीं....ये लगभग हम सबकी ही कहानी है....शायद सारे बाप-बेटों की.....<br />यकीन मानो विनीत लिखना बिल्कुल नहीं चाहता था.....पर दिल तो बच्चा है जी......<br />एक बार फिर बधाई...शब्दातीत पोस्ट.....मयंकhttps://www.blogger.com/profile/10753520280499089073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-25844274184915530452010-06-17T14:20:44.557+05:302010-06-17T14:20:44.557+05:30इमोशनल कर दिया आपने.. मम्मी के मोबाईल पर जब कॉल कर...इमोशनल कर दिया आपने.. मम्मी के मोबाईल पर जब कॉल करता हूँ तो कभी कभार पापा उठा लेते है.. मैं सिर्फ इतना पूछता हूँ.. मम्मी कहाँ है ? और कभी मम्मी का फोन नहीं मिले तो पापा के मोबाईल पर कॉल कर देता हूँ.. पापा फोन उठाकर मम्मी को दे देते है.. हम लोगो में बाते क्यों नहीं होती..? ऐसा नहीं है कि मैं उनसे बात करना नहीं चाहता..पर सोचता हूँ क्या बात करूँगा... ?कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-37768742949029112712010-01-20T17:48:10.790+05:302010-01-20T17:48:10.790+05:30jahapnah tussi great ho............
ise padke to m...jahapnah tussi great ho............<br />ise padke to mujhe apne bachpan ke hitlari niyam kanuno wale papa yaad aaye........kunki ab to wo bahut rahum dil insan ho chuke hain.....<br />anjule shyam maurya.......anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-4049138419167380202010-01-10T00:21:40.957+05:302010-01-10T00:21:40.957+05:30आपका लेखन प्रभावित करता है, हर बार पिछली बार से ज्...आपका लेखन प्रभावित करता है, हर बार पिछली बार से ज्यादा..शानदार!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-85697689811544290812010-01-09T23:44:58.381+05:302010-01-09T23:44:58.381+05:30आपने तो कुछ चौंका सा दिया। मुझे लगता है कि पिता के...आपने तो कुछ चौंका सा दिया। मुझे लगता है कि पिता के ही हिस्से सारा अनुशासन थोपने का रिवाज पिता के साथ अन्याय है। समाज के साथ साथ माताओं की भूमिका भी इस स्थिति को बनाने के लिए उत्तरदायी है। मेरे अनुसार तो माता पिता में से जिसके पास समय कम हो वह लाड़ ही अधिक करे, जिसके पास अधिक हो वह अनुशासित भी करे और ढेरों ढेर लाड़ भी करे।<br />बहुत प्यारी सी पोस्ट है किन्तु उदास भी कर देती है। अपना व अपने बच्चों का बचपन याद आ गया।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-59501328512247449962010-01-09T22:18:03.506+05:302010-01-09T22:18:03.506+05:30bahut khub..!!
kaafi abehtarin lekh aapne likha......bahut khub..!!<br />kaafi abehtarin lekh aapne likha....<br />mera papa k sath jo rishta hai kaafi rochak n achha hai...yahan tak ki unse ab mai jyaada baaten karne lag gaya hun n wo v krishna paksha ki....haan itna jaroor mai mahsus karta hun ki mummy ka ab mai jyada care karne lag gaya hun....ab mai samay-2 par pa n ma k liye kuchh kharidte v rahta hun....<br />ISHQIYA ka gana to mujhe kaafi pasand hai n mai ye film v jaroor dekhunga.....Unknownhttps://www.blogger.com/profile/08592680917404044920noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-27989760693684650182010-01-09T11:58:20.810+05:302010-01-09T11:58:20.810+05:30विनीत, रवीश के ब्लॉग पर आपके कमेंट तो पढ़ता रहा हू...विनीत, रवीश के ब्लॉग पर आपके कमेंट तो पढ़ता रहा हूं, लेकिन कभी आपके लिंक पर एक चटका नहीं मारा। आज गिरींद्र नाथ झा ने फेसबुक पर आपकी पोस्ट को भावुकता का चोकोबार कहा तो आपके लिंक पर क्लिक कर दिया। आपको पढ़कर मज़ा आया और पहले आपके अड्डे पर ना आने के लिए अफसोस भी हुआ। बहुत निजी अनुभव लिखे हैं आपने लेकिन फिर भी सर्वविदित हैं और सबकी ज़िंदगी के लिए जाने-पहचाने। आपके ब्लॉग का एड्रेस याद रहेगा और मैं चक्कर लगाता रहूंगा।मधुकर राजपूतhttps://www.blogger.com/profile/18175900220847414275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-84588316109164351422010-01-09T00:25:14.969+05:302010-01-09T00:25:14.969+05:30पिता को लड़कियों के खाते में डाल दिया जाता है।पिता को लड़कियों के खाते में डाल दिया जाता है।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-70010138178574142532010-01-08T14:07:18.273+05:302010-01-08T14:07:18.273+05:30पापा पर लिखा है, तो उनकी याद आयेगी ही. मैं भी अपन...पापा पर लिखा है, तो उनकी याद आयेगी ही. मैं भी अपने पापा की दुलारी बेटी हूं, लेकिन उन्होंने कभी इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया. असल में मां और पिता के प्यार में एक यही सबसे बडा फ़र्क है, कि मां अपनी चिन्तायें, अपना प्यार बोल के व्यक्त कर देती है जबकि पिता अपने इन्हीं भावों को व्यक्त नहीं करते. मां के लाड-प्यार में बच्चे बिगड न जायें, इस चिन्ता के चलते ज़ाहिरा तौर पर कडाई भी बरतते ही हैं. वैसे मुझे लगता है, कि बेटियां अपने पिता से ज़्यादा खुली होती हैं. पिता उन्हें उस तरह डांटते भी नहीं जैसे,बेटों को डांटते हैं.<br /> खैर प्यार पिता भी उतना ही करते हैं जितना मां.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-28024566272704589072010-01-08T11:07:22.874+05:302010-01-08T11:07:22.874+05:30आपके बनने के पीछे आपके पिताजी ही हैं। सबके बनने के...आपके बनने के पीछे आपके पिताजी ही हैं। सबके बनने के पीछे पिताजी ही होते हैं। यह सनातन सच्चाई है। सब जानते हैं पर कुछ मानते हैं और कुछ नहीं। पर मानना चाहिये।<br />अच्छा लिखा है विनीत ने। इस पर और भी बहुत कुछ नहीं, अपितु सब कुछ लिखना चाहिये।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-57538059373470038762010-01-08T11:03:11.474+05:302010-01-08T11:03:11.474+05:30इमोशनल अत्याचार कर दिए आप। इस ठंड में बाबूजी की या...इमोशनल अत्याचार कर दिए आप। इस ठंड में बाबूजी की याद आ गई। ऑफिस में काम को थोड़ा विश्राम देकर आपको पढ़ा तो अंदर से गर्मी का अहसास हुआ। लेकिन फिर आपकी ही बात कि शुक्ल पक्ष के बदले कृष्ण पक्ष की याद आ रही है। एक अनुशासन (मैं इसे अनुशासन नहीं मानता)के नाम पर जो व्यवहार बाबूजी अपनापन को समेटे लुटाते थे वो ही केवल याद रहा जाता है बांकि सब पीछे छूट जाता है। याद रह जाती है तो केवल मां.....।<br /><br />गीत के बहाने संबंधों पर विमर्श करना फायदेमंद साबित होता है, ऐसा मेरा मानना है। क्योकि तभी हम कह पाते हैं- (खुलकर)डर लगता है तन्हा सोने में जी<br />दिल तो बच्चा है जी,दिल तो बच्चा है जी..।<br /><br />मैं इस पोस्ट को भावुकता का चोकोबार कहना चाहूंगा, क्योंकि जब खाओ तो दांत ठंड से किटकिटाता रहता है और जब खत्म हो जाता है तो आइसक्रिम के डंटल को लिए उसकी याद में खो जाते हैं। बेहतरीन पोस्ट।Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttps://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-83609310655766545872010-01-08T10:33:20.158+05:302010-01-08T10:33:20.158+05:30बेहतरीन लेख। ऐसे लेख बहुत पढ़े आजतक। सुन्दर। शानदार...बेहतरीन लेख। ऐसे लेख बहुत पढ़े आजतक। सुन्दर। शानदार।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-65603913777380937412010-01-07T23:44:46.313+05:302010-01-07T23:44:46.313+05:30क्या कहने अंदाजें बयां के ......सायकल की मडगाड पर...क्या कहने अंदाजें बयां के ......सायकल की मडगाड पर खुदा गवाह की बरसाती...क्या बात है ....<br />आपकी लेखनी निरंतर साबित कर रही है कि हकीकत को , आम जिंदगी को .... किस हद तक पठनीय बनाकर लिखा जा सकता है ....अर्कजेशhttps://www.blogger.com/profile/11173182509440667769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-6319188032862278072010-01-07T23:14:09.251+05:302010-01-07T23:14:09.251+05:30बॉस हर बार आपको पढ़ कर लिखने की लगभग क़सम खाते हैं ,...बॉस हर बार आपको पढ़ कर लिखने की लगभग क़सम खाते हैं , लेकिन जब तक लिखें आप अगला वार कर चुके होते हैं. अजीब चूहे - बिल्ली का खेल चल रहा है ! ख़ैर ज्यादह अच्छी बात यह है की आपकी लेखनी से ये साबित होता है की पढ़ने लायक़ सिर्फ सनसनी नहीं, सेक्स नहीं, विवाद नहीं, बल्कि ज़िन्दिगी और वोह भी 'आम ज़िन्दिगी' है जहाँ ज़रा - ज़रा सब कुछ है और हर एक के साथ है.Sheeba Aslam Fehmihttps://www.blogger.com/profile/07549073121532116368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-65051649657645109842010-01-07T20:41:08.223+05:302010-01-07T20:41:08.223+05:30गाना यहाँ सुनिए<a href="http://surabesura.blogspot.com/2010/01/blog-post.html" rel="nofollow">गाना यहाँ सुनिए</a>अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-55626673741093491912010-01-07T17:36:31.530+05:302010-01-07T17:36:31.530+05:30एक बात कहें, पापा-मां दोनों जीवन के दो पहलू हैं। प...एक बात कहें, पापा-मां दोनों जीवन के दो पहलू हैं। पिताजी की कड़ाई अनुशासन की डोर में बांधती है, तो मां की ममता और स्नेह कोमल भवनाओं की रक्षा करती है। अंत में लेख में पापा के दोस्त बन जाने की बात भी असर डालती है। बेहतरीन लेख। इससे लगता है कि विनीत अब बड़ा हो गय है। डॉक्टर विनीत अब परिपक्वता की सीमा पर पहुंच चुका है।prabhat gopalhttps://www.blogger.com/profile/04696566469140492610noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-58495145228441540392010-01-07T15:11:04.821+05:302010-01-07T15:11:04.821+05:30Vinit,you are a wonderful combination of a childis...Vinit,you are a wonderful combination of a childish and a matured mind at the same time.In modern world, it is a rare combination.Keep your BACHPAN alive. It will be a great asset for you. It will keep you sensitive. Your posts are really touching to everyone. Your MAMU-Krishna Murari.कृष्ण मुरारी प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/00230450232864627081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-35222274788941367692010-01-07T14:48:22.319+05:302010-01-07T14:48:22.319+05:30यादों का एक सिलसिला ही खुल गया है तुम्हारे लिखे को...यादों का एक सिलसिला ही खुल गया है तुम्हारे लिखे को पढ़कर .चार साल से ज्यादा हो गए अब ना पापा हैं, ना पापा के जूते ना उनका साथ. उनका टेलीफोन नंबर .जो उनके जाने के बाद मैं सालों तक मिटाने की हिम्मत नहीं कर पाया..वो भी फ़ोन के साथ गुम हो गया है..यादें साथ हैं..बहुत सारे प्रसंग हैं, बहुत सारे किस्से ..,तुम्हारे अनुभवों से काफी अलग..हाँ उन अनुभवों के बीच पापा तुस्सी ग्रेट हो का भाव जरूर साथ है...अच्छी पोस्ट है. मैं तो मानता हु ,मीडिया लोगों को या तो संवेदनहीन बना रही है या जरूरत से ज्यादा ,लिजलिजेपन की हद को छूती हुई भावुकता भर रही है..दिन रात टी वी देख कर कोई संवेदनशील बना रह सकता है..ये तुमको पढ़ कर जान रहा हूँ...अवनीश मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/05860674579514032858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-12273665071215966902010-01-07T13:50:06.100+05:302010-01-07T13:50:06.100+05:30विनीत कभी कभी बहुत इमोसनल कर देते हो, दिल तो बच्चा...विनीत कभी कभी बहुत इमोसनल कर देते हो, दिल तो बच्चा है जी, और दिल के बच्चा बना रहने में ही हम सब इंसान बने रहते हैं। बेटी होने के नाते अपने पापा के सबसे करीब रही हूं इसलिए शायद ये भी जानती हूं कि हम ही हैं जो सबसे करीब होकर उन्हें सबसे ज्यादा दुख दे सकते हैं। खैर पढा कर काहे इमोशनल कर दियानीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.com