tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post7411218337243628456..comments2023-10-26T18:12:59.863+05:30Comments on साइड मिरर: इंटरनेट पर जो उपदेश देंगे,वो मारे जाएंगेविनीत कुमारhttp://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-760029695091042132009-08-22T18:26:55.536+05:302009-08-22T18:26:55.536+05:30कमाल का लिखते हो भाई. एकदम रस्सी पर चलने जैसा.
अन...कमाल का लिखते हो भाई. एकदम रस्सी पर चलने जैसा.<br /><br />अनुनाद सिंह की बात से सहमत हूँ. हिंदी का भला करना है तो स्वयं आगे बढ़कर साबित करना होगा कि देखो इसे ऐसे भी किया जा सकता था.Atmaram Sharmahttps://www.blogger.com/profile/11944064525865661094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-57947803615248482672009-08-22T09:24:23.374+05:302009-08-22T09:24:23.374+05:30आपकी एक टिप्पणी सुधा ढ़ींगरा के ब्लाग पर प।धी। इसस...आपकी एक टिप्पणी सुधा ढ़ींगरा के ब्लाग पर प।धी। इससे 'बुल्के शोध संस्थान' के बारे में बहुत कम जानकारी मिली। मैने इस संस्थान के बारे में 'सर्च' करके और जानने की कोशिश की किन्तु कुछ भी नहीं मिला।<br /><br />क्यों न आप इस महान हिन्दीसेवी के नाम पर बने इस संस्थान के बारे में एक लेख लिखें। यह अपने आप में फादर कामिल बुल्के के लिये सच्ची श्रद्धान्जलि होगी।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-37344511183748042172009-08-20T22:19:07.550+05:302009-08-20T22:19:07.550+05:30बहुत सही कहा भाई.....!!आपकी बात हमें भी रास आई.......बहुत सही कहा भाई.....!!आपकी बात हमें भी रास आई....!!राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-55807286808296120702009-08-19T23:22:42.602+05:302009-08-19T23:22:42.602+05:30विनीत भाई , आपने एक बात सही कही कि अख़बारों में छप...विनीत भाई , आपने एक बात सही कही कि अख़बारों में छपने की काबिलियत हममें भी है . ऐसा नहीं है कि हम केवल छपास रोग से पीड़ित लोग हैं जो अंतरजाल पर अपनी भड़ास निकलते हैं . यहाँ तो ऐसी -ऐसी साहित्यिक- राजनितिक -समसामयिक विषयों से जुडी रचनाएँ मिल जाएँगी जो समकालीन मुख्यधारा की पत्रकारिता और साहित्यजगत में डिबिया बार के खोजने से भी न मिले ! आपने ब्लॉगजगत के सक्रीय प्रतिनिधि के तौर पर सटीक जबाव दिया है . अब , ब्लॉग जगत को भी कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए . सबसे पहले तो ब्लॉगजगत की जिम्मेदारी ऐसी आलोचनाओं से और बढ़ जाती है अतः ब्लॉग केवल अपने शौक के लिए न लिखा जाने वाला विषय रह गया है . हमें इसे समझ लेना चाहिए . आने वाला समय ब्लॉग/ वेबसाइट को चौथे स्तम्भ के रूप में स्थापित करेगा इसकी भूमिका अभी से बन रही है . विनीत जी आप ने काफी अच्छे और सार्थक मुद्दे पर बहस चली जिसका फायदा ब्लॉगजगत को जरुर मिलेगा .Jayram Viplavhttps://www.blogger.com/profile/16251643959205358549noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-54232680511832691182009-08-19T16:40:06.376+05:302009-08-19T16:40:06.376+05:30अरे क्यों नाहक हमें तंग कर रहे हैं। इंटरनेट पर हमे...अरे क्यों नाहक हमें तंग कर रहे हैं। इंटरनेट पर हमे लिखने दें..बीच में टांग मत फंसाइए..Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttps://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-51253610101000103712009-08-19T13:35:28.034+05:302009-08-19T13:35:28.034+05:30यदि इन स्वानमधन्य पत्रकारों और सम्पादकों के भरोसे ...यदि इन स्वानमधन्य पत्रकारों और सम्पादकों के भरोसे रहता तो कभी भी ब्लाग न लिख पाता, इनके द्वारा लगातार मेरे लेख कूड़ेदान में फ़ेंकने के कारण ही ब्लाग लिखना शुरु किया और अब बड़ा अच्छा लगता है कि कम से कम किसी के रहमोकरम पर मोहताज तो नहीं हैं। ये थकेले लोग जल्दी ही अपने शब्द वापस मुँह में डालेंगे जब 3G तकनीक के मोबाइल आम वस्तु बन जायेगी और लोग अखबार, लेख और (तथाकथित साहित्य भी) उसी पर पढ़ेंगे व ब्लाग से प्रेरणा लेंगे…। आने वाला समय ब्लॉग का ही है, लेकिन रेत में मुँह गड़ाये कुछ शतुरमुर्ग इस तूफ़ान को अनदेखा कर रहे हैं…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-64704551838910534922009-08-19T13:03:49.585+05:302009-08-19T13:03:49.585+05:30अरे विनित भाई, वे वैचारिक क्रांती की बात करते हैं....अरे विनित भाई, वे वैचारिक क्रांती की बात करते हैं.. तो क्या वैचारिक क्रांती महज गिने-चुने लोगों के द्वारा पढ़े-लिखे जाने से ही होती है?<br /><br />यहां ब्लौग पर कई बातें लिखी-गुणी जा रही है.. उससे क्रांती होने से रही? एक कमरा बंद कर उसमें ये सभी बैठ जायें और अपनी वैचारिक क्रांती वहां के चूहे-छछूंदरों को सुनाते रहे यही इनका एकमात्र मार्ग है..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-243094068025230052009-08-19T12:57:17.711+05:302009-08-19T12:57:17.711+05:30आपत्ति का कारण ही समझ नहीं आता। कल को तो ये लोग कह...आपत्ति का कारण ही समझ नहीं आता। कल को तो ये लोग कहेंगे कि जो हाथ से कलम के सहारे लिखता है वहीं लेखन है, यदि सीधे ही कम्प्यूटर पर लिखेगे तो वह साहित्य नहीं है। निखिल आनन्द गिरी की सलाह मानने को कहिए और कुछ सीख लीजिए। जो लोग ब्लाग पर साहित्य लिख रहे हैं, वह साहित्य ही हैं लेकिन जो अन्य बाते लिख रहे हैं वो तो वैसे भी साहितय ही नहीं है। किताबें तो अल्मारियों में बन्द धरी रह जाएंगी, हमारे मरने के बाद कबाडी भी नहीं लेगा। लेकिन जो नेट पर है वह हमेशा रहेगा।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-42101394273171119812009-08-19T12:13:49.360+05:302009-08-19T12:13:49.360+05:30जिन्हें ब्लॉग एक मरा हुआ विचारबक्सा दिखता है, उनका...जिन्हें ब्लॉग एक मरा हुआ विचारबक्सा दिखता है, उनका सर्वे करा के देखिए.....कंप्यूटर न जान पाने की हीन भावना उन्हें ये सब लिखवाती है....और कुछ नहीं....उनसे कहिए हिंदयुग्म से प्रशिक्षण लें मुफ्त का और फिर ब्लॉग का जादू देखें..Nikhilhttps://www.blogger.com/profile/16903955620342983507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6898673550088047104.post-13022866319114708192009-08-19T09:16:01.902+05:302009-08-19T09:16:01.902+05:30आपका कहना सही है.
इन चुक चुके तथाकथित रचनाकारों को...आपका कहना सही है.<br />इन चुक चुके तथाकथित रचनाकारों को ये नहीं पता कि उनकी अपनी स्वयं की रचनाओं को - और उनके जीवन की संपूर्ण रचनावली को बस्तर से न्यूयॉर्क तक सर्वसुलभ, जन-जन तक पहुँचाने का इंटरनेट से सस्ता (बहुत से मामलों में मुफ़्त का) सुंदर और टिकाऊ साधन कोई दूसरा है ही नहीं! इंटरनेट पर रचनाकार (http://rachanakar.blogspot.com ) जैसे दो दर्जन से ज्यादा हिन्दी साहित्य को समर्पित ब्लॉग और इंटरनेट साइटें इनके बयानों से जुदा बात न सिर्फ कह रही हैं, बल्कि स्थापित कर रही हैं तो इनकी ग़लत बयानी स्वयंसिद्ध है ही.<br /><br />दरअसल, वे अपनी तकनॉलाज़ी अज्ञानता को स्वीकार नहीं कर पा रहे, और इसीलिए वे इसे खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं. और, इस कोशिश में वे अपनी साहित्यिक हाराकिरी कर रहे हैं.रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.com